रघुवरजसप्रकास [2] – किसनाजी आढ़ा
— 1 —
श्रीगणेशाय नमः
श्रीगुरुगणपतीष्ट देवताभ्यो नमः * ॐ नमः श्रीसीतारामाय
अथ आढ़ा किसनाजी क्रत
पिंगळ रघुवरजसप्रकास
लिख्यते
**
श्रीगणेस स्तुति
छप्पै कवित्त-भाखा मुरधर
श्री लंबोदर परम संत बुद्धवंत परम सिद्धिबर।
आच फरस ओपंत, विघन-बन हंत ऊबंबर।
मद कपोल महकंत, मधुप भ्रामंत गंधमद।
नंद महेसुर जन निमंत, हित दयावंत हद।।
उचरंत ‘किसन’ कवि यम अरज, तन अनंत भगति जुगत।
जांनकी-कंत अक्खण सुजस, एकदंत दीजै उगत।।१
प्रथम भ्रहंम मझ बेद, छंद मोरग दरसायौ।
खग अग पिंगळनाग, ‘नागपिंगळ’ कर गायौ।।
‘काळिदास’, ‘केदार’, ‘अमरगिर’ पिंगळ अक्खे।
भाखा ब्रज सुखदेव, ‘सुरतचिंतामण’ भक्खे।।
लछ भाखा पिंगळ ग्रंथ लख, एकठ बोह मत आंणियौ।
रघुबरप्रकास जस नांम रख, ‘किसन्न’ सुकव पिंगळ कीयौ।।२
२. मझ-मध्य। खग-गरुड़। अग-सम्मुख। पिंगळनाग-शेषनाग। नागपिंगळ-‘नागराज पिंगळ’ नामक छंदशास्त्र का ग्रंथ। गायौ-वर्णन किया। अक्खे-कहा, सुनाया। भक्खे-कहा, वर्णन किया। लच्छ-लक्षण। एकठ-एकत्रित। बोह-बहुत।
— 2 —
दूहा
बिबुध-भाख ब्रज भाव बिच, पिंगळ बोहत प्रसिद्ध।
मुरधर-भाखा जिण निमंत, ‘किसनै’ रूपग किद्ध।।३
जांणण छंदां मुख जपण, राघव-जस दिन-रात।
भाड़ौ सांठौ ज्यूं भरै, जागौ पोहकर जात।।४
पेट काज नर जस पढ़ै, औ कारज अहलोक।
जस राघव जपणौ जिकौ, लेख काज परलोक।।५
जुध करणौ जमराज हूं, काज विलंबै केण।
तव नस-दीहा हर तिकौ, जीहा दीधी जेण।।६
अथ गणागण वरणण
मगण त्रिगरु यगणह लघु, आद कहै सह कोय।
भगण आद गुरु नगणसौ, त्रिलघु चिहुं सुभ जोय।।७
४. भाड़ौ-(सं. भाटक) किराया। सांठौ-अधिक, ईख। पोहकर-पुष्कर। जात-यात्रा।
५. अहलोक-इहलोक, यह संसार। लेख-समझ, समझना।
६. केण-किसलिए। तव-(स्तवन) स्तुति। नस दीहा-निशि-दिन। हर-(हरि) ईश्वर। जीहा-जिह्वा। जेण-जिससे, जिसने।
७. चिहुं-चार।
नाम | रेखारूप | वर्णरूप | लघु संज्ञा | शुभाशुभ |
मगण | SSS | मागाना | म | शुभ |
यगण | ISS | यगाना | य | शुभ |
भगण | SII | भागन | भ | शुभ |
नगण | III | नमन | न | शुभ |
रगण | SIS | रामना | र | अशुभ |
सगण | IIS | सगना | स | अशुभ |
तगण | SSI | तागान | त | अशुभ |
जगण | ISI | जगान | ज | अशुभ |
— 3 —
रगण मध्य लघु सगण रै, अंत गुरु लघु अंत।
तगण मध्य गुरु जगण अै, च्यारूं असुभ कहंत।।८
गणागण देवता*
दूहौ
देव धरा जळ चंद अह, आग पवन नभ भांण।
फल़ाफल़
सुख मुद मंगळ धी जळण, दुख निफळ घर हांण।।९
*गणागण देवता और उनके फलाफल
नाम | रूप | देवता | फल |
मगण | SSS | पृथ्वी | सुख |
