रतनू भारमल री वात – ठा. नाहर सिंह जसोल संकलित पुस्तक “चारणौं री बातां” सूं
मारवाड़ में अेक परगनो, मालांणी। पैहलां मालांणी नांम सूं जगचावो ओ परगनो आज बाड़मेर परगना रै नांम सूं ओळखीजै। मालांणी री इण धरती ऊपर केतांन सूरमा, संत अनैं सतियां अवतरित होया। मलीनाथ, धारूजी, रूपां-दे अर ईसरदासजी जैहड़ा म्होटा संत, जैतमालजी अर वीरमदेजी जैहड़ा लांठा जोधार, अर दांनी, रांणी भटियांणीजी जेहड़ी चमत्कारिक सती पण इणीज धरती ऊपर होया।
राव सीहोज संवत 1212 में कनोज सूं मारवाड़ कांनी आय सबसूं पैहलां पाली ढ़ाबी। आस्थांन खेड़ रयो अर आठमी पीढ़ी में राव सळखोजी रा म्होबी दीकरा मलीनाथजी पाट बैठा।
मलीनाथजी रै अेक भाई जैतमालजी। सिवांणै तपै। जैतामालजी, इस्टबळी, गरीबों रा वाहरू, वचनसिद्ध अर चारणों रा हेताळू। वांरो नेम हतो के कोई पण चारण घरे आवै, उणनैं बाथ घालेन मिळता। पीठवा नांम रा चारण रै कोढ ऊघडि़यौ। चूकता तीरथों जाय न्हायौ पण, कोढ नी झझियौ। हर री पेढी ऊपर किणी कयौ के ‘क्यूं भटकै?’ सिवांणै ऊपर जैतमाल सळखावत राज करे। वो सत्पुरूष है अर चारणों रौ हेताळू। वो जे दया कर थनै बाथ घाल मिळै तो थाहरौ कोढ झड़ै। मरतो कांई नी करै? थाक्यौ पच्यौ दर मजलां दर कूचां, लड़थड़तो, लड़थड़तो, पूगो सिवांणै। पण जैतमालजी तक पूगण कुण दै? मारग मेईज पौरायतियां रोक लीनौ। अरे कोढी निकळ अठा सूं। पण पीठवा रै तो पीड़। वो हाथ जोड़ी करी, ‘अरे म्हनें जैतमाल सूं मिळावो, म्हूं दुःखियारो चारण हूं।’
चारण रो नांम सुण पौरायतीयां रा कांन ऊभा होया। चारणों सारूं जैतमालजी री भगती जगचावी। जाय नें अरज कीवी, ‘मालकां अेक चारण बारे ऊभो है, पण भूंडा हवाल। पूरो डील कोढ सूं झरै, वाहना (बदबू) अणूती आय री है, कनै, ऊभोई रैणी नी आवै। कैवै म्हारै मालकों रा दरसण करणा।
चारण रो नांम सुणतां-पांण दयाळू राजा भड़ाक करतां ऊभो होय, पूगो मेंगरणें (द्वार) ऊपर। जोवै तो भूंडे हवाल अेक मिनख ऊभो। जाय नें भट्ट बाथ घालेन घणै हेत सूं मिल्या, अर मिळतां पांण चारण रो कोढ़ झडि़यौ। इण प्रसंग रो अेक घणौ फूटरो गीत पीठवै बणायौ, वो जगचावो अर प्रमांणिक है। आठमों साळगरांम कैय पीठवै जैतमालजी नें बिड़दाया।
इणीज दुःख भंजणा राजा री नमी पीढ़ी में रांणा देवीदासजी होया। वे पण कवीसरों रा घणा पारखू। जैसलमेर रा ऐक रतनू जात रा कवीसर री कविता पाठ सूं रीझ परा वांने घड़ोई गांम जागीर में देय, ओठेईज वसीवांन कर दीना। भारमलजी इण कवीसर रा वंशज हता।
संवत 1710 रै लगै डगै मालांणी रै मिनखां रो अेक संघ हिंगळाज री जात्रा करवा व्हीर होयो। भारमलजी नें इण संघ री खबर पड़ी। वेई हिंगळाज जात्रा करवा संघ भेळा भिळ गया।
ज्यां दिनों हिंगळाज री जात्रा घणी अबखी ही। जात्रा जावण वाळा ओ धार नें जावता के जीवता रिया तो पाछा आसों, न्हीतर घरवाळों अर गांम वाळों सूं जीवता मूंवों रा छेहला जुहारड़ा कर जात्रा सारूं निकळता। बलूचिस्थांन रो विकट रस्तो सिंघ में होय चालतो। पाळा, ऊंट, घोड़ों, ऊपर मिनख खुश्की रस्तै व्हैता। घणी-घणी भां, मिनख रौ बच्यौ नी। पीवा रौ पांणी नी। उण लम्बा-चैड़ा सूना रंण में जठै कोसां तक झाड़कों नी, पांणी नी, अर पंखेरू के नी कोई जांनवर अेहड़ा अभखा मारग ऊपर हिंगळाज जावणिया जात्रु मा रा भजन अर, चिरजां गावता, दर मजलां दर कूंचों व्हूवा जावता। घणकरा थाक जावता तो वांने हिंगळाज रै भरौसे छोड़ता के पछै साथै चालता ऊंट घोड़ों ऊपर बैठाय आगे रो मारग लेता।
भारमलजी भागसाळी हता जको हिंगळाज री जात्रा कर, पाछा संघ रै साथै कच्छ तक तो सोरा दोरा आय पूगा, पण अठै आवतां हाला (हालत) थाक गया। पाळा इत्ती भां रौ पैंडो करतां, पगां रै सोजन आय गयौ। पींडीयों में पांणी टपकण लागौ अर आगे चाल मारवाड़ तक पूगण री आसंग नी रही। कच्छ में माताजी रो मढ है ओठे संघ पड़ाव न्हांखीयौ।
ओ माताजी रो मढ लोकवायक प्रमांणै हजार वरस पुरांणो है अर मूर्ती हापे (अपने आप) जमीन मांय सूं बारै प्रकट व्हेन अेक महाजन ने दर्सण दीना। अर धीरे-धीरे मा रै परचां सूं ओ अेक म्होटो धांम बण गयौ। पण उण जमांना में अठै अळगी नैड़ी कोई वस्तीं नी हती। फकत दूर गांम सूं पुजारी आय पांचे पनरे पूजा पाठ कर लेतो अर पाछौ जातो परौ। बिल्कुल सूनियाड़ हती। जात्रु आवता वेई दर्सण कर आगे रो मारग लेता।
