नवजीवन संचार करो

प्रतिकूलन से डरने वाले,
कभी किसी के नहीं हुए।
अनुकूलन की राह देखते,
डर डर मर मर सदा जिए।।
बहती धारा के अनुगामी,
सही किनारा कब पाते।
जहां लहर ले जाती है,
वे उसी किनारे पर जाते।।
पर है जिनकी चाहत गहरी,
धारा से टकराते हैं।
भँवरों लहरों से भिड़ कर भी,
सही किनारा पाते हैं।।
धारा के दासों की धड़कन,
जितनी बढ़ती बढ़ने दो।
पतवार धार से टकराओ तुम,
उसे लहर पर चढ़ने दो।।
सीना तान भँवर से भिड़ जा,
लाल नयन से देख लहर।
धारा अपना रुख बदलेगी,
भँवर लहर का मिटे कहर।।
धारा और धारणा सारी,
इक झटके में बदलेगी।
सागर की चेतनता तुझको,
अटल विजय का वर देंगी।।
मैंने देखा है दुनियां के,
चरित चाल व चेहरों को।
मैंने देखा है सागर के,
धारों भँवरों लहरों को।।
मैंनें देखा है नाविक की,
निष्ठाभरी निगाहों को।
बड़वानल से अंग बचाती,
पतवारों की आहों को।।
मैंने देखी है साहिल की,
चाहत भरी चुनौती को।
नतमस्तक हो नाविक पर,
न्योछावर होते मोती को।।
इस मंजर के साथ बदलता,
देखा सभी नजरों को।
सहमत होकर आगे आते,
हिलते सीस हजारों को।।
जो कल तक पक्के प्रतिगामी,
बाधा बनकर अड़े हुए थे।
आज वे ही अभिनन्दन करने,
सबसे आगे खड़े हुए थे।।
मेरा कहना है नाविक से,
नवजीवन संचार करो।
नूतन भावों का वन्दन कर,
अभिनन्दन स्वीकार करो।।
~~डॉ. गजादान चारण ‘शक्तिसुत’