सरस्वती वंदना

मेरे मित्र अवधेश सा देवल से वलदरा में मिलने का हुआ तो उन्होने मुझे सिरोही जिले के ऐतिहासिक पौराणिक सरस्वती मंदिर जो अजारी गांव में स्थित है उसका जिक्र किया और निवेदन किया की आप पर सरस्वती की कृपा है सो सिरोही जिले के अजारी गाँव स्थित सरस्वती मंदिर के अवश्य दर्शन लाभ लें। मैंने उनको बताया था कि हम दोनों साथ साथ चलेंगे और वहां दर्शन करने जाने से पूर्व एक सरस्वती वंदना मेैं मां की बनाने की कोशिश करूंगा। और जब दर्शन करेंगे तो मां के सामने सस्वर पठन करेंगे। आज उस बात को ध्यान में रखते हुए एक चंचरीक (चर्चरी) छंद बनाने की कोशिश की है।
🌸दोहा🌸
स्वरदे! वरदे! शारदे, भरदे उर मँह भाव।
पर दे लय औ छंद रा, मन -खग कवित उछाव।। १
वाणी वीणापाणिनी, पुस्तकपाणी मात।
धवल कमल शुभ आसनी, आखर दे अवदात।। २
फटिक माल गल़ फूटरी, गिरा गौर शुभगात।
रीझ बसौ बालक रसन, हंसवाहिनी मात।। ३
गण मात्रा वल़ वरण लय, यति जुत छंद सरोज।
समपूं चरणां शारदा, राजी राखण रोज।। ४
नमो मात कमलासनी, वीणा पुस्तक घार।
धवल वसन, बसियो रसन, कीजो मां उपकार।। ५
धवलांबरधरनी नमन, धवल कमल आसन्न।
धवल स्फटिक माला पहन, बसियै गिरा रसन्न।। ६
वरदानी वाणी नमन, वीणापाणी मात।
नवल शब्द नव भाव दे, नरपत को अवदात।। ७
कविता नवलख हार शुभ, जडियल भाव जडाव।
धवलांबर धारण करो, कंठ करै घण चाव।। ८
देवौ आखर दान, भाव दिरावौ भारती।
नरपत सुत नादान, मांगै इतरो मावडी।। ९
आखर दानी आप, भाव उपानी भव्यतम।
महर करो मां-बाप, वीण पाण वागीसरी।। १०
शुभ उकती दे शारदा, काव्य कथन मय भाव।
अरजी नरपत री सुणों, दिल री वड दरियाव।। ११
भाव दिरावौ भव्यतम, शुभ आखर रे साथ।
शबद सुमन खारिज न ह्वै, मांगूं इतरो मात।। १२
माल़ा मोतीदाम री, कर धर कागद-कंज।
गिरा ज्ञान दाता सदा, मेटौ मन रा रंज।। १३
रोमकंद अर रेणकी, तणी बीण कर लेय।
बैठी मां वागीसरी, अनहद आणंद देय।। १४
मनहर, मत्तगयंद गति, गीत सोहणो गात।
सुरसत वंदन आप नें, मनसुध हे! जगमात।। १५
🌹छंद – चंचरीक🌹
धवलासन -कमल- धार, विमला, पट -धवल-वार,
हाटकमय फटिक- हार, गल़ बिच सोहै।
मरकत- मणि- मुकुट माथ, पुस्तक- कर, माल हाथ,
सुर नर मुनि गात गाथ, वंदत तोहै।
मन रे बैठर मराल, नितप्रत करती निहाल,
बरसावै हेत व्हाल, कंबुज पाणी।
सुर लय यति छंद साज, कविता शुभ दियण काज,
रसना रहियो विराज, वरदा वाणी।। १
सुंदर झंकृत सितार, बाजत पुनि बार बार,
अद्भुत घ्वनि ह्वैअपार, आंगण थांरे।
नरतन तत थै तथा न, सा रे गा साम गान,
धिधिकट धत धत धितान, सुर लय वारे।
