सब बातन को सार

बड़ो को सनमान अरूं छोटो को स्नेह धार,
लाग लपटान बिनां खरी खरी कहबो।
झूठ जँजाल अरूं छदम को पँपाल त्याग,
हक की हजार लेय बेहक को तजबो।

आडंबर वेश नहीं धूर्त को आदेश नहीं,
कथनी रू करनी में भेद बिनां रहबो।
अरे भाई ! गीध सब बातन को सार यही,
सज्जन सों प्रीति अरूं नीति मग बहबो।।

शिबि वालो मांस अरूं दधिची को हाड जैसे,
अन्न रंतिराज हूं को सुन्यो है बडाई में।
हरिचंद को प्रण रू मोरधज की करोत,
बलि – वचन रू दान कर्ण गरवाई में

वीकम रू भोज जांकै कहां मिले खोज कहो,
सोरम सुजस बहै ग्यान की हथाई में।
सांगे की कंबली अरूं पदम को अफट खत!
अमर है गीध सारे ऐते कविताई में।।

~~गिरधर दान रतनू दासोड़ी

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