रघुवरजसप्रकास [10] – किसनाजी आढ़ा

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अथ गीत हिरणझंप लछण
दूहौ
धुर सोळह दूजी चवद, ती चौवीस तवंत।
चौथी पंचम मत चवद, छठ चौवीस छजंत।।१२४
पहली दूजी मेळ पढ, तीजी छठी मिळाप।
मेळ चवथी पंचमी, जपै वडा किव जाप।।१२५
धुर बी चौथी पंचमी, भगण नगण यां अंत।
तीजी छठी अंत तुक, जगण अहेस जपंत।।१२६

अरथ
पै’ली तुक मात्रा सोळै, तुक दूजी मात्रा चवदै, तुक तीजी मात्रा चवदै, तुक चौथी मात्रा चवदै, तुक पांचमी मात्रा चवदै, तुक छठी मात्रा चौवीस होवै। पै’ली दूजी रै पछै नगण। चौथी, पांचमी तुक रै अंत भगण तथा अंत लघु होवै। तीजी छठी तुक रै अंत जगण होवै। दूजा दूहां-पैली, दूजी, चौथी, पांचमी तुकां मात्रा चवदै होवै। तीजो छठी तुक मात्रा चौबीस होवै, जीं गीतरौ नांम हिरणझंप कहीजै।

अथ गीत हिरणझंप उदाहरण
गीत
निज आठ जोग अभ्यास अहनिस,
सधै सुर घर जुगम रवि सस,
करै रेचक पूरक कुंभक, वहै दम सिर ठांम।
असी च्यार सुधार आसण,
धौत बसती नीत धारण,
करौ अेता कठिण विधक्रम, न सम राघव नांम।


१२४. धुर-प्रथम। दूजी-दूसरी। चवद-चौदह। ती-तीसरी। तवंत-कहते हैं। छजंत-शोभा देता है, शोभा देती है।
१२५. चवथी-चतुर्थ।
१२६. बी (द्वि)-दूसरी। यां-इन। अहेस (अहीश)-शेष नाग।
१२७. आठ-जोग-अष्टांग योग। अहनिस-रात-दिन। सुर (स्वर)-नाक से निकलने वाली वायु। जुगम (युग्म)-दो। रवि-सूर्य। सस (शशि)-चन्द्रमा। रेचक-प्राणायाम की एक क्रिया विशेष जिससे खींचे हुए सांस को विधिपूर्वक बाहर निकाला जाता है। पूरक-प्राणायाम की प्रथम क्रिया या विधि जिसमें सांस को भीतर की ओर बलपूर्वक खींचते हैं। कुंभक-प्राणायाम की एक विधि जिसमें सांस की वायु को भीतर ही रोक रखते हैं। दम-सांस। धौत-शरीर शुद्धि की योग की एक क्रिया, धौति। बसती (वस्ति)-योग की एक क्रिया विशेष। नीत-कपड़े की एक पतली धज्जी को गले से पेट में डाल कर आंतों को शुद्ध करने की हठयोग की एक क्रिया-(सम-बराबर, समान)

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बंकनाळ समीर वासय,
चक्रखट तत पंच भिद चय,
सुचित मधुकर वसै संतत, जळ्ज भ्रकुटी मझार।
भूम खेचर चाचरी भण,
मुनीउन आ गोचरी मुण,
निवह मुद्रा तपण नाहि, मीढ रेफ मकार।
अधोमुख उध पाय आसण,
धूम्रपांन सदीव धारण,
महा अै विध कठिण मांनव, करौ लाख करोड़।
तप क्रिया ब्रत होम तीरथ,
अवर परबी दांन हिम अथ,
निपट अै विध कदे नावै, जाप राघव जोड़।
तरुण गणिका नांम जै तर,
पेख सवरी जात पांमर,
बार अबखी देख बारण, पेख कीध पुकार।
अजामेळ सरीख आधम,
बाळ्मीक पुलिंद बेखम,
‘किसन’ हेकण छिनक कीधौ, यतां नांम उधार।।१२७


१२७. बंकनाळ-योगियों की बोलचाल में सुषुम्ना नामक नाड़ी का एक नाम। समीर-हवा। चक्रखट (षटचक्र)-योग के शरीरस्थ छः चक्र। तत-तत्त्व। पंच-पांच। मधुकर-भौंरा। संतत-सदैव, निरन्तर। जळज-कमल। मझार-मध्य। खेचर-खेचरी मुद्रा। चरचरी (चर्चरी)-योग की एक मुद्रा। मुनीउन (उनमुनी)-हठ योग की एक मुद्रा। मुण-कह। मीढ-समान बराबर। रेफ-र अक्षर। मकार-म अक्षर। अधोमुख-औंधा मुख। उध-ऊपर। पाय-चरण। सदीव-नित्य। हिम-स्वर्ण, सोना। कदे-कभी। जाप-जप। जोड़-समान, बराबर। पांमर-नीच। बार-वेला, समय। अबखी-कठिन। बारण-हाथी। कीध-की। सरीख-समान। आधम-नीच। पुलिंद-एक प्राचीन सभ्य जाति। हेकण-एक। छिनक-क्षण, थोडा। कीधौ-किया। यतां-इतने।

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अथ गीत कैवार लछण
दूहौ
धुर अठार बी नव धरौ, ती सोळह नव वेद।
दुगुरु अंत चौथी दुती, भरण कैवार सुभेद।।१२८

अरथ
पै’ली तुक मात्रा अठारै होवै। तुक दूजी मात्रा नव होवै। तुक तीजी मात्रा सोळै होवे। तुक चौथी मात्रा नव होवै। पछै सोळै ने नव ईं क्रम होवे। दूजी चौथी तुक रै अंत दोय गुरु होवै, तीं गीत रौ नांम कैवार कहीजै।

अथ कैवार उदाहरण
गीत
कीजै वारणै छिब कांम कौटिक, दीन दुख दाघौ।
साभाव सरण-सधार स्रीवर, राजरौ राघौ।।
धानंखधारी विरद धारण, तोय गिरतारी।
राजवाळौ नंद दसरथ, भरोसौ भारी।
भव चाप भंज जनंक भूपत, राज पण रक्खै।
सुज पूर खित्रवट वरी सीता, सूर सिस सक्खै।।
रघुनाथ संत समाथ तारण, नाथ बोहौ नांमी।
दसमाथ भंज प्रचंड दाटक, भुजाडंड भांमी।।१२९


१२८. बि (द्वि)-दो, दूसरी। ती-तीसरी। तीं-उस।
१२९. बारणै-न्यौछावर। छिब-शोभा। कौटिक-करोड़। दाघौ-दग्ध, जला हुआ। साभाव-स्वभाव। सरण-सधार-शरण में प्राए हुए की रक्षा करने वाला। स्रीवर (श्रीवर)-विष्णु। राजरौ-श्रीमान का। राघौ-राघव, रामचन्द्र भगवान। तोय-पानी। गिरतारी-पर्वतों को तैराने वाला। राजवाळी-श्रीमान का, आपका। नंद-पुत्र। भव-महादेव, शिव। चाप-धनुष। पूर-पूर्ण। खित्रवट-क्षत्रियत्व। सूर-सूर्य। सिस (शशि)-चन्द्रमा। सक्खै-साक्षी है। समाथ-समर्थ। बोहौ-बहुनामी। दसमाथ-रावण। भंज-नाश कर। दाटक-जबरदस्त, शक्तिशाली। भुजाडंड-जबरदस्त। भांमी-बलैया, न्यौछावर।

— 237 —

अथ गीत दोढा लछण
दूहा
धुर बी ती चवदह धरौ, चौथी बार चवंत।
पंच छठी सप्तम चवद, अठमी बार अखंत।।१३०
पहली बीजी तीसरी, मेळ रगण पछ होय।
मिळ चौथी सूं आठमी, जै तुकांत लघु जोय।।१३१
पंचम छठी सातमी, मेळ रगण पय छेह।
भाख रांम गुण ‘किसन’ भल, आखत दोढौं अेह।।१३२

अरथ
दोढा गीत रै पैली दूजी तीजी तुक मात्रा चवदै होय। चौथी आठमी तुक मात्रा बारै होय। पांचमी छठी सातमी तुक मात्रा चवदै होय। पै’ली दूजी तीजी तुकां मिळै, अंत रगण होय। चौथी आठमी तुक मिळै, अंत लघु होय। पांचमी छठी सातमी तुक मिळै, अंत रगण होय, जीं गीत को नांम दोढौ कहीजै।

अथ गीत दोढा उदाहरण
गीत
भड़ असुर आहव भंजिया, गह कुंभ सरखा गंजिया।
रघुराज संतां रंजिया, वडवार कीरत व्यंद।।
आजांनभुज बळ अंगरौ, जैतार दससिर जंगरौ।
अख रूप कौट अनंग रौ, बिबुधेस नीत पय बंद।।


१३०. धुर-प्रथम। बी-दूसरी। ती-तीसरी। चवदह-चौदह। बार-बारह। चवंत-कहते हैं। चवद-चौदह। अखंत-कहते हैं।
१३१. पछ-बाद में, पश्चात।
१३२. पय-चरण। छेह-अंत। भल-ठीक। आखत-कहते हैं। ऐह-यह। चवंदै-चौदह। बारै-बारह। जीं-जिस।
१३३. भड़-योद्धा। असुर-राक्षस। आहव-युद्ध। भंजिया-ध्वंश किये। गह-गंभीर, महान। कुंभ-रावण का भाई कुंभकर्ण। सरखा-समान। गंजिया-ध्वंश किये। रंजिया-प्रसन्न किये प्रथवा प्रसन्न हुए। बार-समय। कीरत-कीर्ति। ब्यंद-बंदन। आजांनभुज-आजानबाहु। जैतार-जीतने वाला, जीत कर उद्धार करने वाला। दससिर-रावण। अख-कह। कौट-करोड़। अनंगरौ-कामदेव का। बिबुधेस-इन्द्र। पय-चरण। बंद-बंदन करता है।

