रघुवरजसप्रकास [3] – किसनाजी आढ़ा
— 17 —
अथ मात्रा स्थांन विपरीत कड़ौट फेर प्रस्तार लछण।
दूहौ
अंत गुरु तळ लघु धरौ, आगै पंत समांण।
ऊबरे सौ गुरु लघु धरौ, पाछै एह प्रमांण।।५७
अथ मात्रा स्थांन विपरीत कौ प्रकारांतर।
चौपई
अंत निकट लघु सिर गुरु धरौ, अधर पंत सम अग्र विचारौ।
ऊबरे सौ पाछै लघु आवै, कळा थांन विपरीत कहावै।।५८
अथ मात्रा संख्या विपरीत कौ प्रकारांतर दोनूं भेळा कहै छै।
चंद्रायणौ
आद अंत लघु संनिध तळ गुरु आंणजै।
जेम प्रकारांतर गुरु सिर लघु जांणजै।।
धुर सम पछ लघु गुरु लघू फिर कीजिये।
संख्या बिहुं प्रकार उलट्ट सुणीजियै।।५९
वारता
संख्या विपरीत का आद लघु का अंतकौ लघु जींके नीचे गुरु करणौ। आगै उरध पंत, सम पंत, ऊबरे सौ लघु करणा।
अथ मात्रा संख्या स्थांन विपरीत कौ प्रकारांतर दोनूं भेळा कहां छां।
चंद्रायणौ
अंत रेख तिण आद, हेठ गुरु अख्यजै।
भल प्रकार गुरु अंत, सीस लघु भख्यजै।।
५९. संनिध-पास। धुर-प्रथम। पछ-पश्चात्।
६०. हेठ-नीचे। अख्यजै-कहिए। भख्यजै-कहिए।
— 18 —
धुर सम पछ लघु गुरु लघू फिर धारजै।
संख्या थळ विपरीत उभय संभारजै।।६०
वारता
स्थांन विपरीत के सरव लघु कर अंत लघु का आाद। लघु नीचे गुरु लखजै। आगै उरध पंगत सम पंगत करणी पाछै ऊबरे सौ सरब ही लघु करणा। इति अरथ।
मात्रा संख्या प्रकारांत रे आदरा गुरु सिर लघु धरजै। आगे पंगत नीचली पंगत समांन अर पाछै ऊबरे सौ दोय ऊबरे तौ गुरु करणो ने तीन ऊबरे तौ गुरु करे नै लघु करणौ।
अरथ
प्रकारांत रे स्थान विपरीत के सरव गुरु कर अंत का गुरु के सिर लघु धरणौ। आगे नीचली पंगत समान पंगत करणी। पाछै एक ऊबरे तौ लघु करणौ, दोय ऊबरे तौ गुरु करणा, गुरु कर लघु करणौ। इति अरथ।
इति अष्ट प्रकार मात्रा प्रस्तार संपूरण।
अथ मात्रा अस्ट प्रकार नस्ट उदिस्ट कथन।
वारता
मात्रा सुध कौ अरु मात्रा सुद्ध का प्रकारांतर को तौ निस्ट उदिस्ट आगे सनातनी कहै छै जेहीज जांणणा। हर छः प्रकार का फेर कहां छां।
अथ मात्रा स्थांन विपरीत उदिस्ट विधि।
दूहा
थळ विपरीत उदिस्ट सिर, उलटा दीजै अंक।
गुरु सिर अंकां उरध अध, लघु सिर एक ही अंक।।६१
गुरु सिर वाळा अंक गिणि, पूरण अंक सूं टाळ।
बाकी रहैस भेद कवि, वेडर कहे वताळ।।६२
६२. वेडर-निर्भय। वताळ-वतला कर।
— 19 —
मात्रा स्थांन विपरीत हर प्रकारांत कौ नष्ट उदिष्ट एक ही छै। मात्रा स्थांन विपरीत भेद छठौ।
१३ | ८ | ५ | ३ | २ | १ |
१३
। |
५
S |
२ S ३ |
१ । |
भेद आठमौ स्थांन विपरीत उदिस्ट कौ।
१३ । |
८ । |
५ । |
