नाळेरी नेस आवड मढ रो शबद चितराम
गीर रा गाढ ओरण रे माय एक वळे जगह है जिण रो नाम नाळियेरी नेस/नाळेरीनेस है जठे आवड जी महाराज मढ में बिराजियोडा है। वन पशु पंखेरू अर प्राणी मात्र नें मां आवड अनपूरण रे ज्यूं प्रकृति रे अनुपम अखैपातर सूं केर , करमदा बोर, जांबु, केरी, चीकू, केळा रो नित भोजन करावै। माता रो रसोडो अणखूट है किणी नें मा निराश नी करे। प्रकृति री इण अनुपम भेट ने आधार बणायर म्है ओ बात नें कविता मे केवण री कोशिश करी है कि आप अगर तर्क री दीठ सूं प्हैला शगती अवतरण रा मिथक ने देख अर राव शेखा री फौज ने करणी जी द्वारा/ अर रा नवघण री फौज ने बिरवडीजी द्वारा कुलडी रे माय भोजन पकायर सेना समेत जिमाया उण घटना ने नकार दो तो उण लोगो ने निवेदन है कि वे एकर गीर रे जंगल मे आयर देख सके जठे हररोज आवड मा पशु प्राणी अर पंखेरू ने रोज जिमाडर एहडी लीला रोज कर रिया है।
दोहो:
नवघण शेखो है नहीं, किणने पूछां जाय।
आवौ ओरण गीर रे, जीमाडै महमाय॥
जिमाडै कर घण जतन,हरियल जाजम ढाळ।
अनपूरण करुणामयी,आवड सब वनबाळ॥
आप सबने नाळेरी नेस री प्राकृतिक छटा अर आवडजी महाराज रे मढ रे चितराम रा दूहा/सोरठा/तुंबेरा दोहा/बडा दोहा सादर।
आवड मावड रे मढां, नाळेरी रे नेस।
हालौ मन है हालणो,वंदन करण विशेस॥193
केड समाणी घास री,हरियल जाजम ढाळ।
आलेचां गिरि आवडा,बैठै नित बिरदाळ॥194
डणके दहितां दाबवा,गीर नद हिरण तीर।
खळ दळ पर आवड तणों,क्रोध करे कंठीर॥195
डाला मत्था डणकता,डाढाळी रे द्वार।
हिरण तीर हजार, हरियल वन नित गीर में॥196
सादूळा पीवै सलिल,हिरण तीर हमेश।
उण नद तट ऊपर आवडा,काटै भगत कलेस॥197
चीता अणचिंत्या दिसै,गाढी धर मझ गीर।
ठाकर है उण ठौडरी,आवड ! मढ नद तीर॥198
नदियां नीर्मळ नीर रो,दरपण करने देव।
सगती वडी सदैव, वनराई धाबळ धरै ॥199
आवड भाळै आभ सूं, पडै नदी प्रतिबिम्ब।
जब सजती जगदंब, धरण वादळी धाबळी॥200
बैठी बिच दुय डूंगरा,नाम जेण आलेच।
नाळेरी नेच, आवड मावड ओपती॥201
डूंगर नेडो वाहळो, सरके जाणक साप।
उठै बैठ खुद आप, सदा रूप साकंभरी॥202
मगर मच्छ है मोकळा, निरमळ हीरण नीर।
प्हाडां री प्राचीर, आवड मढ गिरि ऊपरां॥203
भाड ,बतक अर डेडरा,काछब अर जळसाँप।
पाणी तृण अणमाप,रहै बिचै राजेसरी॥204
जळ-कूकड घण माछली,हिरण नदी हमेस।
नद तट थानक मात रो,चारण हंदा नेस॥205
जळ ऊंडा सरवर नदी,धरा वाहळा जेथ।
आवड आसन तेथ,ठौड ठौड मां ब्राजिया॥206
जळ जामी काई जबर,मही झुकी वनराइ।
विटप वेल हुय माइ,बैठी मां परणेश्वरी॥207
नरपत मढ देख्यो नही,निज मन पूगौ जाय।
दूहा दिया बणाय,आवड मावड आपरा॥208
केड समांणा घास रो,पंखो करे समीर।
आवड मां रे नांखतो,गाढो ओरण गीर॥209
