रघुवरजसप्रकास – किसनाजी आढ़ा

चारण किसनाजी आढ़ा विरचित
रघुवरजसप्रकास
संपादक : डॉ.सीताराम लालस
राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर
वि.सं. २०१७ (ई.सं. १९६०)
| कड़ी-95 | विषय: काछो, सवैयौ
| धारावाहिक श्रंखला – प्रत्येक मंगल, शुक्र एवं रविवार को प्रेषित
— 278 —
अथ गीत काछौ मात्रा समचरण छंद लछण
दूहा
धुर-अठार चवदह दुती, बारह तीजी बेस।
तीन कंठ धुरतुकतणा, मत चौमाळ मुणेस।।२१७
मुण बी तुक छाबीस मत, तीन कंठ तिण माह।
पूरब अरध तुकंतरै, अंत लघु आ राह।।२१८
तुक तीजी अठवीस मत, बेद छबीस बिचार।
त्रण त्रण कंठ तुकंत लघु, चौथीतणै उचार।।२१६
अन दूहां धुर तुकतणै, मत चाळीस मंडांण।
छावी बीजी चतुरथी, ती अठवीस प्रमाण।।२२०
अनुप्रास गुरु अंत अख, भण तुकंत लघु भाय।
जपियां आछौ रांम जस, काछौ गीत कहाय।।२२१
अरथ
काछा गीत तुकां च्यार दूहा प्रत जिण रै मात्रा प्रमांण। पै’ली तुक मात्रा चौमाळीस। कंठ तीन पै’ली तुक में होय। पहलौ कंठ तौ मात्रा अठारै ऊपर होवै। दूजो अनुप्रास मात्रा चवदै पर होवै। तीजौ अनुप्रास मात्रा बारै पर होवै। पै’ली तुक तीन अनुप्रास गुरुवंत होवै। मात्रा चौमाळीस होवै। तुक दूजी मात्रा छाईस होवै। अनुप्रास तीन। पै’ली कंठ मात्रा नव पर। दूजी कंठ मात्रा सात पर। तीजी कंठ मात्रा दस पर। तीसरौ पूरवारध नै उतरारध दोनों ही लघु अंत होय। तुक तीजी मात्रा अठावीस (अठाईस) तीन कंठ होय। चौथी तुक मात्रा छाईस तीन कंठ होय। यूं ही सारा गीत री अेक तुक प्रत कंठ तीन तीन गुरु कंठ होय। दूहा रै तुकंत लघु होय। और सारा ही गीत रा दूहां प्रत मात्रा प्रमाण कहां छां। पै’लो तुक मात्रा चाळीस होवै। दूजी तुक मात्रा छावीस होवै। तीजी तुक मात्रा अठावीस होवै। चौथी तुक मात्रा छावीस होवै। यूं तीन ही लारला दवाळां मात्रा होवै, जिण गीत नै काछौ कहीजै। चार ही तुकां मात्रा सम नहीं, जीसूं असम चरण छंद छै।
२१८. मुण-कह। बी-दूसरी। छाबीस-छब्बीस। तिण-उस। माह-में।
२१९. अठवीस-अठाईस। बेद-चार, चतुर्थ। छबीस-छब्बीस। त्रण-तीन। चौथीतणै-चौथी के।
२२०. अन-अन्य। दूहां-गीत छंद के चार चरणों के समूह का नाम। धुरतुकतणै-प्रथम चरण के। मंडांण-रख। छावी-छब्बीस। बीजी-दूसरी। ती-तीसरी। अठवीस-अठाईस।
२२१. अख-कह। यूं-ऐसे। गुरुवंत-जिसके अन्त में गुरु वर्ण हो। छाईस-छब्बीस।
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अथ गीत काछौ उदाहरण
गीत
पहपत रघुपती दत झौक पांणां।
वदत सुज कथ वेद-वांणां सधर पांणां साहणौ।
सारंग बांणां, जुध सझांणौ पण मुड़ांणां पूठ।।
