कविराज नाथूसिंह महियारिया

ठाकुर केसरी सिंह महियारिया के इकलौते पुत्र कविवर नाथूसिंह महियारिया किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। आप उदयपुर (मेवाड़) दरबार में राजकवि थे। बचपन में ये हमेशा अपने साथ एक पेंसिल तथा कागज रखते थे ताकि किसी भी समय अपने मन में उमड़ी बात को दोहों अथवा कविता के रूप में लिख सकें। नाथूसिंह जी का विवाह आसियानी जी से हुआ था।
कविराज अपनी वाक् पटुता तथा साहस के लिए विख्यात थे। देश की आज़ादी के पश्चात चुनाव के समय की एक घटना है, कविराज नाथूसिंह जी अपना वोट देने के लिए वोटिंग बूथ में जा रहे थे और उसी समय तत्कालीन महाराणा मेवाड़ श्री भगवत सिंह जी वोट देकर बाहर निकल रहे थे। उनकी ऊँगली पर वोट देने के सबूत स्वरुप स्याही का निशान लगा हुआ था। महाराणा ने कविराज जी को अपनी उंगली का निशान (दाग) दिखाकर इस मोके पर कुछ रचना करने को कहा। कविराज जी ने तत्काल निम्नलिखित दोहा बनाकर पेश किया:
अंदागल चेतक रयो, अंदागल हिन्दभाण
वोटां में शामिल व्हे, दागल व्या महाराण
अर्थात चेतक और महाराणा प्रताप ने कभी समर्पण नहीं किया और हमेशा बेदाग़ रहे। आप उनके वंशज वोटों में शामिल होकर दागदार बन गए।
कविराज नाथूसिंह महियारिआ ने डिंगल भाषा में अनेकों रचनाएं लिखी हैं जिनमे करणी शतक, वीर सतसई, चूण्डा शतक, हाड़ी शतक, झाला मान शतक अत्यंत प्रदिद्ध हैं। उनके प्रशंसकों में एक नाम हमारे देश के प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद का भी था।
नाथू सिंह महियारिया कृत वीर सतसई से।
खग कुंची जादू करै, पिव रे हाथ रहंत।
अरियां तन लागै अठै, ताळां सरग खुलंत॥
विरांगना अपने पति की तलवार को चाबी का रुपक देकर कहती है। “तलवार रुपी चाबी जब मेरे पतिदेव के हाथ में रहती है तो अजीब जादू करती है। वो यहां पर शत्रुऔ के शरीर पर लगती है पर वहां वह स्वर्ग के ताले शत्रुऔ के लिए खोल देती है।”
श्री कृष्णपाल सिंह जी चहुंआण “राखी” का कविवर नाथूसिंह महियारिया पर आलेख
वीरत्व रै औजस्वी गायक कविवर नाथूसिंह महियारिया रो नांव सुमरण करतां ई पारम्परिक वेशभूषा री ठठक में सजियोड़ी हेक ऐहडी भव्य अर विराट सख्सियत आंख्यां रै सामै उजागर हुय जावै है जिकै जीवण पर्यन्त मेवाड़ री अणमोल क्षात्र-संस्कृति नै आस्था अर गरब सूं जीवी है। वास्तव में वै क्षात्र -संस्कृति रा उद्घोषक, संवाहक अर प्रतिष्ठापक हां।
कविवर नाथूसिंह चारण जाति री महियारिया खांप रा लाडेसर हा। महियारिया उपजाति रो आद-पुरस् मांडणजी गुजरात छोड़ मेवाड़ में आय बसग्या हा। मेवाड़ रै महाराणा उवां नै महियारी गाँव री जागीरी बख्सीस में दी ही। केसरिया मांडणजी तद् सूं महियारिया बणग्या। उणरी बाइसवीं पीढ़ी में वेलाजी विया। वेलाजी री सुन्दरबाई महियारिया री कुलदेवी रै रूप में पुजीजै।
महियारिया कुळ में घणा ई जोधा अर कवि जलम्या हां, जिकां तलवार अर कलम रै बळबुते खुद आपरौ इतिहास बणायौ है। मांडण कुळ भासकर देवीदास महियारिया पांच लाखपचाव दे’र “जग दातार” रो खिताब पायो हो। कविवर नाथूसिंह रा परदादा किसनदास, उदयपुर रै प्रसिद्ध जगदीस मिंदर नै जोयडा गांव समरपित कियो हो अर लालघाट माथै चारभुजा जी रो हेक मिंदर पण बणवायो हो। दादाजी जसकरण भी घणो जस कमायो। जसजी रै तीन बेटा में पूछेट हो ठाकुर केसरीसिंग, कविवर नाथूसिंह ईण ठाकुर केसरीसिंग रै घरां जलम लीधो हो।
