संतन स्वामी तो सरणं

।।दोहा।।
सुद्ध मन सूं जन सेवियां, रीझ रहै रिछपाळ।
गज उद्धारण गरुड़ तज, दोड़्यो दीनदयाळ।।
भारथ मे करियो भलां, अलख काम अदभूत।
परमेसर तैं तारिया, पंखण वाळा पूत।।
गोविन्द पूरै गरज तूं, करै अरज झट कान।
बेहद रुप बणाविया, भगत काज भगवान।।
करुणाकर तू बेग कर, दीन बंधु दुख दूर।
भव बंध तोडै़ भगत रा, जाळै फंद जरूर।।
किरपा निध तूं कानडा़, नमो रांम रघुनाथ।
धिन माधव मोटा धणी, जग वंदै जगनाथ
प्रगट काज पैळाद रै, नरहर थंभै नाथ।
हणियो नख हिरणख हथां, सांप्रत तैं समराथ।।
।।छंद – त्रिभंगी।।
पैहाळ तिहारो भगत पियारो, निस दिन थारो नाम रटै।
हिरणख हतियारो ले घण लारो, झैल दुधारो सिर झपटै।
हरनर ललकारो कर होकारो, दैत बकारो द्यो दरणम।
नमहूं घणनामी जय जगजामी, संतन स्वामी तो सरणम।।1
इन्दर कोपायो ब्रिज पर आयो, वारिद लायो वरसायो।
धड़हड़ धररायो जोर जतायो, प्रळै मचायो पोमायो।
नख गिर ठैरायो इन्द्र नमायो, धिनो कहायो गिरधरणम।
नमहूं घणनामी जय जगजामी, संतन स्वामी तो सरणम।।2
अजमेल अलामी बहतो बामी, कुटळ हरामी खळकामी।
ईखै जम सामी सकंप सकामी, राड़ मचामी अविरामी।
उचर्यो सुत नामी नाम अमामी, ताऱख गामी पख तिरणम।
नमहूं घणनामी जय जगजामी, संतन स्वामी तो सरणम।।3
भीलण मोदेही छाब भरेही, बोर सबैही चाखैही।
फीका फैंकेही सरस संचेही, ऱघुवर तेंही राखैही
नहीं ऐंठ गिणेही तूं बड नेही, भेंट मनेही पेट भरम।
नमहूं घणनामी जय जगजामी, संतन स्वामी तो सरणम।।4
अहल्या रिखनारी रूप अपारी, इन्दर जारी करण अयं।
समझी नहीं सारी वा मतहारी, महा गिमारी पास गयं।
सापै रिख भारी करी सिलारी, चट तैं तारी रज चरणम।
नमहूं घणनामी जय जगजामी, संतन स्वामी तो सरणम।।5
सिरिया सचियारी मोह संसारी, न्याई लगारी सिळगारी।
धुब अगन अटारी धू धू कारी, मांय मंजारी मिमियारी।
करजै प्रभु कारी टेर कुंभारी, चकरधारी ले चरणम
नमहूं घणनामी जय जगजामी, संतन स्वामी तो सरणम।।6
भाराथ मंजारी भिड़ दळ भारी, जोध अपारी जूझारी।
विहंगम निहारी डरी विचारी, तनै पुकारी तिणवारी।
इंड आय उबारी मया मुरारी, करि घंट डारी रिछ करणम।
नमहूं घणनामी जय जगजामी, संतन स्वामी तो सरणम।।7
जुड़ भीड़ अभीता सिख जगमीता, दसरथ पूता अवधूता।
जिग मे धनु जीता जनक दुहीता, वरी पविता श्री सीता।
राखै निरप रीता आप अजीता, सर्व विदिताजस वरणम।
नमहूं घणनामी जय जगजामी, संतन स्वामी तो सरणम।।8
दुरजोधन खारी बुरी बिचारी, पंडव सारी मतहारी।
द्रोपद दुखियारी निबळा नारी, गाय पुकारी गिरधारी।
अंग वसन वधारी पायन पारी, दुष्ट निहारी ग्यो डरणम।
नमहूं घणनामी जय जगजामी, संतन स्वामी तो सरणम।।9
भिड़िये दध भट्टा महा सुभट्टा, गाह गज हट्टा खा गट्टा।
मद मकर नकट्टा रखै मरट्टा, फील पलट्टा दे फट्टा।
राघव जस झट्टा मैंगळ रट्टा, तद फंद कट्टा भव तरणम।
नमहूं घणनामी जय जगजामी, संतन स्वामी तो सरणम।।10
भूपत घर मेवा तुरंत तजेवा, कौरव ऐवा रख केवा।
सत विदर कलेवा पेख सनेवा, छिलका लेवा छाकेवा।
धिन धिन तुझ देवा भिदे न भेवा, पह तुझ जेवा तूझ परम।
नमहूं घणनामी जय जगजामी, संतन स्वामी तो सरणम।।11
संतन चेरो होय सचेरो, करत भलेरो काज किता।
भरियो मामेरो नरसी भेरो, टेरत तेरो नाम नितां।
रांमत राचेरो नाग नाथेरो, हर दुख मेरो तो हरणम।
नमहूं घणनामी जय जगजामी, संतन स्वामी तो सरणम।।12
द्विज दीन दुखारी भेख भिखारी, प्रीत सखारी नह पारी।
तंदळ ले त्यारी मिलण विचारी, पेखण थारी प्रभुतारी।
महिपत कर भारी रीझ मुरारी, ले बुचकारी उर भरणम।
नमहूं घणनामी जय जगजामी, संतन स्वामी तो सरणम।।13
सांगो नद धारा छोड संसारा, बाछड़ लारा ग्वाळ बयो।
जांमण जळ धारा अंतन पारा, हा हा कारा करत हिंयो।
ईसर तिण वारा सुजस उचारा, गोड़ दुबारा मेल घरम।
नमहूं घणनामी जय जगजामी, संतन स्वामी तो सरणम।।14
सिमरै सह सुरनर जाप सिद्धेसर, धंयान रिखेसर वडा धरम।
कुमती मग परहर तूं करुणाकर, समरथ अघहर राख सरम।
सेवत कवि गिरधर चरणां सिरधर, भगती उरधर भ्व भरम।
नमहूं घणनामी जय जगजामी, संतन स्वामी तो सरणम।।15
।।कवत्त कल़स रो।।
इळ वराह अवतार, धिनो वड दैत विडारण।
वहा रखावण वात, धिनो दंत धरणी धारण।
रँग हुय बावन रूप, आप बलिराव उथाप्यो।
करण इन्द्र सिघ काज, मुदै मुरलोक ही माप्यो।
अरध ले नाम आवै अवस, महि थपण मरजाद रा।
कर जोड़ गीध वंदन करै, प्रणाम ऩाथ पहळाद रा।।
नटवर नंदकिसोर, धिनो गिरि नखड़ै धारण।
गो चारण गोपाळ, आप जन आय उबारण।
माधव मोटा नाथ, तुंही भव बेड़ा तारण।
अघहारण अखिलेस, सांम म्रित लोक सुधारण।
मेटजै मुकंद जामण मरण, जपु माळ जगनाथ री।
गीधिय़ो छांह चरणा गहै, रहै सरण रघुनाथ री।।
~~गिरधर दान रतनू “दासोड़ी”