अेहड़ी मांनता है के हिंगलाज सुं पाछा आवतां, माताजी रै मढ रा दर्सण नी करै तो हिंगळाज जात्रा रो फळ अधूरो रैहवै। इण खातर ओई संघ, माताजी रै मढ आय डेरा दीना, अर आसापुरा मा रा दर्सण कर, दूजे दिन आपो आप रे घंरा कांनी जावण सारूं संभीया, अर अमल बीजा गळ, आडी डोढी मनवारों लेय, कठमठा मन सूं अेक बीजा नें जुहारड़ा कर व्हीर होण री तैयारी करण लागा।
इण टांणै भारमलजी कयौ, ‘भायौं, म्हारी अंगेई (बिल्कुल) आसंग नी है। पग सूज गया, पांणी झरै, पीड़ निपट घणी। इण कारण म्हनै अठै मा रै भरोसे छोड़, थे थारै घरां कांनी सिधावो। साजो होयां पछै म्हूं घरे आय जासूं। म्हारै घरे जाय, घर रां ने राजी खुशी रा समीचार देय देजो।
यूं कैय संघ रा मिनखों नें सीख दीवी अर आप अेकलाईज माताजी रै सरणै रया। भारमलजी ओठे बिल्कुल अजांण। नैड़ो आळगो कोई सगो, सम्बन्धी के तन अजीज नी। रोटी पांणी राई जांदा पड़ै। पण मा में पूरो विस्वास। वणी सो भाग री। यूं मन में धार भालमलजी तो माताजी रै मढ में दिनड़ा काटै है। भूखा तिरसा रैहतां तीन-च्यार दिन व्हे गया। सरीर में आसंग अंगेई नी रही। अठी नै पगां री पीड़ अर कमजोरी घेरो दीनो। पण मा आसापुरी में पूरो विस्वास। दिन रात मा ने सुमरै। चारण री जीभ ऊपर सुरसती आय बिराज्या। कवि तो हताईज। ऊपर सूं पगों री पीड़ सूं पूरा घायल होयोड़ा अर भूखा ने तिरसा। टूटता काळजा सूं मा आसापुराजी नें सुमरण लागाः
तुं माता, तुं पिता, तुंहिज बंधव, तुं बाई;
तु साजण, तुं सेण, साथ पण तुंहिज सदाई;
तुं उत्तम आधर, वाट ओ घाट वहंते;
देवी तुं दीवांण, कवित गुण कहेते;
सहीथोक दीये तुं ही सदा, कर जोड़े तुनां कहां
म्हारा देव परदेस मां (तो) मन डर मत आधार महा।।1।।
कुण बीजो समरूं, वाट ओ घाट वहे तो,
कुण बीजो समरूं, रने चाचरे रहं तो,
कुण बीजो समरूं, ओळग भय हार ओ देवी,
कुण बीजो समरूं, देस परदेस देवी,
समरूं तुझ आद्यशकत, तुभु विन कुण वहावीअे?
सुर रात्री वार तुं सारखी, आई वेगी आवजे।।2।।
झरे गिरे झंगरे, मढे चाचरे मसाले,
वडे तटे विमरे, रहे तुंहीज रिण टाणें,
सदा सरे सांयरे रास त्रिय भुयणां रमे,
अलख थकी उमैया, ईला अमर आगमे,
आ ऊठ, पीठ अवागाहणी आद जुगाद उपावणी
कर जोड़ अेम सेवक कहे, ज्यों ज्यों मा जोवणी।।3।।
आज दीठ कोहेलो, आज दीठो धे्रंगाणो,
आज दीठ त्रेमड़ो, आज दीठो नागाणो,
आज दीठ आबूवो, आज सांधवगिर दीठो,
आज दीठ अंबाव विमल चालकन पीठो,
वंकड़ो डाडो क्रोडी विमल, के अडसठ तीरथ किया,
आज मुख देख आशापुरा, देवी इतामुख देखिया।।4।।
ज्यूं ज्यूं कविसर री पीड़ा वधती जाय, त्यूं त्यूं टूटते काळजे देवी नें सुमरैः
जात्री नवलाख मिळे मुख जोयण ओयण जळ झळहळ अनुमान,
देवां सिरे सोहगे देवे, थांनां गिरे, ध्रेंगडो थान,
निरमल कुंड, घणा वृक्ष नीला, जोवां मुख हसते दुःख जाय,
थांन सदेवत ऊपर थांनां, सेवत देवा पर सुरराय,
रिणा राता, जळकुंड सराता, सुजमाता दाता कवि सेव,
मढ अेवड़ो नको जग मांही, दूजो, इसो नका जगदेव,
काने सकमल झळहळे कुंडल, सकळ, सुमन तोरण सुरराय,
भांजसे दुःख दारिद भारमलिया, मनमां सुद समरे महमाय।।
यूं सुमरतां सुमरतां खासा दिन बीत गया। पीड़ कांई कम नी हुई। कमजोरी पण निपट घणी आयगी। ऊठण री सरदा नी रही। आंख्यां आगे झांमला आण लागा। मौत सूदी सांमे ऊभी लपरका करै। अेहड़ी अभखी व्हेळा में मा टाळ कोई आसरो नी देख कवि छेहलो तीर व्हायौः
खप्पर गयुं खोवाय, के (तारी) साथ कोई बाई न सुंडी
सुर गयुं संताय, के भांग आरोगाय भेकुंडी
घणी ऊंघे घेराई, के आवी बेराई कांन में
त्रूटे गयो त्रिसूल, के वाघ छूटे गयो वन में
कोयला तणी दळ थई ठण के ताप कळु लाग्यो तुंई
दुखियो कवि कहे, कुढी कठे है, हिंगळाज बुढ्ढि हुई
“हे हिंगळाज मा! थूं म्हारी अरदास सुण आवै क्यूं नहीं? हे मा! दैतों रै लोही सूं भरियोड़ो खप्पर कठै खोवाई गयो है? के पछै आपरै साथै चालती नवलाख लोवड़ीयांणीयां मांय सूं आज अेक ई आपरै भेळी नी? के पछे शिवशुंभ साथै आप ई भांग अरोग ली? अर घणी भांग अरोग्यां पछै आपरी आंख्यां ऊंघ सूं घेरीज गई? के पछै आपरै कांनां में बोल चढ गई? आपरा हाथों में नित धारण करियोड़ो त्रिशूल टूट गयो? के पछै जिण वाघ ऊपर नित सवारी कर दुःखियों री सहाय करवा एके हेले दौड़ता पधारौ, वो कठैई वन में नाठ गयौ? म्हूं दुःखियारो कवि, दिन-रात आपने सुमंरू पण आप तो सुणोईज नी। कोयेला परवत ऊपर विराजमांन देवी रो काळजो आज आभा ज्यूं कठोर कीकर व्हे गयौ? के पछै आप ऊपरइण कळजुग री छाया पड़गी। दुखियारों री पुकार सुण तुरत बेल आवण वाळी, हे मां! थूं कठै बैठी है? कै पछै थूं बूढ़ी व्हेगी जकौ चाल ई नी सके?’
