पहले जान लें कि चारण क्या है, फिर टिप्पणी करें

राजस्थान पत्रिका जैसे राष्ट्रीय ख्यातिलब्ध समाचारपत्र में ‘तथाकथित रूप से अतिख्याति प्राप्त पत्रकार’ महोदय श्री आनन्द स्वरूप वर्मा की ‘चारण’ समाज के प्रति अभद्र टिप्पणी को पढ़कर अत्यंत वेदना हुई। ‘चारण’ क्या है और राष्ट्रीय गौरव के निर्माण, राष्ट्रीय स्वाभिमान के संरक्षण, साहस एवं हिम्मत के संचरण, वीरत्व के वरण, मातृभूमि हित मरण को मंगल का स्वरूप देने की परंपरा के पोषण में ‘चारण’ के योगदान की बात बाद में करूं उससे पहले माननीय संपादकजी के लेख की कुछ पंक्तियों से बात शुरू करूं-
‘‘आपने लिखा कि चारण और भाट पैदा होंगे, कलाकार नहीं’’ माननीय वर्माजी! आपने कितने चारण एवं भाटों के साहित्य को पढ़ा है ? क्या आप जानते हैं कि ये दोनों जातियां अपनी परंपराओं एवं प्रतिभाओं के बल पर अपनी अलग प्रतिष्ठा रखती आई हैं तथा आज भी इनकी ख्याति विद्यमान है। और आपकी जानकारी के लिए बतादूं आप जैसे विकृत मानसिकता वाले लोगोें की अभद्र एवं अशोभनीय टिप्पणियों से इस प्रतिष्ठा पर कोई आंच नहीं आने वाली। आप जैसे कुंठित लोग सदैव नैसर्गिक प्रतिभाओं के प्रति दुराग्रह का भाव रखते आए हैं और आगे भी आपका यही भाव रहने वाला है। आपसे हमें ज्यादा शिकायत भी नहीं है हमें रंज है तो इस बात का कि राजस्थान पत्रिका जैसे अखबार ने आपकी इस घटिया दलील को प्रकाशित कर दिया।
आदरणीय वर्मा साहब! वैसे तो किसी जाति या परंपरा पर बिना सोचे समझे टीका-टिप्पणी करने वाले लोग किसी समाज के प्रतिनिधि नहीं हो सकते लेकिन फिर भी आपसे यह जानने की इच्छा जरूर है कि चारण तो जैसे थे या हैं, वैसे ठीक हैं पर आपकी जाति, जो भी है, उसमें कितने तथा किस तरह के साहित्यकार एवं कलाकार रहे हैं, जरा उनका परिचय करवाइए ताकि साहित्य के इतिहासों से‘चारण-साहित्य’, चारण-काल, चारण-युग, चारण-प्रवृत्तियां आदि के स्थान पर आप द्वारा निर्दिष्ट नाम लिखकर समाज का उचित मार्गदर्शन करें। उनके साहित्य की उपादेयता एवं उल्लेखनीय प्रवृत्तियों से भी अवगत करवाएं। इससे हम जैसे लोगों को यह फायदा होगा कि हम भी कहीं सही मायने में कलाकार एवं साहित्यकार बन सकें।
आदरणीय गुलाबजी कोठारी जैसे व्यक्तित्व की आभा से दैदीप्यमान ‘राजस्थान-पत्रिका’ के संपादक मंडल से, प्रबंधन से तथा प्रशंसकों से अत्यंत निराशा हुई। कैसे राजस्थान पत्रिका जैसा जिम्मेदार अखबार किसी जाति विशेष के खिलाफ वाह्यात टिप्पणी छाप सकता है ? कैसे किसी व्यक्ति विशेष की कुंठा को सार्वजनिक रूप से कोई प्रतिष्ठित समाचार पत्र प्रकाशित कर सकता है ? क्या माननीय कोठारीजी एवं पत्रिका समूह के सब लोग चारण समाज के साहित्यिक एवं सांस्कृतिक योगदान को कुछ नहीं मानते ? क्या पत्रिका परिवार किसी समाज विशेष की बेइज्जती करने का काम भी करने लगा है ? क्या पत्रिका में छपने वाली खबरों के प्रति पत्रिका परिवार जिम्मेदार नहीं है ? यदि जिम्मेदार है तो क्या हम यह मानलें कि उक्त टिप्पणी आदरणीय वर्मा साहब कि नहीं वरन माननीय कोठारीजी और उनके संपूर्ण पत्रिका समूह की राय है।
श्रीमान संपादक महोदय! हमारे समाज को आपके अखबार में छपी इस खबर से बेहद पीड़ा हुई है। वक्त की नजाकत तथा पत्र के उनमान को देखते हुए चारण समाज के योगदान को रेखांकित करने की आवश्यकता प्रतीत नहीं होती क्योंकि हमारा यह मानना है कि पत्रिका परिवार हमारे समाज के योगदान को अवश्य ही जानता है। हमारी पत्रिका के प्रति श्रद्धा रही है, एक विश्वास इस अखबार के प्रति सदैव रहा है। उस विश्वास पर आज असहनीय चोट आई है। संपादकजी से विनम्र आग्रह है कि आज की टिप्पणी पर कल के अखबार में आप कुछ अवश्य लिखें । अभी हम इस असमंजस में हैं कि यह टीप अकेले वर्माजी की है या फिर पत्रिका समूह की। यदि संपूर्ण समूह की राय है तो उसे स्पष्ट करें ताकि खुलकर इस विषय पर चर्चा कर सकें। चारणों ने कभी सच्चाई से मुंह नहीं मोड़ा है और गिड़गिड़ाकर कुछ नहीं लिया है वरन अपने हक के लिए कटारियां खाई है। आज भी हमें स्वत्व के लिए लड़ने का हुनर मालूम है। कल के अंक का इंतजार रहेगा। सादर।
~~डॉ. गजादान चारण ‘शक्तिसुत’