सत पथ

हर इक मोड़ गली चौराहे, रावण का ही राज यहां।
विध-विध रूपाकारी दानव, है जिनके सिर ताज यहां।
राम नाम तो यहां समझलो, लाचारी का सौदा है।
ईमान-धर्म इन सबसे बढ़कर, या पैसा या ओहदा है।
कलयुग पखी राह रावण की, जिन भरमाए भले-भले।
उस पथ पर चलना अति मुश्किल,जिस पर श्री रघुनाथ चले।
इसीलिए हर वर्ष असुर का, कद लम्बा हो जाता है।
अट्टहास कर अनाचार का, रावण दर्प दिखाता है।
पर ये सच का राम निडर है, इसकी शक्ति निराली है।
युगों-युगों तक दस-मस्तक के, सीस काटने वाली है।
सच के राही! मत घबराना, विजय रहेगी सत के साथ।
हर दिन को दशहरा मान तू, हर कर को रघुनाथ-हाथ।
अहंकार का राज अंत में, अहंकार खा जाता है।
रिश्वत का पैसा रिश्वत से, बचने में खप जाता है।
अनाचार को अनाचार ही, लम्बी नींद सुला देता।
झूठ-कपट का झूठ-कपट ही, इक दिन दुर्ग हिला देता।
सार यही है बुरा बुरे को, मौका देख मसल देगा।
या फिर सच का राम समय पर, रावण-वध कर हल देगा।
सच को सच से कभी न खतरा, भला भले को ना खाए।
ईमान-धर्म का पाठ पढ़ाते, सत के पथ पर चलते जाएं।
~~डॉ. गजादान चारण “शक्तिसुत”