रल़ियाणो राजस्थान जठै

रंग बिरंगी धरा सुरंगी,
जंगी है नर-नार जठै।
सदियां सूं न्यारो निरवाल़ो, रल़ियाणो राजस्थान जठै।।

रण-हाट मंडी हर आंगणियै,
कण-कण में जौहर रचिया है।
ताती वै पल़की तरवारां,
भड़ वीरभद्र सा नचिया है।
जुग-जुग सूं रैयी रीत अठै,
वचनां पर जीवण आपी है।
परणै सूं मरणो शुभ मानै,
सूरां धर रीतां थापी है।
जण-जण रै हिवड़ै जोश रैयो,
रजकण रै सारू वै लड़िया।
वीरत री राखी धर बातां,
कीरत रै सारू कट पड़िया।
मरदाई मरदां री सांभल़,
उर-उर में संचरै हूंस उठै।
सदियां सूं न्यारो निरवाल़ो, रल़ियाणो राजस्थान जठै।।

जद तक देख धरा पर,
अविचल़ ऊभोड़ो आबू है।
मेट्यां ही प्रभता नीं मिटसी,
प्रणपाल़ अमर वो पाबू है।
गायां री वाहर जग जाहर,
बणियो जिम बातां राखी है।
तेजै रा रहसी गीत अमर,
सूरज अर चंदो साखी है।
रजपूतणियां कारण सतवट रै,
साकां सथ मूई झाल़ां सूं।
निकलंक रही जद धरणी,
उजल़ी आ जौहर ज्वाल़ा सूं।
इण धरती री कामण वा है,
कायर सूं हथल़ेवो नीं जोड़्यो।
इणनै तो प्यारो वो दुलवो,
मरणै डर मुखड़ो नीं मोड़्यो।
बाल़क ही देखो जुध भोमी,
हर महादेव रा बोल रटै।
सदियां सूं न्यारो निरवाल़ो, रल़ियाणो राजस्थान जठै।।

पातल रै जैड़ा पणधारी,
भम जावै देखो पा’ड़ां में।
आजादी कारण आंटीला,
रम जावै देखो झाड़ां में।
स्वामी रै कारण दुरगै सा,
अणियां पर रोटी सेकणिया।
सोया नीं सुख री सेज जरा,
अरियां री छाती छेकणिया।
जैमल अर पत्ता जैड़ां रा,
मुगल़ां वै देख्या हाथ अठै।
सातल अर सोम सरीखा वां,
भिड़ रण में राखी बात अठै।
पन्ना रै चंदन री सोरम,
पसर्योड़ी सारी अवन उठै।
सदियां सूं न्यारो निरवाल़ो, रल़ियाणो राजस्थान जठै।।

रूंखां रै सारू सिर देवण,
सध्धरियो मारग सतवट रो।
इमरती वरियो मरण तिको,
करियो धिन कारज रजवट रो।
मुरधर रै कारण सुख-आसण,
जसवंत री लाडी तज दीनो।
जसमादे हाडी जस खाटण,
वैर्यां नै दाटण जंग कीनो।
रजपूती राखी धर ऊपर,
भगती रै मारग अडग जमी।
मतवाल़ी मीरां माधव री,
वीणा ले भजनां राग रमी।
रीझ्यो जिण खीचड़ सावरियो,
करमा री भगती पांण अठै।
लूख्यो ही खायो ले लादां,
जाटण रो राखण माण जठै।
निष्पापी नै निश्छल़ नेही ऐ,
वासी है थल़ियां भाल़ जठै।
सदियां सूं न्यारो निरवाल़ो, रल़ियाणो राजस्थान जठै।।

काल़ोड़ी कांठल़ मंडतां ई,
ऊगैरै तेजो हल़धरिया।
बादल़िया वरसै जल़धारा,
भर जावै पालर सरवरिया।
रूपाल़ी धरती रंगरूड़ी,
बण जावै सांप्रत सतरंगी।
बाजै वा बंसी आणंद री,
ऐवड़ में नाचै रल़ संगी।
रणकारो लागै उमंग रो,
भणतां वै भीणत खेतां में।
सुख-दुख रा सीरी साचोड़ा,
कांधो दे जुपज्या हेतां में।
सावण वो आवै सुरंगोड़ो,
तीजणियां करती मनरल़ियां।
रल़ियांणा भाखर भूरोड़ा,
भादूड़ै हरियल़ व्है थल़ियां।
ऊछरती गायां रंभाती,
माखण सूं भरिया माट जठै।
सदियां सूं न्यारो निरवाल़ो, रल़ियाणो राजस्थान जठै।।

आ अडग हेमाल़ै ज्यूं आडावल़ री,
महिमा दुनिया में न्यारी है।
चंबल़ माही लूणी सिरखी,
त्रिवेणी हद प्यारी है।
ऐ फोग-खेजड़ा अबल़ां भीरू,
बिखमी नै नित बांटणिया।
मुरधर रै वास्यां रै हित में,
काल़ां रा दुखड़ा दाटणिया।
ऊभा ऐ कैर कूमटा थिरचक,
आंधी सूं अड़ जूंझ रैया।
लूवां री लहर रह नित हरिया,
प्रेरक ऐ थल़ियां सूझ रैया।
ऊभा ऐ धोरा डीगोड़ा,
अंबर सूं भरता बाथां ऐ।
इण रेत रच्यो इतिहास अमर,
गौरव री गूंजै बातां ऐ।
रल़ियांणी परकत इण धरती,
मनहरणी लागै रात अठै।
सदियां सूं न्यारो निरवाल़ो, रल़ियाणो राजस्थान जठै।।

~~गिरधरदान रतनू “दासोड़ी”

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