पारख पहचाणीह !

मध्यकाल़ीन राजस्थान रो इतियास पढां तो कदै कदै ई आपांनै लागै कै केई वीरां अर त्यागी मिनखां साथै न्याय नीं हुयो। इण कड़ी में आपां मारवाड़ रो इतियास पढां तो महाराजा जसवंतसिंहजी प्रथम रो जद देवलोक हुयो अर उणांरै कुंवर अजीतसिंहजी नै क्रूर ओरंगजेब सूं बचावण अर दिल्ली सूं बारै सुरक्षित काढण री नौबत आई। उण बखत उठै कनफाड़ै जोगी रो रूप धार आपरी छाबड़ी में छिपाय अजीतसिंहजी नै छानै-मानै काढणियै जिण मिनखां रा नाम आपांरै साम्हीं आवै उणांमें एक नाम है मनोहरदास खीची अर दूजो नाम है मनोहरदास नांधू।
खीची यानी राजपूत तो नांधू मतलब चारण।
हालांकि उठै अजीतसिंहजी नै निकाल़ती बखत हुई झड़फ में मारवाड़ रा केई सरदार काम आया। कविराजा बांकीदासजी आपरी ख्यात में लिखै–
“संवत 1735 में सैतालीस सरदार दिली काम आया।”
अभिलेखागार बीकानेर रै जोधपुर अपुरालेखीय रिकार्ड 34/24 रै मुजब इण लड़ाई में अजीतसिंहजी नै निकाल़ण सारू दो मीसण चारण सामदान, रतनदान वीरगत पाई रो दाखलो ई मिलै–
“दिल्ली 1735 वि.सं.में अजीतसिंह नै निकाल़ण सारू जुद्ध में मीसण सामदान, रतनदान काम आया तिणां रा दूहा–
गेहरहर मालम गढां, भीमावत कुल़भाण।
पड़ अमरा चापापती, रहिया मीसणराण।।
मीसण रहिया मामलै, सांमो नै रतनेस।
दो चारण चावा दुनी, ज्यूं चावो दुरगेस।।”
हालांकि इण साधारण मिनखां री स्वामिभक्ति रो दाखलो दूजी जागा नीं मिलै पण ”कवि की जबान पे चढे सो नर जावै ना। “ री सटीक बात सूं ऐ मिनख कवि रसना माथै अमर रैयग्या। यानी सौ झखिया अर एक लिखिया री बात सही। अजीतसिंहजी रै बिखै में जिण लोगां कष्ट उठायो उणांमें सुरपाल़िया रा चारण मनोहरदास नांधू ई भेल़ा हा। जद दिल्ली सूं बाल़क अजीतसिंहजी नै काढण रो मामलो बणियो उणांमें मनोहरदास नांधू आपरा कान फड़ाय जोगी बण एक छाबड़ी में बाल़क अजीतसिंह नै लेय निकल़िया। जद अजीतसिंहजी किशोर हुया जणै उणां आ बात सुणी जद मनोहरदास नै एक सनद लिख’र दी। जिणरी भरपाई जोधपुर गढ विराजियां पछै करण रो दाखलो है।
मूल़ बात माथै आऊं कै केईबार सिद्ध नै साधक पूजायदे आ ई बात इण अजीतसिंहजी वाल़ै मामलै में मनोहरदास नांधू साथै हुई। क्यूंकै मनोहरदास नांधू री संतति में पछै कोई खास जोगतो मिनख नीं हुयो जिको लगोलग इण जोगती घटना रो गीरबो बणायो राखतो। इणरो परिणाम ओ हुयो कै मारवाड़ में ओ किस्सो मनोहरदास खीची रै नाम खतीजग्यो।
हालांकि महाराजा अजीतसिंहजी जद गादी विराजिया जणै मनोहरदास नांधू अर मनोहरदास खीची नै गांगाणी रा दो भाग कर’र जागीर में इनायत किया। जठै मनोहरदास नांधू रा वंशज आज ई बैठा है।
मनोहरदासजी नांधू रै वंशजां मुजब गांगाणी में दसआनां में चारण अर छवू आनां में खीची हा। वि.सं1746 में महाराजा रै हुकम सूं एक सनद मनोहरदास नांधू नै देवण रो विवरण मिलै। अजीतसिंहजी रै आदेश सूं लिखित इण सनद में विवरण है कै नांधू गोकल़जी रै बेटे मनोहरदास कान फड़ाय गोड़ियो बण बाल़क अजीतसिंह नै काढिया। जिणरो ओसाप महाराजा घणो मानियो अर मनोहरदास नै सांसण रै साथै ई केई सम्मान दिया। उण सनद रो मूल़ पाठ बीकानेर रा कविराजा भैरवदानजी बीठू आपरी पोथी ‘चारणोत्पत्ति मीमांसा मार्तण्डो’ में दी है। सो अठै ई दैणी समीचीन रैसी–
।।नकल।।
सही
सिध श्री महाराजाजी श्री अजीतसिंहजी वचनात।।नांधू मनोहरदास गोकल़ोत श्री हजूर रो जनम हुयो जरां कान फड़ाय जोगी रो रूप धारण कर माथा री असवारी देर श्री हजूर री जलेब साजी और विषै में अनेक बंदग्यां पूगो तिण बंदगी री रीझ ऊपर हजूर सूं निवाज महरबानगी होयर अती मोताज बगसी और मनोहरदास रे बेटे -पोते आल ओलाद का लेंगूं गैरी पीढियां धर पीढियां अरज करणे रो अमर मरजाद वांदी रोज गुना सो बगस्या पीढियां धर पीढियां अरज करणे रो हुकम बगस्यो पीढियां धर पीढियां डोढी अपल री दवायती बगसी पीढियां धर पीढियां गांव -गांव सांसण उदक बेतलस बगस्या गांव-गांव सालास परगने जोधपुर गांव 1नथावड़ो परगने मेड़ता रैता चांपावत तेजसिंह आईदानोत तरी बगसी पीढियां धर पीढियां लग मोताज दिरावण मरजाद निवावण साखीधर चांद -सूरज छे ऐती मोताज बगसी ने मनोहरदास नें खिजमत संपाड़ो जोग उतरायो छै सू हजूर रो गढ जोधपुर पधारणो होसी जरां सरव भर पावसी।।
।।हाजरी।।
जेतावत कुंभकरण हिमतसिंघोत
चांपावत धनराज प्रथीराजोत
ऊहड़ हरीदास उदेसिंघोत
खीची मुकनदास किलाणदासोत
इंदो जैतसिंघ हरीसिंघोत
गेहलोत हरीसिंघ भोजराजोत
पिड़ियार हरिसिंघ जोगीदासोत
धांधल मनोहरदासोत
सोभावत पिरागदास राजोत
नांधू मनोहरदास
सांखलो बदरीदास
संमत 1746 रा हुकम सूं हजूर हुवो श्रीमुख मुकानन सुद 1
(पृष्ठ 87)
जद महाराजा अजीतसिंहजी आपैतापै हुया जणै उणां मारवाड़ रो नाक राखणियै त्यागी मिनख दुर्गादास नै देसूंटो दियो जद किणी कवि कह्यो कै–
महाराजा अजमाल री, पारख पहचाणीह।
दुरगो देसां काढियो, गोलां गांगांणीह।।
इतियास अर शोध में रुचि राखणियां नै इण विषय में निष्पक्ष शोध करणी चाहीजै जिणसूं किणी त्यागी अर स्वामीभक्त मिनख रो सही मूल्यांकन हुय’र उणरै योगदान नै आंकियो जा सकै।
~~गिरधरदान रतनू “दासोड़ी”