३ । |
२ । |
१ । |
१३ । |
५ S |
३ । |
२ । |
१ । |
अथ मात्रा स्थांन विपरीत हर प्रकारांतर दोनूं कौ नस्ट कहै छै।
चौपई
थळ विपरीत नस्ट कळ कीजै, दखिण उलट अंक क्रम दीजै।
पूछयौ भेद पूरण सूं टाळै, पाछै रहैस लोप दिखाळै।।
उलटै क्रम सिर अंकां आवै, पूरब मत्त पर मत्त मिळावै।
गुरु कर रूप भेद सौ गावै, थळ विपरीत नस्ट यम थावै।।६३
— 20 —
मात्रा सुद्ध प्रस्तार | मात्रा सुद्ध प्रस्तार कौ प्रकारांतर नीचा सूं ऊंचौ लिख्यौ जाय छै | मात्रा स्थांन विपरीत कड़ौट फेर प्रस्तार | मात्रा स्थांन विपरीत कौ प्रकारांतर प्रस्तार |
SSS | SSS | SSS | SSS |
।।SS | ।।SS | SS।। | SS।। |
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मात्रा संख्या प्रस्तार विपरीत प्रस्तार | मात्रा संख्या विपरीत के प्रकारांतर प्रस्तार | मात्रा संख्या स्थान विपरीत कड़ौट फेर प्रस्तार | मात्रा संख्या स्थांन विपरीत प्रकारांतर कड़ौट फेर नीचा सूं ऊंचो लिख्यौ जाय सौ प्रस्तार |
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SSS | SSS | SSS | SSS |
मात्रा संख्या विपरीत संख्या विपरीत कौ प्रकारांतर ज्यौं दोयांई कौ उदिस्ट कहूं छूं।
दूहौ
सूधै क्रंमदै अंक सिर, विध संख्या विपरीत।
गुरु सिर अंकां एक विध, भेद उदिस्ट अभीत।।६४
अथ मात्रा संख्या विपरीत हर संख्या विपरीत कौ प्रकारांतर यां दोयां कोई नस्ट कहूं छूं।
चौपई
नस्ट संख्य विपरीत निदांन, मत्त सीस क्रम अंकसु मांन।
पूछ्या भेद मांझ घट एक, बाकी रहै सगुरु कर देख।।६५
६४. सूधै-सीधा। विध-विधि। अभीत-निर्भय। दोयां-दोनों का।
६५. मांझ-मध्य।
— 21 —
पूरब मत्त पर मत्त मिळाय, गुरु करि नस्ट भेद यम गाय।।६६
अथ मात्रा संख्या स्थांन विपरीत हर प्रकारांतर यां दोयांई को उदिस्ट कहूं छूं।
चौपई
भेद सीस दखिण ब्रत अंक, दै उलटा क्रंम हूंत निसंक।
गुरु सिर अंकां मझ सिवाय, एक मेळ कर भेद बताय।।६७
अथ मात्रा संख्या स्थांन विपरीत कौ हर संख्या स्थांन विपरीत कौ प्रकारांतर यां दोयांई को नस्ट कहूँ छूं।
चौपई
क्रम विपरीत अंक लघु सीस, दै पूछ ल यक घाट करीस।
रहैस पूरब जोड़ पर मत, नस्ट संख्य ऊलट थळ सत।।६८
दूहा
आठ भांत प्रस्तार मत्त, नस्ट ऊदिस्ट प्रकार।
‘किसन’ सुकवि जस रांम कज, रटिया मत अनुसार।।६९
इति अस्ट प्रकार मात्रा प्रस्तार उदिस्ट नस्ट संपूरण।
अथ अस्ट प्रकार वरण प्रस्तार विधि लिख्यते।
वारता
वरण सुध प्रस्तार कौ तौ लछण आगे कह्यौईज छै। अथ अस्ट वरण प्रस्तार नांम। यथा–
