ओ बैन-बेटी रो अपमान है !!

बीकानेर रो गणगौर तिंवार चावो। इणरो उछब देखणजोग होवतो। गांम-गांम में गवर री सवारी निकल़ती अर कुए कै तल़ाब पाणी पी पाछी आवती। गैणां सूं लड़ाझूम गवर री सवारी साथै बांकड़ली मूंछां अर बूकियां में गाढ वाल़ा मरद, करद ले रक्षा में बैता।
गवर लुगायां रै कोड अर उमंग रो तिंवार सो बूढी-बाल़ा अर परणी-कुंवारी घणै हरख रै साथै मनावै-
मनचायो वर मांगती, पूजै सब गणगौर।
परणी अमर सुहाग नै, कन्या सुघड़ किशोर।।
सो कन्यावां रा झूलरा मदमातै जोबन रै हुलास में गवर रा गरवीला गीत गावती मगरियै जावती अर तरवारिया उणां री आबरू रै सारू माथो उंवारियां साथै बैता।
मजाल है जको कोई गवर रै साम्हो ई जोयलै!! उण दिनां गवर लूटणो गरब अर लूटीजणी अपमान री बात मानीजती। सो दोनां कानी पूरी सावधानी बरतीजती।
बात उण दिनां री है जिणदिनां बीकानेर माथै महाराजा करणसिंहजी रो राज।
महाराजा रै नाम सूं हिरण बांडा होवता तो कायरां रा काल़जा कांपता। इणां कनै कोई ऊणत-भरियो (आसा करके) आवतो तो उणरी ऊणत पूरता।
ऐड़ै महाराजा रै राज में परजा चैन री बंसी बजावती। गवर रो तिंवार आयो अर लुगायां सजधज गवर री सवारी काढी। अठीनै जैसल़मेर रै महारावल़ अमरसिंहजी, सिहड़ रै भाटी मेहाजल़ नै कैयो कै “कीं वीरता बतावो ! बीकानेरियां नै।”
महारावल़जी रो संदेश पाय भाटी मेहाजल़ आपरै साथ साथै चढियो अर बीकानेर आयो। गवर रो तिंवार हो। गल़ी-गल़ी सूं सजधजर गवर री सवारी चौतीणै पीवण सारू निकल़ी। कोई कीं समझता जितै तो मेहाजल़ एक गैणै सूं लड़ाझूम गवर झड़फी अर वायरै सूं बातां करतो बो ई जा ! बो ई जा।
रंग में भंग पड़ियो। करणसिंहजी पातसाह रै उठै। अबै करणो कांई रैयो? राठौड़ भेल़ा होया अर सलाह करी कै दरबार अठै नीं। आपां मूंछां पलारता रैया अर भाटी आंख्यां में धूड़ नाखग्या। ओ तो आपां रो मरण है। उवां गवर रै नीं बल्कि आपां री बैन-बेटी रै हाथ घालियो है!! आपां बैन-बेटी री रुखाल़ी नीं राख सकां तो पछै आपां सूं राज कीकर रुखल़सी? पण कोई बोलियो नीं। बोलै ई कुण? बोलै उणनै मरण सारू संभणो पड़ै। किणी कैयो – “रे आपां राठौड़ हां! लोग आपांनै रणबंका कैवै अर आपांरो आख्यां बिचै सूं भाटी नाक काढर लेयग्या ! पछै आपां किसा रणबंका हां?”
उण बखत उठै वीठू देदोजी सुरताणोत ई भेल़ा हा। उणां कैयो – “रे ओ तो भाटी भलो हो ! जको खाली गवर ई लेयग्यो !! अर जे किणी कन्या नै ले जावतो तो थे कांई इयां ई जुल़क-जुल़क जोवता ई रैता? ओ तो राजा करण रो राज है! थांरो भूंडो नीं, भूंडो राज रो लागसी कै राजा करण रै लारै सगल़ा खीचकल़श ईज है!! माथै ऊपर सेर सूत बांधो इणनै क्यूं लजावो? मरण-जीवण, हार-जीत मोटै-मोदी (ईश्वर) रै हाथ है ! हिंयो हेठो मत करो।”
आ सुण गांम धणियां तो किणी कान ऊंचो नीं कियो पण एक घरधणी लाखै वीदावत तरवार ताण घोड़ै जीण कसी जणै केई भल़ै राती आंख वाल़ा ई भेल़ा संभिया।
वीदावत लाखै खंगारोत, मेहाजल़ रै लारै घोड़ा दाबिया जको उणनै सिहड़ री कांकड़ में बड़तै नै पकड़ियो। दोनां कानी तरवारां खंची पण मेहाजल़, लाखै रै आगै ठैर नीं सकियो। नाठो पण लाखै नाठतै रो माथो बाढ गवर खोसी अर भंतूल़ै रै उनमान घोड़ा पाछा बीकानेर बड़गड़ाया। लारै भाटियां ई घोड़ा दाबिया जको बीकानेर रै दियातरै गांम में आवतां पाछी बेढ (लड़ाई) होई जिणमें राठौड़ां नै तो हाण नीं पूगो पण गणगौर रो एक हाथ भागग्यो। राठौड़ां अठै ई बेढ जीती। भाटी इणसूं आगै नीं आय सकिया।
आ पूरी खबर जद महाराजा करणसिंहजी कनै पूगी तो उणां लाखै नै लखदाद देतां थकां लोहा (रतनगढ़) री जागीर इनायत करर उणरो माण बधायो। जद दरबार बीकानेर पधारिया अर लाखै री पीठ थपथपावतां कैयो कै – “भल़ै कीं मांग!” जद उण वीर कैयो कै – “आपरै दियो इतो ई घणो पण जे आप तूठा ई हो जणै गवर री सवारी वहीर होवण सूं पैला म्हारी ‘लूर’ गाईजणी चाहीजै।” दरबार उण वीर री मनोभावना अर उणरी वीरत री कीरत नै अखी राखण खातर आ बात अंगेजी। वा लूर आज ई गाईजै।
~~गिरधरदान रतनू “दासोड़ी”