रैवूं तो कांई? म्है अठै पाणी ई नीं पीवूं!!

भलांई आदमी किणी री मदत करण रै ध्येय सूं उणरो मदतगार बणर जावो पण सांमली जागा पोल अर कमजोरी देख कणै मदत करणियो दुस्मण बण बैठे कोई ठाह नीं लागे। मंडोवर सूं राव रिणमलजी आपरी बैन हंसाबाई रै कैणै सूं बाल़क राणै कु़ंभै री मदत करण गया पण उठै जाय रिणमलजी देखियो कै सिसोदियां रा हाल सफा माड़ा है। चाचा अर मेहरो किणी री गिनर नीं कर रैया है। रिड़मल रै खांडै में तेज हो, उणां री भुजावां में बल़ हो। उण बेगो ई आपरो प्रभाव जमा लियो। कुंभै रै वैरियां नैं गिण-गिण मोत रै घाट उतार दिया। ऐड़ै संक्रमण काल़ में रिणमलजी इतरा ताकतवर होयग्या कै वे किणी री गिनर नीं करता। सिसोदिया शंकित रैवण लागा अर उणांनै डर लागण लागो कै कठै ई रिणमलजी ‘आई तो ही छाछ मांगण अर बण बैठी घर धणियाणी‘ वाल़ी गत नीं कर देवै!!आ नीं होवै कै चित्तौड़ रा धणी राठौड़ बण बैठे!!
उणां आ बात राजमाता हंसाबाई अर राणा कुंभा नै बताई अर ऊंधा-सूंवा भल़ै भ्रमाय उणां नै रिणमलजी रै पेटे पूरा शंकित कर र रिणमलजी नै मारण सारु मून हां भरायली। पण सिंह रै मूंडै में हाथ कुण देवै। सेवट रिणमलजी री दासी भारमली सूं सांठ-गांठ कर सिसोदियां रिणमलजी नै दारू रै नशै में मारण रो पक्को मतो कर लियो। रिणमलजी नै पूरो शक होयग्यो कै सिसोदिया घात करैला! उणां आपरै संबंधियां रा डेरा गढ सूं बारै तलैटी में दिराया। एक दिन मोको आय ई गयो। नशै में चूंच रिणमलजी नैं भारमली री सहायता सूं मांचै रै बंधाय अर सिसोदिया इण सूर माथै राटकिया।
ज्यूं ई तरवारां री चौकड़ी पड़ी अर वो वीर झिझकियो पण बंध्योड़ो उठ नीं सक्यो पण वहा रै!रजपूत हियो हेठो नीं कियो अर ऐड़ी हालत में ई अठारै सिसोदियां रो घाण कियो-
‘चवदै अनै पाड़िया चार!!’
रिणमलजी नींद में आपरी कटार जिण आपांण सूं काढी उणगत घणा-घणा जागता नीं काढ सकै-
अपूरब बात सांभल़ी ऐही, रिम चूकै म्रित दिन रयण।
सूते तेहीज काढी सुजड़ी, जागत काढै घणा जण।।
इण धमाचौकड़़ी नै देखर उठै ऊभी एक ढोलण तलैटी में सूतै रिणमलजी रै बेटे जोधाजी नै सुणायो-
चूंडा अजमल आविया, मांडू हूं धक आज।
जोधा रणमल मारिया, भाज सकै तो भाज।।
सिसोदियां रै इण विसासघात नै दरसावता कवि चानणजी ‘रिणमल रा दूहा ‘ में लिखै-
तैं थापै त्रिसींग, मेवाड़ो मुरधर धणी।
जोवै जंगम लीग, घरि आया वैसासघत।।
चाचो मेरो चूर, राण जु ते रयण।
पैठो कल़जुग पूर, कूंभै मंत्र कूड़ा करै।।
जोधैजी सुणियो, सुणतां ई अजेज सिसोदियां रै डर सूं बाप नै दाग दियां बिनां ई आपरो लस्कर लेय रवाना होया, सही कैयो गयो है कै आप मरतां बाप किणनै ई याद नीं आवै! जोधैजी ई परिस्थियां प्रतिकूल देख मारवाड नैड़ो लियो। उण बखत रिणमलजी रै साथै जैसलमेर रा भाटी सत्तोजी अदम्य वीरता बताय काम आया।
रिणमलजी सतोजी नै कैयो कै-
“सताजी थे ई जोधे रै भेल़ा उठै डेरां में जावो परा!! अठै कणै ई शेखै नै भातो आ सकै!!”-
जणै सतैजी कैयो कै “पछै म्हारै जीव री कांई कैल़ास घोटणी है!! मरणो तो है ही पछै आपनै मोत रै मूंडै छोडर म्है कांई धनकनामो काढूंला!! आपरै हाथ लगावण सूं पैला सिसोदियां नै सतै सूं मिलणो पड़सी!!”
