ऊभा सूर सीमाड़ै आडा

।।गीत – जांगड़ो।।
ऊभा सूर सीमाड़ै आडा,
भाल़ हिंद री भोमी।
निरभै सूता देश निवासी,
कीरत लाटै कोमी।।१
सहणा कष्ट इष्ट सूं सबल़ा,
भाल़ रणांगण भाई।
ताणै राखै आभ तिरंगो,
करणा फिकर न काई।।२
पैंपरल़ां जल़ पड़ै ऊपरै,
घोर आंधियां घाटी।
ऊभा अडग रोप पग अणडर,
पढियां मरबा पाटी।।३
आवै देख अराड़ी ऐ तो,
हिमगिर वाल़ी हीलां।
उणमें खड़ा गरब धर उरमें,
चित पुरखां रै चीलां।।४
गोल़ा झड़ै जबर गड़गड़ता,
खरो मोत सूं खेटो।
उफणै जोश सूरां रै अँतस,
हियो नही तिल हेठो।।५
आवै अरियण जदै उरड़ता,
पेख चीनिया पाकी।
कोपै ज्यांरो छेद काल़जो
डग भर काढै डाकी।।६
जम सूं भिड़ै मोत तिल जाणै,
सबल़ विहंडण शेरां।
डाकण करै सीम जद दुसमी,
विरड़ दल़ै तिण वेरां।।७
पीनै दूध तणै परतापै,
अनड़ हरस उर आणै।
जग मे मोह नहीं जीवण रो,
मोज मोत सूं माणै।।८
लाडी तणो विछोह न लेखै,
चिनियक नहीं चितारै।
सीमा तणी खेवटा सारू,
बदन आपरो वारै।।९
सगल़ा रल़ मिल़ लड़ै सूरमा,
जात पांत नह जोवै।
आयां अबखी देस ऊपरै,
हित चित हरवल़ होवै।। १०
ऐ रजपूत गोरखा आगल़,
मरद मराठा मानो।
जुड़वै जाट सिक्ख पण जोरां,
पड़ियां दोयण पानो।।११
भारत रा मोभी भड़ भाल़ो,
कुल़ छल़ नाम कमावै।
ज्यां पर आज धरा नै जाहर,
अणहद अंजस आवै।।१२
हिमगिर रहै नचीतो हेरो,
वीर पाखती बेखै।
शंभू बैठै जोग साधनै,
दाटक पो’रै देखै।।१३
बैसी जद तक नाक वायरो,
जोय भाग नह जावै।
लड़सी सामा हिंद लाडला,
लेस नही डर लावै।।१४
~~गिरधरदान रतनू “दासोड़ी”