रघुवरजसप्रकास [9] – किसनाजी आढ़ा

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गीत वेलिया सांणौर लछण
दूहा
मुण धुर तुक अठार मत, बीजी पनरह बेख।
तीजी सोळह चतुरथी, पनरह मता पेख।।६८
सोळह पनरह अन दुहां, गुरु लघु अंत बखांण।
कहै ऐम सुकवी सकळ, जिकौ वेलियौ जांण।।६९

अरथ
जिण गीत रै पैहली तुक मात्रा १८ होय, दूजी तुक मात्रा १५ होय, तीजी तुक मात्रा १६ होय, चौथी तुक मात्रा १५ होय। दूजा सारां दूहां मात्रा १६। १५। १६। १५। तुक के अंत आद गुरु अंत लघु आवै, जिण गीत रौ नांम वेलियौ सांणौर कहीजै।

अथ गीत वेलिया सांणोर रौ उदाहरण
गीत
औयण जे रांम स्रीया नित अरचै,
सुज चरणै सिव ब्रहम सकाज।
जग अघ हरण सुरसुरी जांमी,
राज तणा चरणां रघुराज।।
धाय मुनेस सेस सिर धारै,
निज सिर जिकां सुरेस नमाय।


६८. मुण-कह। धुर-प्रथम। अठार-अठारह। मत-मात्रा। बीजी-दूसरी। बेख-देख। तीजी-तीसरी। चतुरथी-चौथी। मता-मात्रा। पेख-देख।
६९. अन-अन्य। बखांण-कह।
७०. ओयण-चरण। स्रीया (श्री)-लक्ष्मी, सीता। अरचै-पूजा करती है। हरण-मिटाने वाला। सुरसुरी-गंगा नदी। जांमी-पिता। मुनेस (मुनीश)-महर्षि। सुरेस-इन्द्र।

— 201 —

जोतसरुपतणा आगर जस,
पोत रूप भव सागर पाय।।
गायब अरच चींतव सुख गेहां,
मत छोडै नेहा मतमंद।
जग दुख हरण सरण जग जेहा,
ऐहा रांम चरण अरव्यंद।।
नाथ अनाथ दासरथ नंदण
स्री रघुनाथ ‘किसन’ साधार।
कदम पखी अपखी ज्यां काळा,
अबखी पुळवाळा आधार।।७०

अथ चौथा सूहणा साणौर कौ लछण
दूहौ
धुर तुक मह अठार मत, चवद सोळ चवदेण।
सोळ चवद लघु गुरु मोहर, जांण सोहणौ जेण।।७१

अरथ
धुर कहतां पहली तुक मात्रा १८ अठारै होवै। दूजो तुक मात्रा १४ चवदै होवै। तीजी तुक मात्रा १६ सोळै होवै। चौथी तुक मात्रा १४ चवदै होवै। पछै दूजा दूहा मात्रा १६ सोळै १४ चवदै ईं क्रम होवै जींके आद लघु अंत गुरु तुकांत होवै जीं गीत कौ नांम सोहणौ सांणौर कहै छै।


७०. जोतसरूपतणा-ज्योतिस्वरूपका। आगर-घर। पोत-नौका, नाव। भव-संसार। अरच-पूजा कर। चींतव-स्मरण कर। नेहा-स्नेह। मतमंद (मतिमंद)-मूर्ख। हरण-हरने वाला। जेहा-जैसा। ऐहा-ऐसा। अरब्यंद (अरविंद)-कमल। दासरथ-दसरथ। नंदण-पुत्र। साधार-रक्षक, सहारा। पखी-वह जिसका कोई पक्ष करने वाला हो। अपखी-वह जिसका कोई पक्ष करने वाला न हो। अबखी-विषम, कठिन। पुळ-समय।
७१. धुर-प्रथम। तुक-पद्य का चरण। मह-में। अठार-अठारह। मत-मात्रा। चवद-चौदह। चवदेण-चौदह से। मोहर-पद्य के द्वितीय और चतुर्थ चरण का परस्पर मेल। जेण-जिससे। दूजी-दूसरी। तीजी-तीसरी। पछे-पश्चात। दूजा-दूसरा। -इस। जींके-जिसके। जीं-जिस।

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अथ सोहणा गीत उदाहरण
गीत
पंचाळी बेर बधायौ पल्लव करतां टेर सिहाय करी।
समरथ भीखम पैज साहियौ हाथ चरण रथतणौ हरी।।
तैं मुख कमळ सदांमा तंदुळ पाया बिलकुल भरे पुसी।
बिदुरतणी भगती हित बाधा खाधा केळा छोत खुसी।।
गोपी चित राचियौ गोब्यंद ब्रंदावन नाचियौ बळी।
धरियौ पद चौरस गिरधारी गौरस कारण गळी गळी।।
समरथ विरुद लोक त्रहुं सांमी पुणां भांमी समध्थपणौ।
जन सादवियौ अंतरजांमी घणनांमी आसनौ घणौ।।७२

अथ पांचमा गीत पूणिया सांणौर नै जांगड़ा सांणौर लछण
दूहौ
दै मत्ता धुर आठ दस, बार सोळ मत बार।
गिण तुकंत जिण दोय गुरु, औ जांगड़ौ उचार।।७३

अरथ
जिण गीत रै पैहली तुक मात्रा अठारै होय। तुक दूजी मात्रा बारै होय। तुक तीजी मात्रा सोळै होय। तुक चौथी मात्रा बारै होय। पछै दूजा दूहां मात्रा तुक पैहली सोळह। तुक दूजी मात्रा बारै। तुक तीजी मात्रा सोळै। तुक चौथी मात्रा बारै। सोळै बारै ईं क्रम सूं होय। तुकांत में दोय गुरु आखिर आवे जीं गीत कौ नांम पूणियौ सांणौर कहीजै नै यण पूणिया नै जांगड़ौ पण कहै छै।