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कौटे’क अघदळ काटणौ, असुरेस मूळ उपाटणौ।
थिर संत थांनक थाटणौ, अभनिमौ सगर रोड़।।
सुज तेज कौटक सूर रौ, रज कौट इंद्र जहूर रौ।
निज समुख रजवट नूर रौ, महराज रिव कुळ मोड़।।
बांनैत भूपत बंकड़ा, घण भंज रिण असुरां घड़ा।
सुज दास टाळण संकड़ा, लहरेक आपण लंक।।
भूपाळ सिघ धन भूपती, रिझवार कीरत बड रती।
अंग लियां पौरस आसती, अवधेस जुध अणसंक।।
सुज भ्रात जेठी सेसरा, दइवांण वंस दनेसरा।
ह्रद कंज मधुप महेसरा, मन महण रूप समाथ।।
ह्रद भाळ सुसबद भळहळा, निज कदंम समहर नहचला।
साधार सेवग सांवाळ, नृपराज दसरथ नंद।।१३३

अथ गीत हंसावळौ सांणौर लछण
दूहौ
धुर अठार फिर पनर धर, सोळ पनर सरवेण।
लछण अै है अंत लघु, जपै वेलियौ जेण।।१३४


१३३. अघ-पाप। दळ-समूह। काटणौ-काटने वाला। असुरेस-रावण। मूळ-जड़, वंश। उपाटणौ-मिटाने वाला। थिर-स्थिर। थानक-स्थान। थाटणौ-शोभा बढ़ाने वाला, वैभव बढ़ाने वाला। अभनिमौ-वंशज। सगर-एक सूर्यवंशी राजा का नाम। अरोड़-जबरदस्त। सुज-वह। कौटक-करोड़। सूर रौ-सूर्य का। रज-वैभव। जहूर (जुहूर)-प्रकाशन, प्रकट। रजवट-क्षत्रियत्व, शौर्य। नूर-कांति, दीप्ति, सुन्दरता। रिव-सूर्य। बांनैत-वीर। भूपत-भूपति, राजा। बंकड़ा-बंकुरा। घण-बहुत, अधिक। रिण-युद्ध। असुरां-राक्षसों। घड़ा (घटा)-सेना। दास-भक्त। टाळण-मिटाने को, दूर करने को। संकड़ा-संकुचित, संकट। आपण-देने वाला। लंक-लंका। सिघ-श्रेष्ठ। धन-धन्य। रिझवार-प्रसन्न होने वाला। बड-महान, बड़ी। रती-कांति, दीप्ति। आसती-महान, प्रबल। अणसंक-निडर, निर्भय। भ्रात-भाई। जेठी (जेष्ट)-बड़ा। सेसरा-लक्ष्मण का। दइवांण-महान, जबरदस्त। दनेसरा (दिनेश का)-सूर्य का। ह्रद-हृदय। कंज-कमल। मधुप-भौंरा। महेस रा-महादेव का। महण (महार्णव)-समुद्र। समाथ-समर्थ। सुसबद-कीर्ति, यश। कदंम (कदम)-चरण। समहर-युद्ध। साधार-रक्षक, सहायकसेवग-भक्त। सांवळा-श्रीकृष्ण, श्रीराम। नंद-पुत्र।
१३४. धुर-प्रथम। अठार-अठारह। पनर-पनरह। सोळ-सोलह। सरवेण-सबमें।

— 239 —

तुक प्रत बे बे कंठ तव, रा रा सबद सरास।
कहै नांम जिण गीत कौ, हंसावळौ सहास।।१३५

अरथ
वेलिया सांणोर गीत रै तुकप्रत बे बे अनुप्रास एक सरीखा होवे। सोळै तुकां में बतीस कंठ होवै सौ गीत हंसावळौ सांणौर कहावै।

अथ गीत हंसावळा रौ उदाहरण
गीत
सतरा हरचंद सुमतरा सागर, चितरा विलंद सुदतरा चाव।
वतरा व्रवण प्रभतरा वाधण, नतरा तार सुक्रतरा नाव।।
वनरा वांस सुमनरा काज वस, पुनरा निध तनरा आपांण।
भय मेटण जनरा भन भनरा, महदनरा मनरा महरांण।।
रिखरा निज मखरा रखवाळण, दुखरा तन लखरा जन दाह।
धखरा खळ मुखरादस धड़चण, नरपखरा पखरा निरबाह।।
सुखकररा थिररा वासी सुज, संकररा उररा सामाथ।
वररा सीत तार गिरवररा, हररा अघ रघुबररा हाथ।।१३९


१३५. कंठ-अनुप्रास। सरास-रसपूर्ण। सहास-आनंदपूर्वक, हर्षपूर्वक।
१३६. सतरा-सत्य का। हरचंद-राजा हरिश्चंद्र। सुमतरा-सुमतिका। चितरा-चित के। विलंद-महान, बड़ा। सुदतरा-श्रेष्ठ दान का। चाव-उमंग। वतरा-धन का। व्रवण-देने वाला। प्रभतरा-यश का, कीर्ति का। वाधण-बढ़ाने वाला। नतरा-नहीं तैर सकने वाला पापी, पर्वतादि। तार-तैराने या उद्धार करने वाला। सुक्रतरा-श्रेष्ठ कार्य का। सुमनरा-देवतानों का। काज-काम। पुनरा-पुण्य का। निध (निधि)-खजाना। तनरा-शरीर का। आपांण-शक्ति, बल। महरांण (महार्णव)-समुद्र। रिखरा-ऋषि का। मखरा-यज्ञ का। रखवाळण-रक्षा करने वाला। लखरा-लाखों का। धखरा-द्वेष का, कोप का। खळ-राक्षस। मुखरादस-रावण। धड़चण-मारने वाला, काटने वाला। नरपखरा-जिसका कोई पक्ष या सहायक न हो। पखरा-पक्ष का। निरबाह-निभाने वाला। थिररा-पृथ्वी का। सामाथ-समर्थ। तार-तैराने वाला। गिरवररा-पर्वतों का। अघ-पाप।

— 240 —

अथ गीत रसखरा लछण
दूहा
धुर सोळह बी ती चवद, चौथी दस मत चाह।
पंच छठी सप्तम चवद, दस आठमी सराह।।१३७
धुर बी ती पंचम छठी, सप्तम खट तुक मेळ।
मिळ चौथीं सूं आठमी, भल तुकंत लघु भेळ।।१३८
नगणक भगण तुकंत खट, तगण जगण चव आठ।
सुकव रसखरौ गीत सौ, पढ जस राघव पाठ।।१३९

अरथ
पै’ली तुक मात्रा सोळै होवै। दूजी तुक मात्रा चवदै होवे। तीजी तुक मात्रा चवदै होवै। चौथी तुक मात्रा दस होवै। पांचमी तुक मात्रा चवदै होवे। छठी तुक मात्रा चवदै होवै। सातमी तुक मात्रा चवदै होवै। आठमी तुक मात्रा दस होवै। पै’ली, दूजी, तीजी, पांचमी, छठी, सातमी अै तुकां मिळै। यां छ ही तुकां रै अंत में नगण तथा भगण तुकांत में आवै अर चौथी तुक आठमी तुक सूं मिळै। ज्यां दोयां रै तुकांत नगण तथा जगण होवे, जीं गीत रौ नांम रसखरौ कहीजै। गुरुवंत छै। हिरणझंप रसखरा रौ एक लछण छै।

अथ गीत रसखरा रौ उदाहरण
गीत
सुज रूप भूप अनूप स्यांमळ, जेम बरसण घटा छिब जळ।
वणै अंबर पीत वीजळ, सुकव क्रीत सराह।।


१३७ धुर-प्रथम। बी-दूसरी। ती-तीसरी। चवद-चौदह। मत-मात्रा।
१३८. खट-छ।
१३९. नगणक-नगण। चव-कह। सुकव-श्रेष्ठ कवि। यां-इन। ज्यां-जिन। दोयांरै-दोनों के। जीं-जिस। गुरुवंत-वह जिसके अन्त में गुरु हो।
नोट-मूल प्रति में गुरुवंत शब्द लिखा मिला। यहां पर लघ्वांत होता तो ठीक रहता क्योंकि रसखरा गीत में सर्वत्र अन्त लघु वर्ण ही होता है।
१४०. स्यांमळ-श्याम, कृष्ण। बरसण-वर्षा। छिब-कांति। अंबर-वस्त्र, प्रकाश। पीत-पीला। वीजळ-बिजली, विद्युत। सराह-प्रशंसा।

— 241 —

कंज सरभर समुख कोमळ, कांन झगमग हरि कुंडळ।
नयण परसत पत्र निरमळ, दूठ रांम दुबाह।।
भुजा बळ खळ भंज भारथ, अथघ अपहड़ ब्रवण किव अथ।
सरब बातां वणै समरथ, धार बांण धनंख।।
कहै मुख मुख जगत जस कथ, असुर समहर नाथ ऊनथ।
दुझल राघव सुतण दसरथ, लियण भुजबळ लंक।।
घड़ण नोखा घाट अणघट, वणै लंगर पाय रिणवट।
घणूं व्यापक ईस घट घट, संत कारज सार।।
मेल दळ घण रीछ मरकट, पाज बंध समंद जळ पट।
खळां सबळां भंज खळ खट, विजै कर रणवार।।
बिहद भूपत सीत वाहर, जार दससिर समर जाहर।
थरर लंका जिसा थाहर, विसर त्रंबक वाज।।
नेतबंध रघुनंद नाहर, छत्री सरण हित उछाहर।
भभीखण कर लंक स्रीवर, मौज की महराज।।१४०

अथ गीत भाखड़ी लछण
दूहा
एक दवाळौ आंकणी, औ पै’ला कर अेम।
ग्यार मत्त धुर नव दुती, निज ग्यारह नव नेम।।१४१
अवर दवाळां वीस खट, तुक प्रत मत्त तवंत।
मिळै च्यार तुक अंत लघु, किव भाखड़ी कहंत।।१४२


