सरस्वती आह्वाहन – हिम्मत कविया नोख

MataSaraswati

।।छंद रोमकन्द।।

वरदे वरदायिनि बीन बजायिनि शारद आखर सुंदर दे।

शशि पूनम री धवली किरणों जिम सेत सजी उजला तु गिरा।
कर में कछपी मुख वेद उचारण की छबि माँ छन दास दिरा।।
जिण सूं जयदायिनि बीस भुजायिनि अंतस रो तम मो हरदे।
वरदे वरदायिनि बीन बजायिनि शारद आखर सुंदर दे।।1।।

जिम होत ख़ुशी शशि देख कमोदण कैरव जोति हसे सुख सूं।
रितु राज मिले द्रुम फूलत माँ इम मैं विहसूँ लख तौ मुख सूं।।
कवि कीरत आप बधारण कायम गायम मोहि गिरा स्वर दे।
वरदे वरदायिनि बीन बजायिनि शारद आखर सुंदर दे।।2।।

जय हो जननी जग तारिनि तूँ पदमासन धारिनि माँ सबला।
बिन आप सभी जग मूढ़ मती सदना ब्रह्म तूं दिखला विमला।।
तर जाउ यहां भव सागर से मन आतम ज्ञान तणौ भरदे।
वरदे वरदायिनि बीन बजायिनि शारद आखर सुंदर दे।।3।।

बिन माँ किरपा रच पाउन मै इक छंद नहीँ नर जीवन में।
बणजा तु बहार करूँ सिणगार रचूँ गळ हार मनो वन में।।
लवलेस नहो उर मेँ दुरभाव दया तव हाथ सिरो धरदे।
वरदे वरदायिनि बीन बजायिनि शारद आखर सुंदर दे।।4।।

तुम तीन हिलोक उजाळक हो मग धाम अनंत तु ही विजिया।
हरि की कमला विरची वनिता तुम ही सगती हर की उमिया।।
नित सांझ सवेर तु ही नयनों बिच वास करे करनी वरदे।
वरदे वरदायिनि बीन बजायिनि शारद आखर सुंदर दे।।5।।

तुमही रघु नंदन की प्रिय जानकि तूँ रिसिकेषन की रधिया।
गुण तीनुहि तूँ सत तूँ रज तूँ तम तूँ यश गान करे दुनिया।।
सगती नित तौ हि प्रणाम करूं शुभ वाहिनि हंस गती शुभ दे।
वरदे वरदायिनि बीन बजायिनि शारद आखर सुंदर दे।। 6।।

दिग भ्रांत न हो नर नार कभी निज भाव अमोलक बात कहूँ।
जगती तल का रिण मात चुका कर अंत समै तव अंक लहूँ।।
सबही जन मानस में परमारथ का शुचि भाव गिरा करदे।
वरदे वरदायिनि बीन बजायिनि शारद आखर सुंदर दे।।7।।

सदज्ञान बहे सरिता वर दे रत हों सब भारत की जनता
उनती पथ में सबसे अगुआ रख मात मिटा शठ की जड़ता।।
सुखिया दुखिया सम भाव रहे हर पीड़ प्रजालक तूँ हर दे।
वरदे वरदायिनि बीन बजायिनि शारद आखर सुंदर दे।।8।।

हर आँगन नाच करे कमला त्रण अंकुर फ़ूट हरे भरजा।
फल चाख सकै नव संतति माँ हर बाग़ मधूबनतूँ करजा।।
विदवान करो जननी मौ विशारद भाव सभी शुचिता भरदे।
वरदे वरदायिनि बीन बजायिनि शारद आखर सुंदर दे।।9।।

कलिकाल महा विकराल कुचाल चले नर नार यहाँ हट के।
सबही सुख के सहभाग बने पर पीड़ सदा उर में खटके।।
उपकारि बना जय शारद मात विहार करूं नव मंदर दे।
वरदे वरदायिनि बीन बजायिनि शारद आखर सुंदर दे।।10।।

त्रिपुटी भव जाळ पड़े फिरते निज मान गुमान रहे अटके।
कर मात कृपा मुझ पे इतरी मन चंचल मोह नहीं भटके।।
हिय कोमल भाव भरो शुभ हीमत नेक नवो दिवलो करदे।
वरदे वरदायिनि बीन बजायिनि शारद आखर सुंदर दे।।11।।

धरदो सिर हाथ करो अब मात सनाथ न मैं भयभीत रहूँ।
हित मानवता नित काज करूँ जग दारुण पीडसदा हि सहूँ।।
सुर दे मन लायक साज सहायक भारति भारत में भरदे।
वरदे वरदायनि बीन बजायनि शारद आखर सुंदर दे ।।12।।

~~हिम्मत कविया नोख

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