गीता रौ राजस्थानी में भावानुवाद – कवि वीरेंद्र लखावत

गीता रौ राजस्थानी में भावानुवाद
रचना: कवि वीरेंद्र लखावत
सन्दर्भ पोथी: श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी
(ब्रह्मलीन स्वामी श्री रामसुखदास जी महाराज प्रणीत)
।।अनुक्रमणिका।।
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पाँचवों अध्याय – कर्मसंन्यासयोगः
छटौ अध्याय – आत्मसंयमयोगः
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आठवौ अध्याय – अक्षरब्रह्मयोगः
नवमो अध्याय – राजविद्याराजगुह्ययोगः
दसमो अध्याय – विभूतियोगः
इग्यारवौ अध्याय – विश्वरूपदर्शनयोगः
बारहवौ अध्याय – भक्तियोगः
तेरहवौ अध्याय – क्षेत्रक्षेत्रज्ञविभागयोगः
चवदवौ अध्याय – गुणत्रयविभागयोगः
पन्द्रहवौ अध्याय – पुरुषोत्तमयोगः
सोळहवौ अध्याय – दैवासुरसम्पद्विभागयोगः
सत्तरहवौ अध्याय – श्रद्धात्रयविभागयोगः
अठारहवौ अध्याय – मोक्षसंन्यासयोगः
बहोत खूब मां भारती का ये उच्चतम उपनिषद स्वरूप पूजनीय ग्रंथ मा गिताजी का मरु भाषा में चौपाई छंद बंधारण में भाशांतर करने के लिए आप को वंदन है !
आदि अनादि से चारण संस्कृति के उपासक रहे है इसका प्रमाण आपने ये पवित्र ग्रंथ रूपांतर करके किया है इससे और कोई प्रमाण नहीं हो सकता
ततो रावण निताया: सिताया: शत्रुकर्षण:
ईयेश पद्मन्वेष्टुम “” चारणा चरिते पथि “”
वाल्मिकी रामायण सुंदरकांड सर्ग 1 श्लोक 1
जय मां करणीजी
मैं रणजीतसिंह सौदा इडर गुजरात ♨️️
शानदार काम किया है हुकम वीरेन्द्र सा लखावत एवं मनोज सा मोलकी का बहुत बहुत आभार साधुवाद हुकम ।