वरण सुध प्रस्तार १, वरण सुध प्रकारांतर २, नीचासूं ऊंचौ लख्यौ जाय जींकौ नांम प्रकारांतर कहिये, वरण स्थांन विपरीत ३, प्रस्तार नै कड़ौट फेरावणी सौ स्थांन विपरीत कहीजै। वरण स्थांन विपरीत प्रकारांतर ४, वरण संख्या विपरीत ५, वरण संख्या विपरीत कौ प्रकारांतर ६, वरण संख्या स्थांन विपरीत कौ कड़ौट फेर ७, वरण संख्या स्थांन विपरीत कौ प्रकारांतर में अस्ट वरण प्रस्तार कौ तुकारथ लिखां छां।
६७. सीस-ऊपर। ब्रत-व्रत। सिर-ऊपर।
६८. घाट-घटाना। करीस-करना। पर-आगे की। सत-साथ।
६९. मत-मात्रा। कज-लिए। मत-(मति) बुद्धि।
कड़ौट-पंक्ति के उलटने की क्रिया या भाव। फेरावणी-उलटना। फेर-फिर। तुकारथ-पंक्ति का अर्थ।
— 22 —
अथ वरण सुद्ध प्रस्तार का प्रकारांतर कौ लछण।
चौपई
धुर लघु के ऊरध गुरु धरौ, आगे अरध पंत सम करौ
ऊबरे सौ पाछै लघु आवै, वरण प्रकार यम सुध गावै।।७०
अथ वरण स्थांन विपरीत कड़ौट फेर प्रस्तार लछण।
चौपई
अंत गुरु हेठै लघु आंणौ, जुगति अग्र ऊरध सम जांणौ।
ऊबरे सौ पाछै गुरु लेखौ, वरण स्थांन विपरीत विसेखौ।।७१
अथ वरण स्थांन विपरीत कौ प्रकारांतर कौ लछण।
चौपई
अंत लघु सिर गुरु परठीजै, रूप अरध सम अग्र करीजैI
ऊबरे सौ पाछै लघु लेखौ, प्रकारांतर उलट थळ पेखौ।।७२
अथ वरण संख्या विपरीत लघवादिक सूं प्रस्तार चालै जींनै संख्या विपरीत कहीजै
चौपई
आद लघु तळ गुरु धरिये एम, तव उरध सम आगे तेम।
ऊबरे सौ पाछै लघु आंण, वरण संख्या विपरीत बखांण।।७३
७१. हेठै-नीचे। विसेखौ-विशेष।
७२. सिर-ऊपर। परठीजै-रखिये। पेखौ-देखिए।
— 23 —
वरण संख्या विपरीत कौ प्रकारांतर लछण।
चौपई
धुर गुरु सीस प्रथम लघु धारौ, अग्र अरध सम पंत उचारौ।
ऊबरे सौ पाछै गुरु देह, वरण प्रकार उलट थळ एह।।७४
अथ वरण संख्या स्थांन विपरीत कड़ौट फेर लछण।
चौपई
अंत लघू तळ गुरु धरि एहौ, उरध पंत सम अग्र अछेहौ।
ऊबरे सौ पाछै लघु आंण, संख्या वरण उलट थळ जांण।।७५
अथ वरण संख्या विपरीत प्रकारांतर लछण।
चौपई
थिर गुरु अंत सीस लघु थाप, अग्र अरध सम पंत अमाप।
वचै स पाछै गुरु करिवेस, संख्या उलट प्रकार सु देस।।७६
पुणिया आठ वरण प्रस्तार, वडा सुकव लीजियौ विचार।।७७
इति अस्ट विधि वरण प्रस्तार संपूरण।
७५. एहौ-ऐसा। अछेहौ-अच्छा।
७६. थाप-स्थापित कर। करिवेस-करिये। देस-दीजिये।
७७ पुणिया-कहे।
— 24 —
अथ अष्टविध वरण-प्रस्तार
वरण सुद्ध प्रस्तार | वरण सुद्ध प्रस्तार प्रकारांतर | वरण स्थांन विपरीत कड़ौट फेर प्रस्तार | वरण स्थांन विपरीत कौ प्रकारांतर कडौट फेर |
