रे मन चंचल
कानों मे है गूंजता,
झालर जैसा नाद।
जब भी तुझसै बात की,
मन का मिटा विषाद।।
रे मन चंचल बांवरै,
यहां तुम्हारा कौन।
जिसको तू अपना कहै,
वह पंछी है मौन।।
रे मन चंचल बांवरै,
काहै भया उदास।
जो तेरा था ही नहीं,
उससे कैसी आस।।
रे ! मन चातक क्यों करै,
स्वाति बूंद की आस।
बादल की लघु बूंद से,
बडी तुम्हारी प्यास।।
रे मन चंचल बांवरै,
परे देख आकास।
जिससे पाएगा सखा!,
उडने का अहसास।।
रे मन चंचल बांवरै,
डरा देख दिनमान।
दुःख बदली छँट जायगी,
होगा नवल विहान।।
मन वीणा के तार का,
तूटा है एक तार।
अब कैसै संगीत हो,
गया राग-दरबार।।
रे मन चातक मांग मत,
रख तू इतना ध्यान।
वरना तेरी प्यास का,
होगा सुन अवसान।।
रे मन चातक बांवरै,
प्यास बडा अहसास।
उसको सखा! सहेज रख,
मन कोने के पास।।
मन का पाहुन है नही,
है बस उसकी याद।
उमडा पावस मेघ सम,
आंखों मे अवसाद।।
~~नरपत आसिया”वैतालिक”