७२. पंचाळी-द्रोपदी। बेर-समय। बधायौ-बढ़ाया। पल्लव-चीर, अंचल। टेर-पुकार। सिहाय-सहायता। भीखम-भीष्म पितामह। पैज-प्रण। साहियौ-धारण किया। सदांमा-सुदामा। तंदुळ-चावल। पाया-भोजन किये, खाये। पुसी-पसर। हित-लिये। खाधा-खाये। छोत-छिलका। रचियौ-रंग गया, लीन हुआ। गोब्यंद-गोविंद। बळी-फिर। गोरस-दूध, दही। कारण-लिये। गळी-बीथि। पुणां-कहता हूं। भांमी-न्यौछावर, बलैया। समथ्थपणौ-समर्थत्व। सादवियौ-पुकारा, दुखमें याद किया। घणनांमी-जिसके अनेक नाम हों। आसनौ-आश्रय, सहारा। घणौ-बहुत अधिक।
७३. दै-देते हैं। मत्ता-मात्रा। धुर-प्रथम, प्रारंभ में। बार-बारह। सोळ-सोलह। मत-मात्रा। बार-बारह।

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अथ गीत पूणियै तथा जांगड़ौ सांणौर उदाहरण
गीत
कैटभ मधु कुंभ कबंध कचरिया, संख संभ सारीसै।
खळ अवगाढ अनेकां खाया, दाढ पीसतौ दीसै।।
रांमण इंद्रजीत खर दूखर, गंजे कूंण गिणावै।
खांत लगे केता खळ खाधा, वळै दांत वहजावै।।
हरणकस्यप हैमुख हरणायख, खाधा के फिर खासी।
तोपण भूख न गी तिण ताबौ, बाबौ खाय उबासी।।
प्रसण मार रख संत सहीपण, राघव जीपण राड़ा।
निज हेकल धापियौ न दीसै, जे खळ पीसै जाड़ा।।७४

अथ छठ गीत सोरठियौ सांणौर जींकौ लछण
दूहौ
मत अठार धुर तुक अवर, दस सोळह दस देह।
सोळह दस अन अंत लघु, जप सोरठियौ जेह।।७५

अरथ
जिणरै आद री तुक मात्रा अठारै होय, तुक दूजी मात्रा दस होय। तुक तीजी मात्रा सोळह होय। तुक चौथी मात्रा दस होय। दूजा साराई दूहां में पैली तुक मात्रा सोळै। चौथी तुक मात्रा दस। इण क्रम होवै। तुकंत लघु आखिर होवै जीं गीत कौ नांम सोरठियौ सांणौर कहीजै।


७४. कैटभ-मधु नामक दैत्य का छोटा भाई जिसका विष्णु ने संहार किया। मधु-कैटभ नामक दैत्य का अग्रज जो श्रीकृष्ण द्वारा मारा गया था। कुंभ-रावण का भाई कुंभकर्ण। कबंध-एक असुर का नाम जिसका संहार रामचंद्रजी ने किया था। कचरिया-ध्वंश किये। संख-एक असुर का नाम। संभ-एक असुर का नाम। सारीसै-समान। अवगाढ-शक्तिशाली। खाया-संहार किये, ध्वंश किये। दाढ पीसतौ-क्रोध में दांतों को कटकटाता हुआ, दांत पीसता हुआ। रांमण-रावण। इंद्रजीत-रावण का पुत्र मेघनाद। खर-एक राक्षस का नाम जो रावण तथा सूर्पणखा का भाई कहा जाता है। दूखर-एक राक्षस का नाम। गंजे-नाश किये, पराजित किये। कूंण-कौन। गिणावै-गिना सकता है। खांत-ध्यान। केता-कितने। खाधा-नाश किये, ध्वंश किये। वळै-फिर। दांत वहजावै-दाँतों को क्रोध में टकराते हुए ध्वनि करता है, क्रोध प्रकट करता है। हरणकस्यप-हिरण्यकशिपु, एक दैत्यराज जो प्रह्लाद का पिता था। हैमुख-हयग्रीव, भागवत के अनुसार एक विष्णु के अवतार का नाम, इनका वध विष्णु ने मच्छावतार लेकर किया और वेदों का उद्धार किया। हरणायख-हिरण्याक्षक नामक असुर जो हिरण्यकशिपु का भाई था। के-कई। खासी-ध्वंश करेगा, नाश करेगा। तोपण-तो भी। बाबौ-ईश्वर। उबासी-जंभाई। प्रसण-पिशुन, दुष्ट। रख-ऋषि। संत-साधु। सही-कुशल। जीपण-जीतने वाला। राड़ा-युद्ध। हेकल-एक, अकेला। धापियौ-अघाया। पीसै जाड़ा-क्रोध में दाँत टकराता है।
७५. मत-मात्रा। अठार-अठारह। धुर-प्रथम। देह-दे, दीजिए। अन-अन्य। जेह-जिसको।

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अथ गीत सोरठिया सांणौर कौ उदाहरण
गीत सोरठियौ
आलम हाथ रौ रघुनाथ अचरिज, अवध भूप असंक।
दिल गहर दीधी सरण हित दत, लहर हेकण लंक।।
भभीखण सरण आय भूधर, महर कर मनमोट।
धुरधमळ व्रवियौ धनख-धारण, कनकवाळौ कोट।।
भयभीत कंपत सीसदस भय, दीन देख निदांन।
अवधेस दाटक दियौ आचां, दुरंग हाटक दांन।।
निरवहण ‘किसना’ सरम नहचैं, असुर दहण असेस।
सारवा दासां कांम समरथ, निमौ रांम नरेस।।७६

अथ सातमौ गीत खुड़द छोटौ सांणौर लछण
दूहौ
धुर मत्ता अठार घर, दस सोळ त्रदसेण।
दु लघु अंत सांणौर लघु, जप खुड़द किव जेण।।७७

अरथ
जीं के आद तुक मात्रा अठारै होय। दूजी तुक मात्रा तेरै होय। तीजी तुक मात्रा सोळै होय। चौथी तुक मात्रा तेरै होय। पछळां दूहां पैली सोळै मात्रा। पछै तेरै मात्रा, फेरे सोळै, फेर तेरै ईं क्रम सूं होवै। तुकांत दोय लघु होवै जीं गीत कौ नांम छोटौ सांणौर हंसमग कहीजै।


