सरस कल्पना रा सखी

🌺सरस कल्पना रा सखी🌺
लाखौ बिणजारौ कवी, बाळद भर भर याद।
नवी पुरांणी जोडतो, उकति भाव उस्ताद॥1
यादों वाळी जान जद, आवै आंगण द्वार।
उण दिन कविता धारसी, अलंकार रो भार॥2
यादों री जद जद चले, दो धारी तलवार।
वा हीचकी लेती रहै, अठै दरद अणपार॥3
यादों वाळौ आप रो, उमडै जदे अषाढ।
तद मन कविता सुरसरी, मांय आवती बाढ॥4
यादों सूं अवसाद व्है, यादों सूं उन्माद।
यादों सूं मन कैद व्है, अर यादों आजाद॥5
जद जद तोरण बांदियो, याद तणी म्है पोळ।
तद तद कविता कांमणी, संग करी रस छोळ॥6
सरस कलपना रा सखी, रोशन विया चिराग।
फेरुं थारी याद सूं, लगी बाट में आग॥7
यादों रो असवार हूं, कविता कामण लेय।
मन भावै जावूं वठै, कवि मनें सब केय॥8
सतरंगी यादों तणा ,नित नित नव रँग ढोळ।
पाठक ,श्रोता संग में, करतौ रहूं किलोळ॥9
कठै शिकायत हुं करुं, कठै रोउ जा कूक।
हर दम थारी याद री, तणी रहै बंदूक॥10
किण दिन थारी याद रा, मन बिगसै गुलम्होर।
किण दिन उझरडा दियै, जिम कांटाळौ थोर॥11
भीष्म पितामह रे जियां, सूळी वाळी सेज।
याद तणी सुतौ रहुं, बस मन करै गुमेज॥12
याद नावडी आय गी, पलक समद कर पार।
हीचकी; आंसू; डूस्कयां;म्हारा कर स्वीकार॥13
याद कबूतर चिठ्ठीयां, देय फेर उड जाय।
फड फड फड फड पांख सूं, थड थड काळज थाय॥14
जद सूं अवळू आपरी, आई आंगण द्वार।
गीत गज़ल दोहा नज़म, कविता री रसधार॥15
कडी कडी तौ याद री, लडी लडी लय पोय।
घडी घडी रटतौ रहूं, सदा रस- लडी तोय॥16
झडी लगी है याद री, बडी बडी जळ छांट।
नडी नडी नाचण लगी, आवत मास अषाढ॥17
आज आपरी याद रो, खोल्यौ म्है संदूक।
वा ज पुरांणी चिट्ठियां, वा ज पुरांणी बूक॥
~~वैतालिक