इण भांत अरदास करतां करतां भारमलजी री आंख्यां सू नीर झरण लागा। झर झरते नीरां, फेर पुकार करीः
आव्य मात अणवार, वेदवा वधन वडारण,
आव्य मात अणवार, वीसोतर, लाज वधारण,
आव्य मात अणवार, भुवणसर परचो भाळी,
आव्य मात अणवार, नवलाख लोबड़ीयाळी।।
अर कवि री पुकार मा रै कांनां पड़ी। रात रा रोवतां रोवतां करां झपकी आयगी, भारमलजी नें कांई खबर नी। नींद में वांने लागो कोई कैय रियौ है, ‘थूं तमाची कने जा, थूं तमाची कनें जा, थूं तमाची कने जा।’ पेहली दो अवाज सूं भारमलजी नें लागो, ओ तो जंजाळ है, तीजी आवाज आवतांई भट्ट देतां आंख्यां खुली, तो देखे है चैफेर चांदणां, अर साक्षात देवी मांमे ऊभी मुळके, कवि तो टसकता टसकता, जाय नें पडि़या देवी रे पगां में अर आपरा आसूंवा सूं देवी रा पग धोया। कांई बोळणी नी आयो। वे तो पगां में पडि़याईज रिया। देवी अेकर फेर कयौ, ‘थूं तमाची कने जा’, अर अलोप व्हे गयी।’ भारमलजी कांई ठा कित्तीक ताळ यूं लाम्बा व्हेन सूता रया, पण जद माथो ऊचों करियौ तो ओठै कांई नी। फकत देवी रा बोल कांनां में गूंजे, ‘थूं तमाची कनें जा।’
सोच्यौ ओ तमाची कुण? कठै रैहवै? जावूं तो जावूं कीकर? पांवड़ो अेक चालीजै नी। सरदा पण अंगेई नी। कमजोरी निपट घणी। पाछौ मन में विचार आयौ, जीवड़ा! ओ तो जंजाळ। अेहड़ा भाग कठै के देवी देठाळौ दै? ज्यूं त्यूं कर रात वीतोई।
दिन ऊगै अेक मिनख आयौं। देवी री मूरत नें सिनांन कराय, धूपदीप कर पाछौ जावण ढूको नें, भारमल जी पूछियौ, ‘भाई अठै तमाची नांम रो कोई मिनख नैड़ो अळगो है?’
अेक अजांण मिनख ने तमाची रो नांम कुण बतायो अर वो तमाची रो क्यूं पूछै? इण भांत रा केतांन विचार पुजारी रै मन में आया। पुजारी पूछियौ, ‘क्यूं भाई, थे तमाची रो क्यूं पूछो? कांई कांम है अर तमाजी रो नांम थांने कुण बतायौ?
