रंग मा पेमां रंग!!

बीकानेर रो दासोड़ी गांम जीवाणंदजी/ जीवराजजी/ जीयोजी रतनू नै बीकानेर राव कल्याणमलजी दियो। बात चालै कै जद आधै बीकानेर माथै जोधपुर रा राव मालदेवजी आपरी क्रूरता रै पाण कब्जो कर लियो। गढ में उणां आपरा खास मर्जीदान कूंपा मेहराजोत नै बैठा दिया जद कल्याणमलजी अठीनै-उठीनै इणां नै काढण खातर फिरै हा। जोग सूं आपरै कीं खास आदम्यां साथै बाप रै पासैकर निकल़ै हा जद बधाऊड़ा गांम में इणांनै जीवराजजी आसकरणोत गोठ करी। जीवराजजी रो व्यक्तित्व, वाकपटुता, मेहमाननवाजी आद सूं प्रभावित हुय’र कल्याणमलजी कह्यो कै- “बाजीसा आप तो बीकानेर म्हारै गुढै ई बसो! म्हैं आपनै उठै ई गांम देऊंला। आप आवजो।”
जद शेरशाह सूरि मारवाड़ माथै हमलो कियो उण बखत बीकानेर, जोधपुरियां सूं छूटग्यो। कल्याणमलजी पाछा बीकानेर माथै काबिज हुया। जीवराजजी बीकानेर आया। रावजी उणांनै करमीसर गांम इनायत कियो। वै बधाऊड़ा गया अर आपरै घरवाल़ां नै आ बात बताई। उणांरै किणी बूढै-बडेरै कह्यो कै – “भाई जीया! आपांरै वास्तै करमीसर ठीक नीं है क्यूंकै शहर रै एकदम नजीक है। आपांरी कांकड़ में रावल़ो धन-वित्त खुलो चरसी। आपां पालां कै तगड़ांला तो कजियो हुसी। बेगारां ई घात सकै अर आपां नीं काढांला तो मन मुटाव बधसी। फालतू में तेलिया-जमर करणा पड़ सकै। सो ओ गांम पाछो दे आ।”
जीवराजजी आया अर रावजी नै अरज करी कै – “म्है ओ गांम नीं राखूं। म्है बधाऊड़ा में ई ठीक हूं।” आ सुण’र रावजी कह्यो कै- “आ कीकर हो सकै? वचन अफूठा नीं फुरै। आप कैवो सो गांम देऊं!!”
उण बखत उठै धरनोक ठाकर भाटी धनराजजी खिंया ई विराजता। उणां रावजी नै कह्यो- हुकम ! हूं भाटी अर ऐ रतनू। म्है एक-दूजै सूं राजी। जीवराजजी नै म्हारै गांम खींदासर रै पाखती आयो गांम दासोड़ी दे दिरावो।”
रावजी उणी बखत लाखपसाव, घोड़ै री सवारी रै साथै दासोड़ी गांम जीवराजजी नै इनायत कियो-
दूथी आ दरबार, विगत कथ मांड बताई
सांसण सहर नजीक, ऐह गल्ल दाय न आई।
धिन जादम धनपत्त, कलै सूं अरजी कीनी।
खन्नै खिंया रै खास, दत्त दासोड़ी दीनी
पसाव लाख चढणै पमंग, लहर करी नै जस लियो।
जैत रै नंद जिवराज नै, कर कूरब मोटो कियो।।
जीवराजजी आपरी बखत रा प्रभावशील अर दातार मिनख हा। किणी कवि रै आखरां में-
जग जीवाणंद जोर, अत्थ बत्थां दे आसरो।
तर-तर बधतै तोर, दासोड़ी रतनू दिपै।।
इणांरै च्यार बेटा हुया- राघवजी, झांझणजी, हेमोजी अर चांदोजी। हेमोजी अर चांदोजी रै वंश नीं चालियो। राघवजी रै तीन बेटा हुया- बलूजी, अमरोजी अर डूंगरसी। डूंगरसी रो वंश नीं चालियो। बलूजी दो ब्याव किया। पैली ठाकराणी सूं सूरदासजी, सुंदरदासजी अर दलपतजी।
कुजोग सूं बलूजी री पैली ठकराणी रो सुरगवास हुयग्यो तो उणां दूजो ब्याव देशनोक कियो। आं ठकराणी सूं दूदोजी हुया।
