🌹सरस्वती वंदना🌹- कवि स्व अजयदान जी लखदान जी रोहडिया
🌹दोहा🌹
कमल नयनि कमलज अजा, कमलासनि कमनीय।
करो वास मुख कमल में, बीन कमल कर लीय।।
🌹छंद नाराच🌹
घनान्धकार नाशिनी विनाशिनी विमूढता।
प्रज्ञा प्रदायिनी प्रकाश वर्धनी प्रगूढता।
हरि हरादि पूजिता, विरंचि वंदिता अति।
प्रसन्न हो प्रयच्छ बुद्धि स्वच्छ मां सरस्वती।। १
नमामि ज्ञान दायिनी, निवारणी अज्ञानता।
मलीन दीन हीन मैं, न भक्ति भाव जानता।
सरोज चारू पाणि ले, सितार तार झंकृति।
प्रसन्न हो प्रयच्छ बुद्धि स्वच्छ मां सरस्वती।। २
मिटा मनोमलीनता, हटा कुतर्क की घटा।
विवेक दायिनी विधुत सी जगा विभा छटा।
प्रपंच व्यूह ध्वस्तनी, प्रपन्न हूं बढा धृति।
प्रसन्न हो प्रयच्छ बुद्धि स्वच्छ मां सरस्वती। ३
यथा सरोज सूर्य के उदे बिना नहीं खिले।
तथैव त्वं कृपा बिना कदा न विद्वता मिले।
बढा सदैव स्वान्त में सुसत्य के प्रति रति।
प्रसन्न हो प्रयच्छ बुद्धि स्वच्छ मां सरस्वती।। ४
ब्रह्मांड में समस्त व्याप्त हो रही तुँही गिरा।
वशिष्ठ वेदव्यास याग्यवलक्य अत्रि अंगिरा।
त्वदीय सर्व ज्ञान से अपूर्व दे गये कृति।
प्रसन्न हो प्रयच्छ बुद्धि स्वच्छ मां सरस्वती।। ५
लिखे गए ललाम ग्रंथ जो असंख्य आदि में।
सुकाव्य योग न्याय तर्क इत्यहास आदि में।
तथा सु पा सृजी गई स्व प्रेरणा श्रुति स्मृति।
प्रसन्न हो प्रयच्छ बुद्धि स्वच्छ मां सरस्वती।। ६
विज्ञान ज्ञान जंत्र मंत्र तंत्र यंत्र जानते।
समस्त शाश्त्र सृष्टि के सुभाष्यकार मानते।
मिले समस्त विश्व में त्वदीय ही चमत्कृति।
प्रसन्न हो प्रयच्छ बुद्धि स्वच्छ मां सरस्वती।। ७
रचे प्रभाव से स्वकीय सृष्टि से प्रजापति।
करे विनाश शर्व, पालते तथा रमापति।
रुके समग्र अग्र त्वं, प्रताप सूर्य की गति।
प्रसन्न हो प्रयच्छ बुद्धि स्वच्छ मां सरस्वती।। ८
गुणा सहस्त्र उच्च स्थान पुत्र से भवद्प्रसू।
सु भासती सुरम्य ये त्वया मया दशो दिशू।
महातम्य त्वं अगम्य है, जहां न जा सके मति।
प्रसन्न हो प्रयच्छ बुद्धि स्वच्छ मां सरस्वती।। ९
जहाँ लगी न ध्यान में न चित्त चारू बैठता।
रहस्य गूढ रंच भी सुबुद्धि में न बैठता।
तूंही स्वभक्त कामना समस्त शीध्र सिद्ध्यति।
प्रसन्न हो प्रयच्छ बुद्धि स्वच्छ मां सरस्वती।। १०
सरोज पाणि शारदे!सदैव शीश पेै धरो।
ह्रदै स्वरूप सिंधु को विधाम्बु से महा भरो।
निवार के मनोमलं सुधार शीध्र दुर्मति।