पंखो पकडे घास रो, नाळेरी रे नेस।
पगे खडै रहतौ पवन,आवड रे आदेस॥210
पान पान पर मोती लडी,पडै ओस री बूंद।
सुर आवड उण सांभळे,उर मँह धरै अणंद॥211
टप टप टप टप टिप टपक, बिरखा री जद बूंद।
पडतां आवड सांभळे, सुर मन सूं सानंद॥212
कल कल धुनि झरणा तणी,सरस बजै संगीत।
आवड उर धर प्रीत,सांभळती पल पल सगत॥213
मृग चीतल खरगा घणा, नाचै नित नखराळ।
आवड रहती भाळ,आणंद सूं अहनिश रहै॥214
मुधरा नाचै मोरिया, कर कर उंचा पंख।
कर मन में औ झंख,”आवड मावड देखसी”॥215,
नाळेरी रे नेसडै, करै चाकरी पेस।
सादुळ मढ रखवाळता, सेवक बणै हमेस॥216
आंबा आंबलियां तणी, लुळी फळां सूं डाळ।
उण ओरण मँह आवडा,हरियल धाबळवाळ॥217
रूंख करमदां केरडा, महुडा जांबू बोर।
आवड मां अठ पोर,अनपूरण जिम अरपती॥218
अनपूरण मां आवडा, अर वन अक्षयपात्र।
पोसै प्राणी मात्र, नाळेरी रे नेस मढ॥219
आंबलियां अलबेलियां, डीगी वळै घटाळ।
कूकै कोयल डाळ, आवड मावड नित सुणै॥220
मंजरियां आंबा तणी, महकै मंद सुगंध।
आवड नित आणंद, लेत नेस नाळेर मढ॥221
महुडा महकै मात रे,घणी नशीली गंध।
प्याला तणो प्रबंध,अहनिश जाणक आप रे॥222
तरू टीम्बरू रा घणा,दीसंता हर ठौड।
कर आवड मन कोड,आसन जमियां अधपति॥223
फळ पाक्यां घण फूट रा,केरी जांबू केर।
खावौ सांझ सबेर, नाळेरी रे नेसडै॥224
कटक जिमाड्या कुल्लडी, करनल बिरवड पेल।
आवड घण अलबेल,रोज रसोडो फळ तणो॥ 225
नाळेरी रे नेस मढ, कठे कठे नाळेर।
है लीली नाघेर, खरी खजूरी रायणां॥226
केसर आंबा कोळिया, रायण चीकू केळ।
रहै रसौडै रोज ही, आवड रे अलबेल॥227
नवघण सेखो है नही, कीकर करां खराइ।
गीर में देखो आवडा,जिमाडै अखिलाइ॥228
नवघण सेखो है नही, पूछां किण ने जाय।
आवो ओरण गीर रे,जिमाडै महमाय॥229
आगै कटक जिमाडिया,करनल बिरवड आइ।
करणी चहौ खराइ,निवतै है नाळेर मढ॥230
खटमीठा है करमदां, केरी केसर घोळ।
छाछ दुध मही छोळ,रोज रसोडै मात रे॥231
प्राणी मात्र नें पाळणी, रहै विहग रखवाळ।
आई साची आवडा,अखै पात्र हथ वाळ॥232
सोपारी रा झूंबखा, नागरवेली पान।
देय मान सम्मान, करै भगत रो आवडा॥233
जिमाडै घण जतन कर,हरियल जाजम ढाळ।
अनपूरण करुणामयी,आवड सब वनबाळ॥234
गाढी वडवाई गहन, ओर ऊंमरां डाळ।
विध विध फळ खावै विहग,आवड खुश व्है भाळ॥235
कुण थारी समवड करै, अनपूरण मां आइ।
वड थड जंगल गीर में,बैठी आवड बाइ॥236
बोलावै मां बीसहथ, घेरे घेरे साद।
गाढा ओरण गीर में, कर कर विहग निनाद॥237
आवड मढ रे आंगणै, मधुर करै मृगझंप।
जाणक बज्यां मृदंग, मन तण नाचै मोरियो॥238
आवड मां रे आंगणै,डणकै सिंह अनेक।
मां मन धरे विवेक,मन माने उण स्वार ह्वै॥239
नाळेरी रे नेसडै, चरता डांगर ढोर।
करै जोर सूं शोर, आवड री जय जय सदा।240