म्है अबै पाणी तिलाक दियो!!

एक समय हो जद लोग आपरी बात री कीमत जाणता अर हिम्मत रै साथै उण माथै कायम रैता। मर जाणा कबूल पण दूध- दल़ियो नीं खाणा री बात माथै अडग रैता। आज लोग लांठै मिनख री नगटाई अर नुगराई रो विरोध करण सूं डरै अर उणरै आगै लटका करै। क्यूंकै ‘कुतको बडी किताब, लांठाई लटका करै’ पण उण बखत अन्याय अर अत्याचार रै खिलाफ उठ ऊभा होवता तो का तो बात मनायर छोडता अर पार नीं पड़ती तो उण जागा नै तिलाक सदैव रै सारू छोड देता। छोड देता तो पछै भलांई कोई कितरा ई चीणी रा धोरा बतावो वांरो मन नीं डिगतो।
ऐड़ो ई एक किस्सो है महाराजा सूरतसिंहजी बीकानेर री बखत रो। महाराजा राजसिंहजी बीकानेर रो शरीर निरोगो नीं हो सो उणां आपरै जीवनकाल में गाडण धनजी (डांडूसर) नै कुंवर प्रतापसिंहजी रा संरक्षक बणा दिया। कुजोग सूं महाराजा राजसिंहजी रो शरीर रैयो नीं। जद उणां रा कुंवर प्रतापसिंहजी 7 वरस री ऊमर में बीकानेर रा शासक बणिया। शासन रो पूरो भुजभार दरबार रै काकै सूरतसिंहजी माथै। बात चालै कै प्रतापसिंह जी गादी बैठ र लखमीनाथजी रा दरसण करण पधारिया उण बखत सूरतसिंहजी उणांनै खोल़ै में लेयर बैठा। उण बखत आ बात भूकरका ठाकर मदनसिंह जी सूं सहन नीं होई अर उणां हाथ झाल सूरतसिंहजी नै नीचै उतार लिया। सूरतसिंहजी आपरी झेंप मिटावण सारू कैयो कै – “दरबार बाल़क है, इण खातर म्हनै बैठणो पड़ियो।” आ सुणर ठाकर साहब कैयो कै – “ई महाजन वाल़ै रो कांई काम है?” उण बखत महाजन ठाकर राजाजी री खवासी में लारै बैठा हा। मदनसिंह जी सामधरमी सिरदार हा। वे लखग्या कै सूरतसिंहजी री मींट गादी माथै है। अर वे ऐड़ो कोई मोको नीं छोडता जठै उणांनै लागतो कै राज-मरजादा भंग हो रैयी है। एक दिन उणां देखियो कै सूरतसिंहजी, प्रतापसिंह जी नै खोल़ै लियां बीकानेर रै आसण माथै बैठा है। उणां बिनां किणी लाग-लपट रै सूरतसिंहजी नै कैयो – “गादी सूं नीचा उतरो !! इयां तो आपां मांया सूं कोई बैठ जावैला गादी माथै! इती सून थोड़ी ई है अठै जको धण्यां ऊभां कोई खेत भिल़ादे।”
सूरतसिंहजी री कुदीठ ठाकरां माथै होयगी वे जाणता कै मदनसिंह म्हारै आडी रो देवाल़ है जितैतक प्रतापसिंह जीवैला ओ म्हनै आसण तक नीं पूगण दे।
जोग बणियो कै कुजोग महाराजा प्रतापसिंहजी सत्ता संघर्ष में षड्यंत्र रा शिकार होयग्या। इण रो पूरो भग (आरोप) सूरतसिंहजी माथै आयो। चूंकि सूरतसिंहजी बीकानेर रा शासक बणग्या जिणसूं विरोध री सुगबुगाहट बंद होयगी। किणी चूं नीं करी पण भूकरका ठाकर मदनसिंहजी अर धनजी गाडण बीकानेर त्याग दियो। ठाकर भूकरके गया परा तो गाडण धनजी खींवराजोत इण बात नै अजोगती मान हाथोहाथ बीकानेर रो अंजल़ त्याग दियो। वे बीकानेर छोड बीकानेर रै सीमाड़ै आए गांम ख्याली -लोहसाना में रैवण लागा। जद आ बात तत्कालीन नवलगढ़ ठाकुर साहब नै ठाह लागी तो उणां, उणांनै 8000 बीघा जमीन दी जठै उणां काल़ियासर री ढाणी बसाई।
आ बात जद पाछी बीकानेर पूगी तो महाराजा सूरतसिंहजी आदमी मेल धनजी नै ससम्मान पाछा बुलाया। क्यूंकै महाराजा रा बडेरा सूरसिंहजी नै राज दिरावण में धनजी रै बडेरा चोल़ोजी गाडण रो गीरबैजोग सैयोग हो। पण धनजी नटग्या अर कैयो कै -“जिण राज रो सिंहासण रक्तरंजित है, जठै रै राजा माथै पाट घात रो सोबो (वहम) है, उठै हूं पाछो नीं हालूं। जिण मिनख लालच रै मांय ओ जघन्य अपराध कियो है उणनै म्है म्हारै मूंडै सूं महाराजा नीं कैवूं। म्हारै सारू अबै उठै रो अन्न-पाणी हराम है!!” ऐ समाचार जद महाराजा कनै पूगा तो उणां धनजी नै पाछो आदमी मेल कैवायो कै – “आप हमे तिलाक नीं भांगो तो कोई बात नीं पण आपरै छोटे भाई गोरखदान नै पाछो बीकानेर मेलो।”
गोरखदान जी पाछा बीकानेर आयग्या। महाराजा पाछी उणांनै गढ में रैवण नै बुर्ज दे दियो। इणां रा बेटा नवलदानजी होया। नवलदानजी साहसी अर वीर हा। जद बहावलपुर रै नवाब बहावलखां बीकानेर माथै हमलो कियो उण बखत बीकानेर री सेना रो नेतृत्व नवलजी कियो। नवलजी री झाट नवाब झाल नीं सकियो अर डरतो नाठग्यो। आ खबर जद बीकानेर पूगी तो दरबार नवलजी रो सनमान कियो तो नवलगढ़ ठाकरां दो गांम इनायत किया-हंसासरी अर बाड़ेट।
जद चूरू ठाकर शिवजीसिंह माथै बीकानेर री सेना गी उण बखत ई बीकानेर रै हरावल़ में नवलजी गाडण हा। जिणां घणी बहादुरी बताय वीरगत वरी। बीकानेर री जीत अर चूरू री हार होई। जद किणी चूरू रै चारण कवेसर चूरू ठाकरां नै उणां री हार रो कारण बतावतां कैयो-
कांदा खाधा कमधजां, घी खायो गोलांह।
चूरू चाली ठाकरां, बाजंतां ढोलांह।।
महाराजा सूरतसिंहजी बीकानेर री जीत रो श्रेय नवलजी नै देतां थकां चूरू गढ रै साम्ही इणां री मूर्ति थापी।
नवलजी गाडण वीर, उदार अर नखतधारी मिनख हा। किणी मोतीसर कवि लिख्यो है-
आछां रा इचरज किसा, नीका पखां नवल्ल।
दादो गाडण दान सा, जय नानो जयमल्ल।।
थाल़ भलांही बाजियो, तो जायां र नवल्ल।
उदध ढाल ढूंढाड़ री, गाडण गाहिड़मल्ल।।
~~गिरधरदान रतनू “दासोड़ी”