मोद कवि गीध मोद धार करेगो

।।कवित्त (पिंगल में)।।
सिरोही को सांम सज्यो लज्यो न अकाम माग,
मोरवड़ा गांम परे भेजि सेन भारी है।
ईनमीन साढी तीन पातन आवास वहां,
प्रेमी वे जमीन के सदीन साख धारी है।
अतंक हूं के डंक हूं से निशंक सारे वीर
यश हूं के अंकधारी नेस नर-नारी है।
बंध्यो सिर सूत सोई मन मजबूत भारी,
भिड्या दूत जम्मन से कथा धर सारी है।।

कलम को रखी दूर खडग को धारी सूर,
ओ दिपै मुख नूर हूर हाथ वरबा को।
रक्त से लिखे छंद उर में मन्यो अनंद,
बने मयंद पात धरा यश धरबा को।
लट्ठ से रचे गीत रजवट की बहे रीत,
खड़े वो अभीत सारे जम्मन से लरबा को।
भग्गन की ऐल सारी अग्गन को धारी चक्षु,
डग्गन भरे खेत जैतधारी मरबा को।।

मची दल़ घटा सिरोही सेन के भटा सज,
मोरवड़ा नेस झटा अदटा दंडन को।
कियो घेर घटा चहुं वटा सब गलिन को,
गोलिन वार फटा देह पात खंडन को।
हेतव नीं हटा एक धुर्जटी को रटा मुख,
युद्ध की निखारी छटा मही सुमंडन को।
भिड़े वो सुघटा भगा की संतान सबै,
घरिन आई अरिन थटा विहंडन को।।

चारण को तज्यो भाव सिरोही के महाराव,
खाय हूं के ताव साव बजायो नक्कार है।
सुन्यो कविराव जबे कह्यो सुर आव-आव,
मरण उछाव भयो खायो मन खार है।
धरा पे आए कष्ट धरम जबे होत भ्रष्ट
महिला की लाज नष्ट जीवन धिक्कार है।
भगाहर घर घर कियो सबे हर हर,
भर भर उर जोश मरन स्वीकार है।।

सांसण पे सेन आई, कर की उगाई काज,
महिया सबे सीस देय डांण पांण भरेगो
गोली की बोछार भई, श्रोणित की धार बही,
अछरा के हार काज एक एक लरेगो।
पनंग की पूंछ पाव मयंद की मूंछ पाण,
दियो सोई भूछ मान मीच मोत मरेगो।
ऐसे शूरवीरन की गल्ले सुनी धीरन की,
पंगी कवि गीध मान मोद धार करेगो।।

।।सोरठा (डिंगल में)।।
अडरां रा ऐनांण, मोरवड़ै भाल़ो मही
महिया मोरवड़ैह, अड़िया अडर अन्याव सूं।
घट रख गौरवड़ैह, बहिया रणवट बाटड़ी।।1
वरण मरण री वाट, धरण सही सतधारियां।
कीरत थिर कुल़वाट, महियां मोरवड़ै मँडी।।2
एको इक अजरेल, आहंस रा अवतार इम।
थाट दोयणां ठेल, महिया जग चावा मुलक।।3
कलम साथ किरपांण, महियां मोरवड़ै मँडी।
घट थट अरियां घांण, साच कियो रण सूरमां।।4
त्याग सनातन तीख, आबूपत आयो अठै।
लोभ सुजस री लीक, महियां लीधो मोरचो।।5
वर वाल़ै वागैह, कर में कांकण-डोरड़ा।
अडरो हुय आगैह, मरण जवै कीधो मरद।।6
रण सज बाजी रीठ, दीठ निरप री दुसटता।
पमंगां री तज पीठ, महिया पाल़ा सह मरद।।7
सज आई सेनाह, मोरवड़ै मैदांन में।
अपणी रख ऐनाह, महिया भिड़िया मरटपण।।8
अधपत रची अनीत, मरजादा मेटी मछर।
रजवट वाली रीत, महिया संभिया मरण नै।।9
हेतव हठधारीह, जांणै धर सारो जगत।
भड़ विरदां भारी, महियां वरियो मरण नै।।10
मुकन पेमो मनरूप, कान जवो हिंद खेतलो।
रजवट वाल़ो रूप, खाट्यो अचल़ै खेतलै।।11
साल सिततर साच, संमत उणीसौ सांपरत।
बारस किसना बाच, मास मधू रण मंडियो।।12
पातां नख परवाह, उर ना करी आदेश री।
रणवट वाल़ी राह, महिया मोरवड़ै हुवा।।13
लजधारी लड़ियाह, मुड़िया नहीं महीप सूं।।
झाटां लग झड़ियाह, धरण-आंक महिया धरण।।14
चारण की है चीज, देखी मोरवड़ै दुनी।
खाग कलम री खीझ, रण महियां साथै रची।।। 15
उर उर उमँगायोह, वीरारस छायो वसू।
ऊजल़ पर्ब आयोह, महियां मनचायो कियो।।16
हुइया धर हाकाह, सांम सिरोही सेन रा।
पातव मन पाकाह, सूरा जव ना सधरिया।।17
रल़क्या रतखाल़ाह, मतवाल़ा महिया मुदै।
वीदग बल़वाल़ाह, मोरवड़ै वाल़ा मरद।।18
इक इक सूं आगैह, खागां कीरत खाटणा।
सूरा नव सागैह, बास पुरंदर पूगिया।।19
गैरां गुणधारीह, धवल़ा सांवल़ कीध धर।
बातां बल़िहारीह, जुड़ियो मोरवड़ै जमर।।20
पूतल़ियां पाखांण, ऊभी अजलग अवन पर।
अडरां रा ऐनांण मोरवड़ै भाल़ो मही।।21
गढवी गिरधरदान, सिरजण कीधा सोरठा।
पात सकल़ रसपान, मन सारू करजो मही।।22

~~गिरधरदान रतनू दासोड़ी

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