रांमदेवजी रा छंद

मेरे जीसा (दादोसा गणेशदानजी) रांमदेवजी के परमभक्त थे। उनके नियम था कि वे हमेशा करनीजी के मंदिर व बाबै रे मंदिरिये दोनों समय जाया करते थे। वृद्धावस्था में उन्होंने आंखों की कारी करवाई थी लेकिन क्री (परहेज) न रखने से एक आंख खराब हो गई। तब उन्होंने बाबा के कुछ दोहे सोरठे उपालंभ स्वरूप बनाए थे-
दिन में फेरा दोय, डरते आवूं देवरै।
कियो न कारज कोय, अवतारी अजमाल रा।।
दूजां नै दी आंखियां, बसू सुणी म्हैं बोत।
अजमल रा मो आंखियां, जबर हरी तैं जोत।।
आंख्यां सूं आंधो कियो, खिमै लोयणां खाज।
अवतारी अजमाल रा, (तैं) मजो कियो म्हाराज।।
मैं उन दिनों बी एड कर रहा था। तब उनके कहने से एक नाराच छंद लिखा। यह छंद छपा हुआ है लेकिन नरपतसा आशिया के बार बार आदेशित करने पर आपसे साझा कर रहा हूं। विद्यार्थी जीवन की रचना है। त्रुटियों के लिए अग्रिम क्षमायाचना के साथ नरपतसा की सेवामें-
।।रांमदेवजी रा छंद।।
।।दूहा।।
सुख करण सुत सगत रो, दरण विघन दुंधाल़।
पढूं सुजस बड पीर रो, सांप उगत सूंडाल़।।1
कोड़ रटण अजमल करी, इधक अपण अनंद।
प्रगट्यो धिन पिछम धरा, घणनांमी गोमंद।।2
विरदाल़ो नित वाहरू, आप रुखाल़ो एक।
सांम सचाल़ो सेवगां, पीर वडाल़ो पेख।।3
रटै धीर धर रांमदे, रहै वीर रिछपाल़।
भीर अमीणी भाल़णो, पीर सनातन पाल़।।4
।।छंद-नाराच।।
मुदै मरू ज देश मंझ, हार संत हालियो।
दयाल़धीस द्वारका, निपूत भक्त नाल़ियो।
अखीज वीणती अजै ज, राज गेह रम्मणा।
पिछम्म धांम रांम पीर, सांम भीर सम्भणा।।1
अगै हुवो अजोधियाज, ईस ऐम आखियो।
बण्योज नंद बाल़को ज, देव बोल दाखियो।
हमेज वक्त हालती, तवाज पूत तम्मणा।
पिछम्म धांम रांम पीर, सांम भीर संभणा।।2
अहो अजैजमाल नूं, भलां ज तात भाल़ियो।
घरां थयोज गीगलो वचन्न पूर पाल़ियो।
उरां उमंग मात रै ज, ईख लाल अम्मणा।
पिछम्म धांम रांम पीर, सांम भीर संभणा।।3
तुंहीज मृत्यलोक में, त्रिलोकनाथ दीखियो।
तरां ज मात तातरू, सचेल आंख ईखियो।
रह्यो ज बाल़ रूप में, विकट्ट खेल रम्मणा
पिछम्म धांम रांम पीर, सांम भीर संभणा।।4
सुजाव दस्सरत्थ रैज, सीस दस्स साल़ियो।
कहूं ज कांन कंस रू, कराल़ नाग काल़ियो।
दुनीज एम रांमदे, भणूंज भैर दम्मणा।
पिछम्म धांम रांम पीर, सांम भीर संभणा।।5
महाधिराज माम पाज, लाज पाव लंगरं।
रुठै ज दाझ लंक राज, काज ढा’ज कंगरं।
सबै समाज सुक्ख साज, सीत नाज संपणा।
पिछम्म धांम रांम पीर, सांम भीर संभणा।।5
डुबंत नाव नीर मेज, साह पूत डाडियो।
क्रिपाल़ वो पसार पांण, जांण दास काढियो।
सठां उथाप थाप संत, तो अनंत खम्मणा।
पिछम्म धांम रांम पीर, सांम भीर संभणा।।7
गुणी गहीर सो सधीर, गान ध्यान गावियो।
हुवो सभीर हम्मगीर, भो अधीर आवियो।
जल़ाय जग्ग जाल़नै, उजाल़ पत्थ अप्पणा।।
पिछम्म धांम रांम पीर, सांम भीर संभणा।।8
तमांम फंद तोड़दे, अमांम, मांम मंड दे।
सदैव बुद्ध देय शुद्ध, दुष्ट जुद्ध दंड दे।
निपूत पूत नेह सूं, सजोत अंध संपणा।
पिछम्म धांम रांम पीर, सांम भीर संभणा।।9
किया कितां ज काज तै, सकोज कूण सार लै।
पढंत थाक धारभोम पेख नाह पार ले।
तवंत केम तुच्छ बुद्ध, वाह जस्स तम्मणा
पिछम्म धांम रांम पीर, सांम भीर संभणा।।10
कटे कल़ेस रिप्प रेस, नेस सुक्ख नांम सूं।
सजै हमेस अग्गरेस, सिघ्घ काज सांम सूं।
विलै विपत्त सांभ सत्त, थित्थ हत्थ थम्मणा।
पिछम्म धांम रांम पीर, सांम भीर संभणा।।11
सचै ज भाव चाव सूं, जदै धणी ज तो जपै।
करै ज कांन कीरती, अभैज दांन तूं अपै।
रिदै विसास राख तोह, नांम गीध नम्मणा।।
पिछम्म धांम रांम पीर, सांम भीर संभणा।।12
।।छप्पय।।
अलख अजोणीनाथ, नाथ तुंही नारायण।
जगत नमै जगनाथ, साथ सह काज सारायण।
भिड़ै तुंही भाराथ, पाथ पखो हद पाल़ण।
सांम तुंही सुखदात, अनंत दुखदात उथाल़ण।
ब्रजईस तुंही वसुदेव सुत, अजमल घर तूं आवियो।
बा ही सूरत मन में बसा, गिरधर तो गुण गावियो।।
~~गिरधरदान रतनू “दासोड़ी”