चढ़ाऊ गीत – मुलक सूं पळकियो काढ़ माता – बिड़ददान जी बारहट (नाथूसर)

।।गीत – साणोर।।
उरड़ उण तार बिच बार करती ईदग।
बीसहथ लारली कार बगती।।
आंकड़े अखूं आधार इक आपरो।
सांकड़े सहायक धार सगती।।
त्रिमागळ रोड़ती थकी आजै तुरन्त।
आभ नै मोड़ती थकी मत अटकै।।
रसातळ फोड़ती थकी मत रहीजै।
गोड़ती समुन्दरा असुर गटकै।।
भूडण्डां भार मत रहीजे अनंत भुजाळी।
खण्डा पार मत रहीजे खिंजणी।।
डण्डां ब्रह्माण्ड आकास बिच डोलती।
बाघ पर चढाळी असवार बजणी।।
कोप कर कान्ह घंट्ट भांगियो क़ड़ड़।
बड़ड़ पतसाह नै जकड़ बैठी।।
जड़ड़ असुराण गिट गयी थूं जोगणी।
पी गयी हाकड़ो सड़ड़ पैठी।।
चेलकां सहायक सिंहां पर चढ़ाळी।
गढ़ाळी आव त्रिहुलोक गंजणी।।
मढाळी मिहरो बचन सत मानजो।
भोमी पर डाढाळी बिपत भंजणी।।
ताप हर चारणां बिड़द आखै तनै।
सारणां अनेकां काम सदळै।।
मारगां रोग कई जमपुर मेल दे।
वीदगां चारणां तुंनू बदळै।।
घाव कर मात चावण्ड सत्रु घळकियो।
ईहगां भळकियो बेग आतां।।
खळकियो रोग खोटो प्रथी मिनख खावणों।
मुलक सूं पळकियो काढ़ माता।।
~~रचना: बिड़ददान जी बारहट (नाथूसर) वि.स.१९७५
प्रेषित: डॉ. गजादान चारण “शक्तिसुत”