भारमलजी रात रा सपना री चूकती वात पुजारी नें बताई। कयौ, ‘भाई सपनो नी हो, म्हने साक्षात, देवी देठाळौ दीनो अर तमाची कनें जावा रो कयौ।’
पुजारी रै वात हीये बैठी। कयौ अठै तो कोई तमाची नी है पण अठा सूं पच्चीस त्रीस गाऊ खंभरा गांम में तमाची नांम रा ठाकर है, वे पाटा पीड़ करै। पण भला आदमी थे खंभरा जावोला कीकर? थांहरी तो आ हालत् पण ऊभा रौ, म्हूं पाछौ आवूं। थारै कांई जुगाड़ करूं।
पुजारी भूवा चहुवांण रै मन में आई के ओ मिनख परदेसी, अर जात रो चारण। पगां में पांणी झरे। चाल सकै नी। अर देवी इण नैं साक्षात दर्शण दीना। तो पछै म्हूंई इण री थोड़ी सेवा करूं तो मूंवा मुखोतर जाऊं। यूं विचार कर, वो आपरी ढांणी गयो। जाय, आपरै घोड़ा माथै संज कर टप करतो ऊभे पगे पाछौ वळियौ। माताजी रै मढ में आय, भारमलजी ने कयौ, ‘‘लो देवीपुत्र! ओ घोड़ो। इण माथै चढ आप खंभरे पधारो अर तमाची ठाकरों नें मिळो कदाच मा री मेहर सूं आपरी पीड़ मिटै।’
‘पण भाईड़ा म्हारा सूं तो गटोई नी खाईजै। म्हूं घोड़ा माथै बैठूं कीकर?’ आंसग अंगेई नी।
भूवे चहुवांण बारठजी नें टेको देय ऊभा कीना अर ऊपाड़ेन घोड़े माथै बैठाय नैं, वाग हाथां में देतां कयौ, लो बारठजी बा, हमें सोरा पधारजो। जै माताजी री। मा आसापुरीजी आपरै भेळा।
भारमलजी, पुजारी ने आशीष देता अर मा आसापुरी नें ध्यावता, टपर टपर, खंभरा रै मारग व्हूवा जावै। वाह म्हारी मा, वाह म्हारी धणियांणी थूं छेवट इण चारण रो हेलो सांभळियौ, यूं गळगळा मन सूं देवी नें सुमरता जावै।
अठीनें तमाचीजी उण दिन आपरे वेरे, आंटो देवा आयोड़ा। आंबा री छांया में बैठा है। हाळी कोस हाक रियौ है अर वातां कर रिया है। तमाचीजी रै घरै जावा रौ आंणै होयो जद हाळी नें कयौ, अरे बळदेवा! थोड़ी ज्वार वाढेन (काटकर) लावै नी, घोड़ा सारूं घरे लेतो जाऊं।
‘पण बापू! ज्वार वाढवा जावूं, तो कोस बंद व्हे जावेला अर पांणी री व्हैती रेल टूट जावेला।’
‘थूं जा ज्वार वाढेन लाव, म्हूं थोड़ी वार कोस हांकू।’
हाळी ज्वार वाढवा गयौ, अर तमाचीजी कोस हाक रिया है। उण टांणै घोड़े ऊपर बैठा भारमलजी वाड़ी ऊपर घोड़ो रोक नें कोस हांकणहार नूं पूछियौ, भाई तमाचीजी गांम मेईज है के कठैई बाहर गांम गयोड़ा है?
खुद रा नांम रै पूछण वाळा असैंदा घुड़सवार नें तमाची पाछौ पूछियौ, भाई आप कुण हो अर तमाची रो क्यूं पूछौ? कांई कांम है?
भारमलजी बोल्या, ‘भाई म्हूं मारवाड़ रो चारण हूं। हिंगळाज री जात्रा गयो हतौ अर पाछा वळतां माताजी रै मढ तक आवतां पगां में पीड़ व्हे गई। मढ में म्हनैं जांणवा में आयौ के खंभरा वाळा तमाचीजी पाटा पीड़ करै। इण सारूं दवा करावा री आस सूं म्हूं आयौ हूं।
भारमलजी री वात सांभळ नें तमाची विचार में पड़ गया। सोच्यौ के मारवाड़ रौ ओ चारण म्हारा कनैं कांई आस लेय नें आयौ है। म्हनें कोस खड़तां देख ओ सोचसी कै म्हूं गरीब मिनख हूं। खातर इण नें म्हारी ओळखांण अबार नी दूं। विचारेन उण भारमलजी नें कयौ कै, हां कविराज, तमाची गांम मेईज है। इण दिस उणों रो घर है। घर रै बारै डैहली है ओठैईज वे नित बैठै। यूं गढवी नें आपरै घर रौ मारग बताय, आप खुद पाधरै मारग व्हेय, गढ़वी सूं पैहलां आपरी डेहली में जाय बैठा। तमाची नें डैहली में बैठा देख गांम रा दो च्यार मिनख आय गया अर जाजम जमी। अमल घोटांणौ। मनवारों होण लागी, अर उण टांणै भारमलजी तमाची रै डैहली ऊपर आय घोड़ो थांभीयौ। सांमी बैठोड़ा मिनखां नें घोड़े माथै बैठा बैठाईज जैमाता जी री करी। तमाची ऊठ परा गढवी रै सांमी जाय जैमाताजी री कर, हाथ राख नैं वांनै घोड़े माथैऊं उतारिया अर तमाची हाथ रे टेके वांनें आपरै आसन कनैं लाय नैं बैठाया। कनें ऊभोड़ा मिनख नें कयो के बारठजी रै घोड़ा नें पायगा में बांध, चारा पांणी रो सराजांम करौ।
तमाची भारमलजी रै कनैं बैठ नें पूछियौ, ‘देवीपुत्र ठेट मारवाड सूं अठै कीकर पधारिया।’
गढ़वी पूरी बात बताई के हिंगळाज सूं पाछा आवतां, माताजी रै मढ तांई उणों रा पग सूज गया, किणभांत मढ में लारै रया अर दूजा साथ वाळा आगे मारवाड़ कांनी वांनें लारै छोड़ मारवाड़ री दिस लीवी अर किण भांत देवी अरस-परस व्हेय वांनें तमाची तक जावा सारूं कयौ।
भारमलजी री वात सुण तमाची, ओरड़ा में गया अर कांई जड़ी-बूटीयों खरळ में घोट-पीस लुगदी बणाय तमाची री पाटा पीड़ सरू कीवी।