कवि रा पिताश्री पण ड़िंगळ रा नामी-गिरामी कवि हां। ईण तरां कवि री वंश -परम्परा घणी उजळी रैयी है।
कविवर नाथूसिंह महियारिया रो जलम सवंत 1948 वि. में भाद्रपद री क्रस्णां-आठम नै रोहिणी नखत में सुबै आठ बज्यां हुयौ हो। उण री माँ रामकंवर बाई, इतिहास प्रसिद्ध कवि दुरसा आढ़ा रै वंशज ठाकुर चमनसिंह (साया रौ खेड़ो) री धिया ही। कवि रै जलम रो नांव विजयसिंह हो, पण उण रा पिताजी उण नै नाथूसिंह नांव दियो हो। कवि जद फगत नो बरस रो हो तद् उण रा पिताजी रो देहांत हुग्यो हो। मां रो सरगवास होयो जद कवि तेरै बरस रो ई हो।
कवि री अल्पायु में ई पिता रो सायो उठ जावण सूं उण रो लालण पालण मातुश्री री देख रेख में ई वियो हो। पिताजी रै जीते थके वो फगत तीजी धोरण ताई भणिज पायो। पिताजी री मौत रै पछै माँ उण नै ले’र बांदरवाडा गाम में आयगी ही। गांव में भणाई री काई वैवस्था कोनी ही, जिण सूं आगै नेम सूं भणाई कोनी हुय सकी। पण ज्ञान रै सारूं अध्य्यन री काई खास जरुरत कोनी हुया करै। कवि री आंख्यां अर दिमाग हरमेस खुला रैवता अर उण रै माध्यम सूं वो भरपूर ज्ञान हासळ करयौ हो। ओ सच है की काव्य शास्त्र रो विधिसर अध्य्यन, मनन अर अभ्यास कोनी करयौ, पण आपरी विलक्षण ईच्छा सगति सूं जुनां गीतां, दूहा आदि रै माध्यम सूं सिरजण-कला सीख लीधी ही अर उण रै मुताबिक काव्य रचना सरू कर दीधी ही। उण री लय अर गति कवि रै मानस में हेक संस्कार रै रूप में अंकित हुयगी ही। छंद हाफैई लय रै आधार माथै बण जाता। आ ई ही उण री शिक्षा अर आ ई ही उण री दीक्षा।
कवि रै समै बाळ-ब्याव री प्रथा हुवण सूं उण रौ ब्याव पण अल्पायु में ई सवंत 1957 में चैत वदी दूज नै जीतावास रै ठाकुर दलेलसिंह आशिया री बेटी फूलकंवर बाई रै सागै वियो हो। कवि रो दूजो ब्याव कड़िया गाँव रै ठाकुर रामलाल री बेटी दाखकंवर बाई सूं वियो हो, पण उण रो बेगोई देहांत हुग्यो हो। कवि रै तीन बेटा अर हेक बेटी हुई, मोहन सिंह, प्रताप सिंह, महताब सिंह अर सुभाग बाई। कवि रै जीवण काळ में ई मोबी पूत मोहनसिंह अर बेटी रो सुरगवास हुयग्यो हो। पुत्र मोहन सिंह राजस्थान सरकार में प्रशासनिक अधिकारी हा अर उवां कवि री “वीर सतसई” रै सम्पादन में मबताऊ सैयोग करयो हो। कवि री धर्म पत्नी रो अचाणचक सन् 1955 ई में देहांत हुवण सूं कवि-हिरदै माथे भारी आघात लागो हो, उवां आपरी काव्य- कृति “हाड़ी शतक” पत्नी नै समरपित कर उण नै काव्यजंलि प्रदान करी हीं।
कवि ने काव्य सिरजण री पैली सीख उण रै पिताश्री सूं मिली ही, इण कारण कवि आपरो प्रथम गुरु उणां नै ई मानतो हो। कवि रै पत्रा -पानडां में हेक दूहो लाधो हो —
शिशुपण महीं सिखवियो, बणै दूहा विख्यात।
कुंकर हूं उरण कहो, तो सूं केहर तात।।
करजाली (मेवाड़) महाराज लक्ष्मण सिंह रा लघु भ्राता राजऋषि महाराज चतुर सिंह बावजी, कवि उण रै प्रति कृतज्ञता रा भाव कई ठौर परगट करया है। बावजी रो बैकुंठ वास हुयौ जद कवि उणां री प्रशस्ति में अनेक दूहा-गीत लिख गुरु नै सिरधा – सुमन अरपित किया हां। बानगी है–
