नवल हुतो जद नैरवै

थलवट भांयखै रो गांम जुढियो समृद्ध साहित्यिक परंपरा रै पाण आथूणै राजस्थान में आपरी ठावी ठौड़ राखै। एक सूं बध’र एक सिरै कवि इण गांम में हुया जिणां राजस्थानी डिंगल़ काव्य नै पल्लवित अर पुष्पित कियो। उणरो हाल तांई चिन्योक ई लेखो-जोखो नीं हुयो है।
इणी गांम में सिरै कवि नवलदानजी लाल़स रो जनम हुयो। जद ऐ फखत आठ वरस रा ईज हा तद इणां रै मा-बाप रो सुरगवास हुय चूको हो। चूंकि इणांरा पिताजी रेऊदानजी लाल़स पाटोदी ठाकरां रा खास मर्जीदान हा सो इणांरो आगै रो पाल़ण-पोषण उठै ईज हुयो। उठै ईज दरवेश सांईदीनजी इणांनै आखर ज्ञान दियो।
बैता पाणी अर रमता जोगी री आदत मुजब सांईदीनजी आबू रै पहाड़ां कानी गया जणै नवलजी नै ई साथै लेयग्या। उठै उणां आहोर ठाकुर ओनाड़सिंहजी कनै नवलजी नै राखिया उठै ई नवलजी आगै रो काव्य अभ्यास कियो।
सांईदीनजी अमूमन अरबद माथै तप करता सो खुद उठै ई गया परा।
एक दिन कवि सांईदीनजी कनै मिलण गया। दरवेश सांईदीनजी एक कूकड़ो पाल़ राख्यो हो। एक दिन कूकड़ै रो गल़ो मिनड़ी मोस न्हांख्यो। साधू ई आखर हुवै तो आदमी ईज है सो सांईदीनजी नै ई कूकड़ै रो दुख हुयो जणै उणां नवलजी नै मरसियो कैवण रो कह्यो।
उण बखत कविवर एक च्यार दूहालां रो गीत कह्यो-
कायर कूकड़ा कह कीजै कासू?
काल़ बडो बेकाजा।
जो तोनूं जांणू जावतड़ो,
जतन करावत जाझा।।
फूलै फल़ै आंबली फूलै,
एकर सूं बल़ आवै।
गहरा वचन दोय छोगाल़ा,
सैणां नै संभल़ावै।।
उण दिनां वरसाल़ो हो। सांईदीनजी कनै केई कवेसर साहित्यिक अर ज्ञान चर्चा करणनै आवता रैता। उण दिनां ओपाजी आढा ई आयोड़ा हा। वरसाल़ो पूरै जोबन माथै हो। मेहडलां झड़ मांडियो जणै कवियां रो अंतस उमंगियो। ओपाजी अरबद री छिब माथै बलिहारी जावतां गीत रा दो दूहाला कह्या जणै दो दूहाला नवलजी कह्या-
वणिया टूक घमाघम बंका,
जल़हर वरसै जूआ-जूओ।
तिण वेला लागै आधंतर,
हरिये वन गरकाब हुओ।।
इतरै सूं ई कवि रो मन नी धापो जणै आबू री अनूठी प्रकृति री छिब नै उकरेतो एक आठ दूहालां रो रोमकंद छंद कह्यो-
अनड़ां सिरताज बण्यो गिर आबूय,
जांण धरा गिरमेर जिसो।
कह्यो तो ओ ई जावै कै आबू माथै उणां 240कुंडल़िया बणाया पण आज मिलै नीं।
जद मानसिंहजी जालोर घेरे में घेरीजिया उण बखत 17चारण कवेसर प्रण-प्राण सूं मानसिंहजी रै साथै हा। उणां में नवलजी ई एक हा। जद मानसिंहजी जोधपुर रा शासक बण्या जणै उणां उण तमाम मिनखां नै पुरस्कृत किया जिकै अबखी में मानसिंहजी रै साथै हा पण दुजोग सूं नवलजी नै पुरस्कृत करणो विसरग्या।
एक दिन दरबार लागोड़ो हो। नवलजी ई उठै आया। खाक में एक सुंदर बुगचो। बुगचो देख’र मानसिंहजी पूछ्यो-
“कविवर बुगचै में आज किसी पोथी लाया हो?”
जणै इणां कह्यो-
“हुकम! पादुका-पुराण है?”
“तो काढ’र सुणावो!” दरबार कह्यो जणै इणां बुगचो खोल्यो तो सगल़ां देख्यो कै बुगचै में पोथी री जागा पगरख्यां! सगल़ां नै इचरज हुयो। दरबार पूछ्यो कै-
“कविवर ओ कांई है? पगरख्यां रो इतरो जतन ?”