सुखवर सुरांणां, गौ दुजांणां माघवांणां सुख मिळै।
मह जिग मंडांणां थांणथांणां दैत घांणां दूठ।।
धनक सायक भुजाधारी, तेण रज रिख नार तारी,
पायचारी पंथ में।
मिथळाविहारी स्रीमुरारी रमां नारी रंज।।
पह छत्रधारी मिळ अपारी मांग हारी मंडळी।
धनु जेणवारी रांवणारी जटाधारी भंज।।
पित आय सचित प्रकासे, वीर वट-पंच वासे,
असुर नासे आहवां।
भय मेट दासे विरद भासे, खळां त्रासे खूर।।
पड़ लंक पासे जंग जासे, अत प्रकासे आवधां।
ग्रीधां ढीगासे मांस ग्रासे, सुज हुलासे सूर।।
करण भूपत देव काजा, मांण रख गौदुज समाजा,
क्रीत पाजा दध कहै।
ते सुकव ताजा ब्रवण बाजा, गजां राजा गांम।।
छज ऊंच छाजा दिलदराजा, जेत वाजा जंगियं।
लख राख लाजा संत साजा, महाराजा रांम।।२२२
२२२. पहपत (पृथ्वीपति)-राजा। दत-दान। झौक-धन्य-धन्य। पांणां-हाथों। वदत-कहता है। सुज-वह। कथ-कथा। वेद-बांणां-वेदवाणी। सधर-दृढ़। साहणौ-धारण करने वाला। सारंग-विष्णु के धनुष का नाम। वांणां-तीरों, बाणों। सुरांणां-देवताओं। दुजांणां-ब्राह्मणों। माघवांणां-इन्द्र। मह-पृथ्वी, महान। जिग-यज्ञ। मंडांणां-रचा गया। थांणथांणां-स्थानों-स्थानों। दैत-दैत्य। घांणां-नाश। दूठ-दुष्ट। धनक-धनुष। सायक-बाण, तीर। तेण-उस। रज-धूलि। रिख-ऋषि। पायचारी-पदचारी। पंथ में-मार्ग में। रमां-शत्रुओं। रंज-दुख। पह-योहा। छत्रधारी-राजा। अपारी-असीम। मांण-मान, गर्व। मंडळी-समूह। धनु-धनुष। जेणवारी-जिस समय। जटाधारी-महादेव। भंज-तोड़ दिया। वट-पंच-पंचवटी। वासे-निवास किया। नासे-नाश किया। आहवां-युद्धों। खळां-राक्षसों। खूर-समूह। ढीगासे-ढेर, समूह। ग्रासे-भक्षण किया। हुलासे-प्रसन्न हुए। सूर-सूर्य। दुज-ब्राह्मण। क्रीत-कीर्ति। पाजा-पुल। दध-समुद्र, सागर। ब्रवण-देने को। बाजा-घोड़े। छज-शोभा। ऊंच-ऊंची। छाजा-शोभा देती है। दिलदराजा-उदार दिल, दातार।
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अथ गीत सवैयौ वरण छंद लछण
दूहौ
दोय सगण पद च्यार दख, पंचम चव सगणांण।
सावझड़ौ कह चरण ब्रती, जिकौ सवायौ जांण।।२२३
अरथ
सवायौ गीत वरण छंद होय जिणरै तुक पांच, दूहा अेक प्रत होय। तुक अेक प्रत सगण दोय आवै। अखिर छ आवै। इसी तुक च्यार होय। पांचमी तुकमें च्यार सगण गण पड़ै। अखिर बारा होय। पांच ही तुकांरा मोहरा मिळै, जिणसूं सावझड़ौ सवायौ गीत जांणजै।
अथ गीत सवैयौ उदाहरण
गीत
थिर बूध थटौ क्रतहीण कटौ, दुख ओघ दटौ मह पाप मटौ।
रिववंसतणौ रिव रांम रटौ।।
तन खेत तजौ मत सुद्ध मजौ, सुभ रीत सजौ वड संत वजौ।