१४०. कंज-कमल। सरभर-समान। झगमग-दमक-चमक। हीर-हीरा। दूठ-जबरदस्त। दुबाह-वीर। भंज-नाश कर। भारथ-युद्ध। अथघ-अपार। अपहड़-दानवीर, दातार। ब्रवण-दान देने वाला। किव-कवि। अथ (अर्थ)-धन-दौलत। नाथ-नाथना, वश में करना। ऊनथ-वह जो बन्धन में न हो, उद्दण्ड। दुझल-वीर। सुतण-पुत्र। लियण-लेने वाला।
१४१. दवाळौ-गीत छंद के चार चरण का समूह। ग्यार-ग्यारह। मत्त-मात्रा।

— 242 —

अरथ
भाखड़ीनामा गीत कै पै’ली तौ आंकणी कौ एक दवाळौ होय, सौ दवाळौ भाखड़ी का सारा दवाळां कै आगै पढ्यौ जाय, जीं आंकणी का दवाळा की पै’ली तुक मात्रा इग्यारै, चौथी तुक मात्रा नव होय और गुरु अंत होय और भाखड़ी का दवाळा की सारी तुकां प्रत मात्रा छाईस होय। अंत लघु होय, जीं गीत कौ नांम भाखड़ी कहीजै। मात्रा उपछंद छै।

अथ गीत भाखड़ी उदाहरण
गीत
खग दत ब्रद खटांजी, राखण रजवटां।
थूरण खळ थटांजी, राघव रिणवटां।।
रिणवटां राघव खळां रहचण भुजबळां अणभंग।
सुज पळां प्रघळां दियण समळां, गळां ग्रीध सुचंग।।
चळवळां जोगण खपर चढवै, सिंभ कमळां स्रंग।
जग गीत चिहूंवै-वळां जाहर, सुजस हुवै सुढंग।।
खग दत ब्रद खटांजी, राखण रजवटां।
थूरण खळ थटांजी, राघव रिणवटां।।
भड़भड़ै के लड़थड़ै भारथ अड़ै के अखड़ैत।
वड़वड़ै के हड़हड़ै वीजळ, जड़ै के जरदैत।।
अड़वड़ै के धड़हड़ै आतस, जुड़ै के कज जैत।
विच समर हेकण धड़ै राघव, बडै रंग बिरदैत।।


१४३. खग-तलवार। दत-दान। खटां-प्राप्त करें। रजवटां-क्षत्रियत्व। थूरण-ध्वंश करना, नाश करना, संहार करना। खळ-शत्रु। थटां-दल। रिणवटां-युद्धों। रहचण-संहार करने को। अणभंग-नहीं भगने वाला वीर। पळां-मांस। प्रघळां-बहूत। दियण-देने वाला। समळां-मांसाहारी पक्षी विशेष। गळां-मांस-पिंडों। चळवळ-रक्त, खून। जोगण-योगिनी, चंडी। सिंभ-शंभु, महादेव। कमळां-मस्तकों। स्रंग (श्रक)-माला। चहूंवैवळां-चारों ओर। सुढंग-श्रेष्ठ। भड़-योद्धा। भड़ै-भिड़ते हैं, युद्ध करते हैं। लड़थडे-लड़खड़ाते हैं। भारथ (भारत)-युद्ध। अड़ै-अड़ते हैं, भिड़ते हैं। के-कई। अखड़ैत-योद्धा। वड़वड़ै-भिड़ते हैं। हड़हड़ै-हंसते हैं। वीजळ-तलवार। जड़ै-प्रहार करते हैं। जरदैत-कवचधारी योद्धा। अड़वड़े-हड़बड़ाते हैं। धड़हड़ै-तोपों की ध्वनि होती है। जुड़ै-भिड़ते हैं। कज-लिये। जैत-विजय। विच-बीच में। समर-युद्ध। हेकण-एक। धड़ै-तरफ, ओर, दल में। बिरदैत-बिरुदधारी, वीर।

— 243 —

खग दत ब्रद खटांजी, राखण रजवटां।
थूरण खळ थटांजी, राघव रिणवटां।।
पह बीरहाक पनाक पणचां, बाज डाक त्रबाक।
असनाक पर ग्रीधाक आवध, करग बाज कजाक।।
चठ्ठा करत खप्पराक चंडी, राग बज अयराक।
रिणछाक चढ़ रिव ताक राघव, लखण सहित लड़ाक।।
खग दत ब्रद खटांजी राखण रजवटां।
थूरण खळ थटांजी, राघव रिणवटां।।
पाराथ सेवग आथ आपण करण सिध मन काथ।
दसदूण हाथ समाथ दाटक, मार खळ दसमाथ।।
जुड़हाथ माथ नमाय जंपै, गुणां ‘किसनौ’ गाथ।
सरणाय लंक समाथ समपण, निमौ स्री रघुनाथ।।
खग दत ब्रद खटांजी राखण रजवटां।
थूरण खळ थटांजी, राघव रिणवटां।।१४३


१४३. बीरहाक-वीर-ध्वनि। पनाक-धनुष। पणचां-प्रत्यंचाओं। डाक-डंका। त्रबाक-नगाड़ा। चठ्ठा-द्रव पदार्थ को जीभ से खींच कर पीने से होने वाली ध्वनि। अयराक-तेज, भयंकर। रिणछाक-युद्धोन्मत्तता। रिव (रवि)-सूर्य। लखण-लक्ष्मण। लड़ाक-योद्धा। पाराथ-प्रार्थना। सेवग-भक्त। आथ-धन-दौलत। आपण-देने को। काथ-कथा। दसदूण-बीस। समाथ-समर्थ। दाटक-जबरदस्त, महान। खळ-राक्षस। दसमाथ-रावण। जुड़हाथ-कर-बद्ध होकर। माथ-मस्तक। नमाय-नमा कर, झुका कर। जंपै-कहता है। गुणां-यश, कीर्ति। गाथ-कथा, गाथा। सरणाय-शरण में आया हुआ। समाथ-समर्थ। समपण-समर्पण करने को, समर्पण करने वाला।

— 244 —

अथ अन्य विधि गीत भाखड़ी लछण
दूहौ
धुर नव मत जीकार फिर, चवद गुरू लघु अंत।
एम च्यार तुक आंकणी, किव भाखड़ी कहंत।।१४४

अथ गीत दुतीय भाखड़ी उदाहरण
गीत
सीवर सारणौ जी, केतां निबळ संतां कांम।
महपत मारणौ जी, मह जुध फरसधरसां मांम।।
घजबंध धारणौ जी, बंका बरद भुज बरियांम।
सरण-सधारणौ जी, रिवकुळ आभरण रघुरांम।।
रघुरांम भूपत आभरण, रिववंस अडर अरेह।
भुज धरण बंका बिरद अणभंग, तीख खित्रवट तेह।।
दिल गहर ओपत सुतण दसरथ, बोल मुख लख बेह।
सुत पूर आसां सरब समरथ, निपट दासां नेह।।१४५

अथ गीत अरधभाखड़ी तृतीय लछण
दूहौ
अरध दवाळौ आंकणी, बीजौ अरध वखांण।
अरध भाखड़ी कवि अखै, जुगत त्रिहूं विध जांण।।१४६

अरथ
यण तरै च्यार दवाळा तथा यधक दवाळांई होय, तिणनूं अरधभाखड़ी कहीजै। तुक दो आंकणी री हुवै।

अथ गीत अरधभाखड़ी उदाहरण
गीत
आरख अंगरा जी दुती भळळाट रवि दरसेण।
रूप अनंगरा जी जोयां हुवै रद छबि जेण।।


१४४. धुर-प्रथम। मत-मात्रा। चवद-चौदह। कहंत-कहते हैं।
१४५. सीवर (श्रीवर)-विष्णु, श्री रामचन्द्र। सारणौ-सिद्ध करने वाला, सफल करने वाला। केतां-कितने। निबळ-निर्बल। महपत (महिपति)-राजा। मारणौ-मारने वाला। फरसधरसां-परशुरामजी से। मांम-गर्व, प्रतिष्ठा। धजबंध-वीर। धारणौ-धारण करने वाला। बंका-बांकुरे। बरद-विरुद। बरियांम-श्रेष्ठ। सरण-सधारणौ-शरण में आए हुए की रक्षा करने वाला। आभरण-आभूषण। रिववंस (रविवंश)-सूर्यवंश। तीख-विशेषता। खित्रवट-क्षत्रियत्व, वीरता। गहर-गंभीर। ओपत-शोभा देता है। सुतण-पुत्र। बोल-यश, शब्द। निपट-बहुत। दासां-भक्तों। नेह-स्नेह।
१४६. दवाळौ-गीत छंद के चार चरण का समूह। बीजौ-दूसरा। अखै-कहते हैं। जुगत-युक्ति। त्रिहूं-तीनों। विध-विधि, प्रकार, तरह। जांण-समझ।
१४७. आरख-चिन्ह, लक्षण। दुति (द्युति)-कांति, दीप्ति। भळळाट-चमक, दमक। रवि-सूर्य। दरसेण-दर्शन से। अनंगरा-कामदेव का। जोयां-देखने पर। रद-खराब, निकम्मा, रद्द। छबि-शोभा। जेण-जिससे।

— 245 —

जिण जोय रद छबि हुवै जाहर कौट कांम कांम।
सुत भूप दसरथ नूप सोभा रूप रविकुळ रांम।।१४७

अथ गोखौ गीत लछण
दूहौ
बारह मत तुक आठ प्रत, आख वीपसा अंत।
छीनूं मत दवाळ प्रत, यूं गोखौ आखंत।।१४८

अरथ
ब्रध गोखा गीत रै तुक आठ होवै। तुक अेक प्रत मात्रा बारै होवै नै आठमी तुक में वीपसा होवै, जिको गोखौ सावझड़ौ गीत कहीजै।