यगण | ISS | जल | प्रसन्नता |
भगण | SII | चंद्र | मंगल |
नगण | III | स्वर्ग | धी |
रगण | SIS | अग्नि | दाह |
सगण | IIS | पवन | दुख |
तगण | SSI | नभ | निष्फल |
जगण | ISI | भानु | गृह हानि |
— 4 —
अथ गण मित्र सत्रु कथनं*
दूहौ
मन सुमित्र य भ दास मुण, दख ज त विहुं उदास।
रस बिहुं वै गण सत्रु रट, पढ़ फिर दुगण प्रकास।।१०
अथ दुगण कथनं
कवित्त छप्पै**
मित्र मित्र रिध सिध, मित्र दासह जय पावत।
हितु उदास धन हांण, मित्र अरि रोग बधावत।।
दास मित्र सिध काज, दास दासह सुवसीक्रत।
दास उदासह हांण, दास अरि हार सु आवत।।
उदास मित्र फळ तुच्छ गिण, विपत उदास जु दास कर।
उदास उदास सु निफळ कह, मिळ उदास रिपु सत्रु कर।।११
१०. मुण – कह। दख-कह। बिहूं-दोनों।
*मित्र दास उदास और शत्रु गरण
मित्र मगण, नगण |
फल | दास यगण, भगण |
फल |
मित्र + मित्र | सिद्धि | दास + मित्र | सिद्धि |
मित्र + दास | जय | दास + दास | वशीकरण |
मित्र + उदासीन | हानि | दास + उदास | हानि |
मित्र + शत्रु | रोग | दास + शत्रु | पराजय |
**
उदासीन जगण, तगण |
फल | शत्रु रगण, सगण |
फल |
उदासीन + मित्र | अल्पफल | शत्रु + मित्र | शून्य |
उदासीन + दास | विपत् (विपत्ति) | शत्रु + दास | जीवहानि |
उदासीन + उदासीन | निष्फल (शून्य) | शत्रु + उदासीन | शत्रुहानि |
उदासीन + शत्रु | शत्रूत्पत्ति | शत्रु + शत्रु | क्षय |
— 5 —
दूहौ
सत्रु मित्र मिळ सुन्य फळ, सत्रु दास जिय हांण।
सत्रु उदाससूं हांण अरि, अरि नायक खय जांण।।१२
दोसादोस कथन
दूहौ
नर-कायब करवा निमत, वद गण अगण विचार।
गुण राघव मझ असुभ गण, न कौ दोस निरधार।।१३
अथ अस्ट दगध अखिर कथनं
दूहौ
ह झ ध र घ न ख भ आठ ही, दगध अखिर दाखंत।
कायब अग्र वरजित तिकण, भल किव नह भाखंत।।१४
हकारादि अस्ट-दगध अखिर क्रम सूं उदाहरण
दूहौ
हेत हांण तन रोग व्है, नरपत भय धन नास।
त्रीया घात निरफळ तवां, जस खय भ्रमण प्रवास।।१५
अथ भाखा पिंगळ तथा डिंगळ का रूपग गीत कवित्त, दूहा, गाहा, छंद तथा सरवत्र छंद रै आद दस आखिर नहीं आवै नै वरजनीक छै सौ लिखां छां।
दूहौ
अै औ अंमळ अग्र का, दाख ल क्ष ह अै दोय।
क च ट त वरग का अंत का, पद दस वरणन होय।।१६
अरथ– ऐ १ औ २ अः ३ य ४ स ५ ल्ल ६ क्ष ७ ड़ ८ ञ ९ ण १०।
१३. नर-कायब-(नरकाव्य) मनुष्य की प्रशंसा का काव्य। वद-कह। कौ-कोई।
१४. कायब-काव्य। किव-कवि। भाखंत-कहता है।
१५. तवां-कहता हूँ। आद-आदि प्रथम। आखिर-अक्षर। वरजनीक-त्याज्य।
— 6 —
