शबद आराधना

शबद अमीणौ साइनो, मै शबदां रो पीर।
करुं शबद आराधना, सुरसत रे मंदीर॥1

शबद दरद, अहसास मन, वाणी, ध्वनि, लय, छंद।
यति, गति मय विध रुप धर, उर बगसे आणंद॥2

म्हूं शबदां रो जोहरी, कविता नवलख हार।
पोयी लडियां शबद री, “शारद कर स्वीकार”॥3

म्हूं शबदां रो शेठियौ,  तोल त्राकळी भाव।
मांडू पाठक मौज कज, अंतस   धरे उमाव॥4

शबदां वाळी हथ-कढी, जद म्है पीधी पाव।
मद छकियौ मौ मन कहै, लाव वळे थुं लाव॥5

शबदल पुर रो शाह म्है, पाठक रैयत राव।
बाटूं मन री मौज सूं, कविता क्रोड पसाव॥6

धरा डिंगळी रा धणी, तणो सिपाही एक।
शबद तीर संधान कर, करतो घायल केक॥7

अखै खजीना याद रा, बांटुं सदा अथाह।
सखी शबद रो शाह म्है, पण थुं बेपरवाह॥8

शबद -भाव मय बांसुरी, कवि बजाडी कान।
झटपट कविता राधिका,आई मन बरसान॥9

लमहों री जागीर रो, शबद सांच रखवाळ।
रच कविता लय छंद जुत, बरसो रखै संभाळ॥10

शबदों रो यायावरी  , पंछी मन नें पार।
पूगै पीतम पोळ में,  बिनां मान मनवार॥11

आखर रो म्हुं औलियो, भर मन कविता भाव।
मंतर लय रा मारतो, करतौ दरद उपाय॥12

म्हू शबदों रो म्हारथी,कथी न कूडी गल्ल।
पळ पळ पारथ बण पछै ,दुःख रा हणतौ दल्ल॥13

म्हूं शबदों रो म्हारथी, सारथी  ले लय भाव।
मन री इण जुध भूमिमें, करतौ रहतौ घाव॥14

~~वैतालिक

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