बलूजी नामी कवि अर बोलता पुरूष हा। इणांनै जोधपुर महाराजा अजीतसिंह जी वि.सं.1756 में अरटिया बास उर्फ समदड़ा नामक गांम दियो जको दासोड़ी री कांकड़ लागतो गांम हो तो खींदासर कानी सूं गीगाल़ै रो बाढ मिलियो। बलूजी रै विषय में पांचैजी मोतीसर रो एक दूहो घणो चावो है-
बलू थारा बोल, साखां सौ वीसां सिरै।
सारी बात सतोल, रतन जड़ाऊ राघवत।।
बात चालै कै उण दिनां दासोड़ी में एक मात्र कुबिया नाम रो कुओ हो। पाणी ऐड़ो है कै जे चिड़कली ई टांच डूबोदे तो उणनै आपरो हंसलो छोडणो पड़ै। यानी खारो अकंदर पाणी। बिराईजणो(ऐसा पानी जिसे ज्यादा प्यासा पशु पी ले तो आफरा आ जाए) भल़ै न्यारो! इण संबंध में एक लोक दूहो चावो है-
रावल़ी बरत, खंगारजी रो कोस।
निकल़ म्हारा कुबिया, पाबूजी रो दोस।।
सो गांम री रैयत पाणी पाखती रै गांम खजोड़ा सूं लावती। एकदिन एक कुंभारी आपरै छ-सात महीणां रै टाबर नै झूंपड़ै में सुवाण’र खजोड़ै पाणी लावण गी। वा पाणी लेर आई अर आपरी बाखल़ में बड़ती आखड़र पड़ी सो घड़ो फूटग्यो। दो कोस गाबड़ सीधी राखर मंसां पाणी लाई वो ई ढुल़ग्यो। रोवणकाल़ी हुयगी। मन काठो करर आपरै झूंपड़ै रो आडो खोलियो तो चितबगनी हुयगी। क्यूंकै उण रो वो टाबरियो चूलै में पड़र बल़’र मरग्यो। कुंभारी नै रीस आई उण आपरै धणी नै कह्यो कै- “ऐड़ै पापियै गांम में एक पल ई नीं रैवूं। जठै पाणी ई पीवण नै नीं उठै बासो कांई कामरो?”
जिकण गांम में च्यार नीं, वणिक वैद अर न्याय।
बसबो तो अल़गो रयो, रात रयो नीं जाय।।
आ दुखद बात जद दूदैजी री मा नै ठाह पड़ी तो वै उण कुंभार रै घरै गया। कुंभारी नै कह्यो- “बेटा तनै ई दुख रै विजोग तो गांम छोडण नीं दूं अर जे म्हांरै सूं उथपर जावै तो ओ पड़ियो मारग।”
“आ कांई कैवो माजी आप? आपरै कारणै तो अठै बैठां ई हां ! बाकी अठै किसो सुख है?” कुंभारी कह्यो तो पाछो माजी कह्यो- “हूं ई एक मा हूं। मा री पीड़ समझूं। तूं तीन दिन म्हारै कैणै सूं अठै रुक। जे तीन दिनां में अठै पाणी री व्यवस्था नीं हुसी तो हूं ई थांरै भेल़ी हालसूं।”
पैला लोगां नै एक-दूजै री बात माथै पतियारो हो। पछै आ बात उठै री धणियाणी कैयी सो कुंभारी कह्यो कै- “माजी तीन दिन थांरै कैणै सूं हियो हेठो करूं, बाकी ऐड़ै निनामै गांम में एक पल ई नीं ठंभू।”
बात चालै कै-माजी एक केलकियै(किशोर खेजड़ी) रै पाखती करनीजी रो दीयो करर धरणै माथै बैठग्या। लोगां कह्यो कै माजी इयां धरणो दियां पाणी कठै? मत भूखां मरो। पण माजी अणसुणी करी अर करनीजी माथै भरोसो राखियो। तीसरै दिन उणांनै सुपनै में सुणीज्यो कै ई केलकियै सूं छ-सात पाऊंडा दिखण में पांच-छ पुरस खोदा!! देवल़ी नीकल़सी अर नीचै सागरी नाल़ है। कुए रो नाम करनीसर राख दिया। पाणी थोड़ो भल़भल़ो(फीका) हुसी पण धैचाल़ (अधिक) हुसी।
