रुद्राष्टकम – हिम्मत सिंह कविया नोख

Mahadev

।।गोस्वामी तुलसीदास रचित रुद्राष्टकम नमामी शमीशान निर्वाणरूपम का भावानुवाद।।

परणाम करूँ विभुव्यापक को ब्रह्म वेद सरूप उद्धारक को ।
निरवाण सरूप महा शिव को दिस ईशन के प्रभुधारक को ।।

थिरहो निज रूप गुणातित भेद नही मनसा कुछ भीतर में ।
नभ चेतन रूप सदा शिव शंकर ऐक अनादि चराचर में ।।
पट धारण अंबर आप करो शशि सूरज तेज उजाळक को ।
परणाम करूँ विभुव्यापक को ब्रह्म वेद सरूप उद्धारक को।।1

त्रिगुणातित मूल उंकार तुरीय परे मति वाणिज इंद्रिय से ।
विकराळ महा हर हे किरपालु गिरीश सुकोमल हो हिय से ।।
गुण धाम परे जग से परमेसर तार मनै भव नारक को ।
निरवाण सरूप महा शिव को दिस ईशन के प्रभुधारक को।।2

हिम आलय के सम गौर शरीर छवी गमभीर सुशोभित है ।
तन कौटिन काम प्रकास समान सिरै शुभ गंग विराजित है ।।
भळके शशि दूज अती मनमोहक सांप गले शिव धारक को ।
परणाम करूँ विभुव्यापक को ब्रह्म वेद सरूप उद्धारक को।।3

हिलता कुण्डला श्रवणो झलकै भृकुटि अर नैण विशाल अहा ।
मुख मोद कमोद खिलै जिम लागत नील सुकंठ दयालु महा ।।
सिंघ चामर धारण गात सदा मुण्डमाल गलै सिणगारक को ।
निरवाण सरूप महा शिव को दिस ईशन के प्रभुधारक को।।4

परचण्ड महा रूद्र देह छ्बी जगदीसर आदि अगोचर हो।
त्रय ताप विनाशक कौटि रवी परकाशक आप शिवाकर हो ।।
कर धारण शूल भवानि पती मन भाव हि प्रेम उजारक को ।
परणाम करूँ विभुव्यापक को ब्रह्म वेद सरूप उद्धारक को।।5

लय कारण रूप कला सु परै शुभ मंगल कारक काल जयी ।
त्रिपुरारि मनोमथ हे मदनारि हरो मन मोह विकार क्षयी।।
सचिदा नंद हे शिव शांब प्रसीद दया कर तारण नारक को ।
निरवाण सरूप महा शिव को दिस ईशन के प्रभुधारक को।।6

नहिं शांति मिलै इण लोक कदा परलोक नही त्रय ताप हटे ।
उमियापति के चरणों बिन चारण चैन कठे सुख शांति कठे ।।
सब जीव् चराचर के हिरदै नित ध्यान करूँ भव तारक को ।
परणाम करूँ विभुव्यापक को ब्रह्म वेद सरूप उद्धारक को।।7

जप जाणू न योग न पूजन ही बस ऐक सुमीरण नाम प्रभौ ।
जळतो रहु रोग जरा भव बंधन पार लगा तरणी तु विभौ ।।
रिछिया कर दींन पुकार सुणौ नित नाम रटूं दुःख टारक को ।
नीरवाण सरूप महा शिव को दिश ईशन के प्रभु धारक को ।।8।।
रुद्राष्टक रो नित पाठ करै
दुख दारिद शूल संतापहरै।
धर विप्र वचनतनमन सिंवरे
शिव शम्भू हीमत मैहर करें।
~~हिम्मत सिंह कविया, नोख

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