७५. आदरी-प्रारम्भ की। दूजी-दूसरी। तीजी-तीसरी। दूजा-दूसरे। साराई-सब ही। दूहां-द्वालों, गीत छंद के चार चरण के समूहों। इण-इस। आखिर-अक्षर। जीं-जिस।
७६. आलम-संसार, ईश्वर। अचरिज-आश्चर्य। गहर-गंभीर। दीधी-दे दी। हेकण-एक। भभीखण-विभीषण। भूधर-ईश्वर। महर-कृपा। मन मोट-उदार। धुर-धमळ-अग्रगामी। व्रवियौ-दान दिया। धनख-धारण-धनुषधारी, श्रीरामचंद्र भगवान। कनक-सोना। सीसदस-रावण। दाटक-महान। आचां-हाथों। हाटक-स्वर्ण, सोना। सारवा-सफल करने को, सिद्ध करने को। दासां-भक्तों।
७७. मता-मात्रा। त्रदस-तेरह। सोळ-सोलह। त्रदसेण-तेरह। किव-कवि। जेण-जिस।

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अथ गीत खुड़द सांणौर हंसमग उदाहरण
गीत खुड़द छोटौ सांणौर
स्रीधर स्रीरंग सियावर स्रीपत, करणाकर कारण-करण।
व्रज नायक विसवेस विसंभर, घणनांमी आणंदघण।।
नरहर नागनाथ नारायण, गोव्यंद गौप्रिय गोपवर।
धराधीस धानंख गिरधारी, कमळाकंत सकमळकर।।
विमळानन विबुधेस विहारी, संख चक्र धारी सुमण।
भव तारण भूधर भय भंजण, हिरणगरभ त्रय ताप हण।।
नायक रमा नयण कज नरवर, सुखदायक निज जन सयण।
भगत-विछळ मन महणसुभायक, निमौ सुधा स्रायक नयण।।७८
इति सात सांणौर गीत संपूरण


७७. जींके-जिसके। आद-आदि प्रथम, शुरू का। पछळां-पश्चात के। पछै-बाद में। ईं-इस। जीं-जिस।
७८. स्रीधर-विष्णु, श्रीरामचंद्र भगवान। स्रीरंग-विष्णु। सियावर-सीतापति। स्रीपत (श्रीपति)-विष्णु। करणाकर-करुणा करने वाला। कारण-करण-कारण और करने वाला। विसवेस-विश्वेश। विसंभर-विश्वंभर। आणंदघण-आनन्दघन। नरहर-नृसिंहावतार। नागनाथ-नाग को नाथने वाला, श्रीकृष्ण। गोब्यंद-गोविंद। गौप्रिय-गोवल्लभ। गोपवर-गोपीपति। धराधीस-धरा का स्वामी। धानंख-धनुषधारी, श्रीरामचंद्र। कमळा कंत-कमलापति, विष्णु। सकमळकर-वह जिसके हाथ में कमल-पुष्प हो, विष्णु। विमळानन-विमल-मुख। विबुधेस-देवताओं के स्वामी, विष्णु, इन्द्र। सुमण-श्रेष्ठ मणि, यहां कौस्तुभमणि से अर्थ है। भव-संसार। भूधर-ईश्वर। भंजण-नाश करने वाला, मिटाने वाला। हिरणगरभ-हिरण्यगर्भ, वह प्रकाश रूप या ज्योतिर्मय पिंड जिससे ब्रह्मा और समस्त श्रृष्टि प्रकट हुई है। त्रय-तीन। ताप-संकट, कष्ट। हण-मिटाने वाला, नाश करने वाला। नायक-पति। रमा-लक्ष्मी। नयण-नेत्र। कज-कमल। सुखदायक-सुख देने वाला। जन-भक्त। सयण-सज्जन। भगत-विछळ-भक्तवत्सल। महण (महार्णव)-सागर। सुभायक-सुरुचिकर, सुन्दर। सुधा-अमृत। स्रृायक-टपकने या टपकाने वाला, श्रवने वाला।

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अथ अन्य प्रकार गीत जात वरणण

वारता
विधांनीक गीत वडौ सांणौर होवै। विधांन कहौ भावै सर कहौ सौ छ सर सत सर तौ लघु सांणौर होवै नहीं। वडौ सांणौर होवै सो ईं ग्रंथ में प्रथम सतसर तथा सप्त विधांनीक गीत कह्यौ छै सौ देख लीज्यौ।

इति विधांनीक विधि संपूरण।

अथ पाड़गत, पाड़गती वरणण छंद लछण
दूहा
धुर तुक अखिर अठार धर, चवद सोळ चवदेस।
सोळ चवद अन अंत लघु, सौ सुपंखरौ सुदेस।।७९
गुणी सुपंखरा गीत में, वरणण नृत्य वखांण।
कहियौ धुर पिंगळ सुकव, जिकौ पाड़ गति जांण।।८०

अथ पाड़गती सुपंखरा उदाहरण
गीत
दड़ी पड़ंतां द्रहा में चढे झांकियौ कदंब डाळ,
नीर थाघे अथाघ चडंतां वाद नार।
खेल्ह बाळव्रंदरै करंतां लगाड़ियौ खेटौ,
काळी नाग जगाड़ियौ नंदरै कंवार।।


७८. भावै-चाहे। ईं-इस।
७९. पाड़मत, पाड़गती-सुपंखरा, त्रिवड़ आदि गीतों की संज्ञा विशेष। धुर-प्रथम। तुक-पद्य का चरण। अखिर-अक्षर। अठार-अठारह। चवद-चौदह। सोळ-सोलह। चवदेस-चौदह। अन-अन्य। सौ-वह। सुपंखरौ-गीत छंद का नाम, कहीं-कहीं सुपखरौ भी लिखा मिलता है।
८०. गुणी-कवि, पंडित।
८१. दड़ी-गेंद। द्रहामें-नदी में, अधिक जल या गहराई के स्थान में। झांकियौ-छलांग भरी, कूदा, उछल कर ऊपर के पदार्थ को पकड़ा। डाळ-टहनी। थाघे-थाह लिया। अथाघ-अथाह, अपार। खेल्ह-खेल। बाळब्रंदरै-बाल-समूह के। खेटौ-छलांग। कंवार-कुमार।

