राधा रमण देव स्तुति
।।दूहा।।
रह अंतर राधारमण, सुंदरवर घनश्याम।
भवजल पार उतारही, निगम सार जेहि नाम।।
।।छंद सारसी/हरिगीतिका।।
जेहि नाम आधा, गयँद साधा, जल अगाधा, अंतरे।
जब जूड खाधा, करी हाधा, शरण लाधा, अनुसरे।
मिट गई उपाधा, चैन बाधा, बंध दाधा, धा करी।
जय रमणराधा, मित्र माधा, हरण बाधा, श्रीहरी।।1
वसुदेव द्वारे, देह धारे, भार टारे, भोमके।
सुरकाज सारे, संत तारे, द्वैषी मारै, होम के।
सुरपति हँकारे, मेघ बारै, ब्रज उगारै, गिरधरी।
जय रमणराधा, मित्र माधा, हरण बाधा श्रीहरी।।2
बक लीन प्रानां, शकट भाना, जगत जाना, जोर है।
ब्रज हो तूफाना, व्योम ताना, कंठ ठाना, दोरहै।
अतिशय मुँझाना, मृत्यु माना, करि बिछाना, शिल परी।
जय रमणराधा, मित्र माधा, हरण बाधा श्रीहरी।।3
राधा सुगोरी, वय किशोरी, सांझ भोरी, नीसरै।
तब आत दौरी, अंग खोरी, दाण चोरी, शिर धरै।
करी द्रग कठोरी, जोर जोरी, बांह मोरी, बल करी।
जय रमणराधा, मित्र माधा, हरण बाधा श्रीहरी।।4
मुरली बजैया, गोप रैया, लार गैया, बन फिरै।
बळदेव भैया, संग लैया, ब्रज कनैया बीचरै।
बलि जात मैया, नृत करैया, कहत थैया, फिर फिरी।
जय रमणराधा, मित्र माधा, हरण बाधा श्रीहरी।।5
नटवर तरंगी, चाल चंगी, नवल रंगी, नाथ जू।
लटके कलंगी, मान तंगी, जीत जंगी हाथ जू।
तन तें त्रिभंगी, गोप संगी, त्रिय उमंगी, ईस री।
जय रमणराधा, मित्र माधा, हरण बाधा श्रीहरी।।6
पुतना जू मारी, नथ्यौ कारी, धेनु चारी, प्रीत से।
त्रियगोप तारी, ब्रज बिहारी, रमण न्यारी रीत से।
द्विज देव नारी, समज सारी, अचल यारी अनुसरी।
जय रमणराधा, मित्र माधा, हरण बाधा श्रीहरी।।7
अहि नथ्यौ काला, जहरवाला, सहित ताला, नृत करै।
विख तोय टाला, जियत बाला, हरि कृपाला, नज्जरे।
गळ फूल माळा, संग ग्वाळा, बात लाला, बंसुरी।
जय रमणराधा, मित्र माधा, हरण बाधा श्रीहरी।।8
ब्रज के बिलासी, प्रेम प्यासी, वदन हासी, मंद जू।
जुध के अध्यासी, दुष्ट नासी, जन प्रकाशी, चंद जू।
रस रूप राशी, नित हुलासी, अरणवासी, त्रिय तरी।
जय रमणराधा, मित्र माधा, हरण बाधा श्रीहरी।।9
प्रेमी खजीना, रंग भीना, तिलक दीना, भाल जू।
वसु कोप कीना, जान दीना, राख लीना, ग्वाल जू।
जा के अधीना, लोक तीना, प्रबीना सर्वोपरी।
जय रमणराधा, मित्र माधा, हरण बाधा श्रीहरी।।10
ब्रजनार व्हाली, मुक्त माली, नयन लाली, रेख है।
फणि दम्यौ काली, करि बेहाली, त्रिय उताली, देख है।
द्रह कीन खाली, पीर टाळी, चरित भाळी, श्री वरी।
जय रमणराधा, मित्र माधा, हरण बाधा श्रीहरी।।11
बन में बिलासा, हो हुलासा, रमत रासा रंग में।
कुळ दैत नासा, करि तमासा, अति उजासा, अंग में।
मुनि ब्रह्मदासा, रखौ पासा, दरस आशा, उर खरी।
जय रमणराधा, मित्र माधा, हरण बाधा श्रीहरी।।12
।।छप्पय।।
बाधा हरण ब्रजेश, बेस नर कुंजबिहारी।
ले मुरली निज हाथ, नाथ तारै नरनारी।
दिन दिन चरित उदार, भार मही हरण भुजाकर।
मनहर नंद कुमार, नार कर प्यार निरंतर।
रस रूप भूप राधा रमण, अजब छबि बनी आज की।
कह “ब्रह्म मुनि” मम उर सदा, रहो मूर्ति ब्रजराज की।।
~~ब्रह्मानंद स्वामी