अथ गीत गोखा उदाहरण
गीत
साझी के बखत सांम, बेल संत बारियांम।
ते कहै प्रथी तमांम, नमौ आप आप नांम।।
धार चाप तेज धांम, वांग अंग रमा बांम।
किता सार संत कांम, सिया राम सिया रांम।।१४९

अथ दुतीय गोखौ गीत लछण
दूहौ
मझ खट तुक बारह मता, बेद अठम नव जांण।
कळ नेऊ लघु अंत कह, इक गोखौ इम आंण।।१५०


१४७. जोय-देख कर। कौट-करोड़। नूप (अनूप)-अद्भुत। यण-इन। तरै-तरह, प्रकार। यधक-अधिक। तिणनूं-उसको। हुवै-होती है।
१४८. मत-मात्रा। प्रत-प्रति। आख-कह। वीपसा (वीप्सा)-एक शब्दालंकार जिसमें अर्थ या भाव पर बल देने के लिए शब्दावृत्ति होती है। दवाळ-गीत छंद के चार चरणों का समूह। यूं-ऐसे। आखंत-कहते हैं।
१४९. बेल-मदद। बारियांम-श्रेष्ठ। तमांम-सब। धार-धारण कर। चाप-धनुष। वांम-बायां। रमा-लक्ष्मी, सीता। किता-कितने। सार-सफल कर।
१५० मझ-मध्य। खट-छ। मता-मात्रा। बेद-चतुर्थ, चौथी। अठम-आठमी। कळ-मात्रा। नेऊ-नब्बे। इक-एक। इम-ऐसे। आंण-ला, रच।

— 246 —

अरथ
दूजा गोखा रै तुक तीन, पै’ली दूजी तीजी मात्रा बारै होय। तुक चौथी मात्रा नव होय। तुक पांचमी, छठी, सातमी मात्रा बारै-बारै होय। तुक आठमी मात्रा नव होय। कुल मात्रा एक दवाळा में नवे होय। गुरु लघु तुकंत पै’ली दूजी तीजी मिळै। चौथी आठमी मिळै। पांचमी छठी सातमी मिळै। कोई कवि यूं पिण गोखौ कहै छै तोई सावझड़ौ छै।

अथ दुतीय गोखा गीत उदाहरण
गीत
साझी के बखत सांम, बेल संत बारीयांम।
ते कहै प्रथी तमांम, नमौ आप नांम।।
धार चाप तेज धांम, बांम अंग रमा बांम।
किता तार संत कांम, रांम रांम रांम।।
सझै बंदगी सुरीस, देव तौ जपै दनीस।
लाख. . . . . . . . . . लछीस, नांमणौ नरीस।।
बाढ जंग भुजावीस, रीझियां लँका वरीस।
कियौ जे सखा कपीस, ईस ईस ईस।।
भेत गुणां गाथ भेव, आभड़ै न अहंमेव।
ईंद सा सुरा अजेव, साझ तास सेव।।
कीरति वांणी कहेव, दिलां धरै संभदेव।
वाह जेण चेत वेव, देव देव देव।।
नरेस अनाथ नाथ, अनाथियां घरे आथ।
करै तूं सुधारे काथ, रटां सांमराथ।।
भंज के खळां भराथ, गुणां वेद ब्रंह्म गाथ।
मुणै तौ नमाय माथ, नाथ नाथ नाथ।।१५१


१५०. यूं-ऐसे। पिण-भी। तोई-तब भी।
१५१. सझै-करता है। बंदगी-टहल, सेवा। सुरीस (सुरेश)-इन्द्र। तौ-तुझे। दनीस (दिनेश)-सूर्य। लछीस (लक्ष्मी + ईश)-विष्णु, श्री रामचन्द्र। नांमणौ-नमाने वाला, झुकाने वाला। नरीस (नरेश)-राजा। बाढ-काट कर। जंग-युद्ध। भुजा-बीस-रावण। रीझियां-प्रसन्न होने पर। लंका-वरीस-लंका का दान देने वाला। सखा-मित्र। कपीस-सुग्रीव। भेव-भेद। आभड़े-स्पर्श करता है। अहंमेव-अभिमान, गर्व। ईंदसा-इन्द्र के समान। सुरा-देवता। साझ-करते हैं। तास-उस। सेव-सेवा। वांणी-सरस्वती। कहेव-कहती है। संभ (शंभू)-शिव। अनाथियां-गरीबों। आथ-धन-दौलत। काथ-कार्य, काम। सांमराथ-समर्थ। भराथ-युद्ध। मुणै-कहते हैं। तौ-तुझको। नमाय-नमा कर। माथ-मस्तक।

— 247 —

अथ गीत ढोलचलौ तथा ढोलहरौ-सावझड़ौ लछण
दूहौ
धुर बी ती तुक सोळ मत, चौथी मत्त अढार।
सावझड़ौ तुक अंत लघु, ढोलहरौ निरधार।।१५२

अरथ
जिण गीत रै पै’ली, दूजी, तीजी तुक मात्रा सोळै होय। तुक चौथी मात्रा अढारै होय। पण लघु कर पढ्या चाहै तौ सोळै ही पढी जाय, सावझड़ौ होय। कदा’क पै’ली, दूजी, तीजी, तुकां में मात्रा सोळै सूं अधिक होय तौ अटकाव नहीं। पण सोळै सूं घटती तौ नहीं संभवै। जूंनौ गीत देख कीदौ छै।

अथ गीत ढोलचलौ तथा ढोलहरौ सावझड़ौ उदाहरण
गीत
पेख बणै जिण बाह परध्धर, धींग भुजां निज चाप सरध्धर।
जेण भजै रिखी ब्रह्म जट धर, गावबे गावबे गाव गिरधर।।
तौ चित चाह उधार सुतंनह, सेवत तौ दसरथ सुतंनह।
रात दिनां कर खांत रसंनह, बोलबे बोलबे बोल विसंनह।।
बेढबखौ यम ऊंबर सौ बित, आाळ-जंजाळ विसार अलच्छत।
सांन विमास विसास धरेसत, पढबे बढबे पढ्ढ रघ्घुपत।।
कारुणचौ निध जांनुकीकंतह, स्यांम सुनाथ करै घण संतह।
तूं ‘किसना’ चित रक्ख नच्यंतह, अखबे अखबे अक्ख अनंतह।।१५३


१५२. धुर-प्रथम। बी-दूसरी। ती-तीसरी। सोळ-सोलह। मत-मात्रा। मत्त-मात्रा। अढार-अठारह। निरधार-निश्चय। पण-परन्तु। कदा’क-कदाचित्। अटकाव-अड़चन। कीदौ-किया।
१५३. पेख-देख कर। बणै-बनता है। धींग-जबरदस्त। चाप-धनुष। सरध्धर-बाण धारण करता है। जेण-जिसको। रिख-ऋषि। ब्रह्म-ब्रह्मा। जटधर-शिव। गिरधर-गिरधारी। तौ-तेरे। चाह-इच्छा। सुतंनह-पुत्र। खांत-विचार। रसंनह-जीभ। विसंनह-विष्णु। बेढ-लड़ाई। बखौ-कष्ट, दुःख। ऊंबर (उम्र)-आयु। आळजंजाळ-व्यर्थ का प्रपंच। विसार-भूल जा। सांन-बुद्धि। विमास-विचार कर। विसास-विश्वास। कारुणचौनिध-करुणा का खजाना। जांनुकीकंतह-जानकी का पति, श्री रामचंद्र। स्यांम-स्वामी। घण-बहुत। नच्यंतह-निश्चिंत। अखबे-कह रे। अक्ख-कह। अनंतह-विष्णु, श्री रामचंद्र।

— 248 —

अथ गीत त्रकुटबंध लछण
दूहा
धुर चवदह चवदह दुती, तीजी मत छाईस।
चवदह चौथी पंचमी, इम तुक पंच कहीस।।१५४
आठ तुकां फिर कंठ की, पै’ली सोळह मत्त।
चवद चवद कळ आठ तुक, नवमी दसह निरत्त।।१५५
पै’ली दूजी सूं मिळै, तिण रै गुरु तुकंत।
तीजी दूहा अंतरी, उभै मिळै लघु अंत।।१५६
मिळै चवथी पंचमी, जिकां अंत गुरु जांण।
अनुप्रास की आठ तुक, मिळै अंत लघुमांण।।१५७
त्रकुटबंध तिण गीत नै, कहै सरब कवियांण।
राघव जस जिण मझ रटै, वळै सतारथ वांण।।१५८

अरथ
त्रकुटबंध गीत रै पै’ली तुक मात्रा चवदै। दूजी तुक मात्रा चवदै। तीजी तुक मात्रा छाईस। पै’ली दूजी सूं मिळै तुकंत गुरु। तीजी सारा ही दूहां री अंतरी तुक सूं मिळै। तीजी रै नै अंतरी रै अंत लघु। विचली अनुप्रासां री तुक आठ, ज्यां में पै’ली री तुक तौ मात्रा सोळै और सात ही तुकां प्रत मात्रा चवदै चवदै होय। अनुप्रासांरी आठ ही तुकां रा मोहरा मिळै नै तुकंत लघु होय। यण प्रकार सूं गीत त्रकुटबंध कहीजै। अनुप्रासां री तुक आठ ज्यां में सूं च्यार घटती कहै जींने मुगट-बंध कहीजै। अतरौ त्रकुटबंध मुकटबंध रै भेद छै। दूजू दोनूंई एक छै, कांई तफावद नहीं।


१५४. चवदह-चौदह। दुती-दूसरी। मत-मात्रा। छाईस-छब्बीस। कहीस-कह, कही जाती है।
१५५. कंठ-अनुप्रास। चवद-चौदह।
१५७. चवथी-चौथी। लघुमांण-लघु।
१५८. कवियांण-कविजन। राघव-श्री रामचन्द्र भगवान। मझ-मध्य। वळै-फिर। सतारथ (सत्यार्थ)-सत्य। वांण-वाणी, वचन। चवदै-चौदह। बिचली-बीच में, मध्य की। ज्यां में-जिनमें। यण-इस। तफावत, तफावद-फर्क, अन्तर।

