नज़्म – नजर नें छू लिया जिस दम

नजर नें छू लिया जिस दम तो मेरे दिल ने ये सोचा,
यहाँ पर हर किसी का चाँद सा चेहरा नहीं होता।
मगर फिर भी मुझे वो चाँद का ही अक्स लगता है,
नहीं तो इस कदर मह दीद को ठहरा नहीं होता।१
जेहन में जिक्र आता है जब उस रूखसार का मुझको,
तो दिल मेरा पुकारे है वो गहरी झील सा होगा,
पतंगा बन मेरा मन जलने को बेताब सा होगा,
और वह भी इश्क में मेरे जला कंदील सा होगा।।२
कभी मिलती है फुरसत तो मैं सोचूँ हुँ कि दिलबर का,
हरी धरती भरी धरती के ज्यूं आँचल हरा होगा।
और उस पर ओस की बूंदे कि जो चमकेगी सूरज से,
वही होगी सिंदूरी माँग हसीं क्या माजरा होगा।।३
खयालों में शबिस्ताँ में जब उस का जिक्र आता है,
उनींदी आँख से सोचूँ गुलाबों से भरा होगा-
वो चेहरा जिसपे झलकेगा पसीना और करेंगे सब,
तसव्वुर ओस ही होगा नहीं मोती खरा होगा।४
मगर ये ख्वाब ये सपने कभी सच हो नहीं सकते।
खयालों में तसव्वुर में मैं तुमको पा तो सकता हूँ।
मैं खुद का ही नहीं हूँ तुम हो मेरे या नही,कुछ ग़म,
मगर अफसाने लिखकर मैं मुझे बहला तो सकता हूँ।।५
~~नरपतदान आसिया “वैतालिक”