न्यारै-न्यारै

न्यारै-न्यारै मिनख मनां में,
देखो न्यारी-न्यारी आग।
कठै राग अनुराग विहूणी,
कठै विराग मांयनै राग।।
बागवान ही बण्या विधूंसक,
सुरड़ै-सुरड़ विधूंसै बाग।
टणका झुरै टोपल्यां खातर।
पतहीणां सिर पचरंग पाग।।
देख मिनख री बळत दिखाऊं,
मझ सीयाळै खेलै फाग।
जकी चिड़कल्यां सांप बताती,
नाजोग्यां घर सूता नाग।।
मान सरोवर हंसा भाळै।
कोरां-कोरां बैठा काग।
माधव अर दुरजोधन मिळग्या,
ई भारत रा भूंडा भाग ।।
~~डा. गजादान चारण “शक्तिसुत”