— 249 —

अथ गीत त्रकुटबंध उदाहरण
गीत
अवधेस लंका ऊपरै, धर कुरख धंखा जुध धरै।
अठ्ठार पदम कपेस अणघट, मेळ दळ महराज।।
गत विसर त्रंबक गड़गड़ै।
भारथ कपी आसुर भड़ै।
भड़ अनड़ बडबड अमुड़ जुध भड़।
दुजड़ पड़ झड़ बड़ड़ खित झड़।
दड़ड़ रत पड़ भ्रगुट दड़दड़।
चड़ड़ ऊधड़ प्रगड चख म्रड।
खड़ड़ नरहड़ खपर खड़खड़।
हड़ड़ नारद बीर हड़हड़।
धड़ड़ आतस सिखर धड़हड़।
गहड़ बिखम त्रबंक गड़गड़, गड़ड़ धर नभ गाज।।


१५९. कुरख-कोप। धंखा-इच्छा। पदम-गणित में सोलहवें स्थान की संख्या। कपेस-बानर। अणघट-अपार। गत-प्रकार, तरह। विसर-भयंकर, भयावह। त्रंबक-नगाड़ा। गड़गड़ै-बजते हैं। भारथ-युद्ध। कपी-वानर। आसुर-राक्षस। भिड़ै-युद्ध करते हैं। भड़-योद्धा। अनड़-स्वतंत्र। बडबड-बड़े-बड़े। अमुड़-नहीं मुड़ने वाले। दुजड़-तलवार। झड़-प्रहार। बड़ड़-ध्वनि विशेष। खित-पृथ्वी। झड़-कट कर। दड़ड़-द्रव पदार्थ का तेज प्रवाह या ध्वनि। रत-रक्त, खून। भ्रगुट-शिर। दड़दड़-ध्वनि विशेष। खड़ड़-ध्वनि विशेष। खड़खड़-ध्वनि विशेष। हड़ड़-हंसने की ध्वनि। हड़हड़-हंसने की ध्वनि। धड़ड़-तोपों की ध्वनि। बिखम-विषम। गड़गड़-नगारे की ध्वनि, नगाड़ा बजना। गड़ड़-ध्वनि विशेष। नभ-आकाश।

— 250 —

पड़ मार तरवर पाथरां, रिण विकट कपी रघुनाथ रां।
दससीस दळ भुजबळां, द्रहवट कीध अडर सकोप।।
नभ खंचरथ अवनाड़ रा।
खिलकत कौतूक राड़ रा।
दळ प्रबळ चौवळ कळळ दमंगळ।
भळळ बीजळ सेल भळहळ।
अहप सिर लळ अचळ चळ यळ।
वाज हूंकळ कळळ वळवळ।
खळळ चळवळ सरित खळहळ।
समळ पळगळ लीध सांमिळ।
मिळ कमळ स्रगनेत मंगळ।
जुध वयळ कुळ नृमळ चढ जळ, अचळ राघव ओप।।
धख हणू भुजब्रद धारखा, सुग्रीव अंगद सारखा।
नळ नील दध-मुख पणस नाहर, बिहद जंबूवांन।।


१५९. तरवर-वृक्ष। पाथरां-पत्थरों। रिण-युद्ध। विकट-भयंकर। दससीस-रावण। दळ-सेना। भजबळां-भुजाबल से। द्रहवट-ध्वंश नाश। अवनाड़ रा-सूर्य का। राड़ रा-युद्धका। चौवळ-चारों ओर। कळळ-कोलाहल। दमंगळ-युद्ध। भळळ-चमक, दमक। बीजळ-तलवार। सेल-भाला। भळहळ-चमक, दमक। अहप-शेषनाग। लळ-झुक जाते हैं, झुक गये। अचळ-पर्वत। चळ-चलायमान। यळ (यला)-पृथ्वी। वाज-घोड़ा। हूंकळ-घोड़ों की हिनहिनाहट की ध्वनि। कळळ-कोलाहल। वळवळ-चारों ओर। खळळ-द्रव पदार्थ के बहने की ध्वनि। चळवळ-रक्त, खून। सरित-नदी। खळहळ-बहने लगी। समळ-मांसाहारी पक्षी विशेष। पळ-मांस। गळ-पिंड, कौर। वयळ-सूर्य। नृमळ-निर्मल। जळ-कांति, दीप्ति। अचळ-अटल। ओप-कांति। हणू-हनुमान। सारखा-समान। जंबूवांन-जामवन्त।

— 251 —

जग वय मयंद गवाखसा।
लड़ हेक भंजण लाखसा।
इर अतर लसकर समर ओर।
सधर धण सुर कंवर दससिर।
सुकर धर सर बजर ससतर।
गहर हर वह पथर तर गिर।
वहर सिर कर देह वाखर।
पहर चौसर सुवर अपछर।
सधर रघुबर दुछर वह सर।
असुर दससिर दुसर छिद उर, मछर भंज अमांन।।
क्रोधाळ लिछमण कांमरौ, रिण लड़ै बंधव रांमरौ।
तिण मेघनाद विभाड़ ताखै, पाड़ असहां पूज।।
कुंभेण दससिर क्रांमती।
पह भंज हेकल रघुपती।
रिण कुंभ सुरघण मार रांवण।
कठण खळ जण कीध कणकण।
विभीखण जग चरण वासण।
सरणहित तिण लंक समपण।
ऊछव घण सिय तरण आंणण।
प्रसण हण मन महण द्रढ पण।
सयण हुलसण दुयण सकुचण।
ग्रहण मोखण धरण सुरगण।
जपण कविजण सुजस जणजण, जैत रांम अंगज।।१५९


१५९. चौसर-पुष्पहार। अपछर-अप्सरा। दछर-वीर। मछर-गर्व। क्रोधाळ-क्रुद्ध। लिछमण-लक्ष्मण। बंधव-भाई। विभाड़-संहार कर, मार कर। ताखै-वीर। असहां-शत्रुओं। पूज-समूह। पह (प्रभु)-योद्धा, राजा। कणकण-तितर-बितर। ऊछव-उमंग। घण-बहुत। सिय-सीता। आंणण (आनन)-मुख। प्रसण-शत्रु। महण (महार्णव)-समुद्र। सयण-सज्जन। हुलसण-हर्ष, प्रसन्नता। दुयण (दुर्जन)-शत्रु, दुष्ट। मोखण-छोड़ना। सुरगण-देवता। जपण-जपने को। कविजण-कविजन। जणजण-प्रत्येक व्यक्ति। जैत-विजय। अगंज-जो जीता न जा सके।

— 252 —

अथ गीत दुतीय त्रकुटबंध
चौपई
जांण उभय तुक भंवर गुंजार, सोळह प्रथम चवद बी सार।
ती चवदह दस गुरु लघुवंत, यण मुहमेळ चवदमी अंत।।१६०
चवद मत तुक दोय चवंत, रटजै मूहमेळ रगणंत।
अनुप्रास री तुक रच आठ, पढ धुर सोळह चवद अन पाठ।।१६१
प्रत तुक कंठ च्यार प्रमांण, उभै कंठ घट तुक यां आंण।
तुक आठूं ही होय लघुंत, नवमी दस मत गुरु लघु अंत।।१६२
दूहा अेक प्रत यम तुक होय, साखै बियौ त्रकुटबंध सोय।।१६३

अथ दुतीय गीत त्रकुटबंध उदाहरण
गीत
जांनकी नायक जगत जाहर, वीर संतां करण वाहर।
वहत कथ सुज वेद दुजबर, धनौ करुणाधांम।।


१६०. उभय-दोनों। चवद-चौदह। बी-दूसरी। ती-तीसरी। लघुवंत-जिसके अन्त में लघु हो। यण-इस। मुहमेळ, मूहमेळ-तुकबंदी। चवदमी-चौदहवीं।
१६१. चवंत-कहते हैं। रगणंत-जिसके अंत में रगण हो। अन-अन्य।
१६२. कंठ-अनुप्रास। लघुंत-जिसके अंत में लघु हो।
१६३. प्रत-प्रति। यम-इस प्रकार। साखै-कहते हैं, साक्षी देते हैं। बियौ-दूसरा। सोय-वह।
१६४. वाहर-रक्षा। वहत-चलता है। कथ-आज्ञा। दुजबर-ब्राह्मण। धनौ-धन्य-धन्य। करुणाधांम-करुणा सागर।

— 253 —

यभ दास तारण वासतै।
पोह छंड कमाळा पासतै।
सुर अतुर गिर कर स्रवण स्रीवर।
तळप परहर अतुर चढ तुर।
चकरधर मग सधर संचर।
सिथळ पर घर जांग ईसर।
छांड नगधर धरण दूछर।
मकर यर सर चकर मोख’र।
फंद हर पग सथर कर फिर।
वळ सुकर गह सुकर रघुबर, तार सिंधुर तांम।।१६४

अरथ
ईं प्रकार सूं च्यार ही दूहां दूसरौ त्रकुटबंध जांणज्यौ।

अथ गीत सुपंखरौ वरण छंद लछण
दूहौ
धुर तुक अखर अठार धर, चवद सोळ चवदेण।
सोळ चवद क्रम अंत लघु, जपै सुपंखरौ जेण।।१६५

अरथ
सुपंखरौ गीत वरण छंद तिणरै मात्रा गिणती नहीं। अखिर गिणती होय। जींरै पहली तुक रा आखर अठारै होय। दूजी तुक आखर चवदै होय। तीजी तुक आखर सोळै होय। चौथी तुक आखर चवदै होय। पाछला दूहां री पै’ली तुक हर तीजी तुक आखर सोळै होय। दूजी, चौथी तुक आखर चवदै होय। तुकांत लघु होय। जीं गीत नै सुपंखरौ कहीजै।


