सरस्वती वंदना – कवि जगमाल सिंह “ज्वाला” सुरतांणिया कृत
गीत जांगड़ो
शुभ्र वस्त्र वीण साज शुशोभित,बाई हंस बिराजे।
झनहण वीण ज तार झणंकत,राजीव उपर राजे।1।
वेद विरंचि खरेखर विमला,पुष्प शब्द प्रकाशे।
जाय बिराजे रसना जां के,उर जन होय उजासे।2।
धवल गात अरु सो पट धवला’धवल दंत मुख धारे।
धवल हंस शोभे धणियाणी,सेवक सोय सुधारे।3।
सुर नर सोयतिहारासेवक,वेद कतेब वतावे।
अष्ट पहर रहता तुझ आगळ, गन्धर्व चारण गावे।4।
कालिदास मूढ़ अरु कामी,सो जाणत संसारा।
मैहर भई आप री मावड,मूरख बणे मुरारा।5।
वाल्मीक डमतो होय वानर,जंगल जंगल जारा।
जाय बिराजी रसना जामण,आखर भगत उबारा।6।
कुम्भकर्ण करी हठ कायम,सात लोक ले सारा।
देव सबे डरपे उण दाडे,विष्णु इंद्र विचारा।7।
आए देव आप रे आगळ,अबके मात उबारो।
बेठ गई रचना पर बाई,सौपे नींद छुटकारो।8।
हिये सुधड़ करण माँ हेलो,पल पल मात पुकारू।
“जगमाल” साद सुणतो जामण,वेगी आवजे वारू।9।
अक्ल शब्द विद्या मोहे आपो,दध आखर कर दूरे।
छंद सोरठा गीत गजल सब,भजन करू भरपूरे।10।