SSSS | SSSS | SSSS | SSSS |
ISSS | ISSS | SSSI | SSSI |
SISS | SISS | SSIS | SSIS |
IISS | IISS | SSII | SSII |
SSIS | SSIS | SISS | SISS |
ISIS | ISIS | SISI | SISI |
SIIS | SIIS | SIIS | SIIS |
IIIS | IIIS | SIII | SIII |
SSSI | SSSI | ISSS | ISSS |
ISSI | ISSI | ISSI | ISSI |
SISI | SISI | ISIS | ISIS |
IISI | IISI | ISII | ISII |
SSII | SSII | IISS | IISS |
ISII | ISII | IISI | IISI |
SIII | SIII | IIIS | IIIS |
IIII | IIII | IIII | IIII |
वरण संख्या विपरीत प्रस्तार | वरण संख्या विपरीत के प्रकारांतर | वरण संख्या विपरीत कौ स्थांन विपरीत प्रस्तार | वरण संख्या विपरीत स्थांन विपरीत कौ प्रकारांतर प्रस्तार |
IIII | IIII | IIII | IIII |
SIII | SIII | IIIS | IIIS |
ISII | ISII | IISI | IISI |
SSII | SSII | IISS | IISS |
IISI | IISI | ISII | ISII |
SISI | SISI | ISIS | ISIS |
ISSI | ISSI | ISSI | ISSI |
SSSI | SSSI | ISSS | ISSS |
IIIS | IIIS | SIII | SIII |
SIIS | SIIS | SIIS | SIIS |
ISIS | ISIS | SISI | SISI |
SSIS | SSIS | SISS | SISS |
IISS | IISS | SSII | SSII |
SISS | SISS | SSIS | SSIS |
ISSS | ISSS | SSSI | SSSI |
SSSS | SSSS | SSSS | SSSS |
— 25 —
अथ अस्ट विध वरण प्रस्तार ज्यांका उदिस्ट, नस्ट लिखां छां।
वारता
वरण सुद्ध १ हर वरण सुद्ध का प्रकारांतर कौ तौ सदा व्है छै ज्यूं हींज छै। हर बाकीरा छ प्रकार को लिखां छां।
अथ वरण स्थांन विपरीत का प्रकारांतर दोय कौ उदिस्ट कौ लछण।
चौपई
ऊलट क्रम दखिण सूं अंक, रूप वरण सिर धरौ नसंक।
ऊपर गुरु अंक जे आवै, पूरण अंक मधि तिके घटावै।।७८
बाकी रहैस भेद बिचार, सब तज भज राघौ गुण सार।।७९
अथ वरण स्थांन विपरीत ईंका प्रकारांतर कौ नस्ट कहां छां।
दूहौ
दखिण क्रम सूं भाग दै, सम लघु रूप सराह।
विखम एक दे गुरु करौ, उलट नस्ट आ राह।।८०
अथ वरण संख्या विपरीत कौ हर ईंका प्रकार कौ उदिस्ट कहां छां।
दूहौ
यक सूं दुगणा रूप सिर, दै क्रम अंक कवेस।
गुरु सिर अंकां एक मिळ, आखव रूप असेस।।८१
अथ वरण संख्या विपरीत हर प्रकारांतर दोनू कौ नस्ट कहां छां।
चौपई
सूधा क्रम सूं कळपौ भाग, विखम थांन लघु करि अनुराग।
विखम एक मिळ आध कराय, समथळ गुरू विखम लघु थाय।।८२
विधयण नस्ट संख्य विपरीत, बुध बळ समभौ सुकवि बिनीत।।८३
७८. नसंक-निःसंदेह। मधि-मध्य। कहां छां-कहता हूँ।
८०. आ-यह। राह-तरीका।
८१. कवेस-कवीश। आखव कह। असेस-अपार।