१६४. यभ (इभ)-हाथी। दास-भक्त। वासतै-लिए। पोह-प्रभू। छंड-छोड़ कर। कमळा-लक्ष्मी। पासतै-पास से। तळप (तल्प)-शय्या, पलंग। परहर-छोड़ कर। चकरधर-विष्णु। मग-मार्ग। सधर-सधैर्य। संचर-गमन। सिथळ-मंद। जांण-समझ कर, जान कर। छांड-छोड़ कर। नगधर-गरुड़। दूछर-वीर। मकर-ग्राह। यर-शत्रु। चकर-चक्र। मोख’र-छोड़ कर। फंद-बंधन, जाल। हर-मिटा कर। सथर-स्थिर, अटल। वळ-फिर। सुकर-हाथ। गह-पकड़ कर। सिंधुर-हाथी, गज।

— 254 —

अथ गीत सुपंखरौ उदाहरण
गीत
पैंडां नीतरा चलाक धू छ-च्यार भंज पलीतरा।
सूर धीर चीतरा अछेह ओप संस।।
धीतरा कीतरा रिखी सुकंठ मीतरा धनौ।
वाहरू सीतरा रांम अदीतरा वंस।।
वंदनीक पायरा गायरा दुजां विसावीस।
आसुरां भंजणा आडे घायरा अमाव।।
अडोळ पायरा सीह सुभायरा आसतीक।
सिहायरा जनां औधरायरा सुजाव।।
खेस जंद द्वंद रांम दंधरा सिंघार खरा।
दहै बाळरा स्रीनंदरा भांण दात।
दासरथी सिधरा अबंधरा बंधरा देण।
पंच दूण कंधरा कबंधरा निपात।।
हणू जिसा किंकरा पधोर के वंकरा हल्लां।
जूधां जीत अनंकरा रोड़णा जोधार।।
रोळै लेण लंकरा निसंकरा विभाड़ रांम।
हाथां झौक रंकरा रंकरा लंकरा देणहार।।१६६


१६६. पैंडां-कदमों। नीतरा-नीति के। चलाक-चलने वाला। धू-शिर। -च्यार-दस। पलीतरा-असुर के। अछेह-अपार। रिखी-ऋषि। सुकंठ-सुग्रीव। मीतरा-मित्र के। धनौ-धन्य। वाहरू-रक्षक। सीतरा-सीता के। अदीतरा-सूर्य के। वंदनीक-वंदनीय। पायरा-चरणों के। दुजां-ब्राह्मणों। विसावीस-पूर्ण। आसुरां-राक्षसों। भंजण-संहार करने वाला। आडे-विरुद्ध। घायरा-प्रहार का। अमाप-अपार। अडोल-दृढ़, अटल। पायरा-चरण का। सीह-सिंह। सुभायरा-स्वभाव का। आसतीक-समर्थ, शक्तिशाली, आस्तिक। सिहायरा-सहायता के। जनां-भक्तों। औधरायरा-राजा दशरथ के। सुजाव-पुत्र। खेस-असुर। जंद-असुर। द्वंद-युद्ध। सिंघार-विध्वंश। दासरथी-श्री रामचन्द्र। सिंधरा-समुद्र। अबंध-बंधन रहित। बंधरा-बंधन का। देण-देने वाला। हणूं-हनुमान। जिसा-जैसा। किंकरा-सेवक। पधोर-सीधा करने वाला। वंक-वक्र। अनंकरा-नगाड़ा के। रोड़णा-बजाने वाला। जोधार-योद्धा, वीर। रोळे-युद्ध में। विभाड़-वीर। झौक-धन्य। रंकरा-गरीब का। देणहार-देने वाला।

— 255 —

अथ गीत हेकलवयण तथा मात्रारहित हंसगमण लछण
दूहा
धुर अठार उगणीस मत, त्रदस सोळ त्रदसेण।
दु लघु अंत सांणौर लघु, जपै खुड़द कवि जेण।।१६७
जिण छोटा सांणौर में, गुरु अखिर नह होय।
सरब लघु सोळह तुकां, हेकल वयण स कोय।।१६८

अरथ
खुड़द लघु सांणोर तथा वेलिया सांणोर गीत री सोळै ही तुकां में गुरु अखिर अेक ही न होय। सोळै ही तुकां में सरब लघु अखिर होय, जीं गीत रौ नांम हेकलवयण कहीजै तथा मात्रारहित कहीजै। कठे’क दवाळा एकरा तुकांत प्रत गुरु अेक होय। इणनै धणकंठ सांणोर पिण कहीजै।

अथ गीत हेकलवयण उदाहरण
गीत

जग जनक धनक हर हरण करण जय।
चत नरमळ नहचळ चरण।।
अकरण करण समरण अघ अणघट।
सक रघुबर असरण सरण।।
लछवर सधर अमर नर रख लज।
महपत समरत हरत मळ।।
छजत बयण पय सरस मयण छब।
कमळ नयण रव तरण कळ।।
सकर धनख सरस रस सदन सख।
नरख बदन जग भय नसत।।
तन मन बय सम स जन सहज तृय।
लछण भरथ अरिघण लसत।।
तन घण बरण धरण दसरथ तण।
सदय समन गरवत सहज।।
तज तज अवर ‘कसन’ कव नत-प्रत।
धर मन नहचळ गरड़-धज।।१६९


१६७. उगणीस-उन्नीस। मत-मात्रा। त्रदस-तेरह।
१६८. सोळ-सोलह। त्रदसेण-तेरह से। दु-दो। जेण-जिसको। अखिर-अक्षर। सकोय-वह। कठे’क-कहीं पर। पिण-भी।
१६९. जनक-पिता। धनक-धनुष। हर-महादेव। हरण-तोड़ने वाला। चत-चित्त। नरमळ-निर्मल। नहचळ-निश्चल, अटल। अघ-पाप। अणघट-अपार, नहीं मिटने वाला। लछ (लक्ष्मीवर)-विष्णु, श्री रामचन्द्र। सधर-दृढ़। लज-लज्जा। महपत (महिपति)-राजा। समरत-स्मरण करते हैं। मळ-पाप, मैल। छजत-शोभा देता है। बयण-वचन। मयण-कामदेव। छब-कांति, दीप्ति। रव-सूर्य। तरण-तरुण। धनख-धनुष। सदन-घर। नरख-देख कर। बदन-मुख। नसत-नाश होता है। लछण-लक्ष्मण। अरिघण-शत्रुघ्न। लसत-शोभा देते हैं। घण-बादल। धरण-धारण करने वाला। तण (तनय)-पुत्र। नत-प्रत-सदैव। नहचळ-निश्चल। गरड़-धज-गरुड़ध्वज, विष्णु।

— 256 —

अथ गीत भुजंगी लछण
दूहौ
बारा अखिर तुक अेक प्रत, यगण चार गुरु अंत।
गीत भुजंगी तास गण, वरण छंद बुधवंत।।१७०

अरथ
जा गीत रै तुक अेक प्रत च्यार यगण होय। अंत गुरु होय, वरण छंद छै। मात्रा गिणती नहीं। जिण गीत नै भुजंगी कहै छै।

अथ गीत भुजंगी उदाहरण
गीत
महाराज औधेस आधार संतां, वार खारी रखै लाज बेखौ।
हरी काज पै आसरा दीह हेके, लछीनाथ दी सेवगां लंक लेखौ।।
तवै भू अहल्या गणंका तिराई, रटां बोर भीलीतणा खाय रीधौ।
सरां ताड़का मार ऊधार सांमी, करां ग्रीधवाळौ वळे स्राध कीधौ।।
रदा सिंभ वांमे सदा अेकरंगी, गवै जास पंगी नरां बेद गाथां।
तनां खीणहूंतौ मुणै भ्रात तोनूं, हणै बाळ सुग्रीव दे राज हाथां।।
कसौ जोड़ भूमंड तै ओर कीजै, भुजाडंड मोटा ब्रदां जोग भाळौ।
अठूंजांम जीहां ‘किसनेस’ आखै, वडौ आसरौ रांम पै कंज वाळौ।।१७१


१७०. बारा-बारह। तास-उस। गण-समझ। बुधवंत-बुद्धिमान। गिणती-गिनती, संख्या।
१७१. औधेस (अवधेश)-दशरथ, श्री रामचन्द्र। खारी-भयंकर। बेखौ-देखो। लछीनाथ (लक्ष्मीनाथ)-विष्णु। तबै-स्तुति करते हैं। भू-संसार। भोली-भिल्लनी। वळै-फिर। कीधौ-किया। रदा-हृदय। सिंभ-शंभू, शिव। गवै-गाया जाता है। जास-जिसका। पंगी-कीर्ति, यश। मुणै-कहता है। तोनूं-तुझको। बाळ-बालि वानर। कसौ-कौनसा। जोड़-बराबर, समान। भूमंड-भूमंडल। भुजाडंड-शक्तिशाली, समर्थ। जोग-योग्य। भाळौ-देखो। अठूंजांम-अष्टयाम। जीहा-जीभ। आखै-कहता है। आसरौ-सहारा। पै-चरण। कंज-कमल।

— 257 —

अथ गीत वडौ सांणोर अहरणखेड़ी लछण
दूहा
तेवीसह मत पहली तुक, बी अठार ती बीस।
चौथी तुक अठार चव, लघु तुक अंत लहीस।।१७२
वडा जेण सांणोर बिच, पवरग ऊ न पयंप।
अहरणखेड़ी नांम उण, जस राघव मझ जंप।।१७३