हे चातुर आतुर हुयो, थूं हर भगत अथग्ग।
नहं जातो आतो निहच, सामो आप सुरग्ग।।
भारत रा पूर्व राष्टपति राजेंद्र प्रसाद जद उदैपुर पधारयां हां तो हल्दीघाटी रै चेतक चबूतरे माथै कवि उणां नै “वीर सतसई” रा कई खास खास दूहा सुणायां हां। काव्य-पाठ सुण’र इत्ता प्रभावित विया हा कै उवां फेरु ड़िंगळ कविता श्रवण सारूं कवि नै राष्टपति भवन आवण रो मान भरियो न्युतो दिया हो। कवि ईण छिणां नै पण आपरी लूंठी उपलब्धि मानता हां।
कवि रो खास दूहो-
हसती हौदै देखियां, तोरण चंवर ढुलन्त।
सोहै उण बिच सौगुणा, रण कट पड़ियां कंत।।
कविवर महियारिया बोत निडर हा अर खरी खरी सुणावण में वै कदै ई नीं चूकता। उण रै हेक दुहे सूं देवगढ़ रावजी रो मदिरा पान छुड़ा दियो–
थां कतरा त्यागी हुवा, तज दीधो थां राज।
आओ चुंडा देखवा, (ई) दारू तजै न आज।।
कवि फगत आपरै काव्य में ई कायरां नै प्रताड़ित कोनी किया, बल्कि बौवार में पण इस्यो कर बतायो है। कवि री कथनी अर करणी में कोई भेद कोनी हो। रियासत विलीनीकरण रै दिनां में कवि सगळा राजावां नै चूड़ियाँ अर चुटणीं रो हेक-हेक दूहो मेल्यो हो। बानगी रूप में बूंदी नरेश री चुटणीं अठै प्रस्तुत है—
हाडो तो तिल-तिल हुवो, नकली बूंदी काज।
हिक चीरो खायां बिना, दीनी असली आज।।
कवि महियारिया देवी करणी रा सुरसती रा उपासक हां “करणी शतक” उण री देवी भगति रो ई प्रतीक है। कवि आपरै गले में करणी जी रो सोनलियो “नावां ” सदीव धारण किया रेता। जद काव्य पाठ रै दौरान किणी दूहै के छंद री लोग बाग़ सरावणां करता के दाद देता अथवा वाह वाही करता तो वै झठ सूं “नावां” नै बारै निकाल आंख्यां सूं परस कराता। आणद रै छिणां में कवि कदै कदै कहया करता —
अन धन दिनों मोकळो, दीनो जस परिवार।
मरणो मनचायो दहै, तो करता बळिहार।।
कवि री सगळी इच्छावां भगवान् पूरी करी ही, पण मनवांछित मौत वाळी साध पूरी कोनी हुई। वै ऐहड़े सुख-सम्रद्धि वाळै वातावरण में आपरै हरिये-भरिये परवार रै बीच शांति सूं मरणो चावता। पण मनचायो मरणो उवां नै नसीब कोनी वियो। कवि रा लारला किंक बरस काफी कस्टां में बित्यां हां। उण नै उपेक्षित अर हेकलु जीवण जिवणो पड्यो। लोगां कवि नै आपरी हवेली में टुट्योडे मूढै माथै हैकळो बैठो आंसू ढळकावतो देख्यो हो। ओजस्वी कवि सचमुच दया रो पात्र लागवां लागो हो। बूढ़ापै में धरम-पत्नी री याद में अक्सर रोवता रैता।
विधना ऐहडी खोटी करी कै कालांतर में उण री प्रिय हवेली हाटां बिकगी। उण रै सुखी जीवण माथै दुखां री गैरी काळख पुतगी। घर में तंगी, पण माठै कवि आपरी हटक कोनी छोडी। लारलै दिनां घणी मुसकळ सूं वै आपरै बेटै सागै रैवणो सरूं कियो हो। छेवट उठै ई सन 1975 ई में कवि री ठाठदार जीवण-जात्रा रो अंत वियो हो अर वै अणत जातरां रा मारगु बणग्या हा। लोग बतावैं है कै ड़िंगळ रै इण महान कवि री छैली जातरां में इण्या-गिन्यां लोग ई सामल विया हा। नी सोग-सभावां अर नी सिरधा-सुमन रो अरपण। हेक महान युगचारण् कवि रो इस्यो करुणामय अंत निस्चै ई सामाजिक-सोच री खोखळ नै उजागर करै है।