खासा दिनों तक तमाची भरमलजी रै पाटा बांधियां अर धीरे-धीरे पगां में सोराई वापरी। तमाची रै ओषद सूं भारमलजी दिने आयां साव साजा व्हे गया। चालण फिरण लागा। तमाची री सेवा भाव सूं भारमलजी घणा राजी होया। ऐक दिन चैथ रो परब। भारमलजी रे मन में आई, आज देवी रो दिन। तमाची म्हारी घणी सेवा कीवी। इण भलाई सारूं देवी नें अरदास करूं। कदाय सांभळै। ओ विचार कर वां तमाची नें कयौ, के घणा दिवस होया सिनांन दूजो कर, देवी री माळा फेर सूं। थे म्हनै पूजा रौ सांमान लाय दो अर म्हारै पूजा में बैठां पछै म्हनै बतळावजो मती। घणा दिन होया मा नें नी सुमरीं। आज म्हनें मा री पूजा करवा देजो।
तमाची घरे जाय, पूजा री सामग्री भारमलजी नैं लाय दीव अर भारमलजी देवी रै मंदिर में देवी नें सुमरण लागाः
‘हे मा थूं म्हनैं बचायौ। थूंईज म्हने मढ में बिना मांग्या दरसण दीना। जे म्हूं आखी ऊमर साचा मन सूं थारा नांम री माळा फेरी व्है अर जे म्हारा ऊपर थारी मेहर है तो अेकर व्हले म्हनैं अरस परस दरसण दै म्हारी मा! यूं अरदास कर मा रौ टूटतै काळजै अखंड जप करवा लागा।’
देवी देवता तो भाव रा भूखा। प्रेम रा भूखा। भारमलजी रै अंतस री पुकार देवी सांभळी। परघल (सवेरे) व्हेगा मंगळ आरती रै टांणै, मंदिर में ऐकाऐक तेज चांदणो होयो अर माता रै मढ में भारमलजी नें जिण मूरत रा साक्षात दर्शण होया हा वाहीज मूरत भारमलजी रै आंख्यां सांमी प्रकट होय बोली मांग मांग मांग।
भारमलजी आंख्या खोली अर जोवै तो मढ में दरसण दीना वाहीज मूरत आंख्यां सांमी ऊभी। भारमलजी थोड़ी ताळ तो बेभांन होयोड़ा बैठा रया। म्हूंडा सूं बोल निकळै नहीं। आंख्यां सूं आंसू झरड़ झरड़ झरै। पण पछै आपौ संभाळतां सोच्यौ के मां नै दर्शण देवण सारूं जिण संकल्प री मन में विचारणी करी ही वो मां कनेऊ मांगूं। अर पगां में पड़ धोक देय, हाथ जोड़, गळगळा कंठ सूं मांगणी करीः
‘हे मां! इण पराई धरती ऊपर आपहीज म्हनैं तारियौ। अबै इण सूं बधतो म्हारै कांई नी चाहीजै। म्हनैं साक्षात दर्शन देय म्हनैं न्याल कर दीनो। म्हारा जीव सारूं अबै इण सूं बधतौ कांई नी जोईजै। पण परदेस में म्हारा जैहड़ा अजांणिया मिनख नें म्हारै ओषद कर म्हनै साजो कीनो अर म्हारी रात अर दिन सेवा करी उण निमखीपणा रै पूतळा तमाची नैं कांई बक्षो तो म्हारौ करज ऊतरै। उण रौ करज उतारवा री म्हारा में आसंग नी है। आपईज उण नें न्याल करावौ।
भारमलजी रै हीया सूं निकहियोड़ा बोलां सूं देवी राजी व्हेय बोल्या, ‘‘तमाची नें कच्छ रौ राज दीनो।’’ भारमलजी बोल्या, आ वात म्हूं किणनेई कहूं तो कोई विस्वास नी करैला। इण सारूं कोई प्रमांण बक्षावौ।
देवी बोली, ‘‘जा! जिणनेई थूं इण वात री चरचा करै उनें कैहजे कै आज सूं छः महीना रै मांय मांय होथी नांम रो कोई रजपूत तमाची नें बुलावा आवै तो बिना संकोच उण रै साथै, पग में पगरखीयां घाल्यौं बिना व्हीर व्हे जावै। होथी उणा नैं कच्छ री गादी ऊपर बैठासी।
देवी कना सूं वरदांन लेय, भारमलजी, घणा हरक सूं मंदिर सूं तमाची रै घर कांनी पांवड़ा दीना। ठेट पूगेन देखे तौ तमाची दातण कर रिया हा, कनै पांच दस मिनख पण बैठा हा। भारमल जी ओठै अेक सोरठो कैय तमाची नें जुहारड़ा कीनाः
हरि आगळ इक हाथ, (का) तुं आगळ मांडीस तमा।
(हवे) राखै जे रघुनाथ, (तो) नर दूजो जाचीस नहीं।।
‘‘के हे तमाची! अबै रघुनाथजी री मैहर हुई तो, कै तो हरिजी रै सांमी हाथ पसार सूं कै तमाची सांमी। बीजा मिनख रै जाया सांमी मांगणी नी करूं।’’
तमाची सोच्यौ कै बारठजी साजा होय, माळा दूजी फेर, अबै घरै जावा सूं पैहलां म्हारा कना सूं कोई सखरी (अच्छी) सीख लेवा री नीत सूं ओ सोरठो कयौ है। आ सोच तमाची बोल्यौ ‘‘के बारठजी! आप ओ सोरठो कैय, म्हनैं म्होटो कीनो, पण म्हूं ठैरियौ घर रौ धणी। आप घणी आस लेय ओ सोरठो बोल्या पण इण सोरठा रै जोग म्हूं नी हूं कै आपनें कोई सखरी सीख देय राजी करूं।’’
भारमलजी बोल्या, के हे ठाकर! थारी स्थिति री जांण तो म्हनैं उण दिन ईज पड़गी ही, जिकण दिन म्हूं थारै वाड़ी माथौ आय, थारौ ठिकांणै पूछियौ अर थूं अरठ हाक रियौ हौ। पण म्है वा बात म्हारै मन मेईज राखी। आज म्हूं थनें कहूं कै थारा दिन वळीया। थूं कच्छ रौ धणी होसी। ऐ म्हारा आखर नी है पण साक्षात जोगमाया रा बोल है। चारण रा बोल कदेई झूठा नी पड़ै। इण वात री थूं गिणेन गांठ बांध लै।
भारमलजी रा बोल सुण, कनै बैठोड़ा मिनखां मांय सूं अेक जणौं हसतोड़ौ बोल्यौ, ‘‘बारठजी जे थांहरी आसीस सूं राज मिळतो व्है तो पछै कंजूसी क्यूं करौ? दिल्ली रो राज देवो नी!!’’