— 207 —

फैल क्रोध चसमां कराळां आग-झाळा फुणां,
ताळा दै भुजाळा त्यूं गुपाळा तीरवांन।
विरदाळा सिघाळा अड़ाळा जोध चाळाबंध,
जूटा बिहुं काळा नै बिचाळा जोरवांन।।
कदमां करगां घाव दाव व्है अभूतकारा,
उडै फूतकारा विखां फुणांरा अमाव।
जंद हरी बंध काळीसं घणा जोड़िया जकै,
संध संध विछौड़िया नंदरै सुजाव।।
महा भुजंगेसनाथ समाथ खंडियौ मांण,
खंभ ठौर भराथ तंडियौ जैत-खंभ।
दंडियौ अदंड नीर उचाटां मिटाय डहे,
रंजे मित्र फुणाटां मंडियौ नाटारंभ।।
धू धू कटां ध्रु कटां ध्रु कटां धू धू कटां धार,
ता धिंना ता धिंना धिन्ना ता धिन्ना सुताळ।
ताथेई ताथेई थेई थेई थेई ताता,
गतां लै अहेस माथा नंदरौ गवाळ।।
रंमां-झंमां रंमां झंमां रंमां झंमां झंमां रंमां,
ठमंकां रमंकां झंका रमंकां ठमंक।
पाड़गती गीत राधा रंजणा पयंपै प्रथी,
नाग धू संजणा निमौ संगीत निसंक।।८१


८१. चसमां (चश्मां)-नेत्र। कराळां-भयंकर, भयावह। आग-झाळा-अग्नि की लपट। ताळा-ताली, करताली। त्यूं-तैसे। गुपाळा-ग्वाले। तीरवांन-तट पर खड़े। विरदाळा-विरुदधारी, यशस्वी। सिघाळा-श्रेष्ठ। अडाळा-अड़ने वाला। चाळाबंध-लड़ने वाला, उत्पाती। जूटा-भिड़े। बिहुं-दोनों। जोरवांन-शक्तिशाली। कदंबां-चरणों पैरों। करगां-हाथों। घाव-प्रहार। दाव-पेंतरा। अभूतकारा-अभूतपूर्व, अनोखा। फूतकारा-सर्प के मुख की आवाज। विखा-विषों। अमाव-अपार। संध-संधि। बिछोड़िया-दूर किया। सुजाव-पुत्र। भुजंगेसनाथ-कालीनाग। समाथ-समर्थ। खंडियौ-खंडित किया, मिटाया। मांण-गर्व, मान। खंभ-भुजा, बाहुमूल के ऊपर का भाग, कंधा। ठौर-ठोक कर। भराथ-युद्ध। तंडियौ-जोशपूर्ण आवाज की। जैत-खंभ-विजयी, विजयस्तंभ। अदंड-जिसे कोई दंड न दे सकता हो। उचाटां-चिंता, भय। रंजै-प्रसन्न कर। फुणाटां-सर्प के फनों। मंडियौ-रचा, किया। नाटारंभ-नृत्य, नाच। गतां-वाद्यों के बजाने की प्रणाली विशेष या नृत्यक के नृत्य की गति विशेष। अहेस-अहीश नागराज। रंमां-झमां-चलने या नृत्य के समय आभूषणों की होने वाली ध्वनि। ठमंकां-चलते समय या नृत्य के समय पैर रखने का ढंग विशेष। रंजणा-प्रसन्न करने वाला। पयंपै-कहता है, कहती है। धू-शिर, मस्तक। संजणा-करने वाला।

— 208 —

अथ त्रिवड़ तथा हेलौ नांम गीत लछण
दूहा
आठ तीस मत पूबअध, उतरारध अठतीस।
तुक विहुंवै अघ तेवड़ी, तेवड़ गीत तवीस।।८२
पहली दूजी तुक मिळै, तीजी छठी मिळंत।
मिळ चौथी सूं पंचमी, जस रघुनाथ जपंत।।८३

अरथ
जीं गीत के अठतीस मात्रा पूरबारध होय अर अठतीस ही मात्रा उतरारध होय। समांन दो ही अरथ होय। तीन तुक पूरबारध होय, तीन तुक उतरारध होय। तेवड़ी तुकां होय। सारा दूहा में तुक छ होय। पैली तुक कौ तुकांत तौ दूजी तुक सूं मिळै। तीजी तुक छठी तुक सूं मिळै। चौथी तुक पांचमी तुक सूं मिळै। तेवड़ी तुकां हर तेवड़ौई तुकांत कौ मिळाप जींसूं गीत को नांम तिवड़ अंत लघु कहीजै। कोई कवि इण गीत नै हेलौ पिण कहै छै।


८२. आठतीस-अड़तीस। पूबअध-पूर्वार्द्ध। विहुंवै-दोनों में। तेवड़ी-तिगुनी, तीन तहका। तवीस-कहा जायेगा, कहा जाता है।
८३. दूजी-दूसरी। मिळंत-मिलती है। जपंत-जपता है, जपा जाता है। जीं-जिस। अर-ओर। मिळाप-मिलना। जींसूं-जिससे। पिण-भी।

— 209 —

अथ त्रिवड़ तथा हेला नांम गीत उदाहरण
गीत
रांम असरण सरण राजै, भेटियां दुखदुंद भाजै।
देव दीन दयाळ।।
निरवहै व्रत हेक नारी, धींगपांण धनंखधारी।
प्रगट संतां पाळ।।
चुरस मारग नीत चालै, घाघ भागां निकूं घालै।
समरसूं रस धीर।।
वीरवर दासरथ-वाळौ, कळह आसुर अंत काळौ।
बिरद धारण बीर।।
छत्रपत अनी मांण छंडै, खत्र रख हर चाप खंडे।
जांनकीवर जेण।।
राय हर पण जनक राखै, सूर ससि रिख देव साखै।
मुणै जस प्रथमेण।।
तोयधी गिरराज तारे, प्रगट कर कपि सेन पारे।
रची लंका राड़।।
दसाणण घणराव दाहे, गहर कुंभ अरोड़ गाहे।
धींग राघव धाड़।।८४


