सदगुरू का बंदा ब्रह्मानंदा

।।दोहा।।
देख्या सब दुनियांण मैं, खट दर्शन कुं खोज।
वरणाश्रम व्यवहार के, सब डोलत ले बोझ।।१
पंडित सन्यासी प्रसिध, जोगी जंगम जांण।
सेख, भगत अरू सेवडा, सब में खेंचातान।।२
।।छंद त्रिभंगी।।
भट वेद पठंदा, संध्या वंदा, कर्मन फंदा, उर्झंदा।
ओंकार जपंदा, मौन रहंदा, अंतर मंदा, मुर्झंदा।
पुनि कथा कहंदा, लोग ठगंदा, विकल फिरंदा, वर्तंदा।
सदगुरु का बंदा, ब्रह्मानंदा, साँच कहंदा, सब हंदा।।१
सन्यास सहूता, खिन न थरूता, फिरत वगूता, जगखूता।
माया के पूता, नगन रहूता, धरत भभूता, धनधूता।
भैरव अरु भूता, जपत संजूता, रंडीरूता, नतरंदा।
सदगुरु का बंदा, ब्रह्मानंदा, साँच कहंदा, सब हंदा।।२
जग क्हावतजोगी, सब विध भोगी, अंतर रोगी, अघ ओघी।
मद मांस भखोगी, भूत जपोगी, लज्जा खोगी, कामोघी।
तन कान फटोगी, बेशुध होगी, फिरता पूंगी, फूंकंदा।
सदगुरु का बंदा, ब्रह्मानंदा, साँच कहंदा, सब हंदा।।३
अरु जंगम क्हावै, लिंग लटकावै, घंट बजावै, शिव गावै।
पुनि भीख मंगावै, पैसा पावै, त्रपत न आवै, तन तावै।
फिर स्वान भसावै, लोक हँसावे, भेख लजावै, भरमंदा।
सदगुरु का बंदा, ब्रह्मानंदा, साँच कहंदा, सब हंदा।।४
फकिरा अरु फरता, कलमा करता, अंतर जरता, नँह ठरता।
जीवन कुं मरता, शंक न धरता, जूहर करता, नहि डरता।
बोलत बडबडता, कंठ हुंकरता, पछिम धरंता, घूमंदा।
सदगुरु का बंदा, ब्रह्मानंदा, साँच कहंदा, सब हंदा।।५
आखत अरिहंता, जंता जंता, करम कथंता, भरमंता।
विषयां वरतंता, कंचन कांता, अंतर शांता, नहि अंता।
अरु करम करंता, नहि डरपंता, नहि भगवंता उचरंदा।
सदगुरु का बंदा, ब्रह्मानंदा, साँच कहंदा, सब हंदा।।६
क्हावत वैरागी, लूब्धा लागी, अंतर आगी, त्रियरागी।
ज्वाला विष जागी, माया पागी, अकल बिकागी, निरभागी।
बांधत घर बागी, लज्जा त्यागी, धन अरु ढोंगी, धारंदा।
सदगुरु का बंदा, ब्रह्मानंदा, साँच कहंदा, सब हंदा।।७
भगती के भगला, बातन फगला, अंतर दगला, विष ढगला।
देखत टगटगला, डोलत नगला, थिर थव पगला, जग ठगला।
बाहर गति बगला, अंतर कगला, वाका संगला छोडंदा।
सदगुरु का बंदा, ब्रह्मानंदा, साँच कहंदा, सब हंदा।।८
गल धारत माला, अंतर काला, विषय बिहाला, चित चाला।
मजबूत मसाला, तृप्त रसाला, ठाकुर थाला, पंडपाला।
मन क्रोध कराला, जरत जंजाला, अंतर टाला, मुर्झंदा।
सदगुरु का बंदा, ब्रह्मानंदा, साँच कहंदा, सब हंदा।।९
वैरागां झंडी, देखत भंडी, आतम खंडी, कर्मकँडी।
उर जडता उंडी, ममता मंडी, टीला टूंडी, पाखंडी।
राखत घर रंडी, सब विध छंडी, पाथर पींडी पूजंदा।
सदगुरु का बंदा, ब्रह्मानंदा, साँच कहंदा, सब हंदा।।१०
न्हावत जल नीका, धारत टीका, गल कंठीका, तुलसी का।
अरु मीठा जियका, कपटी हिय का, नाहिन ठीका, मुर धीका।
बाना हरजी का, बिकल बिल्लीका, किंकर त्रिय का, विष कंदा।
सदगुरु का बंदा, ब्रह्मानंदा, साँच कहंदा, सब हंदा।।११
भेखन के धारी, सब में ख्वारी, अंतर भारी, अहँकारी।
बोलत मुख गारी, राखत नारी, माया यारी, व्यापारी।
जब मंगलकारी, गुरु मिल्यारी, भ्रमणा टारी, जगफंदा।
सदगुरु का बंदा, ब्रह्मानंदा, साँच कहंदा, सब हंदा।।१२
।।छप्पय।।
गुरु पुरन अद्वैत, मिले जब भर्म मिटाया।
गुणातीत दे ग्यान, असत अग्यान नसाया।
करुणा सिंधु कृपाल, हाथ जब सिर धर दीन्हौ।
काल व्याल विकराल, ताहि से निर्भय कीन्हौ।
संसार विघन सब मेट के, पार किया भव फंद से।
कहै ब्रह्ममुनि ममता टरी, सदगुरु सहजानंद से।।
~~ब्रह्मानंद स्वामी