उण मिनख री वात सांभळ भारमलजी नें हसो आयगी। वां तमाची सांमी फुर परा कयौ, कै हे ठाकर! इण वात रो म्हनै व्हेम पेहलां सूंईज हतो। इण सरूं म्हूं माताजी ने अरदास कीवी कै, हे मा। म्हनैं कांई अेहठांण दै, जिण सूं मिनखां नै विस्वास होवै कै म्हूं कही वा बात साची है। अर मा म्हनें फरमायो कै, ‘आज सूं छ मास रै मांय मांय नळियावाळा होथीजी थारै घरै थने बुलावा आवै तो विना नाघा (देरी) कियां थूं उणों साथै व्हीर व्हे जाजे।’ आ वात माताजी रै श्रीमुख सूं निकळियोड़ी है सो थूं इण री पाळणा करी तौ कच्छ री गादी ऊपर बैठ, राज करसी।’
ऊपर प्रमांणै बात तमाची नैं कयौं पछी भारमलजी थोड़ा दिन तमाची रै घरे रया। तमाची घणा हीड़ा कीना अर व्हीर व्हेते टांणैं गुंजायस मुजब सीख देय, बारठजी नें मारवाड़ जावण री रजा दीनी।
मिनख जन्में जद वेह माता आय उण रा लेख लिखै तमाची जन्मियौ जद उण रा करम माथै कच्छ रौ राज लिख्यौ और व्हे मता रै लिख्योड़ा लेख ब्रह्माजी पण नी टाळ सकै। इण वात रो प्रतख प्रमांण तमाची है।
घटना यूं घटी कै, राव खेंगारजी (पेहला) पूरा कच्छ राज रा धणी हता। वां आपरै हाथ सूूं कच्छ रौ आधो राज आपरा लाडेसर छोटा साहेबजी ने देय वंटवाड़ो कर दीनो। हळवद रा रायसिंहजी रै साथै, लड़ाई में लड़ता, साहेबजी कांम आया। इण साहेबजी रै च्यार बेटा। राव खेंगारजी इण चारूं बेटां नें चोखी जागीरों देय उणों ऊपर ऊपर हांपर (संरक्षण) राखी। इणों च्यार बेटां में तीजो बेटो पंचायण। पंचायण रो पोतो होथी। होथी टणको रजपूत। कच्छ में उण री पूरी धाक। मिनख संको खावै। आपरा चूकता कबीला री पंचायती करै अर राजदरबार में पण होथी रौ दबदबौ।
इत्तो सब व्हेतां थकां होथी रै मन में अेक खटको। कच्छ री गादी ऊपर सूमरी रै जायोड़ो मिनख क्यूं?
हूवो यूं कै राव खेगार रै च्यार रांणीयां, पण ऐक रै ई बेटो नी। ऐक सूमरी (मुसलमांन रखैल) रखैल हती उण रै हमीरजी नांम रो ऐक बैटो। देवजोग सूं नवरस राज कर नैं राव खैगारजी सुरग सिधाया। राव रै रांणीयां रै कोई संतान नी इण कारण कच्छ रा ठावा मिनखां मसलत (सलाह) कर सूमरी रै बेटा नें कच्छ री गादी ऊपर बैठाय हमीरजी री आंण द्वाई फेर दीवी। होथी नें आ बात दाय नी आई। वो पूरा कच्छ में धूम-घूम इण वात री चरचा कीवी के कच्छ री गादी ऊपर मुसलमंन राज करै आ वात अजोगी। दिने आयों अठै मुसलमांनराज करसी अर अठै रा भोमिया, जाडेचा, सरवैया, कच्छी, काठी इत्यादि उणों आगे नमण करसी। आ वात तो नी बैठै।
मिनखां रै पण होथी री वात हीये बैठी। पण वात अठै आय अटक गई के सूमरी रै जाया नें गादी ऊपर सूं कीकर उतारणों? कच्छ रै महाजनों होथी नें धीजो दीनो के धन चाहीजै जितो म्हें देवां। लोकों कयौ म्हें थांहरै भेळा। भाईपा रा सरदारों अर दूजा जागीरदारां कयो, होथी म्हे थारै भेळा।
यूं सगळां नें ऐक मत्ते कर अबे होथी सोचण लागो के कच्छ री गादी ऊपर किण नें बैठाणैं? जे जागीरदारां मांय सूं किणनेई बैठावां तो आपस में मतभेद व्हेय कट मरसी। छेवट सोचतां सोचतां आ वात नक्की करी कै राव खंगार रैईज परवार मांय सूं गादी रौ धणी बणावां। राव खेंगारजी रा छोआ भाई अजाजी माड़ी गांम रा जागीदार। होथी जो घोड़े चढ, पूगा माड़ी गांम, अर अजाजी ने कयौ, ‘ठाकर चाल म्हारै साथै, थनें कच्छ रो धणी थिरपूं। अजोजी तो होथीजी री वात सुण थाबकीज गया। कयौ, ‘ठांकरां थे ढबो म्हूं म्हारी मां ने पूछेन आवूं।
अजोजी री वात सांभळ, होथी आपरो माथौ कूटियौ।
‘‘अरे जको मिनख आपरी मा नें पूछवा जावै, वो राज कैहड़ोक करसी। पण खैर! देखों ठकरांणी कांई कैहवै? जे रजपूतांणी रा गुण है। तो हांमळ भरसी न्हीं तो कच्छ रा भांग।’’
यूं सोचताईज हा, के अजोजी आय नें कयौ कै मा सा तो ना पाड़ै। वे कैहवै के म्हेतो अठैईज राजी हां। लीला छम्म वेरा वाडि़यां, घर में सोरा, कठै कच्छ जाय सूमरां सूं दुस्मणी मोल लेवां। ना भाई ना! म्हे अठेईज भला।
होथी ने रीस आई। बोल्या थांरा करम में कागला रो पग। थे राज करै जैहड़ा रियाईज नी, इण खातर आज कच्छ री गादी ऊपर सूमरी रै जायोड़ो बैठौ है। फिट है थांनै। यूं कैय होथी ओठा सूं घोड़े चढ निकळ गयौ।
अबै कांई करै? कठीनें जावै? कांई गवगम नी पड़ै। कच्छ रा मिनखां नें तैयार तो कर दीना के ज्यूं त्यूं कच्छ री गादी ऊपर दूजो कोई हकदार नी ओपे। होथे तो घोड़ो खंभरा गांम कांनी खडि़यौ। साथै आपरा तीन च्यार विस्वासू मिनख।
अड़धीक रात रा खंभरा पूगा। सोच्यौ तमाची नें पतवांणूं तो खरी। आपरै ऐक घुड़सवार नें कयौ, ‘‘म्हे गांम रै गूंदरै ऊभा हों, थूं जाय तमाची नें म्हारै कनै लेय आव।’’
धुड़सवार रात रा अंधारा में जाय तमाची रै घर री सांकळ खटखटाई। नींद मांय सूं ऊठो व्हेय, आंख्या मसळतो तमाची आडो (दरवाजा) खोल बारै आयौ। पूछियौ, कुण है भाई, अड़धी रात रौ?
