रैणायर दुरगो रतन!

सामधरम रो सेहरो, मातभोम रो मांण।
आसै रै घर ऊगियो, भलहल़ दुरगो भांण।।1
आभ मरूधर आस घर, ऊगो अरक उजास।
जस किरणां फैली जगत, दाटक दुरगादास।।2
नर-समंद मुरधर नमो, इल़ पर बात अतोल।
रैणायर दुरगो रतन, आसै घरै अमोल।।3
चनण तर दुरगो चवां, सुज धर पसर सुवास।
निमल़ कियो घर नींब रो, वसु साल़वै वास।।4
कमध साल़वै कीरती, भल़हल़ आभै भास।
उदय हुवो घर आसरै, दाटक दुरगादास।।5
असमर ले अड़ियो अडर, आडो अतियाचार।
अनड़ महाभड़ आस रै, मंडियो मिनखाचार।।6
स्वाभिमान उर में सधर, नह सहियो अनियाव।
पह दीधो बल़ पाण रै, तण मूंछां रै ताव।।7
जिण दिन जोवो जोधपुर, मही सिरै श्रीमंत।
गाढधारी गजसाह रो, जोर तपै जसवंत।।8
दीठो आहँस दुरग रो, जद लखियो जसराज।
मुरधर री रखसी मुदै, लसकर आयां लाज।।9
दीठो जसवँत दुरग नै, दे नीं हीणा दाव।
मरद भिड़्यां ओ मोड़सी, पाछा पिसणां पाव।।10
धरम रुखाल़ण धरण पत, भरण साहसी भाव।
दुरगो निसदिन दीपियो, अरियां पर अहराव।।11
सूर बियां साहां सरण, फिटल़ गया ले फोट।
साहां नै दुरगै सरण, अणभै रखिया ओट।।12
ग्रहण लग्यो मुरधर घरै, जोखमियो जसराज।
ओरँग राहू आवियो, उरड़ अठै अगराज।।13
ओरँग रै डर सूं अवर, सबल़ बिया सरदार।
उणपुल़ उठियो आस रो, खा अरियां पर खार।।14
मुगल घड़ां खंडण मुदै, परजा रै पख पूर,
अहरनिसा अस ऊपरै, सबल़ रह्यो चढ सूर।।15
अवरां सूं अवरंग ऊ, सज धज सदा सुरंग।
दिल सुणतो जद दुरग बल, बदन हुतो बदरँग।।16
निकलँक असमर निडरपण, निकलँक राखण नाम।
अकलँक रहियो आस रो, करनै निकलँक काम।।17
आद घराणो ऊजल़ो, राखी ऊजल़ रीत।
दिल ऊजल़ रखियो दुरग, पिंडां ऊजल़ प्रीत।।18
मुरधर रो रखियो मरट, निरमल़ राखी नीत।
सेवक रहियो सांम रो, अधपत थाप अजीत।।19
जन पख में जुपियो जबर, मुरधर रो बण मीत।
सुधमन कीनी सेवना, अधपत थाप अजीत।।20
मातभोम जस मंडियो, उचर अहरनिस ओम।
चिगदां रो बल़ चूरनै, कीधी ऊजल़ कोम।।21
रह्यो नेक नित एक रँग, टणक रखी नित टेक।
दाटक दुरगादास रो, दुनी जपै जस देख।।22
क्रतघुणी कितरा खप्या, नमकहरामी हेर।
दुनि जस दुरगादास री, फरक रही धज फेर।।23
क्षिप्रा धरती क्षत्रियवट, तीरथ हर मन ताप।
मुरधरिया दरसण मही, पिंड करै निसपाप।।24
मातभोम कज मर मिटै, हरजन देय हुलास।
माई फिर जिणजै मुदै, दुणियर दुरगादास।।25
~~गिरधरदान रतनू “दासोड़ी”