माजी सुपनै री बात बताय उण जागा खोदायो तो सागरी नाल़ निकल़ी। वो कुओ आज ई करनीजी रै मंदिर कनै मौजूद इण बात रो साखीधर है-
गाया दूदै गीत, राज जिणरी लज राखी।
करी फतै करनल, साच जिणरो वंश साखी।
जामण जिणरी जोय, दीह मुर धरणो दीनो।
जद तूठी जगतंब, कूप गंग जोड़ै कीनो।
दासोडी थान थळवट दिपै, पह तोरै परताप सूं।
करनला मात गिरधर कहै, जुग कर जोड़े जाप सूं।।
आं बलूजी रै बेटे दलपतजी री वंश परंपरा में गुमानदानजी हुया। गुमानदानजी रो ब्याव बारठां में हुयो। इणां री जोड़ायत रो नाम हो पेमां।
गुमानदानजी रै कनै घणी गायां। धायोड़ी गवाड़ी। चौखऴै में गाया़ं रै रूपाल़ी अर दूधाल़ी हुवण री घणी चर्चा। गुमानदानजी आपरी गायां सैति करनेत खेत में ढाणी रैवै। ई खेत रै लागती कांकड़ मिठड़िया गांम री। मिठड़िया पातावतां री जागीर। पातावत राव रिड़मलजी रै बेटे पाताजी री संतति। घणा जोगा मिनख जनमिया पण गांम में गल़ी ई हुवै तो अकूरड़ी ई हुवै। चोखां रै भूंडा अर भूंडा रै चोखा जनमता रह्या है ज्यूं उग्रसेन के कंस।
उण दिनां मिठड़िया रो ठाकर हो कल्याणसिंह पातावत। अठारवें सईकै रै उतरार्द्ध री बात है। कल्याणसिंह री कुदीठ गुमानदानजी री गायां माथै। कल्याणसिंह री गायां ई उठै चरणनै आवै जठै गुमानदानजी री गायां चरै। जोग सूं एक दिन एक लवारकी(दो-तीन महिनों की बच्छड़ी) भूल में कल्याणसिंह री गायां भेल़ी रल़ मिठड़िया बुई गई। आथरणा(शाम) गायां नै गोयर (गौशाला) में घालण सूं पैला ठाह लागो कै अमुक गाय री अमुक लवारकी गायां सूं टल़गी अर मिठड़िया रै बघेलै(गायां रो समूह) भेल़ी गई परी।
गुमानदानजी कठै ई गांमतरै गयोड़ा। दिनूगै गुमानदानजी री जोड़ायत पेमां माजी आपरै एक ग्वाल़ियै साथै मिठड़िया गया अर ठाकर नै कह्यो कै- “हुकम म्हारी एक लवारकी आपरै अठै आयगी सो हल़ी-बाल़ध्यां नै कैवो जिको म्हनै जोयर पकड़ा देवै।”
आ सुणतां ई ठाकर कह्यो कै- “कांई काली बात करो। अठै कुण थांरी लवारकी लावै? म्हारै कांई गायां री कमी है? जको थांरो कीड़ियो हूं राखूंला!”
आ सुणर पेमां माजी कह्यो कै- “आप साचा हो आपरै लांठ (समूह) उछरै है, पण भूल में आयगी सो जोवाड़ो। हूं कोई आपनै दूनो(आरोप) देवण नीं आई हूं।”
आ सुणर ठाकर उणी तरंग में कह्यो कै- “आ रावल़ी कोटड़ी है! अठै कुण तो कीड़ो लावै अर कुण जोवाड़ै? जे कोई कीड़ियो चाहीजै तो बाड़ै मांय सूं ले जावो। थोड़ो सांभोला तो सवारै गावड़ी हुय जावैला।”
आ सुणतां ई माजी नै ई रीस आयगी अर कह्यो- “जा रे ! कीड़ियै देवण वाल़ै नै हूं जाणूं ! चोखल़ै में थारी शोभा ई म्हारै सुण्योड़ी है। गऊचोर कठै ई रो! म्हारो नाम पेमां है! म्हारो केरड़ो(गाय का छोटा बच्चा) राखै उण अधबेरड़ै रा का तो आंतरा काढ दूं कै उण माथै म्हारो शरीर होम दूं। हूं चारणी हूं चारणी!!”
