साध होयग्या तोई चारणपणो नीं गयो

जद- जद ई खत्रवट में खोट दीसी उण बगत चारणां खोट काढण खातर सबदां री चोट करण सूं नीं चूका। किणी कवि सही ई कैयो है –

खत्रवट देखै खोट देखै दुख पावै दुसह।
चारण चुभती चोट हिरदै सबदा री हणै।।

ऐड़ो ई एक किस्सो है जोधपुर महाराजा विजयसिंह री बगत रो। महाराजा मारवाड़ रै च्यार मोटै सिरदारां नैं आपरो गुरु रै मोकाण रै मिस बुलाय मरा दिया। इण च्यारां में एक पोकरण ठाकुर देवीसिंह ई भेल़ा हा –

केहर दोलो छत्रसल दोल़ो राजकंवार।
मरतै मोडै मारिया चोटी वाल़ा च्यार।।

देवीसिंह चांपावत नामी वीर पुरुष अर स्वामी भक्त राजपूत हा। आपरी रिया में लोकप्रिय ई हा। आ खबर पोकरण पूगी। लोगां मातम मनायो। बात उडती उडती दादूपंथी ब्रह्मदासजी वीठू कन्नै ई पूगी।

वीठू ब्रह्मदास पोकरण इलाके रै गांव माड़वा रा वासी हा अर असली नाम विसनदान हो। बड़बड़ी वाल़ो रोग आयो उणमें विसनदान रा च्यार बेटां सैती सगल़ो परिवार मर पर होयो। इणां री ऊमर अस्सी वरस री। विराग उपड़ग्यो। दादू पंथ नैं अपणाय लियो। नामी भगत होया। इणां री भगतमाल़ चावी।

जद डोकरै सुणियो कै दरबार बिनां गुनाह ई देवीसिंह नैं मराय दिया। डोकरो दरबार में पूगा अर एक संपखरो गीत सुणायो जिणमें महाराजा नैं जोरदार ओल़भो हो। गीत रा भाव ऐ हा कै देवीसिंह नै किणी रण में आगै करता यूं धोखै सूं नीं मरावणा हा। अआगै कदै ई मारवाड़ माथै आफत आवैली तो उण महाभड़ नैं चितारला। जे ऐड़ा ई तीसमारखा हा तो गज दिल्ली माथै क्यूं नीं मेलिया। गीत री छेहली पंक्ति ही –

हाकणो होतो विजा दिल़्ली ऊपरै हठाल़।

खरी अर खारी बात सुण दरबार रा तोर खंचग्या पण एक चारण अर बो ई साध होयोड़ो ! रै कीं कर नीं सकिया।

दरबार कैयो “बाजीसा ! साध होयग्या तोई चारणपणो गयो नीं।”

~~गिरधरदान रतनू दासोड़ी

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