अै दस अखिर गीत कवित छंद कै पैल्ही न होय। एकार आगलौ अईकार (ऐ) ओकार आगलौ अऊकार (औ)। अंकार आगलौ अः कार। मकार आगलौ यकार। लकार आगलौ सकार। सकार आगलौ ल्लकार नै क्षकार। अै दस आखर भाखा रै आद न होवै। नाग यूं कहयौ छै। इति अरथ।
अथ गुरु लघु कथनं
दूहौ
गण संजोगी आद गुरु, संजुत व्यंदु गुरेण।
गुरु फिर बक्र दुमत्त गणि, लघु सुद्ध एक कळेण।।१७
उदाहरण
दूहौ
लंक अम्हींणा भाग लग, सुपनै लिखीउ सोय।
मौजी राघव पलक मैं, जन सरणागत जोय।।१८
संजोगी आद वरण विचार
दूहौ
संजोगी पहलौ अखिर, वस कोई ठौड़ वसेख।
कियां विचार प्रकार किण, लघु संग्या तिण लेख।।१९
उदाहरण
दूहौ
रे नाहर रघुनाथरा, यळ जाहर दत अंक।
विगर लिन्हाई छिनक विच, लहर दिन्हाई लंक।।२०
१८. लंक-लंका। अम्हींणा-मेरा। सोय-वह। मौजी-उदार।
१९. वसेख-विशेष।
२०. यळ-इला, पृथ्वी। दत-दान। छिनक विच-क्षण भर में।
— 7 —
लघु दीरघ दीरघ लघु करण विधि वरणणं
दूहौ
लघु दीरघ दीरघ लघु, पढ़ियां सुधरै छंद।
दीह लघु लघु दीह करि, पढ़ि कविराज अनंद।।२१
उदाहरण
दूहौ
सिर दस दस सिर साबतै, रांम हतै धख राख।
बिबुधांणी चक्रत हुवा, अ ह ह ह वांणी आख।।२२
अथ मंगळादिक वरण गण नांम कथनं
दूहौ
मगण नांम संभू मुणै, राक्षस तगण रसाळ।
यगण बाज आखै इळा, जगण उरौज विसाळ।।२३
तगण व्यौम कर सगण तव, रगण सूरमौ राख।
वरण गणां वाळा विहद, यम कवि नांम स आख।।२४
अथ मात्रा पंच गण नांम कथनं
कवित्त छप्पै
ट ठ ड ढ ण गण अरेह, मात्र गण पंच प्रमांणै।
टगण छ कळ तेरह सुभेद, कवि ठगण बखांणै।।
पंच कळा अठ भेद, डगण चव कळ सु भेद पंच।
ढगण तीन कळ तीन, भेद भाखंत नाग संच।।
णगणहसु दु कळ दुव भेद निज, लिख प्रसतार निहारियै।
तिण भेद तेर अठ पंच त्रय, दुव जिण नांम उचारियै।।२५
२२. धख-क्रोध। विबुधांणी-देवता। आख-कहना।
२३. रसाळ-रसयुक्त। इळा-पृथ्वी।
२४. विहद-असोम।
२५. अरेह-पवित्र। यम-ऐसे। छ कळ-छः मात्रा। सत्य।
— 8 —
प्रथम टगण छ मात्रा तेरह भेद नांम*
दूहौ
हर १ ससि २ सूरज ३ सुर ४ फणी ५, सेस ६ कमळ ७ भ्रहमांण ८।
कळ ९ सुचंद्र १० धुव ११ धरम १२ कहि, जपै ‘साळिकर’ १३ जांण।।२६
A दुतीय ठगण पंच मात्रा आठ भेद नांम
दूहौ
इंद्रासण १ रवि २ चाप ३ कहि, हीर सु ४ सेखर ५ संच।
कुसुंम ६ अहिगण ७ पाप ८ कह, आठ भेद कळ पंच।।२७
B त्रतीय डगण च्यार मात्रा पंच भेद नांम
दूहौ
करण दु गुरु १ करताळ सौं, अंत गुरु २ मन आंण।
पय हर ३ वसुपय ४ मध्यः, अहिप्रिय चौ लघु पहिचांण।।२८
२८. चौ-चार।
*टगण, ठगण और डगण मात्रिक गणों का नकशा—
A | B | |||||||
रूप | संज्ञा | रूप | संज्ञा | रूप | संज्ञा | |||
१ टगण | २ ठगण | ३ डगण | ||||||
