साहित्य सेवी अर देवी उपासक श्री मोरारदानजी सुरताणिया रै सम्मान में दूहा
आदरणीय साहित्य सेवी अर देवी उपासक श्री मोरारदानजी सुरताणिया रै सम्मान में कीं दूहा म्हारै कानी सूं भेंट
सत साहित री साधना, सकव करै सतकार।
स्नेह भाव सुरताणियो, मनसुध रखै मुरार।।१
करै साहित री केवटा, सरस ग्रहै मनसार।
सजन साच सुरताणियो, मनसुध रखै मुरार।।२
सैण सँवारै वैण सह, उर में प्रीत अपार।
सौ कोसां सुरणाणियो, नैड़ो लगै मुरार।।३
सही करै सुरताणियो, विदग सुधारण बात।
महमा कवि मुरार री, हेत बधारण हाथ।।४
करै सुंदर हद कोरणी, साच भरै रंग सार।
सिरै हुई सुरताणिया, मन री मोज मुरार।।५
संस्कृति अर साहित सथ, प्रक्रत सूं हद प्यार।
करै सुंदर हद कोरणी, मनसुध कवी मुरार।।६
सरस काव्य मन सरस सूं, ध्यान ग्यान बहु धार।
सजा संवारै सोहणो, मनसुध कवी मुरार।।७