रिषिवर धर रूप अनुपम तरुवर

ओरण ओपै आप सूं, गिरिवर सरवर कूप।
रे सज्जन तरूवर तनै, ध्यावूं कर कर धूप॥1
तरवर ! थारे तन तपै, पण दे शीतळ छांय।
रे उपकारी संत सम, गुण तौ नरपत गाय॥2
भाठौ माथै फैकता, लारै पडता लोग।
तरुवर थूं फळ समपतौ, वंदण करवा जोग॥3
🌺छंद रेणकी🌺
आतप मँह छाय करे जन जन औ, रुत पावस सिर त्राण करे।
शुभ पवन सुबांटत शीतल सुंदर, विहग सदा जिण पर विहरे।
दिल सूं उपकार करे वह हरदम, जिणरो सभी बखाण करे।
रिषिवर धर रूप अनूपम तरुवर, कायम जग कल्याण करे॥1
तीरथ सरवर वळ ताल नदी तट, वट गुलर अस्वत्थ वळे।
बिच ओरण केर बोर बण ओपत, जंगळ गिर पर जोत जळे।
करता बहु नीड विहग घण कलरव, इसडो कुण उपकार करै।
रिषिवर धर रूप अनूपम तरूवर,कायम जग कल्याण करे॥2
मिळतौ घण गूंद छाल मह निरमळ, लाख घणी इणपर लगती।
जप तप जिण हेठ तपै सिध जंगम, भाव समेत करै भगती।
फळ फुल जिणां पर फाबत फूटर, पशु खग कीटक पेट भरे।
रिषिवर धर रूप अनुपम तरूवर, कायम जग कल्याण करे॥3
उम्बर बड पीपळ तळ धर आसन, थान दिगंबर देव थपै।
जोगण अरू नवलख जाळ विराजत, नीमड भैरव कष्ट कपै।
कोटिक दस तीन तीन सुर बैठत, रूंख तणी सुभ छांय करे।
रिषिवर धर रूप अनुपम तरूवर, कायम जग कल्याण करे॥4
ओखध तरू आप धनंतर इळ जड, पात छाल फळ फूल परम।
साजा करतौ उपचार सदा कर, विरछ जगत मँह बैद वरम।
मन तन वप पीड हरत ज्वर हरखत, आप विनां कुण अवर अरे!
रिषिवर धर रूप अनुपम तरूवर, कायम जग कल्याण करे॥5
हरियल हरियल वन भाखर हरदम, फूल तणां चितराम फबै।
पीछी धर हाथ सदा परमेसर, सुंदर ढोळत रंग सबै।
परतख जगदीश तणां पयगंबर, सब रा मन रा सोग हरे।
रिषिवर धर रूप अनूपम तरूवर, कायम जग कल्याण करै।॥6
लंगर मरू, जंगल रूंख चलावत ,फळ कंद फूल घणाई फळै।
अनपूरण आवड कर घण अनुग्रह , बिरवड बण बण वळै वळै।
इण री महिमा छायी मह अवनी, मन ओरण सुण मोद भरे।
रिषिवर धर रूप अनुपम तरूवर, कायम जग कल्याण करै॥7
हरपळ मन निरखत होवत हरखित , दरखत दुख दुरदान्त दळे।
सुख उपजत तौ कर सैवत अहनिस, घन मन रा अंधार गळै।
मत धर उर दोष मनुज रा मुनिवर, कल्पक नरपत अरज करै।
रिषिवर धर रूप अनूपम तरुवर, कायम जग कल्याण करै॥8
🌺दोहा🌺
हरि हर अज सब आप में, देव कोटि तेंतीस।
रूंख नमन रिषिराज सम, जगचावौ जगदीश॥
~~नरपत दान आसिया “वैतालिक”
बहुत अच्छा वैतालिक महोदय,