कवि री काव्य-कृतियां
1. वीर सतसई
2. हाड़ी शतक
3. झालामान शतक
4. गांधी शतक
5. करणी शतक
6. कश्मीर शतक
7. बा-बापू अर फुटकर रचनावां…
कवि रो “हाड़ी शतक” हेक प्रंससापरक काव्य-कृति जरूर है, पण ईण में भी वीरत्व री स्तुति ई कवि रो अभीष्ट है।
“हाड़ी शतक” रो कथानक मेवाड़ री हेक लोक-चावी गाथा माथै आधारित है। सलूम्बर रो चुण्डावत सरदार जिण दिन हाड़ी राणी नै परणीज घरां आ वै है, उणिज दिन महाराणा रो जुद्ध-नुंतों उण नै मिळे है। ब्याव रा कंकण खुलण सूं पैलां ई उण नै जुद्ध में जावणो पड़ै है। रणखेत री दिस बईर हुवण री वेळा चुण्डावत रावत नवी-नवेळी दुलहन रै मोहवश आपरै सेवक नै हाड़ी राणी खनेँ भेज्यौ अर उण सूं प्रेम-निसाँणी लावण रो कहयो। वीरत्व री देवी हाड़ी राणी तत्काल ताड़ लियौ के रावत रो मन आपरी गोरड़ी री प्रित में सागिडो उलझयोडो लखावै है। उवै सोच्यो कै जे प्रीतम री मोह-डोर उण सूं यूई बन्धयोडी रैवैला तो वो आपरौ करतव निच्सै ई निभा कोनी सकै। जे ऐहडो वेग्यौ तो अनरथ हुय जावैला। धणी नै निसाणी तो भिज्वावणी ही, सेवक उडिकतो उभौ हो। हाड़ी राणी हेक छिण में निरणय लियो अर तलवार रै हेक झटकै सूं आपरौ माथौ बाढ़ उण नै थाळ में सजाय चूंडावत सरदार नै भेज दियो। ईण अनूठी अर विचित्र निसाँणी नै लखताई रावत उण रै मांयलो गूढार्थ समझ ऐकर तो अपराध-बोध अर सरम सूं घणो विकल वियो, पण दूजै ई छिण वो दुनै उच्छाव सूं बईर हुयग्यो। रणभूमि में पराक्रम रा अचरजकारी चमत्कार दिखाया अर छेवत वीरगत नै प्राप्त वियो।
कविवर री नजर में हाड़ी-राणी रो अमर त्याग, लौकिक-अलौकिक सगळा त्यागां सूं घणो डिघो है। सहनाणी सीताजी ई भिजवाई ही अर हाड़ी राणी भी, पण दोनूं में श्रेष्टतर तो हाड़ी राणी रीज है–
हाड़ी सहनांणी मंही, सिर मेल्यो जिण वार।
चूड़ामणि सीता तणी, वारूं बार हजार।।
इतरो ई क्यूं, जगत-जननी पारवती नै पण हाड़ी राणी रै मरणोपरांत सुख-सुभाग रै आगळ कैलास रा सरगाउ ठाट-बाट फीका लागै है-
पारवती पिव नूं कहे, ओ कैलास न थाट।
हिदै सिर हाड़ी तणो, राव गळै हिंगलाट।।
कवि “लंगर लाज रो” री अर्थवत्ता नै “पडदा प्रथा” रै पर्याय में राख’र संकुचित बणा दी है। ईण में कवि रो काई दोस? कवि जिकै समाज री बात करी है, उण में आज भी पड़दो राखणो “कुळ री लाज” समझीजै। लाजवंती हाड़ी राणी पर-पुरस् नै आपरौ मुंडो कियां दिखा सकै? अठै तांई पुरस्-वाचक थाळ पण राणी रो मुंडो नीं देख सकै। राणी री लाज कियां बचीं, कवी रो कथन है–
कट साळू सिर कट्टियो, घूँघट रहियो भाळ।
यो मुख रावत देखियो, तूं किम देखे थाळ।।
ईण शतक मांय अनेकुं एहड़ा दूहा है जीण नै बांचता-बांचतां पाठकां री आंख्यां गळगळी हुय जावै, आसुंडा ढुलक पड़ै, मार्मिकता री हेक ओपती अभिवयक्ति है–
सीस पुगायो पिउ कनै, थायो रगतां कीच।
रहियो पण बहियों नहीं, काजळ नैणां बीच।।
दो दूहा—
नूतं पांत अधकी रखी, नारी नरां बिचाळ।
रावत पडळो मेलियो, ईण सिर मेल्यो थाळ।।
ईस दिये उपमा असी, आवै अन-उठिह।
हाड़ी-सिर ढोळे चमर, डाढ़ी रावत रीह।
संकलनकृता —
~~® कृष्णपाल सिंह चहुंआण राखी
Vir satsay Granth.kaviraj Shree nathusinh maheriya