८४. राजै-शोभा देता है। भेटियां-मिलने पर। दुखदुंद-दुख-द्वन्द। भाजै-मिट जाते है। निरवहै-निभाता है। धींगपांण-समर्थ, शक्तिशाली। धनंखधारी-धनुष को धारण करने वाला। पाळ-पालक, रक्षक। चुरस-श्रेष्ठ। नीत-नीति। घाव-प्रहार, वार। निकूं-नहीं। समरसूं-युद्ध से। दासरथ-वाळौ-दशरथ का। छत्रपत-छत्रपति, राजा। अनी-अन्य। मांण-गर्व, मान। छंडे-छोड़ देते हैं। चाप-धनुष। खंडे-खंडित किया। पण-प्रण। सूर-सूर्य। ससि-चंद्रमा। रिख-ऋषि। साखै-साक्षी देते हैं। मुणै-कहते हैं, वर्णन करते हैं। प्रथमेण-पृथ्वी, संसार। तोयधी (तोयधि)-समुद्र, सागर। गिरराज-पर्वतराज। कपि-बंदर। सेन-सेना, फौज। राड़-युद्ध। दसाणण-दसानन, रावण। घणराव-मेघनाद, इन्द्रजीत। दाहे-संहार किया। गहर-महान, गंभीर। कुंभ-रावण का भाई कुंभकर्ण। अरोड़-जबरदस्त, शक्तिशाली। गाहे-ध्वंश किया। धींग-समर्थ। धाड़-धन्य।

— 210 —

अथ वंकगीत वरण छंद लछण
दूहौ
च्यार जगण की एक तुक, वरण छंद निरधार।
चौ तुक मोती दांम मिळ, वंक गीत सु विचार।।८५

अरथ
जीं गीत री एक तुक में च्यार जगण होय, च्यार ही तुक में बारै बारै अखिर होय। तुक प्रत च्यार जगण होय। अंत लघु होय। मोतीदांम छंद की च्यार तुक कौ एक दूहौ होय, जींनै वंकनांमा गीत कहीजै।

अथ बंक गीत उदाहरण
गीत
न रूप न रेख न रंग न राग,
अपार न पार निधार अधार।
अलेख अदेख अतेख अभेख,
अतारस तार सुसार असार।।
अरेस असेस दहेस अभंग,
धरेस सुरेस नरेस सधीर।
अरोड़ अमोड़ अवीह अलार,
निबाह अथाह चढै कुळ नीर।।
सनीत सकीत सजीत सराह,
समाथ तिराथ गिरंद समंद।
दयाळ नृपाळ सिघाळ ब्रदाळ,
अरेह अनाट अछेह अमंद।।
रमीस प्रमीस हणै अघरीस,
तवै जस आलम जेण तमांम।
महा बळवांन अभंग महीप,
रटां जन लाज रखै रघुरांम।।८६


८५. बारै-बारह। अखिर-अक्षर। प्रत-प्रति।
८६. निधार-आधारहीन। धरेस-शेषनाग, पर्वत। सुरेस-इन्द्र। नरेस-राजा। अरोड़-शक्तिशाली। अमोड़-नहीं मुड़ने वाला। अवीह-निडर, निर्भय। समाथ-समर्थ। गिरंद-पर्वत। समंद-समुद्र। सिघाळ-श्रेष्ठ। ब्रदाळ-बिरुदधारी। तवै-स्तुति करते हैं, वर्णन करते हैं। आलम-संसार। जेण-जिस।

— 211 —

अथ त्रंबकड़ा गीत कौ लछण
दूहौ
धुर मत्ता अठार घर, सोळह तुक सरबेण।
गिण तिण दोय तुकंत गुर, जप त्रंबकड़ौ जेण।।८७

अरथ
जीं गीत कै पहली तुक में मात्रा अठारा अर सारी ही तुकां मात्रा सौळा सौळा होय। तुकांत दोय गुरु अखिर होय जीं गीत नै त्रंबकड़ौ कहीजै। पैली तुक अठारै होय र लारली पनरैई तुकां मात्रा सोळै सोळै होय।

अथ त्रंबकड़ा गीत उदाहरण
गीत
मुखहूंता भाख ‘किसन’ महमाहण,
प्रभु नित भीड़ साच पखा रे।
ग्राह जिसा अधमां दीन्ही गत,
तोनूं राघव कांय न तारै।।
रात दिवस भज रांम नरेसर,
पात राख नहचौ मन पूरौ।
धूधारण कारण लख धूरौ,
उधारणरौ किसौ अणूंरौ।।
के जम नांम तणौ तन सज कर,
भै जमहूं डर डर मत भाजै।
किया सुनाथ हाथ ग्रह केतां,
वीठळनाथ अनाथां वाजै।।
जम दळ वटपाड़ौ वह जासी,
थासी नहीं विगाड़ौ थारै।
जगपत निस दिन नांम जपंतां,
संता सारा काज सुधारै।।८८


८७. धुर-प्रथम। मत्ता-मात्रा। अठार-अठारह। सरबेण-सब, समस्त। लारली-पीछे की। पनरैई-पनरह ही।
८८. मुखहूंता-मुख से। भाख-कह। महमाहण-ईश्वर। भीड़-सहायता, मदद। पख-पक्ष। जिसा-जैसा। दीन्ही-दी। गत-मोक्ष। तोनूं-तुझको। कांय न-क्यों नहीं। नरेसर-नरेश्वर। नहचौ-धैर्य। पूरौ-पूर्ण, पूरा। किसौ-कौनसा। अणूंरौ-अभाव, कमी। ग्रह-पकड़ कर। केतां-कितनों को। वीठळनाथ-स्वामी, ईश्वर। वाजै-पुकारा जाता है।

— 212 —

अथ गीत चौटियाळ लछण
दूहौ
सुज प्रहास सांणौर रै, दस मत अरध सिवाय।
मेल दोय पूरब उतर, चौटियाळ गुण चाय।।८९