आ सुण’र ठाकर नै रीस आयगी अर कह्यो- “जा! जा! आई है अठै आंतड़ा काढण वाल़ी। ऐड़ै घणै ई फिरै भोपाडफरी करण वाल़ी। म्हारै ई घरै म्है माथै ई घोरका। चारण है अर बा ई लुगाई है जणै छोडूं नीतर जीभ काढलूं।”
बात बधगी। माजी देख लियो कै ओ कल्लो इयां टोगड़की नीं देवै अर हुय सकै कै हूं भूल सूं ई जे जिद चढी हूं तो कांई ठा? हुय सकै भोल़ो जीव अठै नीं आयर भल़ै किनै ई गयो परो हुवै अर हूं बापड़ै इण कल्लै माथै उजर करूं। आ विचार र माजी कह्यो कै- “हूं हणै तो जाऊ पण ध्यान राखजै हूं म्हारी गायां री ऐल़(संतति) रो गौवोड़ो(मृत गाय की चमड़ी) ई ओल़खलूं। जे अठै मिलग्यो तो बाबो आठ नीं साठ देसी।”
आ कैय माजी कोटड़ी सूं पाछा मुड़िया हा कै उणांनै छोटी टोगड़की तांबाड़ती सुणीजी। माजी आपरै ग्वाल़ियै नै कह्यो- “डीकरा जोय तो ओ तांबाडणो किनै सुणीजै। म्हनै आंपणी लवारकी लागै। म्हारी बोली सुणर तांबाड़ै।”
ग्वाल़ियै इनै-बिनै जोयो तो देखियो एक करू(जमीन में खड्डा खोदकर ऊपर कुछ घास-फूस देना) में लवारकी तड़फा तोड़ै ही। उण माजी नै हेलो कियो अर कह्यो कै- “इण करू में टोगड़ी तड़फै।” माजी आया अर देखियो तो साचाणी करू में टोगड़ी !उणां ग्वाल़ियै नै कह्यो कै- “बेटा आ लैंगरी(झाड़ की सूकी टहनियां) आगी ले तो! ग्वाल़ियै लैंगरी आगी ली अर कह्यो माजी टोगड़ी तो तडफड़ती मरगी।” आ सुणतां ई माजी रै झाल़ उपड़गी अर कह्यो- “अरे इण हरामी रै कोढ निकल़ै! कोढ!! पापियै म्हारी लवारकी मारदी। ओ राजपूत नीं कसाई है कसाई !!”
उणां करू में बड़र टोगड़ी नै उठाई। आपरै काल़जै रै चेपी। काल़जै लागतां ई उणांरी आंख्यां सूं झरै-झरै आंसू झरण लागा। उणी बखत वै हे राम! कैय बाछड़ी नै लेय अबोला बहीर हुया सो मिठड़िया रै अगूणै पासी आई नाडी री पाल़ माथै रुकिया अर ऊजल़ी बेकल़ू माथै बाछड़ी री मृत देह राखी।
सूरज सुध मूंडो करर बोली- “हे सूरजदेव ! ओ गऊ मार कल्लो निरवंश जाया। ई री गादी आवै उणनै ई कोढ हुया, पीढी-पीढी खोल़ै आया अर ई कल़ंक री सैनाणी सरूप कोढ निकल़ती रैया। कदै ई रावल़ै में च्यार सुहागणै मत हुया। जे तैं में सत है तो म्हारै वचनां री पत राखजै।” इतरी कैय पेमां माजी उण बाछड़ी नै आपरै खोल़ै में लेय अगन सिनान कियो।
आज ई उण पाल़ माथै एक पाखांण प्रतिमा बाछड़ी नै खोल़ै में लियां उण अन्याय रो प्रतिकार करण री साखीधर है। कल्लो पातावत कोढियो हुयर मरियो। उणरो वंश गमियो अर जको ई खोल़ै आयो उणरो वंश नीं चलियो तो साथै ई एक पारिवारिक सदस्य नै उण पाप रै बदल़ै अवश कोढ फूटती रैयी। लारलै वरसां तक रावल़ै में च्यार सुहागणै नीं हुयै, कोई न कोई विघन अवस पड़तो रह्यो।
