सच है वो समंदर के

🍀गज़ल🍀
सच है वो समंदर के अंदर नहीं गया है।
आँखों से खौफ का पर मंजर नहीं गया है।।
हाँ उसको मारने की, दी थीं सुपारियाँ पर,
कातिल ही वार करके खंजर नहीं गया है।।
सरसब्ज खेत आते हों राह अब भले ही,
यादों से वो पुराना, बंजर नहीं गया.है।
जिस दिन न उसे देखा, जब भी न उसे सोचा,
लमहा वो जिस्त का ही बहतर नहीं गया है।।
चौखट को चुम आशिक, निकला है बुत की जबसे,
दरगाहों मस्जिदों या, दर पर नहीं गया है।
आए है हाथ खाली, जाएगे हाथ खाली,
कोई जहाँ से कुछ भी लेकर नहीं गया है।
नरपत करे है बातें चंदा की, चांदनी की,
वो शख्श जो कीं उसके उपर नहीं गया है।।
©नरपत आसिया “वैतालिक”
Beautifull hukam