घुड़सवार आपरी ओळखांण देतां कयौ, गांम रै गूंदरे नळीया वाळो होथी आपनें तेड़ाया (बुलाया) है।
होथी रो नांम सुण, तमाची नें मारवाड़ रै चारण भारमल री वात याद आई। सोच्यौ, अवस देवी रौ हाथ म्हारा ऊपर है। छ महीनों पेहलां चारण जे वात करी हती वा आज साची व्हेतां देख, तमाची तो आपरो घोड़ो पलांणेन घुड़सवार रै साथै व्हीर होयो।
गांम रै गूंदरै होथी ऊभो वाट देखतोईज हतो। होथी, तमाची नें देख घणौ राजी होयो। पूरी वात तमाची नें कही अर तमाची कच्छ री गादी ऊपर बैठण तांई हांमळ भरी। होथी कयो भली बात। म्हूं समाचार भेजूं जद थूं थारा मिनखां साथै ससतर पाती लेय पूरो संभ नें, कच्छ आय पूगजे। यूं तमाची ने समझाय होथी पाछौ वळियौ।
कच्छ रै गांम गांम ढांणी ढांणी जायय होथी कच्छ रौ पासो पळटण तांई मिनखां नें राजी कीना। तमांम जागीरदारां भायातां कच्छी, काठीयां, महाजनां, खेडूतां अर छत्तीस कोमां, सूमरी रा जाया नें कच्छ री गादी सूं उतार फेंकण री हांमळ भरतां होथी रौ साथ देवण री सौगन सपत खाई। इत्ती वात होथी इण भांत करी के इण रो भणकारो सूमरां ने नी पडि़यौ।
अबै सूमरा नें किण भांत कच्छ री गादी सूं उतारणों इण सारूं होथी ऐक जाळ रचियौ। उण तमाची रै बाप रायधण नैं कयौ कै दसरावै रै दिन कच्छ रा तीन च्यार गांम भांग (लूट)। अर कूक (फरियाद) लेय उण गांमराईज ठावा मिनखां ने दरबार में भेजजे। सूमरा धाड़ायतीयां रै लारै चढसी अर म्हे लारै सूं खाली गादी देख तमाची नें गादी ऊपर बैठाय उण री आंण द्वाई फेर दांला।
अठीनैं होथी तमाची नें समाचार भेज दिया के दसरावा रै दिन थूं थारा साथ साथै कच्छ दरबार में सूमरा नें मुजरो करवा रै बहानें दरबार में पूग जाजे।
इत्ती बात पक्की कर होथी मेह री बाट देखे ज्यूं दसरावा री बाट देखण लागो।
छेवट दसरावा रो दिन आयौ। तमाची रो बाप रायधण, होथी रै कयां प्रमांणे, कच्छ रा तीन च्यार गांम चूंथ (लूट) लीना।
अठी नैं कच्छ रौ दरबार थट्टो थट्ट भरियोड़ो। अमल गळीज रियो है। ढोली दमांमी गाय रिया है। चारण कवीसर दूहां रा झपाटा देय रिया है। ‘होथी तमाची अर वांरा टाळमा मिनख दरबार में दूजा सभासंदा रै साथै बैठा वातां रा झपाटा लगाय रिया है। होथी री नजर सिरे प्रोळ ऊपर। अर इण व्हेळा पांच दस मिनख दौड़ता दौड़ता भरिया दरबार में आय कूकिया (चिल्लाये) फरियाद! फरियाद! अरे धणियां मार न्हांकिया।
अर दरबार में, सब जणा उण आण वाळों सांमी ऐक मीट सूं जोवण लागा। आंखां ई आंखां में पूछण लागा कांई होयो? पण किणनेई ठाह नी आ कूक (फरियाद) काण री है। सिंघासण ऊपर बैठो सूमरो बोल्यो, ‘‘अरे कांई होयो? आ फरियाद काण री है? बोल नें कांई कैवो तो खरी।
अरे अंदाता! धोळै दिन रा बकांनीबाज मिनखां म्हांरा गांम लूट लीना। इण री फरियाद है मालकां। वों धाड़ायतीयां ने पकड़, सजा दिरावो।
सूमरे आपरे भाई बंधो अर सभा में बैठोड़ा मिनखां सांमी जोयो। कयो, तुरत वाहर चढो।
होथी अवसांण (मौका) देखनें बोल्यौ, ‘‘मालकां वाहर कुण चढै? धोळै दिन रा राज रा गांम भांगिया (लूटा) इण रो मेहणों तो गादी रा धणी नें लागै। गादी रो धणी वाहर चढै। मिनखां री रुखाळी तो गादी रा धणी रो कांम है।
होथी रा बोल ऊपर सगळा सूमरां आपो आप रा ससतर पाती लेय घोड़ा पलांणिया। होथी पण साथै। सूमरो पण कटक रो मांझी व्हेन आपरा घोड़ा, लूटारों रै लारै खडि़या।
आधेटै गयों, होथी रै सांनी (इशारा) करवा ऊपर, होथी रा अर तमाची रा मिनख लट्ट पाछा वळ घोड़ा कच्छ री दिस खडि़या। ताबड़तोड़ कच्छ पूग परा, तमाची नें गादी ऊपर बैठाय, तिलक कर, तमाची री आंणद्वाई फेर, तोपां घुराई। सूमरां जद तोपां रा घमीड़ा सुणियां तो माथे धूणियौ। कयौ धोखो। पण अबे घणी देर व्हे चूकी ही। कच्छ री गादी रो धणी तमाची व्हे गयो। लोगों नजर निछरावळों कर तमाची नें आपरो राजा मांन लीनो।