किंवदंती तो आ तक बैवै कै उण दिनां मिठड़ियै में जे रात रो सीधो(भोजन) बचतो कै दही-दूध बचतो तो दिनूंगै उणमें लट्टां लाधती। सेवट दासोड़ी रै एक चारण नै ले जाय रावल़ै में भोजन कराय तिलाक भंगाई। जा पछै कोढियो हुवणो अर च्यार सुहागण्यां वाल़ो तो कुजोग जुड़ियो रह्यो पण सीधै-दही में लट्टां नीं पड़ी। वो चारण कोढियो हुय मरियो अर उणरी भरी-तरी गवाड़ी गल़त(वंश नहीं चलना) गी।
आज इण बात नै लगैटगै तीन सौ वरस हुवण लागा है पण आप अचूंबो करसो कै आज ई चौमासै में इण मूरती माथै मिठड़िया रा आदमी झूंपड़ी नीं बणावै तो मेह री बूंद ई नीं पड़ै सो झूंपड़ी अवस ई छझणी पड़ै।
इण घटना रो एक छंद खासै वरसां पैली बणायो सो साख सरूप दे रह्यो हूं–
।।पेमां-प्रशंसा।।
चारण-धरम चितारणी, कारण बछियै काज।
बीसहथी बण बाहरू, ली पेमां रख लाज।।१
पात धरम हद पाल़णी, इल़ बात अभंग।
गात कलै रो गाल़णी, रंग मा पेमां रँग।।२
लियो कलै रख ल्वारियो, छत्री पण हद छंड।
कियो जमर जिण कारणै, मही पात धर्म मंड।।३
मिठड़ियै ठाकर मुणां, पातावत कलियाण।
जिण ऊपर कोपी जबर, पेमां धिन रख पाण।।४
।।सोरठो।।
मिठड़ियै मड़ियोह, कांकड़ लग अड़ियो कलो।
सांप्रतेक सड़ियोह, विरचै चारण बीसहथ।।५
।।दूहो।।
विमऴ कथा जग मे बँचै, आई रचै उछरंग।
सचै प्रवाड़ा सांभऴ्या, भाणव रचै भुजंग।।६
।।छंद – भुजंगी।।
सुणां पेमला मात पातांज सामी।
जपूं आपरो जाप हूं अंतर्जामी।
दयाल़ी मुझां कायबां वैण दीजै।
लजां राख आई तुझां ओट लीजै।।१
दिपै देव दासुड़िय देख दाता।
मयाऴी हिको सांसणां माम माता।
पुणूं धर्म पे हालणी धेन पाऴै।
रजा राख मैयाज रैया रुखाऴै।।२
बठै खेत वो एक क्रनेत बाजै।
रढाल़ी उठै गोऴ ले आप राजै।
थयो धेनवां थाट निराट थारो।
चरै बाछड़ा कूदता लील चारो।।३
नमो डोकरी जेथ ढाणी निवासै।
पुणां मीठड़ो गांम वो सींव पासै।
सुणां ओथ रो भोम कल्लोज सांमी।
हिवां रीत रो वाम पातो हरामी।।४
बही मीठड़ाधीस री गाय बो’ऴी।
भलां बाछड़ी लेयगी साथ भोऴी।।
इमां आयनै टाबरां बात आखी।
रही ना अमीणां भुजां पाण राखी।।५
जदै मावड़ी गाडियां जोत लीधी।
सही संग ले वा’र बैहीज सीधी
धरा माम नां राखणी धाड़धाड़ा।
मुणां ठाकरां आविया दीह माड़ा।।६
मुदै आखियो ठाकरां दीह माई।
अठै बाछड़ी एक अम्माज आई।
करूं साद धण्यां इमां कान कीजै।
दखूं दूथियां केरड़ो हेर दीजै।।७
नकूं आपरै ऐम ओ भार न्हाऴो।
भलां पातवां प्रीत सूं मींट भाऴो।
छतो रावऴो व्रिद है नाय छानूं।
मिल़ै बाछड़ी मूझ ऐसान मानूं।।८
कलै सांभऴी बात यूं क्रोध कीधो।
दखां मूढ पातै बुरो जाब दीधो।
किसी बाछड़ी तूझरी बात कैड़ी।
अल़ी ऊचरै आयनै ऐथ ऐड़ी।।९
भलां चारणी वैण क्यूं कूड़ भाखै।