१ | SSS | हर | १ | ISS | इंद्रासन | १ | SS | कर्ण |
२ | IISS | शशि | २ | SIS | रवि | २ | IIS | करताळ |
३ | ISIS | सूर्य | ३ | IIIS | चाप | ३ | ISI | पयहर |
४ | SIIS | सुर | ४ | SSI | हीर | ४ | SII | वसु पय |
५ | IIIIS | फणी | ५ | IISI | शेखर | ५ | IIII | अहिप्रिय |
६ | ISSI | शेष | ६ | ISII | कुसुम | |||
७ | SISI | कमल | ७ | SIII | अहिगण | |||
८ | IIISI | ब्रम्हा | ८ | IIIII | पाप | |||
९ | SSII | कळि | ||||||
१० | IISII | चंद्र | ||||||
११ | ISIII | ध्रुव | ||||||
१२ | SIIII | धर्म | ||||||
१३ | IIIIII | साळिकर |
नोट-मूल ठगण में पायक है किन्तु शुद्ध पाप है।
— 9 —
चौथे ढगण तीन मात्रा तीन भेद लघ्वादि नांम*
दूहौ
ध्वज चिंन्ह वास चिराळ, चिर तौमर तूंमर घास।
नूंत माळ रस वलय अे, लादि त्रिमात्र प्रकास।।२९
त्रिमात्रा गुरुवादि दुतिय भेद नांम
दूहौ
सुरपति पट्टह ताळकर, ताळ अनंद छंद सार।
आदि गुरु त्रय मत्तकौ, नांम द्विभेद उचार।।३०
त्रिमात्रा त्रतीय सरव-लघु भेद नांम
दूहौ
भावा रस तांडव कहौ, आंकुस और अनार।
है त्रय लघुका नाम अे, त्रय मत्ता प्रस्तार।।३१
पंचमौ णगण द्विमात्रादि भेद प्रथम एक गुरु नांम
दूहौ
नूपुर रसना भरण फणि, चांमर कुंडळ हिमेण।
मुग्ध वक्रमांणसु वलय, हारसु गुरु यकेण।।३२
३२. यकेण-एक।
रूप | *संज्ञा | |
४ ढगण | ||
१ | IS | ध्वज, चिन्ह, वास, चिराळ, चिर, तौमर तूंमर, घास, नूंत माळ रस वलय |
२ | SI | सुरपति, पट्टह, ताळकर, ताळ, अनंद, छंद, सार |
३ | III | भावारस, तांडव, आंकुस, अन्तर |
रूप | **संज्ञा | |
५ णगण | ||
१ | SI | नूपुर, रसना, भरण, फणि, चांमर, कुंडळ, हिमेण, मुग्ध, वक्रमांण, वलय, हार। |
२ | II | प्रिय, परमप्रिय। |
— 10 —
द्विमात्रा द्विलघु भेद नांम
दूहौ
निज प्रिय कहिये परम प्रिय, दु लघु द्वि मत्ता नांम।
गुण यम मात्रा पंच गण, रट कीरत रघुरांम।।३३
अथ साधारण गण नांम
दूहा
आयुध गण कह पंच कळ, दुज तुरंग कळ च्यार।
करण दु गुरु प्रिय दोय लघु, लघु गुरु ध्वज गुरु हार।।३४
तविया गण एता तकौ, समझण छंद सुजांण।
ल कहिये समझे लघु, ग कहिये गुरु जांण।।३५
अथ सोडस करम वरणण
दूहा
संख्या प्रस्तर सूचिका, नस्ट उदिस्ट सुमेर।
ध्वजा मरकटी जांण सुध, आठूं करम अफेर।।३६
आठ सुमत्ता करम अे, आठ वरण अपणाय।
पिंगळ मत अे कवि पढ़ै, सोड़स करम सुभाय।।३७
३५. तविया-कहे।
३६. प्रस्तर-प्रस्तार। सुध-(सुधि) विद्वान्। अफेर-अटल।
— 11 —
प्रथम लछण
दूहौ
यतरी मत यतरा वरण, कितरा रूप हुवंत।
अन किव, किव पूछै उठै, संख्या तठै सझंत।।३८