अरथ
चौटियाळ गीत प्रहास साणौर होवै, जींके आधा गीत के आधा दूहा सिवाय दस मात्रा की एक तुक पूरबारध में सिवाय होवै। एक तुक उतरारध में दस मात्रा की सिवाय होवै। पूरबारध अर उतरारध में दोय मेळ तुकांत होवै। पैली तुकांत कै, अंत दो गुरु होवै। दूजा तुकांत कै अंत रगण होवै। पैली तुक मात्रा २३, तुक दूजी मात्रा १७, तुक तीजी मात्रा १०. तुक चौथी मात्रा २०, तुक पांचमी मात्रा १७, तुक छठी मात्रा १० पछै दूजा सारा दूहां मात्रा बीस, सत्रै, दस, बीस, सत्रै, दस ईं तरै तुकां होवै जीं गीत कौ नांम चौटियाळ गीत कहीजै।


८९. मत-मात्रा। अरध-आधा। सिवाय-अतिरिक्त, विशेष। गुण-गीत छन्द। चाय-चाह। जींके-जिसके।

— 213 —

अथ चौटियाळ गीत उदाहरण
गीत
महाराज आजांनभुज रांम रघुवंसमण,
राड़ रिम जूथ अवनाड़ रोहै,
गढां गह गंजणा।
बार निरधार आधार आधार आलम वणै,
सरण साधार जिण विरद सोहै,
भिड़े दळ भंजणा।।
जांनकीनाथ समराथ जाहर जगत
चुरस धमचक रचण वीरचाळा,
बसे खेत वीरती।
ताखड़ा जोध आरोड़ दसरथतणा,
कीजिये किसौ नृप जोड़ काळा,
कहै जग कीरती।।
सूरकुळ मुकट अणघट अनट जीह सुज,
वयण मुख दाखिया अंक वेहा,
दया जन दक्खणा।
सामरथ भभीखण रंक राखै सरणा,
तसां आपण सुदत लंक तेहा,
रजवट्ट रक्खणा।।
अवधरा धणी रिण सीह भंजण असह,
लीह संतांतणी निकूं लोपै,
भणै किव भेद में।
तई सामाथ प्रभ बंधु दीनांतणा,
अनाथां नाथ भुज बिरद ओपै,
वणै कथ वेद में।।९०


८९. सत्रै-सतरह। ईं-इस। तरै-तरह, प्रकार। जीं-जिस।
९०. आजांन-भुज-आजानुबाहु। रघुवंसमण-रघुवंशमणि। राड़-युद्ध। रिम-शत्रु। जूथ-यूथ, समूह। अवनाड़-जबरदस्त, नहीं मुड़ने वाला। रोहै-ध्वंश करता है, संहार करता है। गह-गर्व। गंजण-जीतने वाला, मिटाने वाला, नाश करने वाला। वार-समय। आलम-संसार, ईश्वर। सरण-साधार-शरण में आये हुये की रक्षा करने वाला। भिड़े-भिड़ कर, युद्ध कर। भंजणा-पराजित करने वाला। समराथ-समर्थ। चुरस-महान। धमचक-युद्ध। वीरचाळा-वीरों का कार्य, वीरों का चरित्र। वीरती-शौर्य, वीरता। ताखड़ा-तेज। जोध-योद्धा। किसौ-कौनसा। जोड़-बराबर। काळा-महावीर, योद्धा। कीरती-यश। सूरकुळ-सूर्यवंश। अणघट-अपार। अनट-नहीं नटने वाला। जीह-जीभ, जिव्हा। वयण-वचन। दाखिया-कहे। वेहा-विधाता, ब्रह्मा। सामरथ-समर्थ। भभीखण-विभीषण। तसां-हाथों। आपण-देने वाला। तेहा-तैसा, वैसा। रजवट्ट-क्षत्रियत्व, शौर्य। रक्खणा-रखने वाला। रिण-रण, युद्ध। भंजण-नाश करने वाला, मिटाने वाला। असह-शत्रु। लीह-रेखा, मर्यादा। संतांतणी-संतों की। सामाथ-समर्थ। विरद-विरुद। ओपै-शोभा देता है। कथ-कथा, वृत्तांत।

— 214 —

अथ गीत लैहचाळ अथवा लहचाळ लछण
चौपई
कळ दस धुर फिर आठ सकांम।
मझ तुक विखम दोय विसरांम।।
सम अठ अंत रगण जीकार।
चतुर गीत लैहचाळ उचार।।९१

अरथ
पैली तुक मात्रा १८ होय। दोय विसरांम पैलौ मात्रा १० दूजौ मात्रा आठ पर, ऊंहीं तुक तीजी विखम मात्रा विसरांम मोहरा होय। गुरु लघु कौ नेम नहीं। तुकांत तुक सम दूजी चौथी जींकै मात्रा पनरह आठ मात्रा पछै रगण पछै जीकार सबद होय। यूं दूजी चौथी तुक होय। यण प्रकार सरव दवाळा होय, जिण गीत रौ नांम लहचाळ कहीजै।


९१. मझ-मध्य। विखम-विषम। विसरांम-विश्राम। अठ-आठ। ऊंहीं-ऐसे ही। मोहरा-तुकबंदी। नेम-नियम। यूं-ऐसे ही। यण-इस।

— 215 —

अथ गीत लैहचाळ उदाहरण
गीत
निरधार निवाजण भै अघ भांजण,
सेवग तार सधीर सौ जी।
दुख देवां दहण दैत दपट्टण,
बीर निकौ रघुबीर सौ जी।।
म्रगनैण सिया मन रूप सुरंजन,
कौटिक कांम सकांम सौ जी।
दुनियां बरदायक सेव सिहायक,
रैण किसौ नृप रांम सौ जी।।
निज कोसळ नंदण देवत वंदण,
धारण पांण धनंखरौ जी।
सझ कुंभ सकारण रांवण मारण,
लेण भुजां बळ लंकरौ जी।।
जन सोच बिभंजण प्राचत पंजण,
दांन अभैवर देणरौ जी।
‘किसना’ निसचै कर राच सियाबर,
जांण भरोसौ जेणरौ जी।।९२