सूमरा हाथ मसळता रेय गया अर होथी आपरी मरदांनगी अर सांमधरमी बताय कच्छ नें मीयों रै जाळ सूं ऊबार लीनो।
देवी री भविसवांणी सही निकळी। वेह माता तमाची रे करम में कच्छ रो राज लिख्यौ वो खरो ऊतरियौ।
कच्छ री गादी ऊपर बैठां पछी तमाची नें मारवाड़ रौ रतनू चारण भारमल याद आयौ। ओठी (ऊंटसवार) घड़ोई भेज कविराज नें कच्छ तेड़ाया (बुलाया)। घणै मांन बारहठ नें आदरमांन देय कच्छ में वसीवांन कर भारमल जी नें कच्छ रा राजकवि थिरपिया (बनाया)। पाढी दर पीढी भरमलजी रा वंसज कच्छ रा राजकवि रैहता आया अर उण टाळा भी, कच्छ रै राज में ऊंचा ऊंचा ओहदों पर रैय, आज दिन तक सांमधरमी सूं आपरी सेवाओं देता आय रया है।
भारमलजी कच्छ पूगा जद राव तमाची सांमें जाय बाथ घाल भारमलजी सूं मिल्या। कवि आपरै हीया री बात ऐक गीत में इण भांत दरसाईः
।।गीत।।
इनकारा भूप मेलिया अळगा, घर हुं दुःख दाळिद्र गमण,
मैं जोधपुर हंुत मांगेवा तुंना चित्तवेओ तमण।।1।।
दत्त घडियो मिटिया इनदावा, पागां कोई न पाळे प्रेज,
जोधा तणी धरा हुं जाचण, जग भल मन कीधो जाड़ेच।।2।।
खाग तियाग बिहुविध खूटल, मैं मांगिया नही मनतार,
हुं आवियो मंडोवर हुंता, देखण मेघ सुतण दातार।।3।।
मुख देखतां समो दुःख मिटियो, जनम दलद्र गो जुओ जुओ,
भाराहरो भेटियो जगमल, हमें अजाची जमा हुओ।।4।।
।।छप्पय।।
आज तमण भेटियो, आज वलेओ दिहाड़ो,
आज तमण भेटियो, आज सुख हुओ सवाड़ो,
आज तमण भेटियो, भूख, दुःख सगळो भागो,
आज तमण भेटियो, मोहीमन अंबर लागो,
श्री बजाण निजर दीठो समो, मोजों दालिद्र मारियो
हव दीह मुझ सवळो हुवो, जद में तमण जुहारियो।।1।।
गज्ज हुंत ऊतरे कोई खर पूंठ विलंबे,
मेली अब मोरीओ, जाय कोई बावळ जुंबे,
हरी तठो परिहरे, हृदे कोई अवर संभरे,
ऊपरांता जाय तो, कोई पंच मुख प्रसारे,
जाडेज ईसी विध जेयता, जग सारे हुता जिके,
महाभाग जिके सेवग तमण, तिको कमण बीजो तके।।2।।
क्षिण राखे विरचणा, अवर चडणा ऊतरणा,
पहली प्रीत दाखवे प्रीत सोय पछे न करणा,
करे भाऊ कुभाऊ दीह मांही दस वेळा,
बोलावे भुख किंटिक, मन तासु नह मेळा,
चाहतो जूको सूक विअड़ों वात आव ओही वणी,
ताहरे जिसा सामा तमा, घणा रहीजे त्यां घणी।।3।।
।।दोहा।।
हुं तमराज वखाणने, वळीके करूं वखांण।
कमल सपेखे चंदहु, जाम प्रगटे भांण।।1।।
हुं तमराज वखाणने, वळीके करां वखांण।
सो छिलरी किम रही सके, ज्यारे घर महिरांण।।2।।
हुं तमराज जुहारने, वळीके करां जुहार,
आंखि तळे आवे नहीं, दूजो कोई दातार।।3।।
सही जोतां संसार, वळि जोतां षटत्रीश वंश।
दाखव कोई दातार, तू सरिखो बीजो तमा।।4।।
में तरवर ओळगियो, दूजा नावे दाई।
वंश बत्रीसई जोवतां, अकव सुभाव न माई।।5।।
महण (समंदर) समीवड़ मौज नें, महण समोवड़ मंन।
तुं तुठे बाजे तमा, रांका घरे तमन।।6।।
तांमा, लाभा जुगतणो, तुज न लगो वाऊ।
घणे गुणंदे घेरियो, रहे पच्छमो राऊ।।7।।
लख आवे लख ओगळे, लख वळी आले अथ्थ।
तमडे मेघ नरिंदरे, जगसूं घाती बथ्थ।।8।।
तमण शिलामती तागलग जां लगसूरज चंद्र।
आभ बीच धु्र ज्यां अचल, अवचल ज्यां लग इन्द्र।।9।।
तमण तहां लग ताहरो, जग अविचल जसवास।
हरिहर ब्रह्मा ज्यां हुवे, मेर धरण आकास।।10।।
तुं दीठे ठरियां तमा, भुज नयण महिराण।
गुण रत्ता दत्ता गणां, सुरता चतुर सुजाण।।11।।
जे तरवर ओळगियो, पछम तणो पतसाह,
सो कवि मेघ सुनंद के, आप सरीख कियाह।।12।।
आपरा जस रा दूहा भारमल रै म्हूंडा सूं सुण तमाची पाछौ ऐक दूहो चारण सायं कयौः
बेआ चारण बापड़ा (पण) भारमल मुंजो भा।
मुं अजाची थपेआ, जे के मझें राणा रा।।