अरथ
पै’ली तुक मात्रा तेवीस। दूजी तुक मात्रा अठारै। तीजी तुक मात्रा बीस। चौथी तुक मात्रा अठारै होय सौ गीत बडौ साणोर कहावै। अंत लघु होय। जीं बडा सांणोर में पवरगरा पांच आखर प फ ब भ म अर ऊ व अे सात आखर सारा गीत में न होय अर गीत पढतां होठ मिळै नहीं, जीं गीत रौ नाम अहरणखेड़ी कहीजै। अहर=होठ न खेड़ी कहतां खड़ै नहीं, हालै नहीं यौ अरथ छै।


१७२ मत-मात्रा। बी-दूसरी। तो-तीसरी। चव-कह। लहीस-लेगा।
१७३. पयंप-कह। मझ-मध्य। जंप-कह। सौ-वह। यौ-यह।

— 258 —

अथ गीत अहरण (न) खेड़ी उदाहरण
गीत
करां धाड़ लागै रघौराज दत कीजतां।
सरसतां रीझतां संत सुख साज।।
लीजतां नखत्र-डर सरण हेकण लहर।
रीझतां दियौ लंका जिसौ राज।।
सर धनंख धरण कर दहण दैतां सधर।
दुख नरक त्रास हण जनां जगदीस।।
हरख रिण इंद्रतण नास कीधौ हठी।
अरकतण कियौ केकंध गढ ईस।।
तिकां सिर दया रुख होय हरि तौ तणी।
किणी दिन न लागै जिकां आतंक।।
घणाघण छटा तन क्रंत धरियां घणी।
सह जनां संकट हरण धणी निरसंक।
चरण असरण सरण कहै आंणणचतुर।
अहोनिस संत जण करण आणंद।।
दूणदसहाथ हण गाथ राखण दूनी।
नाथ ‘किसनेस’ कौसळतरणा नंद।।१७४


१७४. करां-हाथों। धाड़-धन्य। रघौराज-श्री रामचन्द्र। दत-दान। नखत्र-डर-(नखत्र-भै + डर-भीखण-(भभीखण)-विभीषण। जिसौ-जैसा। दहण-नाश। सधर-दृढ़। त्रास-भय, आतंक। जनां-भक्तों। हरख-हर्ष। रिण-युद्ध। इंद्रतण (इन्द्रतनय)-बालि वानर। कीधौ-किया। हठी-हठ करने वाला, जिद्दी। अरकरण (अर्कतनय)-सुग्रीव। कियौ-किया। केकंध-किष्किंधा। ईस-राजा। तिकां-उन, जिन। रुख-इच्छा। तौ तणी-तेरी। किणी-किसी। आतंक-डर, भय। घणाघण-बादल। छटा-कांति, दीप्ति, बिजली। क्रंत-कांति, दीप्ति। धरियां-धारण किये हुए। घणी-बहुत। धणी-स्वामी। निरसंक-निशंक, निर्भय। आंणणचतुर (चतुरानन)-ब्रह्मा। दूणदसहाथ-रावण। हण-मार कर। गाथ-कीर्ति, यश। दुनी-दुनियां, संसार। नंद-पुत्र।

— 259 —

अथ गीत विडकंठ तथा वीरकंठ लछण
दूहा
धुर तुक मत चौवीस धर, वळ दूजी अकवीस।
ती चौवीसह चतुरथी, कळ अकवीस कवीस।।१७५
दुख यम मता चव दूहां, अंत लघू तुक अेक।
सोळ चवद अखिर सुक्रम, कह विडकंठ विमेक।।१७६

अरथ
पै’ली तुक मात्रा चौवीस होय। दूजी तुक मात्रा अकवीस होय। तीजी तुक मात्रा चौवीस होय। चौथी तुक मात्रा अकवीस होय। यण क्रमसूं च्यार ही दूहां मात्रा होय। अंत तुक रै अेक लघु होय। इण लेखे तौ विडकंठ गीत मात्रा छंद छै नै पै’ली तुक आखर सोळै। दूजी तुक आखर चवदै। तीजी तुक आखर सोळै अर चौथी तुक आखर चवदै होय। यौ क्रम च्यार ही दवाळां होय। आखर गिणती के लेखे विडकंठ वरणछंद छै। इण प्रकार विडकंठ गीत कहीजै। गणां कौ क्रम गीत कौ तुकां सूं देख लीज्यौ। लछण का दूहा घणा होय जिण सूं न कह्या छै। कोई इण गीत रौ नांम वीरकंठ पिण कहै छै।

अथ गीत विडकंठ तथा वीरकंठ उदाहरण
गीत
जै नरेस राघवेस आसुरेस जुधां जेस।
के कवेस देस देस कीरती कहंत।।
स्रीधराज राख लाज कीध काज संत साज।
हेल सिंध रूप इंद इंद विरदां वहंत।।


१७५. वळ-फिर। अकवीस-इक्कीस। ती-तीसरी। चतुरथी (चतुर्थी)-चौथी। कळ-मात्रा। कवीस-महाकवि, कवि।
१७६. देख-कह। यम-ऐसे। चव-चार। सोळ-सोलह। चवद-चौदह। अखिर-अक्षर। विमेक-विवेक। यौ-यह।
१७७. जै-जय। नरेस-राजा। राघवेस-श्री रामचन्द्र भगवान। आसुरेस-राक्षस, रावण। के-कई। कवेस (कवीस)-महाकवि। कीरती (कीर्ति)-यश। कहंत-कहते हैं। स्रीधराज-श्री विष्णु, श्री रामचन्द्र। कीध-किया। हेल-लहर। सिंध-समुद्र। इंद-इन्द्र। बिरदां-बिरुदों। वहंत-धारण करते हैं।

— 260 —

साज पांण चाप बांण खळां खांण घमंसांण।
सुरांरांण भुजांपांण जै कियौ असंक।।
ताप खाय दितांराय बंद आय पाय तास।
लखै रंक ही अवंक मेट दीध लंक।।
ओप अंग स्यांम रंगते सुचंग जै अनं. . .।
पीतरंग नी. . . सारंग भंग कौड़ पाप।।
सूरवीर जनां भीर गज्जगीर पै सधीर।
जळै पाप अणमाप जेण नांम जाप।।
दुनी पाळ इंद्र ढाल बिरदाळ जै दयाळ।
गुणी साथ सांमराथ रटै क्रीत गाथ।।
नांम जेस करे खेस पढै सेस ‘किसनेस’।
निराधार ज्यां अधार निमौ औधनाथ।।१७७

अथ गीत अट्ठा लछण
दूहौ
छंद अरध नाराजरी, चौ तुक दूहां सचीत।
लघु गुरु क्रम तुक बरण अठ, गिण तिण अट्ठौ गीत।।१७८

अरथ
वरण छंद छै अठौ गीत। जिनमें अरधनाराच छंद री तुक च्यार सूं अेक दूहौ होय। पै’ली लघु पछै गुरु, इण क्रम सूं तुक अेक प्रत आखर आठ होय। जिणरै च्यार ही तुकां रौ तुकांत अेक होय। सावझड़ौ होय, जिणनै अट्ठौ गीत कहीजै।


१७७. साज-धारण कर, सज कर। पांण-हाथ। चाप-धनुष। खळां-राक्षसों। खांण-नाश कर, नाश करने को, नाश करने वाला। घमंसांण-युद्ध। सुरांरांण-इन्द्र। भुजांपांण-भुजा के प्रभाव से। जे-जिस। असंक-निर्भय। ताप-भय, आतंक। दितांराय-दैत्यराज। पाय-चरण। तास-उसके। दीध-दी, दिया। पीतरंग-पीला रंग। जनां-भक्तों। भीर-मदद, सहायता। गज्जगीर-युद्ध। पै-चरण। सधीर-धैर्य-युक्त, अटल। अणमाप-अपार असीम। जेण-जिस। दुनी-संसार। पाळ-पालक। ढाल-रक्षक। बिरदाळ-विरुदधारी। गुणी-कवि। साथ-समूह। सांमराथ-समर्थ। औधनाथ-श्रीरामचन्द्र भगवान।
१७८. चौ-चार।

— 261 —

अथ गीत अट्ठौ वरण छंद उदाहरण
गीत
दखै ‘किसन्नदास’ रे, तवूं विरूद तास रे।
सदा वसां हुलास रे, अभंग रांम आस रे।।
सुकीरती समाज रे, प्रसिद्ध सिंध पाज रे
जनां निबाह लाज रे, रहूं अधार राज रे।।
पटैत रूप पांणरा, खळां भराथ खांणरा।
सुखी रहूं सुजांणरा, भरोस वंस भांणरा।।
प्रसन्न दास प्रीतरा, बियार अत्थबीतरा।
जुधां दयंत जीतरा, सरंम नाथसीतरा।।१७९

अथ गीत दूणौ अट्ठौ वरण छंद लछण
दूहौ
छंद व्रधनाराचरी, चौ तुक हेक दवाळ।
वरण छंद सौ गीत वद, दूणौ अठौ दिखाळ।।१८०

अरथ
ब्रधनाराच री च्यार तुकां रौ अेक दवाळौ होय सौ सावझड़ौ गीत दूणौ अठ्ठौ कहावै। लघु गुरु ईं क्रम सूं तुक अेक प्रत अखिर सोळह होय। इण प्रकार सोळै ही तुकां होय सौ दूणौ अट्ठौ गीत तुकंत गुरु वरण छंद छै।

अथ गीत दूणौ अट्ठौ सावझड़ौ उदाहरण
गीत
विभाड़ पंचदूणमाथ आथ देण वेस रे।
मझार ध्यांन कंज सौ वसै रदा महेसरे।।


