छत्रिय मित्र रो वैर लेवणियो चारण कवि कान्हा आढा

सांई दीन दरवेस सही ई लिखियो है कै मित्र ई करणो है तो चारण नै करणो चाहीजै क्यूंकै वो ई जीवतै नै अर मरियां पछै ई समरूप सूं चितारै –

मित्र कीजै चारणां, बाकी आल़ पँपाऱ।
जीवतड़ां जस गायसी, मूवां लडावणहार।।

इण बातरी सार्थकता सिद्ध करणिया घणा ई किस्सा है। ऐड़ो ई एक किस्सो है कविवर कान्है आढै रो। बीकानेर राव जैतसी रो समकालीन कवि कान्हो इणी रियासत रै गांव भालेरी रो वासी हो। मोटो अमल रो बंधाणी। एक सेर अमल रो मावो थित रो। कम आमदनी रो गांव अर इतरो नसो सो पार पड़णी दोरी। कणै किणी ठाकर रै तो कणै ई किणी ठाकर रै फिरतो उणियारै रै धणी कर्मचंद नरूकै रै अठै पूगियो।कर्मचंद नै ठाह लागो कै कवि ठावको पण मोटो बंधाणी। शंकै रै मारियो घणा दिन किणी ठाकर कै राजा रै अठै नीं रुकै।
जाजम जमी। नरुकां, कान्है नै आव -आदर सूं मनवारां कर छकायो। एक दो दिन पछै कान्है, कर्मचंद सूं सीख मांगी तो उणां कैयो कै “आजरै पछै आप किणी दूजी जागा नीं जावोला। आपरो ओ ई घर है अठै ई रैवो अर हथाई जचावो। आपरो मावो पूरै जिती सरदा है इण घराणै में। आज सूं इण घर नै आपरो ई घर समझजो।”

आमेर रो धणी पृथ्वीराज जैतसी बीकानेर री बैन परणियोड़ो होतो। पृथ्वीराज रै पछै जैतसी री सहायता सूं जैतसी रो भाणजो सांगो आमेर रो धणी बणियो पण उणनै शक्तिशाली कर्मचंद कोई विशेष अंगेजियो नीं। सांगै धोखै सूं तोतक रचर कर्मचंद नै मरा दियो। आ बात जद उणियारै पूगी तो कान्है नरूकां नै कैयो कै “इयां खुणो कांई झालियो है? थांरो धणी हो वैर लेणो चाहीजै!” नरूका सांगै री ताकत सूं डरग्या। उणां पाछो कान्है नै कैयो “बाजीसा आप ई तो बाटकिया भर- भर दूध पियो है अर बटिया खाया है तो इतो काम तो आप ई कर दिराव़ो।”

कान्है उण बगत कीं नीं बोलियो। अबोलो ई उणियारो छोडर बहीर होवण लागो तो “किणी कैयो कै मावो तो कर लिरावो! तो दूजै किणी कैयो कै बाजी हमें आपरै मित्र रो वैर लेयर ई अमल अरोगेला।” पण कान्हो कीं नीं बोलियो। आमेर पूगो। ठाह लागो कै कर्मचंद रो प्रिय कवि कान्हो उणियारै सूं आयो है। किणी कैयो कै मांया मत आवण दो तो किणी कैयो कै आखिर है तो बीकानेर रो! आवण दो। मा सा रै देश रो आदमी है। कान्हो आयो। सांगै ई आपरै नानाणै रो कवि जाणर राखियो पण चोकसी राखै। एक दिन जोग ऐड़ो बणियो कै सांगो अर कान्हो दोया दोय ई दरबार में रैया। मोको देखर कान्है, सांगै नै बोकारियो कै उठ! कर्मचंद नरूको मांगूं! संभल। सांगो ई संभियो पण पार पड़ी नीं कान्है री कटारी बही उण सूं सांगै रा आंतरा बारै आयग्या। हाको होयो कै दरबार माथै कान्है घाव कियो। सांगै रै
आदम्यां आयर कान्है नै ई मार नाखियो। पण कान्हो आपरो नाम इतिहास में अमर करग्यो –

मार्यो सांगो महपती, वैर कर्मचंद बोड़।
अमलां रा रंग आपनै, कान्हा आढा कोड़।।

समकालीन डिंगल़ कवेसरां लिखियो है कै कान्है रा बोल ई सतोला तो हाथ ई सजोरा। क्यूं कै कान्है जिण भांत आपरी कटारी सूं गीत लिखियो उण भांत दूजै चारणां सूं नीं लिखिज्यो-

साम धरम सूरा तन साझै, जडलग वयणै राजा जीत।
आढा सिरसो इण पुड़ ऐहो, गढवै किणियन कहियो गीत।। (अज्ञात)

कवियां लिखियो है कै पैला देवां-दैतां समंद मथ चवदै रतन काढिया उणी गत वीर कान्है आपरी कटारी सूं सांगै नै मथर कर्मचंद जेड़ो पनरमो रतन काढियो-

सपत जेम संग्राम आगमो नर समंद
मेर खग धूण मांडै मयानै।
वीर रस चवदैह जिही वाल़ियो
करमचंद पनरमो रतन कानै।। (अज्ञात)

कान्हो मित्रता रो मोल चूकाय मरियो आ बात जद उणियारै पूगी तो नरूकां कान्है रो ई मातम मनायो। आज ई नरूका आढां नै मोटा भाई मानर पैला जंवारड़ा करै अर पछै आढा करै।

वीर कान्हो स्वामीभक्ति अर मित्र प्रेम री मिसाल कायम करर आज ई अमर है-

वैर करमचंद वाल़ियो
सांगो भचड़ संघार।
अमल लियंतां आपनै
रंग काना रिझवार।।

~~गिरधरदान रतनू दासोड़ी

 

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