रंग रे दुहा रंग

भाव कथे हर भाख में,उर रा घणे उमंग।
कवि सुरसत कंठाभरण,रंग रे दुहा रंग॥1

ब्रज भासा डिंगळ तथा,गुर्जर भासा गंग।
उत्तर भारत रा अजब,दुहा छंद ने रंग॥2

नवरस री नव कल्पना,सरस उकति रे संग।
कल्पक रा कविता कथन,रंग रे दुहा रंग॥3

बातां ,ख्यातां ,वेलियां,रासा रा रस रंग।
परवाडा में थूं प्रथम,रंग रे दुहा रंग॥4

छंदों में सबसूं सिरे,उर पढतां आणंद।
अरथ चमत्कृति कथनमय,रंग रे दुहा रंग॥5

तेरे मात्रा फिर यती,ग्यारे गुरु लघु संग।
दुय ओळी रा प्रास युत,रंग रे दुहा रंग॥6

दोहा उलटै सोरठा,इदको सुण आणंद।
समवड कुण थारी करे,रंग रे दुहा रंग॥7

लंगा ,मांगणियार, अर,ढोली , मीर , मलंग।
लोकगीत रा लाडला,रंग रे दुहा रंग॥8

नानक, दादु ,फरीद रा,उपदेशां रा अंग।
भगती रा रस कुंभ थू,रंग रे दुहा रंग॥9

रीतिकाळ रा राजवी,नव कविता रा अंग।
हर रचना उजळी करे,रंग रे दुहा रंग॥10

नीती ,रीती, गीति मय,प्रीति, विरह प्रसंग।
वीर,शांत , शिणगार युत,रंग रे दुहा रंग॥11

डिंगळ में डणके सदा,मय लय नाद तरंग।
सांकळियो सुंदर सरस,रंग रे दुहा रंग॥12

जात पांत जाणें नही,सकळ मानवी संग।
संत, फकीरां रा सखा,रंग रे दुहा रंग॥13

खुसरो रो थूं खास है,रहिमन नीती रंग।
वृन्द बिहारी लाल सुत,रंग रे दुहा रंग॥14

रचना मन रंजण करै,पढतां होय अणंद।
हिव सुणतां झंकृत हुवै,रंग रे दुहा रंग॥15

मिलण,बिरह अर मरसिया, उछ्छब,ओज,उमंग।
सकळ कविता में सिरे,रंग रे दुहा रंग॥16

~~नरपत आसिया “वैतालिक”

 

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