नवदुर्गा वंदना – कवि स्व. अजयदान जी लखदान जी रोहड़िया मलावा

शैलपुत्री जय शिवप्रिया, प्रणतपालिनी पाहि।
निज अपत्य टेरत तुझे, त्राहि त्राहि मां त्राहि।।१
जयति जयति ब्रह्मचारिणी, बीज सरूपिणी बानि।
विषम समय पर राखिये, प्रियजन के सिर पानि।।२
चारू चंद्रघंटा सुमति, प्रणति देहु कर प्रीति।
भवभय भंजनी भंजिए, ईति, भीति अनीति।।३
कुषुमांडा बिनती करत, सेवक करहु सुयोग।
कल्याणी अरु काटिये, कल्मष, कष्ट, कुयोग।।४
स्कंद-जननि।सुनहु अरज, सर्व जनन सुखमूल।
अतुल-दयामयि।नित रहो, अनुचर पर अनुकूल।।५
जयति जयति कात्यायनी।, सिद्ध करन सुर कार्य।
कृपाद्रष्टि करिहौ कबै, है अब आकुल आर्य।।६
कालरात्रि जय कालिका, मारत क्यों नहीं मंद।
वसुधा पर मां बढ गए, जिनके फंद अमंद।।७
महागौरि।सौंदर्यमयि, सकल सुमंगल मूल।
सिंह चढौ अरि शमन को, कर धर खड़ग त्रिशूल।।८
सिद्धिदात्रि।जगधात्रि जय, दैनि मुक्ति जगदंब।
दर्प दुष्ट जन दलन को, अब जनि करिहु विलंब।।९
नवदुर्गा निज स्वजन पर, करहु कृपा सुखदानि।
करत “अजय” यह कामना, बारहि बार मृडानि।।१०
~~©कवि स्व. अजयदान जी लखदान जी रोहड़िया मलावा