रंग गंगा रै पाणी नैं! रंग ईसर री ढांणी नैं

इण धरा रै कण – कण में वीरता रा कणूका हा, आ बात चालै तो इण रै लारै केई बातां गिणाई जा सकै। अठै खींपां रै खोलड़ां में रैवण वाल़ा गढां सूं टकरां लेवण में आगै रैवता। आखड़ी झाली तो उणनैं फुरणां में वायरो फरुकियो जितै पाल़ण रो जतन करता।
ऐड़ो ई एक आखड़ीधारी वीर हो ईसर मोयल (मोहिल) सफा घर धणी। मारवाड़ रै बिदियाद गांम रो वासी। कनै फगत एक खेत री जागीर। उठै ई आपरी ढांणी जचाय रैवै। आखड़ी आ कै उणनैं गायां रै हरण रो ठाह लागज्या तो वो गायां पाछी लायां बिनां पाणी नीं पीवै। गायां भलांई कठै री होवो, किणरी होवो जे उण गायां नैं हरण कर्योड़ी देखली तो वाहर चढैलो ई।
बिदियाद रै कनै मीठड़ी गांम, जठै ईसर री बैन परणायोड़ी। उणरो बैनोई मीठड़ी ठाकर जालमसिंह रै मूंछ रो माल।
एक दिन ठाकर जालमसिंह इणनैं कैयो कै “परसूं आपां बिदियाद री गायां रो धाड़ो करांला।”
ईसर रो बैनोई सांझ रो घरै आयो अर आ बात आपरी घरवाल़ी नैं सुणाई। सुणतां वा तो अजेज रोवण लागी। घर धणी पूछियो “बडभागण इण में रोवण री कांई बात है? छत्री तो ओ काम करता आया है!”
उण कैयो कै “म्है तो इण खातर रोय रैयी हूं कै मीठड़ी रै मारग माथै म्हारै भाई ईसर री ढांणी है! अर ढांणी रै आगैकर कोई गायां चोर र ले ज्यावै ! संभव नीं है। गायां रै कारणै कै तो बो खुद मरै कै सांमलै नै मारै। का तो आप नीं बचोला का म्हारो भाई! म्है इण खातर रोय रैयी हूं।”
ईसर रै बैनोई आ बात ठाकर नैं बताई तो ठाकुर बोलिया “नीं रै !मोत रै मूंडै कुण आवै? पछै बापड़ो ईसर तो दिन तोड़ै। आपां सवारै ई धाड़ो करांला। देखां ईसर कदैक आवै?”
बिदियाद री गायां घेरीजी। लारै कोई नीं चढियो। ईसर रै खेत में गायां रो बघेलो बड़ियो। ईसर पालो बाढै हो। उण देखियो गायां अर लारै अपरोगा घुड़सवार ! घुड़सवारां साथै ईसर रो बैनोई ई ! बो समझग्यो। झाड़बढ अर बैई लियां ई गायां रै आडो आय हाकल करी कै “अजै ई कांकड़ में ईसर जीवै है! अर ईसर जीवतां कोई गायां चोर र ले ज्यावै ! धूड़ है ईसर रै माजनै में।”
ईसर रै बैनोई कैयो “ईसरजी गैलायां मत करो। किणरी गवरी किणरो ऩदो! थै थांरो पालो बाढो अर पेट भरो। ओ काम म्हारो है। इयां नीं रंजो त़ो आधी गायां थांरी अर आधी म्हांरी।”
ईसर केयो “हूं जितै जीवतो हूं जितै कांकड़ म्हांसूं किणी नैं गायां नीं चोरण दूं। म्हारै मरियां गायां आगै जावैली। ईसर नीं मानियो। जोरदार लड़ाई होई। उठीनै तरवारां अर ढालां तो ईसर कनै फगत बैई अर झाड़बढ। राटक बाजी। ईसर मीठड़ी वाल़ां नैं गायां नीं ले जावण दी।
जेड़ो कै केताणो है कै जोधार हारै अर घण जीतै पण अठै जोधार जीतियो अर घण हारिया। ईसर गायां री रक्षार्थ पुरजो पुरजो होय वीरगति वरी। कवियां गीत रचिया। एक गीत घणो चावो है। पैलो अर छेहलो दूहालो दाखलै सरूप। इण आखरां सूं ईसर री वंदनीय वीरत री बात आपां रै समझ में आ ज्यावैला-
मांटीपणो जाणता मोहिल, जालम सार बहंतां जड्डो।
डारण आय ऊभो देदावत, ईसरो सरदारां अड्डो।।
पड़ियां पछै धेन ली पैला, ऊभां पगां न दीधी एक।
चवतां खुरी धेन धर चाली, टूक टूक ऊपर पग टेक।।
सुखजी सिंढायच रै एक कवित्त री अंतिम ओल़्यां-
वीतै हजारों युग चारन विसारै नही
ईसर उदार भूप मोहिल को मरबो।।
ऐड़ा वीर जिण ढांणी में जलमै बा ढांणी पावन गंगा सूं मींढिजै। नमन
~~गिरधर दान रतनू “दासोडी”