जणै नवलजी कह्यो कै हुकम! म्हारै जुढिया रो हासल इतरो ईज पांती आवै कै पगरख्यां रै पेटे ई पूरो नीं पड़ै-
पात तणी पगरख्यां पेटे,
जुढिया रो हासल सह जाय।।
मानसिंहजी नै तुरंत याद आयो कै कविवर नै पूगतो सनमान मिलणो चाहीजै। उणी बखत मानसिंहजी उणांनै वि.सं.1874 री आसोज सुदि आठम नै नैरवा गांम री जागीर दी।
एक दिन नवलजी आहोर ठाकुर ओनाड़सिंहजी कनै बैठा हा कै रात री तोप छूटी। तोप रो धमाको सुण’र नवलजी कह्यो कै-
“हे राम! इणरी मार किणी दातार माथै पड़जै।”
आ सुण’र ठाकुर साहब कारण पूछ्यो जणै कविवर कह्यो-
“हुकम! म्हैं आपरो लूण खावूं ! पछै कंजूस माथै पड़ण रो कीकर कैय सकूं? इतरो नाजोगो थोड़ो ई हूं कै आपरो बुरो सोचूं?”
जणै ठाकुर साहब पूछ्यो कै ऐड़ो दातार कुण है?”
नवलजी कह्यो कै आयशनाथजी।
जद नवलजी दातारां में नाथजी रो नाम बतायो तो ठाकुर साहब कह्यो कै-
“जे नाथजी ऐड़ा ई दातार है तो उणां कनै सूं उणांरो नाल़वाल़ो घोड़ो ले आवो।”
कविवर नाथजी रै उठै गया अर एक गीत सुणाय’र आवता बिनां पूछियां गीत रै बदल़ै नाथजी री खास सवारी रो घोड़ो खोल लाया। ज्यूं ई आहोर री हवेली में आया तो ठाकुर साहब 10000हजार रुपिया देय मांडै ई घोड़ो कवि सूं खोस लियो। इण सूं कवि रीसाय सीधो पाछो हवेली आय नाथजी नै पूरी बात बताई। इणसूं रीसाय नाथजी दरबार नै कैय आहोर हवेली माथै फौज मेली पण ठाकुर हवेली छोड नाठग्या। जद नाथजी 100000लाख रै पटे मांय सूं आधो जब्त करा दियो।
नवलजी एक प्रतिभाशाली कवि हा जठै ई गया उठै उणांनै उणांरी प्रतिभा मुजब सनमान नीं मिल्यो इणसूं कवि व्यथित रैवतो। इण बात नै उणां आपरी कविता में ई प्रगट करी-
ज्यां जेहा नर सेविया, ज्यां जेही फल़ पत्त।
नवले आंनो सेवियो, दमड़ी मिल्यो न दत्त।।
ज्यां जेहा नर सेविया, ज्यां जेही फल़ पत्त।
जुगते मानो सेवियो, घूमे बार हसत्त।।
एकबार इणां रो बांकीदासजी सूं संवाद हुयो। जणै बांकीदासजी कह्यो कै-
“कविता व्याकरण अर संस्कृत रो अध्ययन करियां चोखी बणै।”
जद इणां कह्यो कै-
“ई बातां में कीं सार नीं है क्यूंकै व्याकरण जाणणिया अर संस्कृत पढ्योड़ा घणा ई फिरै पण डिंगल़ रै कवेसरां रै पगां में तो लाख-लाख रै पटायतां रा माथै नमै-
किसूं व्याकरण अवर भाखा अनै प्राकृत,
संस्कृत तणै क्यू़ फिरै सागै।
लाखरां ठाकरां तणा माथा लुल़ै,
आखरां तणै गजबोह आगै।।
1857 रै प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन में मातभोम रै सारू विद्रोहियां रै हरावल़ में बैवणिये आऊवा ठिकाणै री अडरता नै लेय आप “आऊवा रूपक” बणायो। कविवर साच रा पखधर हा। जद मानसिंहजी आपरै हमगीर सगल़ै सिरदारां अर कवेसरां नै पुरस्कृत किया पण केसरोजी खिड़िया पुरस्कृत हुवण सूं बचग्या। इणांरै उबरण रो कारण ओ हो कै मानसिंहजी रै गादी विराजण सूं पैला ई उणांरो सुरगवास हुय चूको। पण नवलजी नै महाराजा रै प्रति केसरोजी री सेवा याद ही जणै एकदिन कोई ऐड़ी बात छिड़ी कै दरबार री मदत में रैवणियो सनमानित हुवण सूं बच तो नीं ग्यो है? जद नवलजी ऊभां होय एक छप्पय कह्यो। दुजोग सूं छेहली दो पंक्तियां ई मिलै-
साम रो काम सजियो परो,
राम नाम यूं हिज रयो।
केसरो हुतो मोटो कवि,
(जको)गांम-गांम करतो गयो।।
चूंकि केसरोजी रै कोई संतान नीं ही जणै दरबार उणांरै अनुज दौलजी खिड़िया नै ढाहरियो अर जीवणबेरो दो गांम देय आपरी गुणग्राहकता री ओल़खाण दी।
नवलजी रो सुरगवास वि.सं.1887 में हुयो। इणां रै दो बेटा हा-राजूरामजी अर पीरदानजी। दोनूं ई साधारण कवि हा। जणै ई किणी कवि कह्यो-
नवल हुतो जद नैरवै, थड़िया रैता थाट।
रहग्या राजूरामजी, जाटां भेल़ा जाट।।
~~गिरधरदान रतनू “दासोड़ी”