८२. कळपौ भाग-भाग करो।
— 26 —
अथ वरण संख्या स्थान विपरीत कौ हर ईंका प्रकारांतर कौ उदिस्ट कहां छां।
चौपई
रूप सीस दखिण ब्रत अंक, दै उलटै क्रम सूं कवि निसंक।
गुरु सिर अंकां एक मिळाय, भेद कहौ कवि ‘किसन’ सुभाय।।८४
अथ वरण संख्या स्थान विपरीत कौ हर ईंका प्रकारांतर कौ दोन्यां कौ नस्ट कहां छां।
चौपई
भाग कळप दखिण कर ओर, विखम भाग लघु करौ सतौर।
एक भेळ वांटा कर दोय, सम थळ गुरू विखम लघु होय।।८५
नस्ट उदिस्ट आठ परकार, निज कहि ‘किसन’ वरण निरधार।
तू अन आळ जंजाळ तियाग, रघुबर सुजस सार चित राग।।८६
अथ सोड़स प्रस्तार मात्रा वरण का सुगम लिखण विध।
दूहा
सुध सुध विपरीत थळ, संख्या उलट प्रकार।
संख्या उलट प्रकार थळ, गुरु लघु पच्छु विचार।।८७
सुध सुध विपरीत थळ, प्रकारांत बिहुं जांण।
संख्य विपरजय संख्य थळ, उलट पच्छ लघु आंण।।८८
वारता
सुधकै १। सुध स्थांन विपरीत कै २। संख्या विपरीत का प्रकारांतरकै ३। संख्या स्थांन विपरीत का प्रकारांतर कै ४। सम ऊबरे तौ गुरु करणा, बिसम ऊबरे तौ गुरु करने लघु करणा। सुधका १। सुध स्थांन विपरीत का प्रकारांतर दोयांई के २। हर संख्या विपरीत के ३। हर संख्या स्थान विपरीत के ४। आं च्यार प्रस्तांरां के ऊबरे, सौ सरवे पाछै लघु करणा।
इति प्रस्तार सुगम विध।
८५. सतौर-ठीक। वांटा-विभाजन। थळ-स्थान।
८६. परकार-प्रकार। अन-अन्य। आळ जंजाळ-झूठा मायामोह। तियाग-त्याग। सार-तत्व। राग-अनुराग।
८७. पच्छु-पीछे।
८८. बिहुं-दोनों। विपरजय-विपर्यय। वारता-गद्य।
ऊबरे-शेष रहते हैं। आं-इन।
— 27 —
मात्रा वरण उदिस्ट नस्ट सुगम लछण।
दूहा
सुद्ध बिहुं उदिस्ट नस्ट, सुद्धा क्रम सूं अंक।
बे संख्या बिपरीतरै, निज सुद्ध अंक निसंक।।८९
बे सुद्ध थळ विपरीत रै, बि थळ संख्य विपरीत।
आं चहुं निस्ट उदिस्ट सिर, अंक उलट क्रम दीत।।९०
क्रम संख्या विपरीत बे, बि क्रम बि थळ बिपरीत।
पूछ ल यक घट नस्ट गुरु, वध उदिस्ट कहीत।।९१
सुद्ध बे सुद्ध थळ उलट बे, क्रम बी क्रम धर अंक।
पूछ सेस घट नस्ट कर, वध उदिस्ट गुरु अंक।।९२
इति रघुवरजसप्रकास ग्रंथे आढ़ा किसना क्रत मात्रा वरण सोड़स प्रस्तार उदिस्ट निरूपण संपूरण।
अथ मेर लछण।
दूहा
मुण अमका प्रस्तार मझ, सरब गुरू केह।
एक एक घट फिर अखौ, सब लघु घट लघु जेह।।६३
९०. बि-दो। संख्य-संख्या। सिर-ऊपर। दीत-दीजिये।
९१. वध-विधि। कहीत-कहते हैं।
९२. घट-घटाना।
९३. मुण-कह। अमका-इसका। अखौ-कहो। जेह-जिस।
— 28 —
पूछै यूं अन कवि प्रसन, थाप मेर जिण ठांम।
प्रथम मेर मत कवि परठ, रट कीरत रघुराम।।९४