९२. निरधार-जिसका कोई सहारा या आश्रय न हो। निवाजण-प्रसन्न होने वाला। भै-भय। अघ-पाप। भांजण-नष्ट करने वाला। सधीर-धैर्यवान। दहण-नाश करने वाला। दैत-दैत्य। दपट्टण-ध्वंश करने वाला। सेव-सेवा, सेवक। सिहायक-सहायक। रैण-भूमि। किसौ-कौनसा। नंदण-पुत्र। वंदण-वंदनीय। पांण (पाणि)-हाथ। कुंभ-रावण का भाई कुंभकर्ण। विभंजण-मिटाने वाला। प्राचत-पाप। पंजण-नष्ट करने वाला, मिटाने वाला। निसचै-निश्चय। राच-लीन हो जा। सियाबर-श्री रामचन्द्र। भरोसौ-विश्वास। जेण-जिसका।

— 216 —

अथ गीत गोख लछण
दूहौ
धुर तुक मत तेवीस घर, अवर वीस लघु अंत।
चौथी तुक बे वीपसा, कवि ते गोख कहंत।।९३

अरथ
चौथी तुक में दो वीपसा होय। मात्रा प्रमांण कहां छां। आद पैलरी तुक मात्रा तेवीस होय। पाछली पनरैई तुकां मात्रा वीस वीस होय। तुकांत लघु अखिर आवै, अथवा नगण आवै, जीं गीत नै गोख कहीजै। एक सबद नै दोय वार कहै सौ वीपसा कहावै।

अथ गीत गोख जात सावझड़ा कौ उदाहरण
गीत
तनै कहूं समझाय मतमंद जग फंद तज।
अरप तन मन सुध न वेग सुणसी अरज।।
उभै साचा अखर कहै रिख सिंभ अज।
हरी भज हरी भज हरी भज हरी भज।।
लछीरा चहन घण वीज वाळी लपट।
क्रोध ममता नता मूढ तज रे कपट।।
झौड़ मत कर अवर काळ लेसी झपट।
रांम रट रांम रट रांम रट रांम रट।।
काटसी घणा अघ ओघवाळा करम।
बेध नह सके जम पहर इसड़ौ वरम।।
सही भ्रगुलता उर सूंप जिणनै सरम।
पढ़ परम पढ़ परम पढ़ परम पढ परम।।
उदर दीधौ जिकौ पूरसी जळ असन।
वणै छिब घणै पटपीत पहरण बसन।।
करे चित खांत निस दिवस रट रे ‘किसन’।
सीकिसन सीकिसन सीकिसन सीकिसन।।९४


९३. धुर-प्रथम। मत-मात्रा। वीपसा (वीप्सा)-एक शब्दालंकार जिसके अर्थ या भाव पर बल या शक्ति लगाने से होने वाली शब्दावृत्ति। कहत-कहते हैं। पाछली-पीछे की, बाद की। जीं-जिस।
९४. तनै-तुझको। मतमंद (मतिमंद)-मूर्ख। फंद-जाल। रिख-ऋषि। सिंभ-शंभू, शिव। अज-ब्रह्मा। लछीरा-लक्ष्मी के। चहन-चिन्ह। घण-बादल। वीज-बिजली। लपट-चमक। काळ-यमराज। घणा-बहुत। अघ-पाप। ओघ-समूह। नह-नहीं। जम-यमराज। इसड़ौ-ऐसा। वरम-कवच। परम-ईश्वर। उदर-पेट। दीधौ-दिया। जिको-वह। असन-भोजन। छिब-शोभा। पटपीत-पीताम्बर। बसन-वस्त्र। खांत-विचार। सी-श्री।

— 217 —

अथ गीत चितईलोळ लछण
दूहौ
किव सोरठिया गीत के, अधिक दोय तुक आंण।
चवद चवद मत दोढसौ, चितईलोळ पहचांण।।९५

अरथ
सोरठिया गीत रै पहली तुक मात्रा अठारै। दूजी तुक मात्रा अठारै। तीजी तुक मात्रा सोळै। चौथी तुक मात्रा दस होवै। पछै सारा दूहां मात्रा सोळै दस होवै। जीं सोरठिया कै सिरै जातां चवदै चवदै मात्रा की दोय तुकां सवाय होवै जीं गीत को नांम दोढौ कै छै तथा कोई कवि चितईलोळ कै छै। तुकांत लघु होवै। छ तुकां होवै। चौथी तुक रा तुकांत री आव्रत उलट पढवा सूं पांचमी तुक होय। क्यूंक छठी में पण आभास चौथी तुक कौ होय सौ दोढौ।

अथ गीत चितईलोळ कौ उदाहरण
गीत
दीनां पाळगर धन सुतन दसरथ,
सकज सूर समाथ।


९५. किव-कवि। चवद-चौदह। मत-मात्रा। आव्रत-आवृत्ति। क्यूंक-कुछ। पण-भी।
९६. दीनां-गरीबों। पाळगर-पालनकर्त्ता। धन-धन्य। सुतन-पुत्र। सूर-वीर। समाथ-समर्थ।

— 218 —

रिणखेत भंजण सकुळ रांवण,
नेत-बंध रघुनाथ।
तौ रघुनाथ रे रघुनाथ,
रिवकुळ आभरण रघुनाथ।।
तन स्यांम सघण सरूप ओपत,
सुपट बीज सकाज।
रिम कोट हण जन ओट रक्खण,
मोट मन महराज।
तौ महराज रे महराज,
माहव मोट मन महराज।।
हक-बगां लाखां असुर हरणौ,
जुधां करणौ जैत।
चाढणौ कुळ जळ दळद चौजां,
बाढणौ बिरदैत।
तौ बिरदैत रे विरदैत,
बिरदां धारणौ बिरदैत।।
बळ थकां अबखी बखत बेली,
तवै जगत तमांम।