संख्या विधि
दूहौ
एक दोय लिख पुख जुगै, संख्या मत्त सुभाय।
दोय हूंत दुगणा वधै, संख्या वरण सझाय।।३९
अथ प्रस्तार लछण
दूहौ
संख्या में कहिया सकौ, परगट रूप प्रकास।
जे लिख सरब दिखाळजै, सौ प्रस्तार सहास।।४०
मात्रा प्रस्तार विधि
दूहौ
पहला गुरु तळ लघु परठ, सद्रस पंथ अग्र साय।*
वंचे जिकौ मात्रा वरण, ऊरध परठौ आय।४१
४१. परठ-रख । वंचे-शेष रहना। ऊरध-ऊपर।
* आदि में जहां गुरु हो उसके नीचे लघु लिखो (गुरु का चिन्ह S लघु का चिन्ह l है) फिर अपनी दाहिनी ओर ऊपर के चिन्हों की नकल उतारो। बांई ओर जितने स्थान रिक्त हों (क्रमशः दाहिनी ओर से बांई ओर तक) गुरु के चिन्ह S तब तक रखते चले जाओ जब तक कि सर्व लघु न आ जाय। जब सर्व लघु आ जाय तब उसी को उसका अन्तिम भेद समझो। प्रत्येक भेद में यह ध्यान रखना आवश्यक है कि यदि वह मात्रिक प्रस्तार है तो, उसके प्रत्येक भेद में उतने ही चिन्ह आवेंगे जितने मात्रा का प्रस्तार होगा। यदि वह वर्णिक प्रस्तार है तो उसके प्रत्येक भेद में उतने ही चिन्ह आवेंगे जितने वर्ण का प्रस्तार होगा।
मात्रिक प्रस्तार के सम कल में पहला भेद गुरुओं का तथा विषम कल में पहला भेद लघु से प्रारंभ होता है।
वर्णिक प्रस्तार में पहला भेद गुरुओं का ही रहता है।
— 12 —
वरण प्रस्तार विधि
दूहौ
वरण तणा प्रस्तार विधि, गुरु तळ लघू गिणंत।
उबरै सौ कीजै उरध, सब ही गुरू सुभंत।।४२
सूची लछण
सोरठौ दूहौ
तवौ अमुक प्रस्तार, भेद किता लघु आद भल।
अर लघु अंत उचार, गुर अंतर गुर आद गुण।।४३
आद अंत (फिर) लघु ऊचरै, आद अंत गुरु अक्ख।
सूची सूं जद समझणौ, पेख आंक परतक्ख।।४४
४४. पेख-देख कर। परतक्ख-प्रत्यक्ष।
(१) वर्णिक प्रस्तार ३ वर्ण |
(२) वर्णिक प्रस्तार ४ वर्ण |
विषम कल (प्रस्तार ५ मात्रा) |
सम कल (प्रस्तार ६ मात्रा) |
||||
म | SSS | १ | SSSS | १ | ISS | १ | SSS |
य | ISS | २ | ISSS | २ | SIS | २ | IISS |
र | SIS | ३ | SISS | ३ | IIIS | ३ | ISIS |
स | IIS | ४ | IISS | ४ | SSI | ४ | SIIS |
त | SSI | ५ | SSIS | ५ | IISI | ५ | IIIIS |
ज | ISI | ६ | ISIS | ६ | ISII | ६ | ISSI |
भ | SII | ७ | SIIS | ७ | SIII | ७ | SISI |
न | III | ८ | IIIS | ८ | IIIII | ८ | IIISI |
९ | SSSI | ९ | SSII | ||||
१० | ISSI | १० | IISII | ||||
११ | SISI | ११ | ISIII | ||||
१२ | IISI | १२ | SIIII | ||||
१३ | SSII | १३ | IIIIII | ||||
१४ | ISII | ||||||
१५ | SIII | ||||||
१६ | IIII |
— 13 —
मात्रा सूची विधि
