राखण रीत पुरसोतम राम

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गीत-वेलियो
लंका जाय पूगो लंबहाथां,
निडर निसंकां नामी नूर।
दसरथ सुतन दिया रण डंका,
सधर सुटंका धानख सूर।।1

अड़ियो काज धरम अतुलीबल़,
भिड़़ियो असुरां गेह भुजाल़।
छिड़ियो भुज रामण रा छांगण
आहुड़ियो वड वंश उजाल़।।2

वानर रींछां सेन वडाल़ा,
रढियाल़ा ले आयो रूठ।
रामण वाल़ा सीस रोल़िया,
दैत कराल़ा च़ीथै दूठ।।3

लंठापै खोसी हद लंका,
पोसी भगत विभीखण पूर।
दँडियो रामण जैड़ो दोसी,
जोसी अंकां मेट जरूर।।4

मारग नीत अनीती मोचण,
राखण रीत पुरसोतम राम।
सीत तणो स्वाभिमान सचाल़ा,
धर हद जीत रामण रा धाम।।5

खर-दूसण खँडिया खल़ खागां,
धूंसण किता निसाचर धांस।
रघुकुल़ रा भूसण रँग रामड़,
बाली दूसण रूठ विणास।।6

सतधर नेम रीझ सबरी रै,
समरथ हुवो हेम सजोर।
जाति ऐम पूछी नह जाणक
वहा प्रेम रा खाया बोर।।7

उ रिखनार पथर दिल अवनी,
सार अहल्या लीनी साम।
दया धार देखी निज दृगां,
पद रज झार उधारी राम।।8

मेघ कुंभै सा मार्या मांटी,
सार्या धर रा कज सधीर।
धणियप धरी किता निज धार्या,
बूड़त जिकै उबार्या वीर।।9

कीरत अखी रघु कुल़नायक,
जसगायक रो लागै जीव
पायक गीध सरण तव पावां,
सुखदायक ले नाम सदीव।

~~गिरधरदान रतनू “दासोड़ी”

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