परभड़ा वीरगत तिहारी परणमू

prabhusinghrathore

गीत शहीद प्रभुसिंह गोगादेव रो

।।गीत-प्रहास साणोर।।

वहा! वहा! धर शेरगढ कूख धर बंकड़ां,
निडर नर निपजणी ओल़ नामी।
गोग रा वंशधर गाढ में गर्विला,
थल़ी रा मरद रण खाग थामी।।1

जिणै छतरांणियां जाहर नर जगत में
दियण धिन नाहरां टकर देखो।
वाहरां गयोड़ी भोम रा वीरवर
एक सूं आगल़ा एक एको।।2

रगां में रगत ओ खत्रवट रुखाल़ण
नूर स्वमाण रो प्रतख नैणां।
अँतस में साहस अर अँग रा अपरबल़
वडम कुल़वाट सतवाट बैणा।।3

मोत सूं मसकरी मोद सूं मांडणा,
बाल़पण सीख री तीख बातां।
मरण नै महोछब मरटधर मानवै,
चोल़चख हरोल़ां चढै चातां।।4

पढावै पूत नै जामणी पालणै,
सात्रवां छातियां भिड़ै सामी।
बिखम मे पीठ मत बताजै बीह सूं
खत्रवट लगाड़ै नको खामी।।5

सीखियो परभड़ो राठवड सूरमो,
बोल निज मात री सीख बंको।
हिंद री रुखाल़ी फौज में हरस सूं,
सधर भरती हुवो छोड संको।।6

पतित नापाक रा आय घुसपैठिया
डाक दे हिंद री सीम डाकी।
जाहर में नाहर बो थल़ी रो जागियो,
बण्यो विकराल़ यूं नको बाकी।।7

उरड़तो रीस में अड़़ड़ अगराजियो,
गादड़ां ऊपरै डकर गाढी।
मोत नै टकर हद दैण नै मलफियो
चोल़चख भ्रकुटी वीर चाढी।।8

रगां में रगत बह गोग राठौड़ रो,
माड़ेचा मारका तूझ मामा।
बेहूं पख देश कज जूझिया वरदधर
जगत में ऊजल़ा रख्या जामा।।9

कमध इम कैय नै केवियां कटकियो,
पाधरा करण नै दूठ-पाकी।
अडरपण परभड़ो समर में उरड़ियो,
हाणवां छाल़ियां रूप हाकी।।10

साबल़ी हाथल़ां बीहग्या स्याल़िया,
छतै में लड़ण री नको छाती।।
हाकलां भोम -रण करी घण होफरी,
घुरी में घूसीग्या पाक घाती।।11

घातियां गात तक मरद रै घात सूं
कमर तक समर में घाव कीधो।
महाबल़ परभड़ो दूणमन मरट सूं
दोयणां साबल़ो डाव दीधो।।12

सीस मुंडमाल़ में सूंपियो शंकर नैं
देह निज धरण नैं दान दानी।
दूध हद ऊजल़ो कियो भड़ दुनी में,
मात री सीख लोह लीक मानी।।13

गोग हरपाल़ ज्यूं जूझ भड़ गाढ सूं
वडेरां तणी रण रखी बातां।
पाल ज्यू़ मगर हद पच्चीसी म़ायनै,
खाग बल़ उकेरी खिरज ख्यातां।।

परभड़ा वीरगत तिहारी परणमू
परणमू कूख जिण जनम पायो।
पिता चंदरेस नैं अंजस दे पहुम पर,
धिनो- धिन लेय धर-अमर धायो।।15

जनमिया जिकै तो एक दिन जावसी,
रंक की सेठ की राव राजा।
जावणो परभडा तिहारो जगत सूं
बाजिया गरब रा सरब बाजा।।16

अंजस खिरजाण नैं रोप पग आपियो
तरां रण सैहिया घाव ताता।
उतारै तिहारी गुमर सूं आरती
मोद मन भारती करै माता।।17

खालीपण लागसी धरा खिरजाण री,
है नहीं भरण री किणी हाथां।
कल़पसी जामणी घरै निज कामणी
वीरतबल़ फूलसी सुमर बातां।।18

नमूं छतराणियां जिणण नर-नाहरां
नमू इण नारियां धीर नामी।
मोद सूं साचपण रखै मजबूत मन
जबर कुल़वाट रां नमू जामी।।19

परभड़ा पच्चीसां प्रखंडां प्रगटियो,
रंग रजपूत गल अमर राखी।
वीरगत पायनै वडेरां वाट बह
सूर ससियांण नै किया साखी।।20

रसा नै बतायो मरद रजपूतपण,
देह जस धार नै मिल़्यो देवां।
गीत कव गिरधरै कियो घण गुमर सूं,
सबद सुमनां तणै शहीद सेवां।।21

~~गिरधर दान रतनू दासोड़ी

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