प्रसन्न हो प्रयच्छ बुद्धि स्वच्छ मां सरस्वती।। ११
बुराई बीन धारिणी स्वतात की नहीं करों।
गई स्वबुद्धि बोथरा कहै स्वदास ये खरो।
न वित्त योग को दियौ दयी अयोग्य संपति।
प्रसन्न हो प्रयच्छ बुद्धि स्वच्छ मां सरस्वती।। १२
रमेश अल्प भक्ति से प्रसीद ना हुए सुने।
कठोर साधना किये कदापि देव को बनें।
सुसध्य तुष्ट होय देनि तूही ज्ञान संपति।
प्रसन्न हो प्रयच्छ बुद्धि स्वच्छ मां सरस्वती।। १३
मदीय चित्त चंचरीक, नित्य पाद पंकजे।
त्वदीय लीन हो सदा सुनेह ना कदा तजे।
सुकर्म में स्वधर्म में सुवृत्ति में रमा मति।
प्रसन्न हो प्रयच्छ बुद्धि स्वच्छ मां सरस्वती। १४
निराश्रयावलंबिके!कृपावलंब दीजिए।
गिरा अज्ञान गर्त में गिरा उबार लीजिए।
सुधार दुर्दशा गुहार पे त्वरित दे श्रुति।
प्रसन्न हो प्रयच्छ बुद्धि स्वच्छ मां सरस्वती। १५
शरण्य वाग्गदेवि त्वं मनुष्य जो न आवते।
विमूढ वे विवेकहीन कोटि कष्ट पावते।
लगा उन्है महामया, अरण्य एक संसृति।
प्रसन्न हो प्रयच्छ बुद्धि स्वच्छ मां सरस्वती।। १६
न वित्त रंच याचता न सुक्ख लेश चाहिए।
सदा अबोध बाल को अकार्य से बचाइये।
सुवत्सले !ममत्व का महोदोधि हिलोरती।
प्रसन्न हो प्रयच्छ बुद्धि स्वच्छ मां सरस्वती।। १७
प्रवाह काव्य गंग का पवित्र शक्ति पुत्र के।
ह्रदै हिमाद्रि से बहै, सदैव सच्चरित्र के।
रहो कृति मति गति सुधारती मनोवृति।
प्रसन्न हो प्रयच्छ बुद्धि स्वच्छ मां सरस्वती।। १८
यथोक्त स्तोत्र में न दोष ह्रस्व दीर्घ देखिये।
प्रयास अल्प बुद्धि बाल का त्वदीय पेखिये।
मदीय नित्य जीभ पे करो निवास भारती।
प्रसन्न हो प्रयच्छ बुद्धि स्वच्छ मां सरस्वती।। १९
कृपा त्व कल्पवृक्ष है अतीव स्तुत्य फल प्रदं।
वदंत नित्य वेद यों” अजे” न अनृतं इदं।
स्फटिक माल कंज-पाणि ग्रंथ सु अलंकृति।
प्रसन्न हो प्रयच्छ बुद्धि स्वच्छ मां सरस्वती।। २०
🌹कलश छप्पय🌹
चरण कमल मन भ्रमर, मग्न बनकर मन रह नित।
विमल वरद कर कमल, शीश पर धर कर कर हित।
कमल नयनि निज कृपा, अहरनिश ह्वै किंकर पर।
कमलमुखी मुख कमल, विमुख नँह करहु सुखद वर।
कर बद्ध विनय कमलज अजा, करत “अजय”यह पुनि पुनि।
मम ह्रदय हंस वाहिनी रहो, शुचिधर शुचि अंतर ध्वनि।।
🌹दोहा🌹
पुष्टि तुष्टि मेधा प्रभा, धरा, धृति श्रीगौरि।
अष्ट मूर्तियों से गिरा, करहू सुरक्षा मोरि।।
~~कवि स्व अजयदान जी लखदान जी रोहडिया
(गाँव मलावा, तहसील रेवदर, जिला सिरोही राजस्थान)