अथ मात्रा मेर विध।
कवित छप्पै
कर सम बे बे कोठ, अंत यक अंक भरीजै।
आद कोठ यक अंक, दुवौ तिण तर हर दीजै।।
ऊरध जुगळ फिर अंक, देह पैलां कोठां दख।
विध मध कोठा भरण, लछ आखंत सुकवि लख।।
सिर अंक त्याग दछ अंक सौ, समिळ लेख अध कोठ सुज।
कह मत मेर यण विध ‘किसन’, तूं रट राघव आंन तज।।९५
९५. कोठ-कोठा। दुवौ-दूसरा। तिण-उस। तर-तल, नीचे। ऊरध-उर्ध्व। दख-कह। विध-विधि। मध-मध्य। लछ-लक्षण। आखंत-कहते हैं। समिळ-साथ। अध-नीचे। सुज-वह। आंन-अन्य।
— 30 —
अथ पताका लछण।
दूहौ
मुणिया भेळा मेर में, गुरु लघु रूप गिनांन।
जपौ जेण थळ जूजुवा, थपि पताक कह थांन।।९६
अथ मात्रा पताका विध।
कवित छप्पै
अंक रीत उदिस्ट देहु, पूरण अंक बांमह।
अंक पूरब ता अंक मेटि, क्रम क्रम विधि तांमह।।
एक अंक लोपंत, एक गुरु ग्यांन गिणीजै।
दोय अंक ओपंत, दोय गुरु ग्यांन भणीजै।।
त्रय लोप त्रि गुरु चव लोप चव, गुरु गियांन यम जांणियै।
लिख्य मेर संख्य ध्वज मत सौ, जस राघव ध्वज जांणियै।।९७
९७. देहु-देकर। बांमह-बायां। तामह-उसमें। लोपंत-लोप होते हैं। ओपंत-शोभा देता है। चव-कहो। चव-चार।
— 33 —
अथ मात्रा पताका अन्य विध।
दूहा
अंक मत्त उदिस्ट लिख, समझ विचार सुजांण।
वळे पताखा दंड विच, विध एही बुधवांण।।९८
विरळी पूरण अंक विण, बे बे पंकत बंध।
ऊपरली बे पांतरौ, आंक उपंत समंध।।९९
असौ अंक पूरण अंक सूं, परठव तीजी पंत।
गुणीयण कहणौ गुरु लघु, पहली तरह पढ़ंत।।१००
अन्य प्रकार नवीन मत दस मात्रा पताका स्वरूप।*
९९. पांत-पंक्ति। उपंत-उपांत्य। समंध-सम्बन्ध।
१००. परठव-रच। गुणीयण-कवि।
* दूसरे प्रकार से सप्त मात्रा पताका के स्वरूप की तरह १० मात्रा पताका का स्वरूप भी निकाला जा सकता है।
— 34 —
अथ सप्त मात्रा पताका स्वरूप।*
*७ मात्राओं की पताका निम्न प्रकार से भी लिखी जाती है।
७ मात्राओं की पताका
— 35 —
अथ वरण मेर भरण विध।
दूहौ
संख्या अक्खर कोठ सझ, एकौ आदर अंत।
सूंन कोठ सिर अंक बे, समिल लेख अध संत।।१०१
अथ वरण मेर खंड विध।
दूहौ
परठ दच्छ सुधी पंगत, उत्तर चढ़ा उतार।
आद अंत भर एकड़ौ, आंन अग्र उपहार।।१०२
— 37 —
अथ वरण पताका विध।
दूहा
यक दौ च्यार सु आठ विध, अंक वरण उदिच्छ।
पुरण अंक सूं वांम तिण, परलौ लोपव पच्छ।।१०३
एक अंक लोपै तिकण, पंत एक गुरु ग्यान।
दोय अंक दु गुरू त्रियंक, तीन गुरू मन मांन।।१०४
अथ वरण पताका नवीन मत अन्य विध सुगम।
दूहा
वरण पताका आंन विध, अंक उदिस्ट विधांन।
पूरण अंक संनिधि जिकौ, पूरब अंकसु मांन।।१०५