रँकां केरड़ो रावऴै कूण राखै।
अठै आकरां क्रोध मे चाल आई।
दखां ठाकरां नै घरां मां डराई।।१०
तवां चाकरां चारणी नही तोरा।
इयै आखरां धीजवै पेख औरां।
कलै ताकरां मात सूं ऐम कीनी।
लगै हाथ बुल्लाय वा मोत लीनी।।११
हुवो मीठड़ाधीस धर्म हीनो।
कलै कांकड़ां ऊपरै वाद कीनो।
छत्री नीत नूं रीत नूं ऐम छाडै।
मड़ै राखली टोगड़ी दूठ माडै।।१२
जदै मात वो जाणियो दूठ झूठो।
छतो डोकरी धीर गंभीर छूटो।
बणी बाघणी वैण ऐ जैण बावै।
मही तूझरी ल्वारकी नाय मावै।।१३
नमो रीस ज्यूं ही फणाधीस रोपै।
कराऴी जिमां केरड़ै काज कोपै।
अंबा दूठ कल्लैनांय श्राप आपी।
पुणां पाप ई कारणै कोढ पापी।।१४
कृपाऴी जदै बाछ नै साद कीनो।
दखां भोऴकी पूगतो जाब दीनो।
जदै मावड़ी जैण री पीड़ जाणी।
पड़्यो भूल सूं दूठ रे हाथ प्राणी।।१५
उणी वेर अंबा करू जाय ईख्यो।
प्रिथी ल्वारकी गात निर्जीव पेख्यो।
उणी वेर हाथांज माता उठाड़ी।
लगाड़ी उणीनैज अंकां लडाड़ी।।१६
लंब हाथ ऊमा तणो पंथ लीनो।
कराल़ी खपा केवियां नाम कीनो।
चवां चारणां नीर तैंहीज चढायो।
वल़ै जात रो माण तैंही बढायो।।१७
धरा धारणी भीर तुंही धजाऴी।
वसू थापिया व्रिद तैंही व्रिदाऴी।
रहै सारणां काज तुंही रुखाऴी।
सको सायऴां सांभऴै आ उंताऴी।।१८
भलां भाणवां रीत नूं भोम राखी।
सको आज बातांज अदीत साखी।
जुगां मांय नही थारो जस्स जावै।
पढै दास प्रगाऴैय मान पावै।।१९
थयो सांसणां आसरो एक थारो।
नमो सेवियां तास सारा निवारो।
उजाल़ै अँधारै रहै भीर आई।
नमो भूतड़ा प्रेतड़ा तूं भगाई।।२०
कितां काटिया जात रा तैज केवी।
दिया शूऴ रे मूऴ रे मांय देवी।
पुनी केतला शूऴ री फाऴ पोया।
खऴां रा कितांरां तैंहि वंश खोया।।२१
रढाऴी नमो पेमला ऐम रूठी।
जिकी बात ना जाणज्यो लेस झूठी।
कलै रां पछत्ताय नै सीस कूट्यो।
पुणां पीढियां पीढियां पाप फूट्यो।।२२
अखां पेमला तूझ री आण आई।
वसुध्धा करै बात थारी बडाई।
गुणी धार वीसास रू तूझ गावै।
उवै सांभ वैणा अध्धै साद आवै।।२३
चढै चारणी बेग तोनै चितारां।
हमे एक आधार धणी हमारां।
रहे पोतरां ऊपरै मात राजी।
बणी राखजै रेणवां हाथ बाजी।।२४
तुंही मालणा मोगला गेल माई।
तुंही खूबड़ी रूप व्है दैत खाई।
तुंही देवला राजला चंदू देमां।
जुई सैणला बांकला शील जोमां।।२५
दिपै थान दासोड़िय आप देवी।
सजै सेवगां सायता मात सेवी।।
जसां बोल वो गीधियो दास जापै।
अभैदान वा पेमला आय आपै।।२६
।।छप्पय।।
पेमलदे इऴ प्रगट, प्रघऴ मरजादा पाल़ी।
ससियऴ सूरज साख, वऴोवऴ जात उजाऴी।
वसुधा कीरत बात, खऴां दऴ शूऴ खपाणी।
धेना वाहर धाय, धरा ऊपर धणियाणी।
मेटणी कलो मरजाद कज, नवलख साथै नीसरी।
गीधियो सरण तोरी गहै, बीसहथी मत वीसरी।।
~~गिरधरदान रतनू “दासोड़ी”