किन्नर सुर यक्ष नाग, रिषि मुनि जतिराज राग,
स्तवन करत जाग जाग, पंडित ज्ञानी।
सुर लय यति छंद साज, कविता शुभ दियण काज,
रसना रहियो विराज, वरदा वाणी।। २
तोटक, दोधक, गयंद, अमृत ध्वनि त्रिकुटबंध,
उल्लाला रोमकंद, मनहर, गाथा।
पद्य, गद्य, अर, प्रबंध, नाटक, चम्पू, निबंध,
गीत, गज़ल, मुक्त, छंद, सब री दाता।
पिंगल करणी प्रबीन, डिंगल डक नाद दीन,
नित प्रत समपौ नवीन, उकति कल्यांणी।
सुर लय यति छंद साज, कविता शुभ दियण काज,
रसना रहियो विराज, वरदा वाणी।। ३
कमले!कर कमल बीन, शुभ्र कमल पर आसीन,
नयन कमल शुभ नवीन, देखो देवी।
नरपत राखौ नजीक, चरण कमल चंचरीक,
ठौड आप चहूं ठीक, शुधचित सेवी।
कमलजतनया सुगेह, रसन-कमल करो थेह,
मन सुध अरजी थनें ह, पुस्तक पाणी।
सुर लय यति छंद साज, कविता शुभ दियण काज,
रसना रहियो विराज, वरदा वाणी।। ४
मां म्हूं मतिमंद मूढ, आखर भाखर त्रिकूट,
कविता पथ गहन गूढ, चलणौ दोरो।
लय यति गति ना विधान, नव-रस, नव-छंद ज्ञान
नरपत नटखट नादान, बाल़क थोंरो।
नवरस री आप नूर, दगधाक्षर करो दूर,
ममतामयि मां जरूर, स्वरदा राणी।
सुर लय यति छंद साज, कविता शुभ दियण काज,
रसना रहियो विराज, वरदा वाणी।। ५
सोहत शिणगार सार, उपमा रूपक अपार,
उत्प्रेक्षा कंठ हार, विध विध रूपी।
अनुपम अनुप्रास खास, हिय जिण सुण ह्वै हुलास,
मन री मेटत उदास, अमरत कूंपी।
वयण सगाई विशेष, विध विध परिवेश वेश,
शुभ तन सोहत हमेश, घवला राणी।
सुर लय यति छंद साज, कविता शुभ दियण काज,
रसना रहियो विराज, वरदा वाणी।। ६
नीलम छबि श्याम रंग, देखत हिव ह्वै उमंग,
घट में कविता प्रसंग, अनहद जागे।
वालमीक वेद व्यास, कविशेखर कालिदास,
रसना नित रमत रास, रीझी रागे।
दीजो शुचि उकति दान, शारद मां सामगान,
वरदे नवरस निधान, जग तौ जाणी।
सुर लय यति छंद साज, कविता शुभ दियण काज,
रसना रहियो विराज, वरदा वाणी।। ७
अमला विमला अनूप, ध्यावूं कर दीप धूप,
जय जय जोती सरूप, दस दिस देखी।
उतपति थिति प्रलय आप, प्रकृति रचना कलाप,
वपु वपु बस आप व्याप, लोचन लेखी।
गहन तिमिर घन समान, काटौ करूणानिधान,
दो जन मन ज्ञान दान, बाल़क जांणी।
सुर लय यति छंद साज, कविता शुभ दियण काज,
रसना रहियो विराज, वरदा वाणी।। ८
🌸कलश छप्पय🌸
वरदे वीणापाणि, शारदे सुंदर स्वर दे।
भरदे मन में भाव, कल्पना खग नें पर दे।
करदे मां कमनीय, छंद, गति, लय आखर दे।
हर दे मन रौ मैल, हटा तम के घन परदे।
नित नरपत नित प्रत तौ जपै, गिरा, शारदा, भारती।
शुभ उकति कथ्य भाषा सरल, दीजो शुभ चित, शुचि मति।।
~~©वैतालिक

माता सरस्वती – अजारी (जिला – सिरोही, राजस्थान)