रात -रात तो मरुं कोनी!!

‘लिखी सहर सींथल़ सूं, आगे गांम कल़कतियै।‘ इण एक वाक्य सूं सींथल़ रै लोगां रो स्वाभिमान अर मातभोम रै प्रति अगाघ प्रेम नै परख सको। ओ वाक्य ई किणी कवि कै ठाकुर रै लिख्योड़ी कै लिखायोड़ो नीं है बल्कि ओ वाक्य सींथल़ रो हर साहूकार आपरै कल़कते रैवणियै पारिवारिक सदस्य नै कागज लिखती बगत लिखतो। इणी कारण तो डॉ शक्ति दानजी कविया लिखै कै मरू प्रांत रै पांच रतनां रै पाण ई इण धोरां धरती री सौभा आखै जगत में है-
संत सती अर सूरमा, सुकवी साहूकार।
पांच रतन मरू प्रांत रा, सौभा सब संसार।।
सींथल(बीकानेर)री धरती माथै संतां में हरिरामदासजी होया। जिणांरै विषय में चावो कैताणो है ‘सींथल़ हरिरामो गुरड़ो, राम नाम में कीधो जुरड़ो।‘ सतियां ई अत्याचार रै खिलाफ जमर कर सतवट कायम राखियो। जिणां में गरवी माजी अर लाल़स माजी प्रसिद्ध है तो सूरमां री लांबी कतार है, जिणां में हरोल़ नाम है लूणोजी अर हड़वंतसिंह पदमावत। इणी भांत कवियां में बगतावरजी मोतीसर, सीतारामजी बीठू, कविराज भैरव दानजी, जसूदानजी बीठू रै साथै आज ई सुखदानजी बीठू इण परंपरा नै टोर रैया है तो साहूकार तो आपरी विणज खिमता, दानशीलता अर गांम रै प्रति समर्पण रै कारण पूरै मुलक में चावा है। इण चावै साहूकारां में एक चावो नाम हो चैनरूपजी मूंधड़ा रो।
चैनरूपजी मूंधड़ा सींथल़ रा नगर सेठ हा। इणी चैनरूपजी रो बेटो हो रामधनजी मूंधडो। रामधनजी ई नगर सेठ पण कोई संतान नीं होई इण कारण दुखी रैवतो। इणां रै एक जाट हाल़ी हो। जिण इणांनै संबोधित करर एक ‘भणत’ गाई। जकी आज ई खेतां में काम करतो किसान गावै-
तनै क्यांगो सोच लागो रे,
छोरा रामधनिया!
तूं काल़ो किंयां पड़ग्यो रे,
छोरा रामधनिया!!
तेरे दो-दो भैंस्या दूजै रे,
छोरा रामधनिया!!
एकर सींथल रै बीठवां री एक जान ऊजल़ां गई। जान में नगर सेठ चैनरूपजी नै बींद रो बाप आपरा नगर सेठ जाण र आपरी सौभा खातर लेयग्यो।
जेड़ो उण बगत ढारो हो, उणीगत जान रो डेरो एक खेजड़ी कनै दो चार लेंगर्यां ऊभी कर र दिरा दियो अर जोखै रो समान एक गडाल़ में रखा दियो। पांच-सात ई जानी हा। चार-पांच जानी तो इनै-बिनै आगी-नैड़ी रिस्तेदारी में जीम आया पण सेठां री नीं तो उठै कोई रिस्तेदारी ही अर नीं जीमण री बगत कोई नैं याद आया। सेठ मरता ई जान रे डेरै एक मांचै माथै पड़िया रैया। रात खासी ढल़ियां कोई जान मांयलो सिरदार अन्न पोढावण रो विचार करर सोवण आयो अर आवतै ऊंची आवाज में पूछियो कै ‘कोई मांचो खाली है रे! म्हनै ई सूवणो है!!‘
सेठां नै मरतां नैं नींद कठै ही! तुरत ई बोलिया ‘थांरो ई सेठ हूं, रात-रात तो भूखो ई मरुं कोनी!! अर दिनूंगो ओ मांचो खाली है! ले लिराया।‘
पूछणियो सारी बात समझग्यो पण आधी रात रो सेठां सारु भोजन कठै सूं लावतो!!
~~गिरधर दान रतनू “दासोड़ी”
संदर्भ-गिरजाशंकरजी बीठू, भारत पैलेस