पूरब जुगळ पहलां पढ़ी, संख्या मत्त सहास।
पूरण अंक नेड़ौ तिकौ, पूरब अंक प्रकास।।४५
आद लघु, लघु अंत में, जितरा है कवि जांण।
तिणसूं पूरब अंक ते, आद अंत गुरु आंण।।४६
चौपई
पूरण अंक सूं तीजौ अंक, आद अंत लघु जिता निसंक।
जिणसूं तीजौ अंक जिताय, आाद अंत गुरु जिता कहाय।।४७
मात्रा सूची संख्या रूप
१ | २ | ३ | ५ | ८ | १३ |
अथ वरण सूची विधि
चौपई
वरण संख बे दुगणी वेस, सम लघु गुरुचा रूप सरेस।
पूरण निकट पुरव अंक होय, आद अंत लघु गुरु है सोय।।४८
अंक तीसरौ पूरण हूंत, आद अंत लघु गुरुचौ कूंत।
सूची कौतक अरथस कीजै, तौ के आंन विधांन तवीजै।।४९
वरण सूची संख्या रूप
२ | ४ | ८ | १६ | ३२ |
अथ ऊदिस्ट लछण
चौपई
बीयौ रूप लिख कहै बताय। किसौ भेद ऊदिस्ट कहाय।।५०
४६. आंण-लाओ।
४८. गुरुचा-गुरु का।
४९. गुरुचौ-गुरु का। कूंत-समझ। कौतक-शेष केवल कौतुकं। तवीजै-कहा जाता है।
५०. बीयौ-दूसरा।
— 14 —
अथ मात्रा ऊदिस्ट*
दूहा
मत ऊदिस्ट सुरूप लिख, पूरब जुगळ सिर अंक।
लघु सिर एक ही अंक लिख, गुरु अध ऊरध अंक।।५१
गुरु सिर ऊपर अंक जे, विच प्रस्तार घटाय।
सेख रहै सौ जांण यम, भेद कहौ कविराय।।५२
वरण ऊदिस्ट**
दूहौ
आखर वरण उदीठ पर, दुगण अंकां देह।
ऊपरलां लघु अंकड़ां, यक वद भेद अखेह।।५३
मात्रिक उद्दिष्ट में जहां गुरु का चिन्ह हो उसके ऊपर और नीचे सूची के अंक क्रमशः लिखो। लघु के ऊपर भी क्रमशः सूची के अंक लिखो। गुरु के ऊपर के अक्षरों को पूर्णाङ्क में से घटा दो तो भेद संख्या मालुम हो जावेगी।
प्रश्न-बताओ ६ मात्रात्रों में से यह ।SS। कौन सा भेद है ? उ०-पूर्ण सूची-१ २ ५ १३ पूर्णाङ्क १३ । S S । ३ ८
गुरु के चिन्हों पर २ और ५ हैं दोनों का योग ७ हुआ। पूर्णाङ्क १३ में से ७ घटाने पर ६ शेष रहते हैं अतः यह छटा भेद है।
वर्णिक उद्दिष्ट में सूची के अंक आधे आधे लिखो। उसके नीचे रूप लिखो। गुरु चिन्हों के ऊपर जो संख्या हो उसे पूर्णाङ्क में से घटा दो। जो शेष रहेगा, वही उत्तर है।
प्रश्न-बताओ ४ वर्णों में यह ISSI कौनसा भेद है ? उ०-अर्ध सूची-१ २ ४ ८ पूर्णाङ्क १६ । S S ।
गुरु के चिन्हों के ऊपर २ और ४ हैं। दोनों का योग ६ हुआ। ६ को पूर्णाङ्क १६ में से घटाया तो शेष १० रहे। अतएव १०वां भेद है।
— 15 —
अथ नस्ट लछण
दूहौ
विण लखियां मात्रा वरण, पूछै भेद सुपात।
बुधबळ सूं अखुं जेण विध, क्रमसौ नस्ट कहात।।५४
अथ मात्रा नस्ट*
कवित्त छप्पै
मात्रा नस्ट विधांन, कहत कविराज प्रमांणहु।
सब लघु कर तिण सीस, पूरब जुग अंकां ठांणहु।।
पैलौ पूछै भेद, अंक तिणरौ विलोप कर।