भव तारण कौसळनंद भजौ।।
हिय लोभ हरौ धख पुन्य धरौ, क्रत ऊंच करौ सुरराज सरौ।
रघुनायक दायक मोख ररौ।।
मन भाव मढौ दुज सेव दढौ, गुरु वेण गढौ चित रंग चढौ।
पतसीत सप्रवीत सप्रवीत पढौ।।२२४
२२४. थिर-स्थिर, अटल। बूध-बुद्धि। थटौ-धारण करो। क्रतहीण-पाप। कटौ-काट डालो। ओघ-समूह। दटौ-नाश कर दो। मह-महान। मटौ-मिटा दो। रिववंसतणौ-सूर्यवंशका। रिव-सूर्य। खेत-क्षेत्र। तजौ-छोड़ दो। वजौ-कहे जाओ, प्रसिद्ध हो। भव-जन्म, संसार। कौसळनंद-श्री रामचंद्र भगवान। धख-इच्छा। क्रत ऊंच-उत्तम कार्य। सुरराज-इन्द्र। दुज-ब्राह्मण। दढौ-दृढ़ करो। पतसीत-श्री रामचन्द्र। सप्रवीत-पवित्र।
~~क्रमशः
विषय – सूची
क्र.सं. | विषय | पृष्ट | क्र.सं. | विषय | पृष्ट | |
७९ | रोळा | 50 | सरभ | 64 | ||
८० | बथुवा | 50 | सैन | 64 | ||
८१ | काव्य | 50 | मंडूक | 64 | ||
८२ | मात्रा उपछंद वरणण | 51 | मरकट | 65 | ||
८३ | हरि गीत | 51 | करभ | 65 | ||
८४ | रांम गीत | 51 | नर | 65 | ||
८५ | सवैइया | 52 | मराळ | 65 | ||
८६ | मरहट्टा | 52 | मदकळ | 65 | ||
८७ | चतुर पदी तथा रुचिरा | 52 | पयोधर | 66 | ||
८८ | धत्ता | 53 | चळ | 66 | ||
८९ | धत्तानंद | 53 | वांनर | 66 | ||
९० | त्रिभंगी | 53 | त्रिकळ | 66 | ||
९१ | खट सद्रस्य छंद लछण | 53 | मच्छ | 66 | ||
९२ | पदमावती | 54 | कछप | 67 | ||
९३ | दंडकळ | 54 | सादूळ | 67 | ||
९४ | दुमिळा | 54 | अहिबर | 67 | ||
९५ | लीलावती | 55 | बाघ | 67 | ||
९६ | जनहरण | 55 | विडाळ | 68 | ||
९७ | वरवीर | 55 | सुनक | 68 | ||
९८ | झूलणा | 56 | ऊंदर | 68 | ||
९९ | उपझूलणा | 57 | सरप | 68 | ||
१०० | मदन हरा | 57 | चरणा | 69 | ||
१०१ | खंज | 58 | पंचा | 69 | ||
१०२ | गगनागा | 58 | नंदा दूहा तथा बरवै छंद | 69 | ||
१०३ | द्रूपदी | 59 | मोहणी लछण | 69 | ||
१०४ | उद्धत | 59 | चौटियो | 70 | ||
१०५ | माळा | 60 | १०९ | दूहा कौ नांम काढण विध | 70 | |
१०६ | पंचवदन | 61 | ११० | चूळियाळा छंद | 71 | |
१०७ | मात्रा असम चरण छंद वरणण | 61 | १११ | निस्रेणका | 71 | |
१०८ | दोहा | 62 | ११२ | चौबोला | 71 | |
अन्य लछण दूहा | 62 | ११३ | ककुभा | 71 | ||
सांकळियौ दूहौ | 62 | ११४ | सिख | 72 | ||
तूंबेरौ दूहौ | 63 | ११५ | रस उल्लाला | 72 | ||
भ्रमर | 64 | ११६ | रस उल्लाला रा भेद | 72 | ||
भ्रांमर | 64 | ११७ | माहा छंद | 72 |
Jai Mata ji ki sa
Me dingal bhasha shikhna chati hu. Aap log hamari sahayta karne ki kirpa kare