अर आ ईज होई। ज्यूं ई सिसोदियां रिणमलजी माथै चूक कियो अर उणी बखत सतोजी सिसोदियां सूं भिड़ियो। घण जीतै अर जोधार हारै!! सतोजी ई सुरग रा वटाऊ बणिया-
सार पहाड़ां सेर, पड़ियो प्रतमाल़ी हथो।
जादम जैसलमेर, सरगै जल़ चाढै सतो।
राणै कुंभै मुनादी कराय दीनी कै रिणमल नै कोई दाग नीं देवैला! छो लास नै चीलां खावै! आ बात जद मेवाड़ में बसणिया मारवाड़ रा चावा कवि चानणजी खिड़िया सुणी तो उणांरो सामधरम अर स्वाभिमान जागियो। उल्लेखणजोग है कै हंसाबाई री सगाई में चानणजी री महताऊ भूमिका ही इणी कारण ऐ हंसाबाई रै कैणै सूं मेवाड़ आयग्या। कोई कैवै कै इणांनै कपासण दी कोई कैवै लावा सरदारगढ दियो गयो पण नैणसी रै मुजब इणांनै कंचुबरो अर गुलछरो दो गांम दियोड़ा हा। मेवाड़ में चानणजी री सम्मानजनक स्थिति ही। उणां मुनादी री चिंता नीं करतां थकां कैयो कै-
‘राव रिणमल म्हारो धणी हो, म्है उणनै दाग देवूंलो ! देखूं कुण माई रो लाल म्हनै रोकै!’ चानणजी री हूंस देख सिसोदिया पाछा सिरकग्या-
सुत बंधव चाकर सगा, सब भग्गा सथ छोड़।
चिंता रिड़मल री चिणी, चानण गढ चित्तौड़।।
अर्थात उण बगत रिणमल रा पुत्र, भाई, चाकर, अर सग्गा आद छोडर नाठग्या हा पण कीरतधारी चानण आपरो सत कायम राख रिणमल नै दाग दियो।
इणी सारु चानणजी नै रिणमलजी रो पच्चीसमो कीर्ति पुत्र मानियो गयो है-
चोबीसूं रिड़माल रा, धर लाटण अवधूत।
कीरत पूत पच्चीसमो, है तूं चंद सपूत।।
राणै, चानणजी नै कैवायो कै इणी घड़ी म्हारी जागा छोडी दी जावै। चानणजी ई उणी लहजै में जाब दियो कै “लोकधरम नीं मानणियै ऐड़ै राज में म्है रैवूं तो कांई ? पाणी ई नीं पीवूं!!”
नैणसी ‘मारवाड़ रै परगनां री विगत भाग एक (37) में लिखै-
“राव रिणमल नुं कुंभै मार नै लोथ पड़ी राखी, दाग देवण दियो नहीं. तिण समै चारण १चांदण खड़ीयो लुबट रो बेटो पाघड़ी गांव सुराचंद री राणै मोकल़ कन्है आयो राणै २गांव मेवाड़ रा देने राखियो थो कंचुबरो, गुलछरो। पछै चारण खड़ीये मरण री अखतीयारी करनै रिणमल री लोथ उपाड़ नै दाग दीयो। पछै फूल गल़ै बांध नै गंगाजी ले गयो। पछै चांदण मेवाड़ काई गयो नहीं मारवाड़ आयो। तठा पछै खड़ीया चांदण रा बेटा पोतां नुं राव रिणमल रा बेटा पोता इतरा गांव उण उपगार रा दिया। ”
चानणजी खिड़िया उणी बगत राणै रा दिया गांम त्याग दिया, आपरो परिवार तोडै रवाना कियो अर खुद रिणमलजी रा फूल लेय तीर्थां गया।
घणा वरसां पछै राव जोधाजी आपरै भुजांबल़ मंडोवर माथै पाछो शासन थापित कियो जणै सबसूं पैला पुरोहित दामैजी नै मेल कविवर्य चानण नै तेड़ाया अर गोधेल़ाव गांम देय कृतज्ञता ज्ञापित करी। किणी कवि कैयो है-
चूक हुवो चित्तौड़, राव रिड़माल मराणो।
दीधो चानण दाग, राण कुंभेण रीसांणो।
मत्ती रहो मेवाड़, कोप मुख ह़ूतां कहियो।
सारै गया सराह, ताम कव तोडै रहियो।
घर वाल़ जोध तेड़ावियो, पुरोहित दामो परठियो।
कर मोर नेग कव चंद नै, गोधैल़ाव समप्पियो।।
चानणजी डिंगल़ रा नामजादीक कवि होया जिणां री रचनावां आज ई डिंगल़ री धरोहर मानी जावै-
थल़राय करै थट खेचर खेखट,
फेर फरंगह फोरि फिरै।
हीडै करि घूंघट मद पियै मट,
कूकट मंकट वीर करै।
ओपै घट उघट ताल तलंगट,
भ्रमर पंमण जेम भमै।
आधोफर चाचर आनंद ओसर,
रंग हो चाल़कनेच रमै।।
(चाल़कनेच रो छंद)
ऐड़ै लोकधर्म पाल़णियै कवि नै नमन।
~~गिरधर दान रतनू दासोड़ी