तिण लोपै फिर रहै सेस, सौ अंक लोप धर।।
पुरब जु अंक तिण अंक सूं, पर मिळाय गुरु कर कहौ।
औ मात्र निस्ट पिंगळ अखत, सुकवि ‘किसन’ यण विध लहौ।।५५
मात्रिक नष्ट में सूची के पूरे-पूरे अंक स्थापित करो। छंद के पूर्णाङ्क से प्रश्नाङ्क घटाओ, शेष बचे उसके अनुसार दाहिनी ओर से बांई ओर के जो जो अंक क्रमपूर्वक घट सकते हों उनको गुरु कर दो किन्तु जहां-जहां गुरु हों उनके आगे की एक एक मात्रा मिटा दो।
प्रश्न-बताओ ६ मात्राओं में ११वां भेद कैसा होगा ? रीति-पूर्णाङ्क १३ में से ११ घटाये, शेष २ रहे। २ में से २ ही घट सकते हैं अतः २ को गुरु कर दिया और उसके आगे की मात्रा मिटा दी। यथा-पूर्ण सूची-१ २ ३ ५ ८ १३ साधारण चिन्ह । । । । । । उ०-।S।।। यही ११वां भेद है।
— 16 —
अथ वर्ण नस्ट विधि*
दूहौ
भाग चींतवौ वरण नव, लघु करि सम जिण वोड़।
विसम भागमें मेल यक, गुर कर कवि सिर मोड़।।५६
अथ सोड़स विधि मात्रा वरण प्रस्तार लिखण विधि कौतुकार्थे लिख्यते।
वारता
एक तौ पिंगळ मत सुधौ प्रस्तार ऊपरा सूं नीचौ लिख्यौ जाय सौ, ज्यों ही सुद्ध प्रस्तार नीचा सूं ऊंचो लिख्यौ जाय जीनै प्रकारांत कहीजै। इतरै सूं आठ प्रकार तौ मात्रा प्रस्तार। हर आठ प्रकार ही वरण प्रस्तार छै जे कहै छै।
अथ नांम जथा
सुद्ध, मात्रा सुद्ध १, मात्रा सुद्ध प्रकारांतर २, मात्रा स्थांन विपरीत ३, मात्रा स्थांन विपरीत प्रकारांतर ४, मात्रा संख्या विपरीत ५, मात्रा संख्या विपरीत कौ प्रकारांतर ६, मात्रा संख्या स्थान विपरीत ७, मात्रा संख्या स्थांन विपरीत कौ प्रकारांतर ८, ए आठ मात्रा प्रस्तार विधि।
वर्णिक नष्ट में सूची के अंक आधे-आधे लिखो। छंद के पूर्णाङ्क में से प्रश्नाङ्क घटाओ। शेष बचे उसके अनुसार दाहिनी ओर से बांई ओर के जो-जो अंक क्रमपूर्वक घट सकते हों उनको गुरु कर दो।
प्रश्न-बताओ ४ वर्णों में ९वां रूप कौन सा होगा ? रीति-पूर्णाङ्क-८ x २ = १६ में से ९ घटाये, शेष ७ रहे। ७ में से ४, २ और १ ही घट सकते हैं। इसलिए इन तीनों को गुरु कर दिया। यथा-अर्ध सूची-१ २ ४ ८ पूर्णाङ्क १६ साधारण चिन्ह । । । । उ०-ऽ ऽ ऽ । यही नवां भेद है।
जितने वर्ण का वर्णिक नष्ट निकालना हो उतने ही अंकों तक प्रश्नाङ्क में २ का भाग देकर भागफल को क्रमशः बांई ओर से रख दीजिये किन्तु जिन विषम संख्याओं में २ का भाग पूरा-पूरा नहीं जाता हो उनमें १ जोड़ देना चाहिए। सम संख्या के नीचे लघु और विषम के नीचे गुरु रखने पर उत्तर मिल जायगा।
चार वरणों का ९वां रूप-
रीति-९ ५ ३ २ S S S । यही SSS। उत्तर है।