पूरब अंक सिर अंक सूं, जोड़ अंक गिण जेह।
सौ पूरण सूं दूसरी, पंकत धरौ सप्रेह।।१०६
पूरब अंक सिर पंत सूं, पह भर छेल्ही पंत।
त्रतीय अंक गुण पुब्ब सूं, पंत दुती भर संत।।१०७
१०६. सप्रेह-सप्रयत्न।
१०७. सिर-ऊपर। पंत-पंक्ति। पह-प्रथम। छेल्ही-अंतिम। पुब्ब सूं-पूर्व से। दुती-द्वितीय। संत-सज्जन।
— 38 —
यण विध पूरब अंक जुड़, सिर पंकतरा अंक।
वरण पताका नवीन विध, सूधौ मत निरसंक।।१०८
अथ मरकटी लखण कथन।
छप्पै
किव पूछै जौ कोय, ग्यांन खट भांत एक थळ।
जिणरी अखुं जुगत, सुणौ कवि सुमति सउज्जळ।।
किती वृत्ति के भेद, मात्र कितरी के वरणह।
कितरा गुरु लघु किता, रटौ हिक ठौड़ सु निरणह।।
मांडजै तेण पुळ मरकटी, खट विध ग्यांन दिखाइयै।
‘किसनेस’ सुकव धन जनम किव, गुण जौ राघव गाइये।।१०९
अथ मात्रा मरकटी विध कथन।
कवित छप्पै
पंकत खट करि प्रथम, संख्य मत्ता कोठा सम।
पांत व्रत्त भर प्रथम, एक दौ त्रय चव यण क्रम।।
पूरव जुगळ भर भेद पंत, त्री चवथ पंच तज।
पंत छटी भर पहल, एक बे अंक परठ सुज।।
धर बीय सीस अेकौं सधर, बियौ भेद पंकत सुमिळ।
लख बीया अग्र पांचौं सुलछं, पांत छठी यम भर प्रघळ।।११०
याद सुन्य गुरु पंत, अंक अन गुरु लघु आरख।
गुरु लघु पंकति गिणै, वरण पंकत भर बेधख।।
व्रत भेद गुण विन्हैं पंत, विच मत्त पंत धर।
यम खट पंकत सुकवि, सुमत हूंता पूरण भर।।
मरकटी मत्त यम ‘किसन’ मुण, खट विध ग्यांन सु एक थळ।
जनम कर सफळ पायौ जिकौ, आाख क्रीत रघुबर अमळ।।१११
११०. पांत-पंक्ति। त्रय-तीन। चव-चार। यण-इस। त्री-तीन। चवथ-चौथा। बे-दो। परठ-रख। बीय-दूसरा। बियौ-दूसरा। सुलछं-अच्छे लक्षण। प्रघळ-अच्छी प्रकार।
१११. आरख-समझ। बेधख-निर्भय। विन्हैं-दोनों। हूंता-से। मुण-कहना। एक थळ-एक स्थान। आख-कह। क्रीत-कीर्ति। अमळ-निर्मल।
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अथ दस मात्रा मरकटी स्वरूप
अथ वरण मरकटी भरण विध
कवित छप्पै
प्रथम परठ खट पंत, कोठ वरणां समांन कर।
व्रत पंत यक दोय तीन, चव पंच सस्ट भर।।
भेद पंत बे च्यार, आठ भर दुगुण अंक भण।
व्रत्ति भेद गुण बिहुं, वरण वंकत चौथी वण।।
वरण पंत अंक कर अरध धर, गुरु लघु पंकत भर गहर।
गुरु वरण पंत जै अंक मिळ, भल मत पंकत त्रतीय भर।।११२
इति वरण मरकटी।
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अथ अष्ट बरण मरकटी स्वरूप।
अथ सात मात्रा मरकटी स्वरूप।
इति मात्रा वरण सोड़स करम संपूरण।
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