नवरूप नाम माल़ा
।।दोहा।।
नव सगती नव रातरा भगती नवधा भेंट।
उगती दे मुझ ईसरी मुगती चिंता मेट।।
बिरवड़ आवड़ बैचरा मालण सैलण मात।
करनी देवल क्रीत रा पढूं छंद परभात।।
।।छंद – त्रिभंगी।।
आयल इल़ आई मामड़याई सातूं बाई सुरराई,
समंदर सुखाई उदर समाई संत सहाई सुखदाई।
पह माड पुजाई थान थपाई दुष्ट दबाई कीध दमै,
बीसांहथ वाल़ी बुड्ढी बाल़ी हेतव वाल़ी भीर हमै।।१।।
मालै तुझ धाई साच मनाई मूंछ दिराई मरदाई,
वसुधा वेदाई तूं वरदाई जुढिये आई जगराई।
इल़ नीर अथाई अमी उपाई पह सकल़ाई कूण पमै,
बीसांहथ वाल़ी बुड्ढी बाल़ी हेतव वाल़ी भीर हमै।।२।।
नवघण नूंताणी सैन समाणी जय चखड़ाणी जग जाणी,
भातज रंधाणी कुलड़ भराणी घड़ छकियाणी गल़ ताणी।
रंग बात रखाणी वसु बखाणी अंजस आणी व्रण हमै,
बीसांहथ वाल़ी बुड्ढी बाल़ी हेतव वाल़ी भीर हमै।।३।।
मालण महमाई दिपै दुलाई वास बिराई वरदाई,
पति टीकम पाई तौ प्रभुताई गुणधर गाई गहराई।
आलण कुल़ आई अंब उपाई तर पल़टाई नींब तमै,
बीसांहथ वाल़ी बुड्ढी बाल़ी हेतव वाल़ी भीर हमै ४
वीसो रखवाल़ी बिरम उथाल़ी धाबल़वाली ध्रम न्हाली,
धर धाट धजाल़ी तैं उजियाल़ी साय दयाल़ी सचियाल़ी।
वाहर वरदाल़ी भल भलयाल़ी खडग धराल़ी जगत खमै,
बीसांहथ वाल़ी बुड्ढी बाल़ी हेतव वाल़ी भीर हमै।।५।।
जोहड़ रखवाल़ी दुष्ट झकाल़ी करम उंधाल़ी कान करै,
सगती सचियाल़ी भूप न भाल़ी हेर हठाल़ी मान हरै।
बाघण बबराल़ी बण विकराल़ी धोप हथाल़ी धीठ दमै,
बीसांहथ वाल़ी बुड्ढी बाल़ी हेतव वाल़ी भीर हमै ६
बुद्ध सुद्ध विसारत मुरगा मारत मुसल़ा जारत पेट मही,
बैचर विचारत पह पूकारत करुणा धारत नाम कही।
फटकै उर फाड़त मेछ पछाड़त सत्रू गारत उणी समै,
बीसांहथ वाल़ी बुड्ढी बाल़ी हेतव वाल़ी भीर हमै।।७।।
अकबर अन्याई रच रुगटाई लाग लगाई लुच्चाई,
सांप्रत सच्चाई पीथल पाई राजल आई ऊदाई।
वसू मांय बधाई कमंध कमाई लाग छुडाई तैं छिन मै,
बीसांहथ वाल़ी बुड्ढी बाल़ी हेतव वाल़ी भीर हमै।।८।।
चंदू चिरताल़ी बात बडाल़ी रसा रूखाल़ी रढियाल़ी,
कोपी मछराल़ी रूप कराल़ी सालम गाल़ी सतवाल़ी।
पातां पखवाल़ी लोहड़याल़ी अख्यात ऊदाल़ी सु इल़ मै,
बीसांहथ वाल़ी बुड्ढी बाल़ी हेतव वाल़ी भीर हमै।।९।।
डोकर डाढाल़ी देव दयाल़ी मामड़याल़ी मुद्राल़ी,
मुरलोक विचाल़ी है मतवाल़ी प्रभ तिहाल़ी प्रतपाल़ी।
चंडी चिरताल़ी हे करुणाल़ी कव किरपाल़ी मेट कमै,
बीसांहथ वाल़ी बुड्ढी बाल़ी हेतव वाल़ी भीर हमै।।१०।।
संतन कज सारम दुष्ट संघारम हाथां भारम भू हारम,
पावै कुण पारम चरित अपारम धिन अवतारम इल़ धारम।
गिरधर निरधारम तो आधारम तरणी तारम जगत तमै,
बीसांहथ वाल़ी बुड्ढी बाल़ी हेतव वाल़ी भीर हमै।।११।।
छप्पय
आव हमै अवल़ंब, साय सातूं सुरराई।
काछेली कर कान, बात राखण वेदाई।
भल़ै बिरवड़ी भीर, चढै बेगी चखड़ाई।
मुदै मालणा मात, दया करजै दूलाई।
देवला रिधू बैचर दिपै राजल चंदू रीझिये।
भांजणी भीड़ गिरधर भणै कव रो कारज कीजिये।।
भल़हलतो नभ भाण, आवड़ा रोक्यो आई।
जल़ जुढियै इमि जाण, सैणी कियो सुरराई।
आलाई अखियात अंब, तर नींब उपाई।
पाव चावल़ां पाण, चावी हुई चखड़ाई।
भलियाई जग भाल़, वीसो कर राव बसाई।
मेहासधू महमाय, साय निज दास सदाई।
बैचरा भीर मुरगां बणी आई राजल आगरै।
सुरराय गीध चंदू सरण लुल़ै चरण नित लागरै।।
~~गिरधरदान रतनू दासोड़ी