१७९. दखै-कहता है। तवूं-स्तुति करता हूँ, वर्णन करता हूँ। तास-तेरे। हुलास-आनन्द, हर्ष। अभंग-नहीं भागने वाला, वीर। आसरे-आश्रय में। सिंध-समुद्र। पाज-सेतु, पुल। निबाह-निभाने वाला। राजरे-श्रीमान के, आपके। पटैत-वीर योद्धा। पांणरा-शक्ति का। भराथ-युद्ध। खांणरा-ध्वंश करने वाला, नाश करने वाला। भरोस-विश्वास, भरोसा। भांण-सूर्य। दयंत-देने वाला अथवा दैत्य। नाथसीतरा-सीतानाथ के।
१८०. दवाळ-गीत छंद के चार चरणों का समूह। दिखाळ-दिखला दे, दिखला।
१८१. विभाड़-ध्वंश कर, संहार कर। पंचदूणमाथ-रावण। आथ-धन, द्रव्य। मझार-मध्य। कंज-ब्रह्मा। रदा-हृदय। महेस रे-महादेव के।

— 262 —

सदा नमंत औधराय पाय धू सुरेस रे।
वदां नरेस आंन कूण जोड़ राघवेस रे।।
निबाह सीतनाथ वाह संतचा नेहड़ा।
अमोघ बांण चाप पांण वांण जे अछेहड़ा।।
जुधां निपात सांमराथ लंकनाथ जेहड़ा।
कहां नरिंद दासरथ्थनंद जोट केहड़ा।।
अपार तेज अंगधार धार तेज आक्रती।
कपै अमाप पाप ताप नांम जाप क्रांमती।।
जुधां जयंत सेवमें रहै अनंत साजती।
भणा किसौ समांन आंन कौसळेस भूपती।।
महामदंध आसुरां सुरंद चाड मारणा।
त्रिलोकनाथ गोह ग्राह ग्रीध आद तारणा।।
‘किसन्न’ पात व्है दयाळ पाळ सिध कारणा।
धनौ नरेस राघवेस चीत नीत धारणा।।१८१


१८१. औधराय-श्री रामचन्द्र भगवान। पाय-चरण। धू-शिर, ध्रुव। सुरेस-इन्द्र। वदां-कहे। नरेस-राजा। आंन-अन्य। कूण-कौन। जोड़-बराबर, समान। राघवेस-श्री रामचन्द्र भगवान। नेहड़ा-स्नेह। अमोघ-नहीं चूकने वाला, अव्यर्थ, अचूक। निपात-गिराना। सांमराथ-समर्थ। लंकनाथ-रावण। जेहड़ा-जैसा। नरिंद-राजा। दासरथ्थ-राजा दशरथ। नंद-पुत्र। जोट-जोड़ी। केहड़ा-कैसा। कपै-काटते हैं। अमाप-अपार। ताप-आतंक, भय। जयंत-जीतना। सेवमें-सेवा में। अनंत-लक्ष्मण। जती-जितेन्द्रिय, यती। किसौ-कौनसा। आंन-अन्य। आसुरां-राक्षसों। सुरंद-इन्द्र। चाड-पुकार। मारणा-मारने वाला। गोह-गुह नामक निषाधराज। आद-आदि। तारणा-तारने वाला। पात-कवि। पाळ-रक्षा। सिंध-सिंधुर, गज। कारण-कारण, करने वाला। धनौ-धन्य। चीत-चित्त। नीत-नीति। धारणा-धारण करने वाला।

— 263 —

अथ भांण गीत मात्रा वरण प्रमांण लछण
दूहा
धुर बीजी मत बार धर, वद तीजी बावीस।
बारह चौथी पंचमी, वळ छठी बावीस।।१८२
पहली दूजी सूं मिळै, तीजी छठी समेळ।
मिळै चवथ्थी पंचमी, भल तुकंत लघु भेळ।।१८३
आठ वरण धुर दूसरी, तीजी पनर तुकंत।
पुण अठ चौथी पंचमी, छठी पनर छजंत।।१८४
विध इण मत्ता वरण रौ, परगट जांण प्रमांण।
भांण-गीत जिण नांम भल, भणजस रघुकुळ भांण।।१८५

अरथ
पै’ली तुक मात्रा बारै। दूजी तुक मात्रा बारै। तीजी तुक मात्रा बावीस। चौथी तुक मात्रा बारै। पांचमी तुक मात्रा बारै। छठी तुक मात्रा बावीस होय। तुकांत लघु होय। पै’ली दूजी तुक मिळै। तीजी छठी तुक मिळै। चौथी पांचमी तुक मिळै अथवा च्यार तुक कीजै तौ पैली तुक मात्रा चौबीस। तुक दूजी मात्रा बावीस। तुक तीजी मात्रा चौबीस। तुक चौथी मात्रा बावीस। यूं तो भांण गीत मात्रा छंद होय। अखर गिणती कीजै तौ तुक पै’ली दूजी रा आखर आठ होय। तीजी छठी रा आखर पनरै पनरै होय। चौथी पांचमी रा आखर आठ होय तथा च्यार तुकां कीजै तौ पैली तीजी तुक रा आखर सोळै होय। दूजी चौथी तुक रा आखर पनरै पनरै होय। तुकांत लघु। ईं तरै भांण गीत वरण छंद होय।


१८२. धुर-प्रथम। बीजी-दूसरी। मत-मात्रा। बार-बारह। वद-कह। वळ-फिर।
१८३. चवथ्थी-चतुर्थ, चौथी। भल-ठीक।
१८४. पुण-कह। अठ-आठ। पनर-पनरह। छजंत-शोभा देता है।
१८५. विध-प्रकार, तरह। मत्ता-मात्रिक। भण-कह। बारै-बारह। यूं-ऐसे। अखर-अक्षर। ईं-इस। तरै-तरह।

— 264 —

अथ भांण गीत उदाहरण
गीत
नरेस रांम नृंमळां, उरां सभाव ऊजळा।
अरेस भंज आदवां, करेस देव काज।।
सपांणचाप सायकं, धड़ा अरेस घायकं।
चवंत सिद्ध चारणं, प्रसिद्ध सिंघ पाज।।
गरब सत्रां गंजणा, रमा सुचित रंजणा।
भुजां सजोर भंजणा, चढाय सिंभ चाप।।
गळे दुजेस गावरा, सधीर जे सभावरा।
अभंग हेम अद्रसा, अडोळ नंग आप।।
अनेक संत आसरे, वसै सहीव वासरे।
प्रथीप रांम पोखणा, अमी सुदीठ अंग।।
सधीर भ्रात सेससा, मनां रटै महेससा।
खळां अनेक खेसणा, जपां अपीठ जंग।।
दितेस सेन दाहणा, रघूस क्रीत राहणा।
करी ऊधार कारणा, हरी विलंद हाथ।।
नमे सुरेससा नगां, सधार दीन सेवगां।
‘किसन’ पातसूं कहै, नमौ अनाथ नाथ।।१८६


१८६. नृंमळां-निर्मल। उरां-उर, हृदय। ऊजळा-उज्ज्वल। अरेस-शत्रु। सपांणचाप-हाथ में धनुष सहित। सायकं-तीर। घड़ा-सेना। घायकं-संहार करने वाला। चवंत-कहते हैं। सिंध-समुद्र। गरब-गर्व, अभिमान। गंजणा-मिटाने वाला। रमा-लक्ष्मी। रंजणा-प्रसन्न करने वाला। सजोर-शक्तिशाली। भंजणा-नाश करने वाला। सिंभ-शंभु, शिव। दुजेस-द्विजेश, महर्षि, परशुराम। सभावरा-स्वभाव का। अभंग-दृढ़, अटल। हेम अद्रसा-हिमालय पर्वत के समान। नंग-पैर, चरण। प्रथीप-राजा। पोखणा-पोषण करने वाला। अमी-अमृत। सुदीठ-सुदृष्टि। खेसणा-नाश करने वाला। अपीठ जंग-वह जो युद्ध में अपनी पीठ शत्रु को न दिखाता हो। दितेस-सुरेश, रावणादि। दाहणा-ध्वंश करने वाला। रघूस-रघुवंश। क्रीत-कीर्ति। राहणा-रखने वाला। नगां-पैरों। सधार-रक्षक।

— 265 —

अथ गीत दुमेळ लछण
दूहौ
तुक धुर तीजी सोळ मत, दोय मेळ दाखंत।
दूजी चौथी मत दस, अख दुमेळ लघु अंत।।१८७

अरथ
धुर कहतां पै’ली तुक मात्रा सोळै होय। पै’ली दूजी तुकमें दोय मेळ आवै जींसूं गीत रौ नांम दुमेळ कहावै। दूजी तुक मात्रा दस होय। चौथी तुक मात्रा दस होय। दूजी चौथी तुकरै तुकांत लघु होय। जिण गीत कौ नांम दुमेळ कहावै।

अथ गीत दुमेळ उदाहरण
गीत
भूपाळां भांमी नेक नांमी, सेव पाय सुरेस।
सुज दया सिंधू दीनबंधू, अखै क्रीत अहेस।।
बटपंच बासे सत्रनासे, राज कज सुरराज।
खर खेत खंडे थूर थंडे, सूर कुळ सिरताज।।
भुजवीस भंजे गाव गंजे, स्रोण भुंजे सार।
सरणा सधारे बिरदधारे, तोय पाथर तार।।
निरबळां नेकां कीध केकां, साहि हाथ सुनाथ।
गुण ‘किसन’ गावै प्रसिध पावै, अमर ईजत आथ।।१८८


१८८. भांमी-न्यौछावर, बलैया। सेव-सेवा करता है। पाय-चरण। सुरेस-इन्द्र। सिंधू-समुद्र। अखै-कहता है, वर्णन करता है। अहेस-शेषनाग। बटपंच-पंचवटी। सत्र-शत्रु। नासै-नाश किये। कज-लिये। सुरराज-इन्द्र। भुजवीस-रावण। भंजे-नाश किया। गाव-गर्व। गंजे-मिटाया, नाश किया। स्रोण (शोणित)-खून, रक्त। भुंजे-भक्षण किया। सार-तलवार। सरणा-शरणागत। सधारे-रक्षा की। तोय-पानी। पाथर-पत्थर। कीध-किया, किये। केकां-कई। गुण-यश, कीर्ति। प्रसिध-कीर्ति, प्रसिद्धि। आथ-धन, दौलत।

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