९६. भंजण-ध्वंश करने को। नेत-बंध-अपना स्वयं का झंडा रखने वाला। आभरण-आभूषण। सरूप-स्वरूप। ओपत-शोभा देता है। सुपट-सुन्दर। बीज-बिजली। रिम-शत्रु। कोट-गढ़ अथवा करोड़। ओट-शरण। मोट मन-उदार चित्त। माहव-माधव, विष्णु, श्रीरामचंद्र। हक-बगां-युद्ध होने पर। हरणौ-मिटाने वाला ध्वंश करने वाला। करणौ-करने वाला। जैत-विजय, जीती। चाढणौ-चढाने वाला। जळ-कांति, दीप्ति। दळद-दारिद्र्य, कंगाली। चौजां-उदारता। बाढणौ-काटने वाला। बिरदैत-विरुदधारी, यशस्वी। धारणौ-धारण करने वाला। बळ-शक्ति। थकां-थकने पर। अबखी-कठिन, दुरूह। बेली-सहायक, मित्र। तवै-स्तुति करता है, वर्णन करता है। तमांम-सम्पूर्ण।

— 219 —

नित ‘किसन’ किव रट नांम निरभै,
रसन स्री रघुरांम।
तौ रघुरांम रे रघुरांम,
रजवट धारियां रघुरांम।।९६

अथ गीत पालवणी तथा दुमेळ सावझड़ा लछण
दूहौ
गल अनियम उगणीस धुर, अन तुक सोळह आंण।
पालवणी चव तुक मिळै, दुमिल दुमेळ वखांण।।९७

अरथ
पैहली तुक मात्रा उगणीस बाकी री पनरैई तुकां मात्रा सोळै सोळै होय। तुकांत गुरु लघु रौ नेम नहीं। तुक च्यार रा मो’रा मिळै सौ पालवणी कहीजै नै दौ दौ तुक रा मोहरा मिळे सौ दुमेळ सावझड़ौ कहीजै ईंके मध्य अंतमेळ कियां-थकां यौ ही त्रंबकड़ौ कहीजै।

अथ पालवणी उदाहरण गीत
सिया बाहर समर दसाणण साझा,
व्रवी उछाहर दीन निवाजा।
दीठां थाहर कनक दराजा
रीझ खीज जाहर रघुराजा।।
साझण जुधां वीसभुज आसुर,
दीन निवाजण अनुज सहोदर।
बोलै साख त्रिकुट लिछमीबर,
उमंग रीसवाळौ अवधेस्वर।।
मथ रिण उदध मांण दसमथका,
आपण सरण भभीखण अथका।
सोब्रन गढ जस ओप समथका,
क्रपा कोप आखै दसरथका।।९८


९६. रसन-जिव्हा। रजवट-क्षत्रियत्व, शोर्य।
९७. -गुरु। -लघु। उगणीस-उन्नीस। धुर-प्रथम। अन-अन्य। आंण-ला, लाकर। चव-चार। दुमिळ-जहां दो चरण मिलते हों। मो’रा-तुकबंदी। मोहरा-तुकबंदी। ईंके-इसके। कियां-थकां-करने पर। यौ-यह।
९८. वाहर-रक्षा। समर-युद्ध। दसाणण-रावण। साझा-संहार किया, मारा। व्रवी-दे दी, दान दी। उछाहर-उमंग। निवाजा-प्रसन्न होकर। दीठां-देखने पर। थाहर-गढ़ किला। कनक-स्वर्ण, सोना। दराजा-महान, बड़ा। रीझ-प्रसन्नता। खीज-कोप। जाहर-जाहिर, प्रसिद्ध। साझण-मारने को, संहार करने को। वीसभुज-रावण। आसुर-असुर, राक्षस। दीन-गरीब। निवाजण-प्रसन्न होकर। अनुज-छोटा भाई। सहोदर-भाई। साख-साक्षी। त्रिकुट-लंका। लिछमीबर-विष्णु, श्रीरामचंद्र। अवधेस्वर-रामचंद्र। मथ-मंथन कर। रिण-युद्ध। उदध (उदधि)-सागर, समुद्र। मांण-मान, गर्व। दसमथका-रावणका। आपण-देने वाला। भभीखण-विभीषण। अथका-धन-दौलत का। सोब्रन-सुवर्ण, सोना। समथका-समर्थका। आखै-कहते हैं।

— 220 —

अथ गीत दुमेळ सावझड़ौ उदाहरण
गीत
जिण मुख जोवतां दुख प्राचत जावै।
थरू आाथ घर नवनिध थावै।।
नांम लियां जम-किंकर नासै।
सौ राघव संकर उर वासै।।
बीर जगत अखिया रघुबीरा।
साचै दिल भखिया सवरीरा।।
दुल्लभ देव रिखां बिरदाळौ।
बल्लभ जनां दासरथवाळौ।।
तिण रघुनाथ वहत मग तारी।
निज पग रजहूंता रिख नारी।।
भारथ खळ जाड़ा भानंखी।
धाड़ा एक बीर धानंखी।।
लंका मार दसाणण लेणौ।
दांन भभीखण सेवग देणौ।।
तोटौ केम रहै घर त्यांरै।
रांम धणी मोटौं सिर ज्यांरै।।९९


९९. प्राचत-पाप, दुष्कर्म। थरू-अटल, स्थिर। आथ (अर्थ)-धन-दौलत। थावै-होते हैं। जम-किंकर-यमराज का दूत। नासै-भग जाते हैं। वासै-निवास करता है, बसता है। भखिया-खाये, भक्षण किये। सवरीरा-शबरी के, भिल्लनी के। दुल्लभ-दुर्लभ। रिखां-ऋषियों। बिरदाळौ-बिरुदधारी। बल्लभ-प्यारा। जनां-भक्तों। दासरथवाळौ-दशरथ का पुत्र, श्रीरामचंद्र भगवान। तिण-उस। वहत-चलते हुए। मग-मार्ग। तारी-उद्धार किया। रजहूंता-धूलि से। रिख-ऋषि। भारथ-युद्ध। खळ-असुर। जाड़ा-जबड़ा। भानंखी-तोड़ने वाला। धाड़ा-आतंक, रौब, धन्य-धन्य। धानंखी-धनुषधारी। दसाणण-रावण। लेणौ-लेने वाला। भभीखण-विभीषण। सेवग-भक्त। देणौ-देने वाला। तोटौ-कमी, प्रभाव। त्यांरै-उनके। ज्यांरै-जिनके।

~~क्रमशः    

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